ग्रांड रेनेसा बांध विवाद
ग्रांड रेनेसा बांध विवाद
क्या और क्यों हैं यह मुद्दा
145 मीटर ऊंचा तथा लगभग दो किलोमीटर लंबा प्रस्तावित ग्रांड रेनेसा बांध’ एक बार बन जाने के पश्चात इथियोपिया का सबसे बड़ा विद्युत का स्रोत होगा। इसे अफ्रीका का सबसे बड़ा जलविद्युत बांध कहा जा रहा है। इस जलविद्युत बांध से वर्ष 2022 से विद्युत उत्पादित होने लगेगा। इस बांध से 60000 मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता का लक्ष्य निर्धारित है। 4.6 अरब डॉलर की इस बांध परियोजना के लिए पानी का स्रोत अफ्रीका की सबसे लंबी नदी नील है। चूंकि इथियोपिया की लगभग आधी आबादी तक अभी भी बिजली नहीं पहुंच रही है, इसलिए वहां की सरकार चाहती है कि जितनी जल्दी हो बांध का निर्माण पूरा हो जाये। जल विद्युत सृजन हेतु इथियोपिया ने कई कृत्रिम झीलों (जलाशयों) का निर्माण किया है जिसे नील नदी से भरा जाएगा।
विवाद की वजह:
इथियोपिया चाहता है कि वह जितनी जल्दी हो इस बांध का निर्माण कार्य पूरा कर विद्युत उत्पादन आरंभ कर दें। इसके लिए कृत्रिम झीलों को शीघ्र भरना होगा। जल विद्युत पावर स्टेशन पानी का उपभोग नहीं करेगा परंतु जिस गति से इथियोपिया बांध के जलाशयों को भरेगा उससे अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) वाले क्षेत्रों में नील नदी के बहाव पर असर डालेगा। इथियोपिया इसे छह से सात वर्षों में भर लेना चाहता है। इन जलाशयों को भरने की अवधि को लेकर मिश्र एवं सूडान तथा इथियोपिया के बीच विवाद चल रहा है। मिश्र को डर है कि कृत्रिम झीलों को कम अवधि में ही भर लेने से नील नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा उत्पन्न होगी जिससे उसकी अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। मिश्र ने विकल्प के रूप में लंबी अवधि यानी 10 वर्ष से अधिक अवधि में झीलों को भरने का सुझाव दिया। मिस्र को इस बात का डर है कि इस बांध के बनने से उसके आस्वान बांध के पास स्थित नासीर झील में पानी कम पड़ जाएगा। इस विषय पर इथियोपिया, मिस्र एवं सूडान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता असफल रही है। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही थी कि इस विवाद को लेकर कहीं इन अफ्रीकी देशों के बीच युद्ध नहीं छिड़ जाये। अब संयुक्त राज्य अमेरिका इन देशों के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभा रहा है।
इथियोपिया का तर्क:
इथियोपिया इस बांध का अपनी संप्रभूता का विषय मानता है और इस बांध में किसी की आपत्ति को वह उसके आंतरिक मामलों में दखलंदाजी मानता है। इसलिए मार्च 2011 में इसने बिना मिस्र को सूचित किये बांध बनाना आरंभ कर दिया था। इसने वर्ष 1929 की उस संधि को भी मानने से इंकार कर दिया था जिसमें अपस्ट्रीम देशों का ख्याल किये बिना लगभग संपूर्ण नील नदी के पानी पर मिस्र व सूडान को अधिकार दे दिया गया।
नील, ब्लू नील एवं व्हाइट नील
नील विश्व की सबसे लंबी नदी है। ब्लू नील एवं व्हाइट नील इसकी सहायक नदियां हैं। ये दोनों सहायक नदियां सूडान की राजधानी खार्तुम में नील नदी में मिलती हैं। ब्लू नील एवं व्हाइट नील का रंग इन नदियों द्वारा बहाकर ले जा रहे अवसादों के कारण व्हाइट नील की तुलना में छोटी है और यह इथियोपिया एवं इरिट्रिया के हाईलैंड में उत्पन्न होती है। खातुर्म तक यह काला अवसाद अपने साथ लेकर चलती है। ब्लू नील मानसूनी वर्षा पर निर्भर है और जब वर्षा अधिक होती है तब यह जहां व्हाइट नील से मिलती है उससे पीछे तक प्रवाहित होने लगती है। यह टाना झील से 1400 किलोमीटर का सफर तय करने के पश्चात खातुम पहुंचती है। ग्रांड रेनेसा बांध भी ब्लू नील पर ही बनाया जा रहा है। व्हाइट नोल अपेक्षाकृत लंबी सहायक नदी है और इसमें मौजूद सफेद तलछट के कारण इसे व्हाइट नील कहा जाता है।