आयरन आयन बैटरी
आयरन आयन बैटरी
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने पहली बार एनोड के रूप में माइल्ड स्टील का प्रयोग कर रिचार्जेबल आयरन आयन बैटरी का निर्माण किया है।
इसकी खास बातें-
वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग को देखते हुए सस्ती बैटरी विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। विश्व में लिथियम भंडार की कमी के कारण अन्य सामग्रियों के प्रयोग का प्रयास किया जा रहा है जो लिथियम की तरह कार्य कर सकें। लिथियम आयन बैटरी में लिथियम आयन आवेश वाहक होते हैं, जबकि आयरन आयन बैटरी में आयरन आयन (Ferrous Ion-Fe”) आवेश वाहक का कार्य करते हैं। प्रयोग के दौरान नियंत्रित परिस्थितियों में आयरन आयन बैटरी का ऊर्जा घनत्व 220 वॉट-घंटे/किलोग्राम रहा, जबकि लिथियम आयन बैटरी का ऊर्जा घनत्व 350 वॉट-घंटे/किलोग्राम होता है।
आयरन धातु में लिथियम जैसे भौतिक-रासायनिक गुण होते हैं, साथ ही आयरन आयन की रेडॉक्स क्षमता लिथियम आयन से अधिक होती है और आयरन आयन की त्रिज्या लिथियम आयन के लगभग समान होती है। आयरन के इन दो अनुकूल गुणों का उपयोग कर रिचार्जबल बैटरी बनाई जा सकती है। रेडॉक्स क्षमता किसी रसायन की इलेक्ट्रॉनों को पकड़ने या छोड़ने की क्षमता है, इसे वोल्ट या मिलीवोल्ट्स में मापा जाता है।
शुद्ध आयरन में एनोड हेतु लौह आयनों का निष्कासन और पुनर्निवेशन आसान नहीं होता है, इसलिये स्टील में मौजूद कार्बन का प्रयोग किया जाता है। चार्जिंग प्रक्रिया के दौरान आयरन की स्थिरता के कारण शॉर्ट-सर्किट की संभावना बहुत कम होती है।
आयरन आयन बैटरी में स्तर संरचना के कारण वैनेडियम पेंटोक्साइड (Vanadium Pentoxide) का प्रयोग कैथोड के रूप में किया जाता है।
वैनेडियम पेंटोक्साइड में स्तर (Layered) संरचना के कारण आयरन आयन आसानी से अंदर जाते हैं और कैथोड के साथ अंत:क्रिया कर पाते हैं।
आयरन आयन बैटरी में ईथर आधारित इलेक्ट्रोलाइट का प्रयोग किया गया है जिसमें विघटित आयरन परक्लोरेट शामिल हैं। आयरन परक्लोरेट, एनोड और कैथोड के बीच आयन संचालक माध्यम का कार्य करेगा। आयरन आयन बैटरी की ऊर्जा संग्रहण क्षमता अधिक है लेकिन यह लागत प्रभावी है। आयरन आयन बैटरी के प्रदर्शन को और बेहतर करने पर ध्यान यान दिया जा रहा है।
लिथियम–आयन बैटरी बनाने वाले वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार
लिथियम-आयन बैटरी बनाने के लिए तीन वैज्ञानिकों को रसायन विज्ञान में 2019 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
वैज्ञानिक जॉन बी गुडइनफ़, एम स्टेनली व्हिटिंगम और अकीरा योशिनो को इन रिचार्जेबल उपकरणों को बनाने के लिए पुरस्कार मिला है.
इनका प्रयोग पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक्स में किया जाता है. 97 साल के प्रो गुडइनफ़ इस पुरस्कार को जीतने वाले सबसे ज़्यादा उम्र के वैज्ञानिक हैं. पुरस्कार विजेता नोबेल पुरस्कार से मिलने वाली राशि को साझा करेंगे, जो नौ मिलियन स्वीडिश क्रोनर यानि लगभग 1.01 मिलियन डॉलर या लगभग 7.40 करोड़ रुपये है. स्टॉकहोम में रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ़ साइंसेज में इन पुरस्कारों की घोषणा की गई है.
लिथियम-आयन बैटरी बहुत ही हल्की होती हैं और ये रिचार्जेबल भी हैं. इनका उपयोग मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप से लेकर इलेक्ट्रिक कारों तक, हर चीज़ में किया जाता है.
नोबेल समिति ने कहा कि इस उपकरण ने “रिचार्जेबल दुनिया” का निर्माण किया है. अमरीका, ब्रिटेन और जापान के इन वैज्ञानिकों ने इस बारे में शोध 1970-80 के दशक से शुरू किया था.
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ़ साइंस ने कहा कि सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों से अधिक मात्रा में उर्जा को स्टोर करने की इन बैट्रियों की क्षमता ने भविष्य में जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) की आवश्यकता ख़त्म कर दी है.
इससे पहले 2018 में एंजाइमों के बारे में खोज़ को लेकर फ्रांसिस अर्नोल्ड, जॉर्ज पी स्मिथ और ग्रेगरी विंटर को पुरस्कार दिया गया था. वहीं 2017 में जैविक अणुओं की छवियों को बेहतर बनाने के लिए जैक्स डबोचेट, जोआचिम फ्रैंक और रिचर्ड हेंडरसन को पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. (नोबल न्यूज – साभार बीबीसी)