केप्लर टेलिस्कोप 2009 से 2018 तक 9 साल और 6 महीने अंतरिक्ष में सक्रिय रहा
केप्लर टेलिस्कोप 2009 से 2018 तक 9 साल और 6 महीने अंतरिक्ष में सक्रिय रहा
केप्लर ने दिखाई अनदेखी दुनिया
आज से कुछ वर्षो पहले तक हमारे सोरमंडल से इतर ग्रहों की बात करना विज्ञान कथा साहित्य और फिल्मों के विषय हुआ करते थे। लेकिन जैसे-जैसे खगोलिकी का विकास होता गया, वैसे-वैसे ही हमारी आकाशगंगा में ही ऐसे कई तारों का पता चला जिनके इर्द-गिर्द हमारे सौरमंडल की तरह के ग्रह हो सकते हैं। सौरमंडल के पार अंततारकीय अंतरिक्ष के बारे में अधिकतर जानकारी हमें वर्तमान सदी में ही मिली है। आज अंतरिक्ष में परिक्रमारत कई दूरबीनें ब्रह्मांड के रहस्यों की परतें खोलने में जुटी हुई हैं। जिस अंतरिक्ष दूरबीन ने इंसानी बसाहट लायक पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज में सबसे अधिक योगदान दिया, वह निश्चित रूप से ‘केप्लर टेलिस्कोप था। हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने केप्लर स्पेस टेलिस्कोप मिशन की समाप्ति की घोषणा की है। नासा के अधिकारियों के मुताबिक केप्लर टेलिस्कोप का ईंधन खत्म हो गया है, इसलिए उसे रिटायर किया जा रहा है। यह सौरमंडल से बाहर पृथ्वी जैसे ग्रहों को खोजने का अबतक का सबसे सफ़ल अभियान रहा है। 60 करोड़ डॉलर की लागत से तैयार केप्लर को 7 मार्च 2009 को अंतरिक्ष में लांच किया गया था । ग्रहीय गति के नियमों के आविष्कारक जर्मन खगोलशास्त्री योहानेस केप्लर के सम्मान में इस अभियान का नाम ‘केप्लर स्पेस टेलिस्कोप मिशन’ रखा गया था।
वर्ष 1992 में पहली बार सौरमंडल से बाहर एक पल्सर तारे के इर्द-गिर्द ग्रह जैसा कृछ होने का अनुमान लगाया गया था और इस दिशा में रोमांचक मोड़ तब आया जब वर्ष 1995 में वैज्ञानिकों ने सौरमंडल के बाहर पहला ग्रह (एक्सोप्लानेट) खोज निकाला। इस खोज ने पृथ्वी जैसे रूप-आकार वाले ग्रह को खोजने की लालसा को जगा दिया। और इसके पश्चात पृथ्वी सदृश्य ग्रहों को खोजने का बड़ा अभियान चला, जिसमें केप्लर टेलिस्कोप ने अपनी क्रांतिकारी भूमिका निभाई। केप्लर टेलिस्कोप को हमारी आकाशगंगा (मिल्की-वे) के एक विशेष हिस्से का अवलोकन करने तथा उसके प्रधान तारों के जीवन योग्य क्षेत्र (गोल्डीलॉक्स ज़ोन) में पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज के लिये बनाया गया था । केप्लर टेलिस्कोप 2009 से 2018 तक 9 साल और 6 महीने अंतरिक्ष में सक्रिय रहा। इसने 5,30,506 तारों का अवलोकन किया। इसमें से 2681 ग्रहों की पुष्टि की गई है। ये सभी ग्रह पृथ्वी से कुछ प्रकाश वर्ष से लेकर हजारों प्रकाश वर्ष दूर तक स्थित हैं।
केप्लर ने बीते साल हमारे सौरमंडल के तुल्य एक नए सौरमंडल का पता लगाया था, जिसके प्रधान तारे केप्लर 90 के इर्दगिर्द आठ ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं। केप्लर 90 के पास हमारे सूर्य के जैसे आठ ग्रह है। दिलचस्प बात यह है कि हमारे सौरमंडल के बाहर खोजा गया यह अब तक का सबसे बड़ा सौरमंडल है। दरअसल, केप्लर का मुख्य उद्देश्य सूर्य से भिन्न किंतु उसी तरह के अन्य तारों के इर्द-गिर्द ऐसे गैर-सौरीय ग्रहों को ढूंढना था जो पृथ्वी से मिलते-जुलते हों और उन पर जीवन की संभावना हो। इसने करीब 530000 तारों की जाँच-पड़ताल की है। खगोल वैज्ञानिको ने केप्लर दूरबीन के डाटा का विश्लेषण करते हुए अब तक लगभग 2681 ग्रहों की खोज की है। हाल ही में नासा ने पृथ्वी जैसे ग्रह की खोज में डाटा विश्लेषण के लिए गूगल की आर्टिफिशल इंटेलिजेंस तकनीक की भी सहायता ली थी।
वैज्ञानिकों के केप्लर टेलिस्कोप ने इंसान के लिए ब्रह्मांड की खोजबीन का रास्ता खोला तथा इस सवाल का उत्तर खोजने का प्रयास किया कि क्या इस ब्रह्मांड में हम अकेले हैं? नासा की ओर से जारी बयान के अनुसार, केप्लर ने दिखाया कि रात में आकाश में दिखने वाले 20 से 50 प्रतिशत तारों के सीौरमंडल में पृथ्वी के आकार के ग्रह हैं और वे अपने तारों के रहने योग्य क्षेत्र के भीतर स्थित है। इसका मतलब है कि वे अपने तारों से इतनी दूरी पर स्थित हैं, जहां इन ग्रहों पर जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण पानी के होने की संभावना है।
नासा में खगोलभौतिकी के निदेशक पॉल हटूर्ज का अनुमान है कि केप्लर के खोजे ग्रहों में दो से लेकर दर्जन भर तक ऐसे ग्रह हैं जो चट्टानी हैं। और पृथ्वी के बराबर आकार के हैं। इनमें से नौ अपने प्रधान तारे के जीवन योग्य क्षेत्र मे हैं -1/ केप्लर-560वी, 2/केप्लर-705बी, 3/केप्लर-1229वी, 4/केप्लर -1410 बी, 5/केप्लर -1455 वी, 6/ केप्लर-1544वी, 7/ केप्लर-1593वी, 8/ केप्लर- 1606वी, 8/ केप्लर-1638वी।
केप्लर अपने पूर्वनिर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने में बेहद कामयाब रहा। केप्लर का ईंधन खत्म होने के संकेत करीब दो सप्ताह पहले ही मिले थे। उसका इंथन पूरी तरह से खत्म होने से पहले ही वैज्ञानिक उसके पास मौजूद सारा डेटा एकत्र करने में सफल रहे। नासा का कहना है कि फिलहाल केप्लर धरती से दूर सुरक्षित कक्षा में है।
केप्लर ने हमें यह बता दिया कि ब्रह्मांड में पृथ्वी जैसे ग्रह और उसपर जीवन की तलाश बेहद जटिल कार्य है, क्योंकि पृथ्वी जैसे ग्रह होने की शर्ते यही हैं कि ऐसे ग्रह ज्यादातर मामलों में हमारी पृथ्वी जैसा ही होनी चाहिए। मगर अब तक की खोजों से ऐसे किसी भी ग्रह का नहीं पता चला है, जो प्रत्येक मामले में हमारी पृथ्वी जैसा हो। ज्यादा से ज्यादा एक हजार साल में यह धरती जीवन के योग्य नहीं बच पाएगी, इसलिए इंसान भविष्य में अपने को सुरक्षित रखने के लिए नई पृथ्वी की तलाश में है आशा है कि निकट भविष्य में केप्लर जैसे अन्य अंतरिक्ष अभियानों के ज़रिये पृथ्वी जैसे जीवन अनुकूल स्थितियाँ युक्त ग्रहों की खोज हो सकेगी।