कोविड-19 : क्या होता है हर्ड इम्यूनिटी

क्या होता है हर्ड इम्यूनिटी

नोवेल कोरोना वायरस के संक्रमण के क्रम में यूनाइटेड किंगडम सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार सर पैट्रिक वैलेंस ने अपनी रणनीति का संकेत दिया था जिसके तहत देश की 60 प्रतिशत आबादी में इस वायरस के संक्रमण की अनुमति दी जाती ताकि ‘झुंड समुदाय’ यानी हर्ड कम्युनिटी(इम्यूनिटी) के स्तर को प्राप्त किया जा सके ब्रिटिश वैज्ञानिक सलाहकार की यह रणनीति बहुसंख्यक लोगों को पसंद नहीं आया, यहां तक कि वैज्ञानिक व चिकित्सक समुदाय ने भी इस रणनीति की आलोचना की। मजबूरन इस रणनीति की अपनाने का विचार त्याग दिया गया और वृद्ध लोगों को ‘अलग- थलग’ रहने का सलाह जारी की। दूसरी ओर नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूट ने भी कहा कि देश में लॉकडाउन की रणनीति काम नहीं कर सकती इसलिए उनका देश इस वायरस को उन समूह में निय्ंत्रण संक्रमण की अनुमति देने पर सोच रहा है जिन्हें इससे कम जोखिम है।

उल्लेखनीय है कि कोविड-19 से लड़ने के लिए तीन विकल्प उपलब्ध हैं। पहला विकल्प है लोगों की स्वतंत्र आवाजाही व इकट्ठे होने पर रोक लगा देना, लेकिन यह संभव नहीं है क्योंकि यह बीमारी पहले से ही विश्व के 100 से अधिक देशों में फैल चुकी है।
दूसरा विकल्प है टीका जो सभी लोगों को सुरक्षा प्रदान करे परंतु इसे मार्च 2020 तक विकसित नहीं किया जा सका था , तीसरा विकल्प है हर्ड कम्युनिटी(इम्यूनिटी) जिसकी ओर ब्रिटिश सरकार ने इशारा किया था जिसे अपनाना भयावह प्रतीत होता है।

हर्ड इम्यूनिटी (कम्यूनिटी) की अवधारणा :

झुंड समुदाय के पीछे अवधारणा यह है कि वायरस को संक्रमित होने दिया जाये जिससे अधिक से अधिक लोग इससे संक्रमित हो जाएंगे और इस तरह वे इस संक्रमण से पूरी सुरक्षित हो जाएंगे और अंत में वायरस का संक्रमण अपने आप समाप्त हो जाएगा क्योंकि वायरस को और अधिक संवेदनशील लोग नहीं मिलेंगे जिसे यह संक्रमित कर सके। यह प्रतिरक्षित यानी इम्यून लोग ही ‘हर्ड या झुंड’ है। हालांकि इसमें कई लोग इम्यून नहीं भी हो सकते हैं। वैज्ञानिक समुदायों का मानना है कि इस वायरस से जो पता चलता है वह यह कि एक साल के भीतर यह विश्व की 60 प्रतिशत आबादी को संक्रमित कर सकता है। इसके पश्चात हर्ड कम्युनिटी अवधारणा काम करने लगेगा। ब्रिटिश वैज्ञानिक सलाहकार ने भी कहा कि हर्ड कम्युनिटी अवधारणा के काम करने के लिए 60 प्रतिशत ब्रिटिश लोगों यानी 36 मिलियन लोगों को कोविड-19 होना जरूरी है।

इतिहासकारों का मानना है कि 1918 के मध्य में दूसरे चरण में स्पेनिश फ्लू पैंडेमिक सर्वाधिक विध्वंसकारी इसलिए साबित हुआ क्योंकि प्रथम चरण में चंद लोग ही इससे प्रतिरक्षी (इम्यून) हो पाये। वर्ष 2015 के जिका वायरस का भी उदाहरण दिया जाता है जो जन्मजात विकार है और इसने महामारी का रूप ले लिया था। इसके दो वर्षों के पश्चात 2017 में यह चिंताजनक नहीं रही। एक ब्राजीलियन अध्ययन में समुद्री तटीय शहर सल्वाडोर में रक्त नमूना के परीक्षण से पाया गया कि 63 प्रतिशत लोगों का जिका वायरस से एक्सपोजर हो चुका था। इसका मतलब था कि हर्ड कम्युनिटी ने इस संक्रमण के प्रसार को रोक दिया था।

हालांकि सभी वैज्ञानिक समुदाय इस अवधारणा से सहमत नहीं हैं। उनके मुताबिक अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कोविड-19 के संक्रमण से उबरने के पश्चात वही लोग इसके प्रति प्रतिरोधकरता विकसित कर लिए हैं। जापानी अधिकारियों ने 16 मार्च, 2020 को एक ऐसे मरीज का मामला प्रकाश में लाया जो इस बीमारी से उबरने के कई सप्ताह के पश्चात कोविड-19 का फिर से पॉजिटिव पाया गया। इस अवधारणा को लागू करने में कई अन्य चुनौतियां भी हैं। जैसे कि एक बार इतने अधिक लोगों के संक्रमण की वजह से बहुत सारे लोग बीमार पड़ जाएंगे और इतने ही लोगों को अस्पतालों में आईसीयू में भर्ती करना पड़ेगा जो स्वास्थ्य अवसंरचनाओं पर दबाव बढ़ा देगा। इटली में यह समस्या देखी गई है जहां मरीजों के लिए अस्पताल कम पड़ गये।

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