जैव विविधता का संरक्षण

जैव विविधता का संरक्षण

जैव विविधता का संरक्षण और संधारणीय उपयोग भारत की
प्राचीन परम्परा में शामिल हैं जिनका वर्णन हमारे प्राचीन ग्रंथों में किया गया हैं। धार्मिक अनुष्ठानों, रैतिक समारोहों और स्थानीय स्वास्थ्य देख-रेख प्रक्रियाओं में घरेलू पौधों को उपयोग में लाए जाने के असंख्य उदाहरण देखे जा सकते हैं।

तिहासिक रूप से जैव विविधता को जन कल्याण का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता था जिसका उपयोग सभी कर सकते हैं। तथापि बायोजेनेटिक संसाधन कई प्रकार के मूल्यवरधित उत्पादों जैसे प्रसाधन सामग्री औषधि एवं पोषक सामग्री के रूप में अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। वस्तुत: जैव संसाधनों के माध्यम से विनिर्मित उत्पादों का सम्मिलित विश्व बाजार 500 बिलियन अमेरिकी डालर से अधिक होने का अनुमान किया गया है ।

जैव विविधता पर 1992 का समझौता

हाल के वर्षों में जैव विविधता संबंधी नुकसान चिन्ता का एक प्रमुख कारण है, विशेषकर कई ऐसी प्रजातियों के लिए जो दुर्लभ हैं अथवा जिनका विनास हो रहा है । जहां तक जैव विविधता का प्रश्न है विलुप्त प्रजाति सदा के लिए विलुप्त हो जाती है। इस समस्या के मद्देनजर वर्ष 1992 में रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन में जैव वैज्ञानिक विविधता पर समझौते (सीबीडी) की पहल की गई जो दिसम्बर, 1993 में जैव वैज्ञानिक विविधता को विस्तृत रूप से परिभाषित करने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय साधन के रूप में लागू हुआ।

सीबीडी (वैज्ञानिक विविधता पर समझौते) के तीन उददेश्यों में शामिल हैं :
जैव वैज्ञानिक विविधता का संरक्षण; इसके घटकों का धारणीय उपयोग: और जेनेटिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले फायदों का उचित रूप से और समानतापूर्वक
बटवारा (जैव वैज्ञानिक विविधता पर समझौता 1992) ।

सीबीडी जैव वैज्ञानिक विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के संधारणीय उपयोग और इनके उपयोग से होने वाले फायदों को समृचित और समान रूप से साझा
करने की दिशा को मानव समाज की गई पहली प्रतिबद्धता है। इसके द्वारा राज्यों को अपने प्राकृतिक संसाधनों पर संप्रभु अधिकार प्रदान कर जेनेटिक संसाधनों की आम विरासत” वाली संकल्पना को समाप्त कर दिया गया। यह समझौता 196 संविदाकार-पक्षों के साथ लगभग
साविमौमिक है और अमेरिका ऐसा एकमात्र बड़ा देश है जिसने अभी तक इसका समर्थन नहीं किया है ।

CBD के लागू होने के साथ ही इसके कार्यान्वयन में तेजी आ गई जय कई देशों, जैसे- फिलीपींस और एण्डयन कम्यूनिटी द्वारा अपने जव संसाधनों पर संप्रभु अधिकारों का दावा करने के कानून पारित किए गए।

भारत ने भी जैव विविधता अधिनियम, 2002 (बीडीए) को अधिनियमित किया जिसके कार्यान्वयन का नोडल मंत्रालय केनद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय है। भारत का बीडीए इस उददेश्य के प्रति देश की वचनबद्धता की पुष्टि करने का एक प्रमुख कानूनी ढांचा उपलब्ध कराता है।

अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अंतर्गत राष्ट्रीय दायित्वों
को पूरा करना भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहां दस भिन्न-भिन्न पर्यावरणिक- भौगोलिक क्षेत्र हैं। समान रूप से महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत ने अपने जैव वैज्ञानिक संसाधनों को अन्य देशों के साथ-साथ अमेरिका, रूस और
जापान के राष्ट्रीय जीन बैंकों के साथ उदारतापूर्वक साझा किया है और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्रों द्वारा कंसोर्टियम-सीजी आईए आर के अंतर्गत विकसित अंतर्राष्ट्रीय जीन बैंकों के साथ भी साझा किया है।

भारत उन देशों में शामिल था जो पीजीआर पर खाद्य एवं कृषि संगठन(एफएओ) आयोग द्वारा सुगमीकृत पादप जिनेटिक संसाधनों (पीजीआर) पर 1983 में स्थापित स्वयंसेवी अंतर्राष्ट्रीय उपक्रम में शामिल हुए और
उसका अनुपालन किया था। इस उपक्रम ने पीजीआर के संपूर्ण मानव जाति की आम विरासत होने के सिद्धान्त का समर्थन किया था। विकसित देशों द्वारा जिनेटिक संसाधनों में से विकसित उत्पादों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) को विकासशील देशों में उन जैव संसाधनों के
फायदों को उपलब्ध कराने वालों को वंचित करते हुए आक्रामक रूप से प्राप्त किए जाने के कारण सीबीडी को अपनाया गया। सीबीडी जिनेटिक संसाधनों के प्रदाताओं और उनके उपयोगकतर्त्ताओं (उत्पादकों एवं अन्य
शोधकर्त्ताओं सहित) के अधिकारों को संतुलित रखता है। हाल ही में जिनेटिक संसाधनों एवं लाभ की हिस्सेदारी की सुगम्यता (एवीएस) पर नागोया प्रोटोकॉल, जिसे 2010 में अपनाया गया, द्वारा इस विश्वस्तरीय वैधानिक ढांचे को और समेकित किया गया ।

व्यापार से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकार, 1995
विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत टीआरआईपीएस समझौता, जो 1 जनवरी, 1995 को लागू हुआ, आईपीआर पर अब तक का सर्वाधिक विस्तृत बहुपक्षीय समझौता है। इस समझौते में सभी सदस्य देशों को प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में किसी भी खोज, चाहे उत्पाद हो अथवा प्रक्रिया, के लिए पेटेंटों को बिना किसी पक्षपात के उपलब्ध कराना
होता है। सदस्य पौधों अथवा प्राणियों के उत्पादन (गैर-जैव वैज्ञानिक अथवा माइक्रोआर्गेनिज्म प्रक्रियाओं के अलावा) हेतु पौधों एवं पशुओं (माइक्रोआर्गेनिज्म के अतिरिक्त) तथा अनिवार्य जैव वैज्ञानिक प्रक्रिय को छोड़ सकते हैं ।

खाद्य एवं कृषि के लिए पादप जिनेटिक संसाधनों पर
अंतर्राष्ट्रीय समझौता (आईटीपीजीआरएफए)

फसल आनुवांशिक संसाधनों के लिए देशों की परस्पर निर्भरता को महसूस करते हुए एफएओ द्वारा पीजीआर पर अपनी 1983 की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिषद्धता में सीबीडी के प्रावधानों के साथ सामंजस्य लाने हेतु इसमें संशोधन किया गया और तत्पश्चात् इसे 3 नवंबर, 2001 को कानूनी रूप
से बाध्यकर अंतर्राष्ट्रीय समझौते के रूप में अपनाया गया यह समझौता वर्तमान में अनुसूची-1 के 64 खाद्य एवं चारे के रूप में प्रयुक्त फसलों, जो सार्वजनिक क्षेत्र में हैं, के नामित अधिग्रहणों को कवर करता है और राष्ट्रीय विधान के अध्यधीन किसानों के अधिकारों का संरक्षण करता है। पीजीआर के अधिग्रहण हेतु सीबीडी के अंतर्गत समझौतों की द्विपक्षीय प्रणाली से अलग इस समझौते में पीजीआर के आदन-प्रदान को बढ़ावा
देने के लिए एबीएस की बहुपक्षीय प्रणाली का प्रावधान है जिसमें आरंभ में केवल 35 खाद्य फसलों और चारों की 29 प्रजातियों को शामिल किया गया है। केन्द्रीय कृषि और कृषक कल्याण मंत्रालय आईटीपीसीआरएफए
को कार्यान्वित करने हेतु नोडल मंत्रालय है ।

नागोया प्रोटोकॉल

एबीएस पर सीबीडी का नागोया प्रोटोकॉल नया अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसमें अनुसंधान, नस्लीकरण, भेषजीय, औद्योगिक और अन्य उद्देश्यों के लिए जिनेटिक संसाधनों के अधिग्रहण, व्यापार. हिस्सेदारी और
निगरानी के लिए स्पष्ट नियम बनाए गए हैं। एक वैधानिक ढांचे की स्थापना करके यह समझौता यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि जिनेटिक संसाधनों का उपयोग उन देशों की पूर्व सहमति के बिना न किया जाए, जो इन्हें उपलब्ध कराते हैं।
इस प्रोटोकॉल में उपलब्धकर्त्ता पक्ष द्वारा जिनेटिक संसाधनों की उपलब्धता के लिए कानूनी सुनिश्चितता, स्पष्टता और पारदर्शिता लाना: इस प्रकार की उपलब्धता के लिए उपयुक्त एवं गैर-मनमाने नियमों के एवं प्रक्रियाओं का प्रावधान करना; पूर्व सूचित सहमति और परस्पर सहमत श्तों के लिए स्पष्ट नियम और प्रक्रियाएं तैयार करना; और
उपलब्धता प्राप्त होने पर अंतराष्ट्रीय रूप से स्वीकृत प्रमाण-पत्र जारी करने का प्रावधान करना करने आवश्यक है। उपयोगकर्त्ता उपलब्धकत्त्ता
देशों के राष्ट्रीय कानूनो का अनुपालन करें। भारत में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) को इस नयाचार के कार्यान्वयन के लिए जांच-बिन्दु बनाने तथा उपाय अधिसूचित करने के लिए गठित विशेषज्ञों के कोर
समुह के साथ राष्ट्रीय सक्षम प्राधिकरण के रूप में नामित किया गया है।

भारत में विधान
रत ने लायू अन्य अनुपूरक राष्ट्रीय कानूनों, जैसे वन्यजीव (सरंक्षण)। अधिनियय 1992 ( 1991 में यथा सशाषत) तथा पादप प्रजातियों किसानो के अधिकारों का संरकाण (पीपीबीएफआर) अधिनियम 2001 को आगे सहायता प्रदान करने के लिए बोडाए को अधिनियमित किया।
अधिनियम द्वारा विभेदक/धाराओ (3 और 10) को अपनाया गया है जिनके अंतर्गत निम्नलिखित श्रेणी के व्यक्तियो/निर्गामित निकायो/एसोसिएशनो/
संगठनों को अनुसंधान और व्यावसायिक उपयोग हेतु भारत के जैव संसाधनों की उपलब्धता प्राप्त करने के लिए एनबीए का पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक है।
सभी उपयोगकर्ताओं के लिए ऊपर वर्णित श्रेणी के उपयोगकर्त्ताओं को शोध परिणामों का अंतरण करने: जैव संसाधनों पर अनुसंधान के उत्पादों पर आईपीआर के लिए आवेदन करने और पहले से सुगम्यता प्राप्त जैव संसाधन के अन्य पक्ष को अंतरण के लिए भी एनबीए का पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना अपेक्षित है। भारतीय नागरिकों
के लिए अनुसंधान हेतु जैव संसाधनों की उपलब्धता प्रतिबंधित नहीं है। तथापि, ख्ंड 7 में यह उल्लेख किया गया है कि कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक है अथवा कोई निगमित निकाय, एसोसिएशन अथवा संगठन, जो भारत में पंजीकृत है, द्वारा संबंधित राज्य जैव विविधता बोर्ड (एसबीबी) को इस प्रत्याशा के साथ कि
एक जैव सर्वेक्षण (बीएस) समझौता संपन्न किया जा सकता है, पूर्व सूचना दिए जाने को छोड़कर वाणिज्यिक उपयोग अथवा जैव सर्वेक्षण अथवा जैव उपयोग के लिए किसी जैव वैज्ञानिक संसाधन को प्राप्त नहीं किया जाएगा।

कार्यान्वयन प्रणाली बीडीए

बीडीए को कार्यान्वित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एनबीए. राज्य स्तर पर एसबीबी (राज्य सरकारों द्वारा गठित) तथा स्थानीय स्तर पर जैव विविधता समितियों (स्थानीय निकायों द्वारा गठित) को शामिल कर एक 3-स्तरीय प्रणाली की स्थापना की गई है। बीडीए एक विकेन्द्रित दृष्टिकोण
के माध्यम से कार्यान्वयन के लिए अधिदेशित है जिसमें एनबीए द्वारा जैव विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के धारणीय उपयोग और जैव वैज्ञानिक संसाधनों के उपयोग से प्राप्त फायदों को समानतापूर्वक साझा
करने से संबंधित मामलो पर केन्द्र सरकार को और जैव विविधता के क्षेत्र में महत्व के क्षेत्रों के चयन में राज्य सरकारों को सलाह दी जाता है , अधिनियम के कार्यान्वयन से इन तीनों भागीदारों को उपार्जित होने वाली निधियों और अनुदानों का संचालन राष्ट्रीय. राज्य स्तरीय एव स्थानीय जैव विविधता निधियों के अंतर्गत किया जाता है । एनबीए द्वारा
विशिष्ट मुददो पर सिफारिश करने के लिए समय-समय पर कई विशेषज्ञ समितियों और कोर (केन्द्रीय) विशेषज्ञ समितियों (सीईजी) का भी गठन किया गया है। वर्तमान में इस प्रकार की आठ ईसी एवं सीईसी कार्यशील है और इनमें देशभर की विभिन्न विशेषज्ञताओं से शामिल किए गए । 70 विशेषज्ञो का समूह शामिल है।

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