बड़ा सोचो…छोटा करो…लगातार करते रहो..
बड़ा सोचो…छोटा करो…लगातार करते रहो
जिंदगी मौका हम सबको देती है कि हम अपने आपको आजमाएं और सफलता तक पहुंचे। लेकिन इसके बावजूद बहुत कम लोग ही सफलता हासिल कर पाते हैं , सफलता के सही मायने भी समझना होंगे ! दरअसल जीवन में सफल होना उतना ही सरल है, जितना किसी बच्चे के लिए कोई नई स्किल सीखना। सफलता सरलता से आती है अर्थात यदि हम कुछ जरूरी अभ्यास व तरीकों को जिंदगी में शामिल कर लें तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं जो सफलता हमारी भी जिंदगी का हमेशा के लिए पार्ट ऑफ लाइफ हो जाएगी । कबीर कहते हैं- करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान …।
कठोरता अपनाएं स्वयं के साथ
सफलता में सबसे बड़ी रुकावट हम खुद हैं। हम दूसरों के साथ कठोर होना वीरता मान लेते हैं किंतु जब स्वयं की बारी आती है तो अधिक से अधिक सरल रास्ते अपनाने की कोशिश करते हैं । यदि सफलता का स्वाद लेना है तो इसके लिए हमें कुछ जरूरी नियम बनाने ही होंगे। जैसे- सुबह जल्दी उठना, रोज शारीरिक कसरत व ध्यान करना, रोजाना कुछ पढ़ना व तय काम को तय समय सीमा में करना, समय का पाबंद रहना, लक्ष्य केन्द्रित रहना । ये सभी नियम छोटे जरूर प्रतीत होते हैं लेकिन अधिकांश लोग इन आदतों को अपनाने में ही विफल हो जाते हैं। यदि हमें कुछ नया करना है, कुछ हासिल करना है तो यह करना ही होगा ।
निरतंरता रखे अपने प्रयासों में
बड़ा सोचो , छोटा करो , लगातार करते रहो । किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह नियम जरूरी है। हम सब लोग अपने नए काम या कुछ खास करने की बात करते हैं। उस पर काम करना शुरू भी कर देते हैं, लेकिन निरंतरता नहीं रख पाते। कारण या तो कुछ समय बाद हमारे विचार बदल जाना या अच्छे परिणाम नहीं आना, सही समय व वातावरण अनुकूल नहीं होना, कुछ भी हो सकता है । इन सबके बीच निरतंर संतुलन के साथ चलते रहना सफर को हमेशा के लिए सफल कर देता है । दुनिया में अपनी बड़ी सोच की दिशा में लगातार काम करने वाले बहुत कम है। इसीलिए सफल और श्रेष्ठ लोगों की संख्या भी कम है।
सहजता रखें सभी नतीजों में
एक अच्छी शुरुआत का मतलब यह नहीं है कि आप सफल हो गए। इसी तरह एक खराब शुरुआत का मतलब भी यह नहीं है कि आप विफल हो गए। यदि हम एक छोटे बच्चे को कुछ नया करते हुए देखते हैं तो पाएंगे जब वह कोशिश करता है और परिणाम अच्छे नहीं आते या सफल नहीं होता तो वह रुकता नहीं, फिर कोशिश करता है। सफलता के साथ साथ खुश रहने के लिए सबसे जरूरी है कि हम प्रत्येक स्थिति में सहजता रखें। तीसरी शताब्दी के संत तिरुवल्लुवर कहते हैं, ” उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का मापदंड है ” अर्थात काम में उत्साह बना रहना कार्य को पूर्णता तक पहुँचाने के लिए अतिआवश्यक है ।
परिणाम
हम सभी परिणामों से गहराई से प्रभावित होते, बहुत स्वाभाविक भी है किन्तु यह भी ज्ञान होना ही चाहिए कि परिणाम हमेशा आपके अनुकूल नहीं हो सकते ! ऐसी स्थिति में अब क्या करना है ? यदि यह जान लिया तब सफलता का टेस्ट हमेशा बरकरार रहेगा।
आइए अंत में सबसे रहस्यमयी और संजीवनी बूटी को जान लेते हैं, इसको समझने के लिए जीवन की व्यवस्था को समझना ही होगा…भगवान श्रीकृष्ण गीता में उपदेश देते हुए कहते हैं …
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥
कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और अकर्मण का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए क्योंकि *कर्म की गति गहन* है ।
इसी कर्म गति को समझते हुए परिणाम से प्रभावित हुए बिना सहज भाव से निरतंर कर्म करते रहें, परिणाम तो अवश्यंभावी मिलना ही है।भगवान कहते हैं उसे मैं टाल नहीं सकता ।
– *रविन्द्र नरवरिया*
(करियर काउंसलर,लाइफ मैनेजमेंट कोच )
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नेकी कर लाॅटरी निकालबड़ा सोचो…छोटा करो…लगातार करते रहो
साज़िशें बहुत हैं जमाने में, जरा संभल कर चलना ,
डगमगाए जब कदम, चराग नेकी का जलाकर चलना ।
कभी न कभी आपने ‘नेकी कर दरिया में डाल’ कहावत तो यकीनन सुनी होगी, बोली होगी या फिर ऐसा किया भी होगा। लेकिन प्रकृति के नियम बहुत ही सरल और न्यायसंगत हैं। जैसे कर भला तो हो भला । ब्रिटेन में एक किसान था एक दिन वह अपने खेत में काम कर रहा था तभी अचानक उसने किसी के चीखने की आवाज सुनी, किसान उस आवाज की दिशा में गया तो देखा कि एक बच्चा दलदल में फंस रहा है। किसान ने अपनी जान जोखिम में डाल उस बच्चे को दलदल से बाहर निकाला। दूसरे दिन किसान के घर के पास एक घोड़ा गाड़ी आकर रुकी, उसमें से एक अमीर आदमी उतरा और बोला मैं उसी बच्चे का पिता हूं, जिसे कल आपने बचाया था, मैं आपके इस एहसान को चुकाना चाहता हूँ, लेकिन किसान ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया और कहा यह एक इंसान होने के नाते मेरा फर्ज था कि किसी दूसरे इंसान की जरूरत पड़ने पर मदद करे, इसका आपके उपर कोई एहसान नहीं। जब किसान और अमीर के बीच बात हो रही थी उसी दौरान किसान का बेटा बाहर आया। उसे देखते ही अमीर आदमी ने किसान से कहा कि मैं तुम्हारे बेटे को अपने बेटे की तरह पालना चाहता हूँ, उसे भी वे सारी सुख-सुविधाएं और उच्च शिक्षा दी जाएगी, जो मेरे बेटे के लिए होगी ताकि भविष्य में वह एक बड़ा आदमी बन सके। बच्चे के भविष्य की खातिर किसान ने अमीर आदमी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
किसान के बेटे ने लंदन के प्रतिष्ठित सेंट मेरीज हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल से स्नातक किया और प्रसिद्ध चिकित्सक बन गया। इसी दौरान उस अमीर आदमी का बेटा बहुत बीमार पड़ गया। लेकिन उस किसान के बेटे की बनाई एक दवाई से उस अमीर आदमी के बेटे की जान बच गई। किसान का नाम था फ्लेमिंग, किसान के बेटे का नाम था ‘सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग’ वही महान वैज्ञानिक जिसने
पेनिसिलिन का आविष्कार किया था। वह अमीर आदमी था रैडोल्फ चर्चिल, और उसका बेटा जिसकी एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने जान बचाई थी वह था विस्टन चर्चिल जो दो बार ब्रिटेन का प्रधानमंत्री रहा। बहरहाल, इस किस्से से यह बात जाहिर होती है कि कुदरत के नजरिये से देखें तो नेकी कर दरिया में डाल से आगे आता है नेकी कर लॉटरी में निकाल। कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि हम जिंदगी में कभी अगर कुछ अच्छा करते हैं तो उसका अच्छा प्रतिफल भी मिलता है। हो सकता है कि हम अपनी जीवन की घटनाओं को कभी इस नजरिये से नहीं देखते हों, लेकिन ऐसा होता है, यकीनन ऐसा होता है ।
बेशक हम अपने बच्चों को कामयाब बनने की सीख देते हैं, पर साथ में उसे यह भी बता दें की वह नेकी की लाॅटरी लेना न भूले । एक उत्तम परिवार से ही सर्वोत्तम समाज का निर्माण होता है । राजनीति और प्रशासन इन दिनों गंभीर सवालों के घेरे में हैं, इनकी ओर आने वाले युवा नेकी की दिवार बनाने की सोच के साथ आते हैं । पर ‘नेकी कर दरिया में डाल’ की जगह ‘नेकी को दरिया में डाल देते हैं’ । हमारे पूर्वजों की इस उक्ति का सार ही यह है कि नेकी करके भूल जाओ, याद रखेंगे तो अपेक्षाएँ बढ़ेगीं और पूरी नहीं हुई तो ईष्या जन्म लेगी, ईष्या से घृणा का विस्तार होगा जो प्रेम को नष्ट कर देगी ।
किसी ने कहा है,
ए बंदे तेरी नेकी का लिबाज ही तेरे बदन को ढकेगा,
क्योंकी ऊपर वाले के वहाँ कपड़े की दुकान नहीं होती ।
(रविन्द्र नरवरिया)
(लेखक लाईफ मैनेजमेंट कोच व केरियर काउंसलर हैं व बीस वर्षों से सिविल सर्विसेज प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए अध्यापन कार्य कर रहे हैं)