आईएनएस कोच्चि (INS Kochi)
आईएनएस कोच्चि (INS Kochi)
यह भारत में बना अब तक का सबसे बड़ा युद्धपोत है
आईएनएस कोच्चि (INS Kochi) को भारतीय नौसेना में शामिल करने के लिए मुम्बई स्थित नौसेना के गोदीवाड़े में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें केन्द्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने इसे नौसेना में शामिल कराया। यह युद्धपोत स्वदेशी तकनीक से बनाए जा रहे कोलकाता-श्रेणी के विध्वंसक पोतों में से एक है तथा इनका निर्माण मुम्बई स्थित मझगांव डॉक्स लिमिटेड (Mazagaon Docks Limited – MDL) में लगभग 4,000 करोड़ रुपए प्रति पोत की कीमत पर किया जा रहा है। 7500-टन का यह विध्वंसक पोत अब तक भारत में बना सबसे बड़ा युद्धपोत है। उल्लेखनीय है कि कोलकाता-श्रेणी के तहत निर्मित किया जाने वाला पहला पोत INS कोलकाता (INS Kolkata) था जिसे पिछले वर्ष अगस्त में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था जबकि इस श्रेणी का अंतिम पोत आईएनएस चेन्नई (INS Chennai) होगा जिसे 2016 के अंत में नौसेना में शामिल किए जाने की संभावना है।
INS कोच्चि से सम्बन्धित कुछ प्रमुख तथ्य:
– यह भारत में बना अब तक का सबसे बड़ा युद्धपोत है
– इसे मुम्बई स्थित मझगांव डॉक्स लिमिटेड (MDL) में बनाया गया है
– इसका भार 7,500 टन से अधिक है, लम्बाई 164 मीटर है तथा बीन की मोटाई 17 मीटर है
– यह पोत जमीन-से-जमीन पर वार करने वाली अधिक दूरी की मारक क्षमता वाले ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र (BrahMos missile) से लैस है
– इसमें 76 एमएम की सुपर रैपिड गन माउण्ट (SRGM) तथा ए.के. 630 क्लोज़ इन वेपन सिस्टम (CIWS) से भी लैस होगा जिससे जमीनी तथा हवाई दोनों प्रकार के निशानों को भेद सकेगा
– INS कोच्चि का ध्येय वाक्य है – “जाहि शत्रुण महाबाहो” (“Jahi Shatrun Mahabaho”)
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एण्ट्रिक्स (Antrix) को 562.5 मिलियन डॉलर का भारी-भरकम जुर्माना
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (ISRO) और भारत सरकार को उस समय एक बड़ा झटका लगा जब अंतर्राष्ट्रीय चैम्बर ऑफ कॉमर्स (International Chamber of Commerce – ICC) के अंतर्राष्ट्रीय निपटारा न्यायालय (International Court of Arbitration – ICA) ने ISRO की वाणिज्यिक इकाई एण्ट्रिक्स (Antrix) को 562.5 मिलियन डॉलर का भारी-भरकम जुर्माना बेंगलूरु-स्थित एक अंतरिक्ष प्रौद्यौगिकी फर्म को देने का निर्देश 28 सितम्बर 2015 को दिया। एण्ट्रिक्स पर यह जुर्माना इसलिए लगाया गया है क्योंकि उसने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर इस फर्म के साथ किए एक करार को पूरा करने से मना कर दिया था।
अंतर्राष्ट्रीय निपटारा न्यायालय (ICA) का यह निर्देश 28 जनवरी 2005 को एण्ट्रिक्स (Antrix) और देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच हुए उस करार से सम्बन्धित है जिसके तहत देवास को ISRO द्वारा प्रक्षेपित किए जाने वाले दो उपग्रहों की 70 मेगाहर्ट्स एस-बैण्ड स्पैक्ट्रम को लीज़ पर प्रदान करना था। इस समझौते के अंतर्गत 12 वर्षों के लिए उपग्रह के स्पैक्ट्रम का प्रयोग करने के लिए देवास को एण्ट्रिक्स को 300 मिलियन डॉलर का भुगतान करना था तथा इस संधि को 12 वर्ष के लिए बढ़ाने की व्यवस्था भी थी।
देवास इस स्पैक्ट्रम का प्रयोग तमाम सेवाओं के लिए करने वाला था, जैसे – ऑडियो, वीडियो तथा ब्रॉडबैण्ड सेवाएं प्रदान करने के लिए तथा कुछ अन्य उपग्रह सेवाओं के लिए। लेकिन सुरक्षा के मुद्दे पर गठित केन्द्रीय कैबिनेट समिति (Cabinet Committee on Security – CCS) ने वर्ष 2011 में इस समझौते को निरस्त कर दिया क्योंकि उसके अनुसार इससे राष्ट्रीय सुरक्षा की अनदेखी संभव थी तथा एण्ट्रिक्स द्वारा उसने इस प्रकार स्पैक्ट्रम उपलब्ध कराने के फैसले को भी राष्ट्रीय हित में नहीं माना था। इसके बाद ही देवास ने एण्ट्रिक्स पर लगभग 1.5 अरब डॉलर का दावा किया था। अब ICA के इस फैसले को भारतीय न्यायापालिका द्वारा लागू कराना अपेक्षित है।
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Foreign Account Tax Compliance Act (FATCA)
विदेशों में कर-चोरी (tax-evasion) तथा काले धन (black money) के मामलों को पकड़ने के उद्देश्य से भारत और अमेरिका के बीच एक दूसरे की परस्पर मदद करने से सम्बन्धित एक महात्वाकांक्षी करार 30 सितम्बर 2015 से प्रभाव में आ गया।
Foreign Account Tax Compliance Act (FATCA) नामक इस करार के द्वारा भारत और अमेरिका बैंक खातों तथा इक्विटी, म्यूचुअल फण्ड्स तथा बीमा जैसे वित्तीय उपागमों के सम्बन्ध में परस्पर सूचना का आदान-प्रदान कर विदेशों में जमा काला धन की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की कोशिश करेंगे।
इस करार के 30 सितम्बर 2015 से प्रभाव में आने के फलस्वरूप अमेरिका में संचालित बैंक, म्यूचुअल फण्ड्स, बीमा, पेंशन तथा स्टॉक-ब्रोकिंग फर्म वहाँ रह रहे भारतीयों द्वारा किए जा रहे लेन-देन की जानकारी जहाँ भारतीय संस्थाओं से साझा करना शुरू कर देंगे वहीं भारत में संचालित ऐसी फर्म भी यहाँ अमेरिकी तथा अमेरिका में निवास कर रहे भारतीय नागरिकों द्वारा ऐसे निवेश की जानकारी अमेरिकी एजेंसियों से साझा करेंगे। उल्लेखनीय है कि करार की परिधि में 1 जुलाई 2014 के बाद भारतीय वित्तीय संस्थाओं में खोले गए नए खाते आयेंगे। दोनों देशों के बीच यह महात्वाकांक्षी करार जुलाई 2015 में भारत सरकार के तत्कालीन राजस्व सचिव (Revenue Secretary) शक्तिकांता दास और भारत में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा (Richard Verma) के बीच दिल्ली में हस्ताक्षरित किया गया था।
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World Economic Forum – WEF
29 सितम्बर 2015 को स्विटज़रलैण्ड स्थित विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum – WEF) द्वारा जारी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक सूचकांक (Global Competitiveness Index – GCI) में भारत को 140 देशों में से कौन-सा स्थान दिया गया है – 55वाँ
पिछले साल भारत का स्थान 71वाँ था। इससे केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को अपने आर्थिक सुधारों के एजेण्डे पर चलने के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन मिला है। इस सूचकांक में एक बार फिर स्विट्ज़रलैण्ड (Switzerland) को पहला स्थान दिया गया है जबकि इसके बाद क्रमश: सिंगापुर (Singapore), अमेरिका (US), जर्मनी (Germany) और नीदरलैण्ड्स (Netherlands) का स्थान है। हर साल जारी की जाने वाली इस सूची में भारत का स्थान पिछले पाँच सालों से लगातार गिर रहा था। लेकिन 16 स्थानों की शानदार बढ़त दर्ज करने के बावजूद भारत अभी भी 2007 के अपने उच्चतम स्थान (48) से सात पायदान पीछे है।
वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक सूचकांक (GIC) क्या है?
वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक सूचकांक (Global Competitiveness Index) विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा तमाम आधारों पर दुनिया के 140 विभिन्न देशों का मूल्यांकन करने के बाद उन्हें एक पैमाने पर रखने का प्रयास है जिससे इन समस्त देशों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता का परस्पर आकलन किया जा सके। इसमें 12 आधारों पर सूचकांक में स्थान प्रदान किया जाता है – 1) संस्थान, 2) मूलभूत संरचना, 3) अर्थव्यवस्था का माहौल, 4) स्वास्थ्य एवं प्राथमिक शिक्षा, 5) उच्च शिक्षा अवं प्रशिक्षण, 6) उत्पादनों के बाजार में कार्यकुशलता का स्तर, 7) श्रम बाजार सम्बन्धी कार्यकुशलता, 8) वित्तीय बाजार का विकास, 9) प्रौद्यौगिकी सम्बन्धी तैयारियाँ, 10) बाजार का आकार, 11) व्यवसाय में परिपक्वता तथा 12) नवाचार का स्तर।