इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम
इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम
सरकार इथेनॉल मिश्रित पेपोल (ईबीपी) कार्यक्रम को लागू करती रही है। इथेनॉल कृषि आधारित उत्पाद है, जिसका उत्पादन मुख्यत: चीनी उद्योग के सह-उत्पाद अर्थात शीरे से किया जाता है। इस कार्यक्रम के तहत तेल कंपनियों द्वारा अधिकतम 10 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की विक्री की जाती है। यह कार्यक्रम अप्रैल 2019 से केन्द्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप द्वीपसमूह को छोड़कर पूरे भारत में विस्तारित किया गया है, ताकि वैकल्पिक और पर्यावरण अनुकूल ईंधनों के इस्तेमाल को बढ़ावा मिले। इस कार्यक्रम से अपेक्षा की गई है कि इससे ऊर्जा संबंधी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भरता घटेगी और कृषि क्षेत्र को बल मिलेगा। ‘इथेनॉल ब्लैंडेंड पेट्रोल कार्यक्रम’ का उद्देश्य प्रदूषण को कम करने के लिए मोटर स्पिरिट के साथ इथेनॉल ब्लैंडिंग के लक्ष्य को प्राप्त करना, विदेशी मुद्रा की बचत करना और चीनी उद्योग में मूल्य वर्धन में वृद्धि करना है ताकि वे किसानों को गन्ना मूल्य की बकाया राशि का भुगतान कर सकें। सरकार नं नई राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 अधिसूचित की है. जिसके अंतर्गत इथेनॉल के उत्पादन हेतु गन्ने के रस के प्रयोग की अनुमति प्रदान की गई है। गन्ने के अधिशेष उत्पादन के वर्षों के दौरान. जब मूल्यों में मंदी आ जाती है, तब चीनी उद्योग किसानों को गन्ना मूल्य का सही समय पर भुगतान करने में असमर्थ रहता है।
इथनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम की कई वजहां से आलोचना की जा रही है। जैव ईंधन के विभिन्न विकल्पों में इथेनॉल को सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प माना जाता है। सरकार वर्ष 2030 तक पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण को मौजूदा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करना चाहती है।
हालांकि जैव ईंधन का उत्पादन बढ़ाने से जल संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है तथा खाद्य की उपलब्धता भी प्रभावित हो सकती है। जटरोफा जैसे अन्य जैव ईंधन वाणिज्यिक तौर पर अलाभकारी प्रतीत होता है। जहां हाल के वर्षों में भारत इथेनॉल के सर्वोच्च उत्पादकों में शामिल हो गया है परंतु ब्राजील एवं यूएस जैसे देशों एवं भारत में उत्पाद के बीच काफी अंतराल है।.वाटर फुटप्रिंट (एक लीटर इथेनॉल उत्पादन के लिए आवश्यक जल की मात्रा), जिनमें इथेनॉल उत्पादन करने वाले पौधे जैसे कि गन्ना की जड़ में वर्षा जल की आवश्यकता होती है तथा प्रदूषकों को साफ करने
विश्व में इथेनॉल का उत्पादन, 2019 (मिलियन गैलन)
यूएसए 15800
ब्राजील 8620
चीन 900
कनाडा 500
थाइलैंड 420
भारत 530
( स्रोत : यूएस इनजी सूचना प्रशासन)
के लिए स्वच्छ जल या भूजल की आवश्यकता होती है। इथेनॉल उत्पादन के लिए न केवल भारत में वाटर फुटप्रिंट अधिक है वरनु् उत्पादन के लिए आवश्यक पानी की पूर्ति वर्षा जल से नहीं होता। इसका मतलब है कि भूजल व सतह जल का इस्तेमाल किया जाता है। हमारी दैनिक जल आवश्यकता की पूर्ति भी इन्हीं स्रोतों से होती है। दूसरी समस्या यह है कि भारत की कुल बुआई क्षेत्र में गन्ना का योगदान 3 प्रतिशत है। पेट्रोल में 20 प्रतिशत मिश्रण के लिए कुल बुआई क्षेत्र के 10 प्रतिशत फसलों पर गन्ना की खेती करनी होगी जिसका मतलब है अन्य मुख्य पर दबाव जो खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
सरकार ने बी-भारी शीरा (‘B’ heavy molasses) एवं गन्ना जूस से सीधे इथेनॉल उत्पादन को मंजूरी दे दी
की मंत्रिमंडलीय समिति ने दिसंबर, 2019 से 30 नवंबर, 2020 तक इथेनॉल आपूर्ति वर्ष के दौरान आगामी चीनी उत्पादन मौसम 2019-20 के लिए इथेनॉल ब्लेंडिंग (ईपीबी) कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न कच्चे मालों से निर्मित इथेनॉल की ऊंची कीमत तय करने को मंजूरी दी है। अब सरकार ने बी-भारी शीरा (‘B’ heavy molasses) एवं गन्ना जूस से सीधे इथेनॉल उत्पादन को मंजूरी दे दी है। सरकार इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम को लागू करती रही है, जिसके तहत तेल कंपनियों द्वारा अधिकतम 10 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री की जाती है। यह कार्यक्रम 1 अप्रैल, 2019 से केन्द्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप द्वीपसमूह को छोड़कर पूरे भारत में विस्तारित किया गया है, ताकि वैकल्पिक और पर्यावरण अनुकूल ईधनों के इस्तेमाल को बढ़ावा मिले। इस क्रियाकलाप से ऊर्जा संबंधी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भरता घटेगी और कृषि क्षेत्र को बल मिलेगा। कंद्र सरकार 2014 से इथेनॉल की प्रशासनिक कीमत अधिसूचित करती रही है।
पहली बार 2018 के दौरान, सरकार द्वारा इथेनॉल के उत्पादन के लिए व्यवहृत कच्चे माल के आधार पर इथेनॉल की अलग-अलग कीमत घोषित की गई थी। इन निर्णयों से इथेनॉल की आपूर्ति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों द्वारा इथेनॉल की खरीद इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2013-14 में 38 करोड़ लीटर से बढ़कर 2018-19 में अनुमानित 200 करोड़ लीटर से अधिक हो गई है। निरंतर चीनी के अतिरिक्त उत्पादन से चीनी की कीमत पर दवाब पड रहा है। इसके बाद, किसानों के लिए चीनी उद्योग की कम क्षमता के कारण गन्ना किसानों की बकाया राशि बढ़ गई है। देश में चीनी का उत्पादन सीमित करने और इथेनाल का घरेलू उत्पादन बढाने की दृष्टि से, सरकार ने इथेनॉल उत्पादन.के लिए बी-हैवी मोलासेस और गन्ना रस को मिलाने की अनुमति देने भुगतान सहित, कई कदम उठाए हैं। मिल पर चीनी की कीमत और कन्वर्शन लागत में परिवर्तन होने के कारण, गुन्ना आधारित विभिन्न कच्चे मालों से निर्मित इथेनॉल की मिल पर कीमत की समीक्षा करने की जरूरत है। उद्योगजगत की यह भी मांग है कि इथेनॉल के उत्पादन के लिए चीनी और चीनी सिरप को शामिल किया जाए, ताकि चीनी मिलों में उपलब्ध भंडार और नकद प्रवाह से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने में मदद मिले।
(स्रोत: पीआईबी)
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इथेनॉल प्रक्रिया गैसोलीन में मिश्रित किए जाने वाले इथेनॉल की प्राप्ति मक्का एवं गन्ना जैसे कृषि उत्पादों के किण्वन से की जाती है। इथेनॉल वस्तुत: 99 प्रतिशत से अधिक शुद्धता वाला अल्कोहल है जिसका इस्तेमाल पेट्रोल ब्लेंडिंग या मिश्रण में किया जा सकता है। भारत में इथेनॉल मुख्यते: शीरा (molasses) से प्राप्त किया जाता है जो कि चीनी उत्पाद का एक उप-उत्पाद है। चीनी मिल में 14 प्रतिशत सामग्री वाले कुल किण्वनीय शक्कर (Total Fermentable sugars: TFS) के साथ गन्ना की पेराई की जाती है। अधिकांरा टीएफएस को चीनी के दानों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इहीं गैर दाने वाला अपशेष टीएफएस ‘सी मोलासेसे’ यानी सी-शीरा होता है।
यह गन्ना का 4.5 प्रतिशत हिस्सा होता है और इसमें टीएफएस 40 प्रतिशत होता है। प्रत्येक 100 किलोग्राम के टीएफएस में 60 लीटर का इथेनॉल प्राप्त होता है। इस प्रकार एक टन के गन्ना से, चीनी मिलों में 115 किलोग्राम चीनी एक 45 किलोग्राम का शीरा प्राप्त होता है जो 10.8 लीटर इथेनॉल क बराबर है। दूसरी ओर चीनी मिल चीनी का उत्पादन करने के बजाट गन्ना का संपूर्ण 14 प्रतिशत टीएफआर का किण्वन कर सकता है- इस स्थिति में उन्हें 84 किलोग्राम का इथेलॉल प्राप्त होगा और को चीनी प्राप्त नहीं होगा। चीनी दानों के निर्माण की ए और बी प्रक्रिय के दौरान ही शीरा निर्माण किया जा सकता है। बी भारी मोलासेस(7.25 प्रतिशत गन्ना व 50 प्रतिशत टीएफएस) का उपयोग कर हुए इथेनॉल का निर्माण किया जाता है तो एक टन गन्ना में 21.7 लीटर इथेनॉल एवं 95 किलोग्राम चीनी प्राप्त होता।
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