केंद्र_सरकार_ने_राष्ट्रीय_विरासत_विकास_एवं_संवर्धन_योजना
केंद्र_सरकार_ने_राष्ट्रीय_विरासत_विकास_एवं_संवर्धन_योजना
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जल क्षेत्र से जुड़े मामले में सहायता प्रदान करने हेतु विशेषज्ञ सलाहकार समूह गठित
जल संसाधन मंत्रालय के पूर्व सचिव बी.एन.नवालावाला की अध्यक्षता में जल क्षेत्र से जुड़े मामले में सहायता प्रदान करने के लिए विशेषज्ञ सलाहकार समूह 18 अक्टूबर 2014 को गठित की गई. यह समूह जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण से जुड़े मामलों में सहायता प्रदान करेगा.
विशेषज्ञ सलाहकार समूह में दो अन्य सलाहकार सदस्य भी होंगे, जिनकी नियुक्ति मुख्य सलाहकार के परामर्श पर की जाएगी. यह समूह जल संसाधन,नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय की पूर्व अनुमति से विशेष उद्देश्य और विशेष समय के लिए अन्य विशेषज्ञों को इस समूह में शामिल कर सकता है.
बी.एन.नवालावाला से संबंधित मुख्य तथ्य
नवालावाल गुजरात विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग (सिविल) डिग्री धारक हैं और वह इंजीनियर के रुप में सरकारी सेवा में आए. वह गुजरात के मुख्यमंत्री के सलाहकार और संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य रह चुके हैं. नवालावाल ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा किया, जिसमें देश में पहली बार पानी के नीचे वर्ष 1976 में एचडीपीई पाइपलाइन को बिछाना शामिल था. यह सी-क्रिक में घोघहाला से दीयू के बीच में स्थित है. वह योजना आयोग में सलाहकार (जल संसाधन) के रुप में भी काम कर चुके हैं.
नवलावाला, नीति तैयार करने के लिए भारत सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीयय पुनर्वास नीति, अंतर्राज्यीलय जलाशय संगठनों, सिंचाई जल के मूल्यों की समिति इत्यानदि जैसी कई महत्वरपूर्ण राष्ट्री य समितियों के लिए सदस्य के तौर पर कार्य कर चुके हैं. वह फरवरी 1991 से जून 1996 तक सिंचाई और जल निकासी पर भारतीय राष्ट्रीय समिति के इतिहास,शिक्षा,प्रशिक्षण,अनुसंधान और विकास के लिए गठित विशेष समिति के अध्यक्ष पद पर रहे.
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जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद का पुनर्गठन
मौसम में बदलाव को नियंत्रित करने संबंधी राष्ट्रीय स्तरीय कार्यों में तालमेल स्थापित करने के लिए भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद का पुनर्गठन किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके पुनर्गठन को 5 नवंबर 2014 को स्वीकृति प्रदान की.
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली इस 18 सदस्यीय समिति में आरके पचौरी को बनाए रखा गया है, जबकि सीएससी की निदेशक सुनीता नारायण और उद्योगपति रतन टाटा को जगह नहीं मिली है.पचौरी उस समय जलवायु परिवर्तन संबंधी उस अंतर-सरकारी पैनल के अध्यक्ष थे, जब इस संस्था को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
जलवायु परिवर्तन परिषद का कार्य
यह परिषद, जलवायु परिवर्तन के आकलन, परिवर्तित जलवायु के अनुकूल ढांचा तैयार करने और कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए कार्य योजना तैयार करने के काम पर निगरानी करेगी. परिषद, राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों से कारगर ढंग से निपटने के उपायों पर ध्यान देगी.
जलवायु परिवर्तन परिषद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में पुनर्गठित जलवायु परिवर्तन परिषद में 18 सदस्य होंगे.
जिसमें कुल आठ मंत्री होंगे, जो जलवायु परिवर्तन के बारे में राष्ट्रीय स्तरीय पहलों में समन्वय स्थापित करेंगे.
पुनर्गठित परिषद के सदस्यों में विदेश मंत्री, वित्त मंत्री, पर्यावरण, वन्य एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्री, कृषि मंत्री, शहरी विकास मंत्री, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री, ऊर्जा और कोयला अक्षय ऊर्जा राज्य मंत्री सदस्यों में शामिल हैं. अन्य सदस्यों में कैबिनेट सचिव, विदेश सचिव, पर्यावरण, वन्य एवं जलवायु परिवर्तन सचिव, डॉ. आरके पचौरी, डॉ. नितिन देसाई, चंद्रशेखर दास गुप्ता और अजय माथुर के नाम हैं.
इस उच्च स्तरीय समूह से हटाए गए अन्य सदस्यों में आर. चिदंबरम, वी. कृष्णामूर्ति, सी. रंगराजन, प्रोदिप्तो घोष और पत्रकारों में राज चेंगप्पा व आर रामचंद्रन हैं. चिदंबरम, कृष्णमूर्ति और रंगराजन तत्कालीन मनमोहन सरकार के प्रतिनिधि के रूप में पैनल में शामिल थे. प्रोदिप्तो घोष और दोनों पत्रकारों में राज चेंगप्पा व आर रामचंद्रन को गैर-सरकारी सदस्यों के रूप में शामिल किया गया था.
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उच्चस्तरीय समिति का गठन
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने मंत्रालय द्वारा लागू अधिनियमों की समीक्षा हेतु 9 सितंबर 2014 को एक उच्चस्तरीय समिति (एचएलसी) का गठन किया. इस समिति की अध्यक्षता टी.एस.आर. सुब्रमनियम को सौंपी गई. मंत्रालय द्वारा नवगठित इस उच्चस्तकरीय समिति का मुख्य उद्देश्य संबंधित अधिनियमों हेतु आवश्यक विशिष्ट संशोधनों की सिफारिश करना है, ताकि इन्हें वर्तमान जरूरतों के अनुसार संशोधित किया जा सके.
समिति की मुख्य सदस्य सूची:
1. टी.एस.आर. सुब्रमनियम, अध्यक्ष
2. विश्वनाथ आनंद, सदस्य
3. न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त्) ए. के. श्रीवास्तव, सदस्य
4. के.एन. भट्ट, सदस्य
समिति द्वारा समीक्षा किये जाने वाले मुख्य अधिनियमों की सूची :
• पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
• वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980
• वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
• जल (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
• वायु (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
समिति को विचार-विमर्श हेतु सौंपे गए मुख्य विषय:
• उपरोक्त प्रत्येक अधिनियम के कार्यान्वयन की स्थिति के साथ-साथ उसके उद्देश्यों की समीक्षा करना.
• इन अधिनियमों से संबंधित विभिन्न न्यायालय आदेशों और न्यायिक घोषणाओं की जांच करना और उन पर विचार करना.
• इन अधिनियमों में से प्रत्येक के लिए आवश्यक विशिष्ट संशोधनों की सिफारिश करना ताकि इन्हें उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वर्तमान जरूरतों के अनुसार संशोधित किया जा सके.
• प्रस्तावित सिफारिशों को प्रभावी बनाने के लिए उपरोक्त हर अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों का मसौदा तैयार करना.
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पृथ्वी के भीतरी परत में पृथ्वी की खुद की एक और भीतरी परत है
एक नए अध्ययन से यह पता चला है कि पृथ्वी के भीतरी परत में पृथ्वी की खुद की एक और भीतरी परत है जिसमें कई चौंकाने वाले पदार्थ हैं जो पृथ्वी के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते है.
इक्वेटोरियल एनीस्ट्रोफी इन द इनर पार्ट ऑफ अर्थ्स इनर कोर फ्रॉम ऑटोकोरिलेशन ऑफ अर्थक्वेक कोडा शीर्षक से अध्ययन नेचर जीयोसाइंस नाम के जरनल में 9 फरवरी 2015 को प्रकाशित हुआ था.
इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ इल्लीनोइस के जीयाओडॉन्ग सांग के नेतृत्व वाली टीम और चीन के नानजिंग यूनिवर्सिटी के सहयोगियों ने अर्थक्वेक– रीडिंग टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर किया था.
अध्ययन प्रक्रिया
शोधकर्ताओं ने ग्रह के सतह को स्कैन करने के लिए भूकंपों के भूकंपीय तरंगों का प्रयोग किया. टीम ने उस तकनीक का प्रयोग किया जो भूकंप के आरंभिक झटकों से आंकड़ा इक्ट्ठा नहीं करता बल्कि भूकंप के बाद उठने वाले भूकंपीय तरंगों के जरिए आंकड़े इक्ट्ठा करता है.
पृथ्वी के आंतरिक हिस्से की तस्वीर बनाने के लिए भूकंपीय तरंगों की गूंज भूकंप के बाद ग्रह के चारो ओर टकराती है.
वेनेजुएला और दक्षिणपूर्व चीन समेत दुनिया के कई स्थानों पर लगे सेंसर सारणियों ने वैज्ञानिकों को इन तरंगों द्वारा ग्रह की यात्रा करने में लगने वाले समय में होने वाली देरी को मापने की अनुमति दी.
अध्ययन के निष्कर्ष
•वैज्ञानिकों ने खोजा कि भूकंपीय तरंगें जो ग्रह के केंद्र से होकर गुजरती हैं वे कोर के बाकी हिस्सों से होकर गुजरने वाली तरंगों की तुलना में बहुत अलग तरह से व्यवधान डालती हैं.
•कोर के माध्यम से देखने पर पृथ्वी के केंद्र में आश्चर्य का पता चला. पहले माना जाता था कि आंतरिक कोर लोहे के ठोस गोले जैसा है.
•टीम ने एक अलग आंतरिक कोर पाया जो पूरे आंतरिक कोर के व्यास का आधा है.
•आंतरिक कोर के बाहरी परत में मौजूद लोहे के क्रिस्टल उत्तर– दक्षिण दिशा की तरफ हैं. आंतरिक कोर, लोहे के क्रिस्टल पूर्व– पश्चिम की तरफ इशारा करते हैं.
•आंतरिक– आंतरिक कोर के लोहे के क्रिस्टल ही सिर्फ अलग तरह से नहीं संरेखित हैं, बल्कि वे बाहरी आंतरिक कोर के अपने समकक्षों की तुलना में अलग तरह से व्यवहार भी कर रहे हैं.