धन विधेयक(Money bill)
धन विधेयकों के सम्बन्ध में विशेष प्रक्रिया
(1) धन विधेयक राज्य सभा गें प्रस्तुत नहीं किए जा सकते अर्थात् यह केवल लोक सभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं
(2) धन विधेयक लोक सभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात् राज्य सभा में भेजा जाता है (अनुच्छेद 108)
(3) राज्य सभा विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित लोक सभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर लोक समा, राज्य सभा की सभी या किन्हीं सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी.
(4) लोक सभा राज्य सभा की सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है वह चाहे तो स्वीकार करे अन्यथा नहीं.
(5) यदि लोक सभा राज्य सभा की किसी सिफरिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक राज्य सभा की सिफारिश सहित दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाएगा
(6) यदि लोक सभा राज्य सभा की कोई सिफारिश स्वीकार नहीं करती है, तो धन विधेयक उसी रूप में जिसमें लोक सभा ने पारित किया था, पारित समझा जाएगा
(7) यदि राज्य सभा लोक सभा द्वारा प्रेषित धन विधेयक को प्राप्ति के चौदह दिन के अन्दर वापस नहीं करती है, तो उक्त अवधि की समाप्ति पर उक्त विधेयक उस रूप में पारित समझा जाएगा जिसमें लोक सभा ने पारित किया था (अनु 109)
धन विधेयक(Money bill)
(1) कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा यदि उसमें निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से सम्बन्धित उपबन्ध हैं-
(क) किसी कर के लगाने, समाप्त करने, कम करने, विनियमित या परिवर्तन करने से,
(ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने या प्रत्याभूति देने का विनियगन अथवा सरकार द्वारा अपने ऊपर ली जाने वाली वित्तीय बाध्यताओं से,
(ग) भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि में धन जमा।करना या उसमें से धन निकालना.
(घ) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग. भारत की संचित निधि पर किसी व्यय को भारित व्यय घोषित करना या व्यय की धनराशि बढ़ाने से
(च) भारत के लोक लेखे या भारत की संचित निधि में धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा या उपयुक्त विषय से सम्बन्धित किसी विषय से, अभिरक्षा या उसका निरगमन
(2) यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, तो उस पर लोक सभा के अध्यक्ष का निर्णय अन्तिम होगा.
(3) लोक सभा अध्यक्ष हस्ताक्षर सहित यह प्रमाणित करता है कि यह धन विधेयक है तभी यह राज्य सभा को तथा राष्ट्रपति को भेजा जाता है(अनु 110)
राष्ट्रपति की अनुमति सभी विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने के पश्चात राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजे जाते हैं, राष्ट्रपति उन पर अपनी अनुमति देगा अथवा धन विधेयकों के अतिरिक्त, अन्य विधेयकों को संसद का मुनविचार के लिए भेज सकता है यदि विधेयक सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राष्ट्रपति की अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो राष्ट्रपति उस पर अनुमति नहीं रोकेगा(अनु 111)
वार्षिक वित्तीय विवरण
(1) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की वार्षिक प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएगा, जोकि वार्षिक वित्तीय विवरण कहलाता है।
(2) वार्षिक वित्तीय विवरण या बजट सर्वप्रथम लोक सभा में प्रस्तुत किया जाता है
(3) वार्षिक वित्तीय विवरण में–
(क) भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के रूप में वर्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियों तथा
(ख) संचित निधि से किए जाने वाले अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियाँ पृथक्- पृथक् दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे से होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा.
(4) भारत की संचित निधि पर भारित व्यय निम्नलिखित हैं
(क) राष्ट्रपति, राज्य सभा के सभापति और उपसभापति, लोकसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष, फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश,उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों, भारत के नियंत्रक- महालेखा- परीक्षक का देय वेतन-भत्ते और पेंशन तथा उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके सम्बन्ध में दी जाने वाली पेंशन जो भारत के राज्य क्षेत्र के अन्तर्गत किसी क्षेत्र के सम्बन्ध में अधिकारिता का प्रयोग करता है.
(ख) ऐसे ऋण भार जिनका दायित्व भारत सरकार पर है,
(ग) किसी न्यायालय या अधिकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की संतुष्टि के लिए अपेक्षित धनराशि
(घ) कोई अन्य व्यय जो इस संविधान द्वारा या संसद द्वारा विधि द्वारा इस प्रकार भारित(charge expenditure)घोषित किया जाता है. (अनु. 112)
संसद में प्राक्कलनों के सम्बन्ध में प्रक्रिया
(1) जितने प्राक्कलन भारत की संचित्त निधि पर भारित व्यय से सम्बन्धित हैं वह सदन में मतदान के लिए रखे जाएंगे, लेकिन उन पर चर्चा को प्रतिबन्धित नहीं किया गया है,
(2) इन प्राक्कलनों में जो प्राक्कलन अन्य व्यय से सम्बन्धित हैं. वे लोक सभा में अनुदान की मांगों के रूप में रखे जाएंगे.
(3) किसी अनुदान की माँग राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही की जा सकती है (अनु. 113)
विनियोग विधेयक(Appropriation Bill)
(1) अनुच्छेद 113 के अधीन अनुदान किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र भारत की संचित निधि में से-
(क) लोक सभा द्वारा इस प्रकार किए गए अनुदानों की, तथा
(ख) भारत की संचित निधि पर भारित, किन्तु संसद के समक्ष दर्शित रकम से अनधिक व्यय की पूर्ति के लिए आवश्यक धनराशि के विनियोग के लिए विधेयक प्रस्तुत किया जाएगा.
(2) इस सग्बन्ध में कोई संशोधन नहीं लाया जाएगा तथा पीठासीन अधिकारी का इस सम्यन्ध नें निर्णय अन्तिम होगा
(3) अनुच्छेद 115 तथा 116 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए भारत की संचित निधि में से इस अनुच्छेद के उपबन्धों के अनुसार पारित विधि द्वारा किए गए विनियोग के अधीन ही कोई धन निकाला जा सकता है, अन्यथा नहीं.(अनु 119)
अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान
(1) यदि-(क) अनुच्छेद 114 के उपबन्धों द्वारा बनाई गई किसी विधि ह्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष में उस पर खर्च की जाने वाली रकम अपर्याप्त पायी जाती है या किसी नई सेवा के लिए अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता पड़ती है, अथवा
(ख) उस पर अधिक धन व्यय हो गया है, तो राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में व्यय का विवरण या मांग प्रस्तुत करवाएगा.
(2) ऐसे किसी विवरण या माँग के सम्बन्ध में तथा भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय या ऐसी माँग से सम्बन्धित अनुदान की पूर्ति के लिए अनुच्छेद 112 तथा 113 और 114 वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वार्षिक वित्तीय विवरण में
(अनु 115)
लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान
(1) लोक सभा को
(2) किसी वित्तीय वर्ष के भाग के लिए प्राक्कलित व्यय के सम्बन्ध में कोई अनुदान
(ख) भारत की सम्पत्ति सोतों पर अप्रत्याशित माँग की पूर्ति के लिए अनुदान करने की
(ग) किसी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा से भिन्न अपवादानुदान करने की शक्ति होगी. (अनुच्छेद 116)
वित्त विधेयकों के विषय में विशेष उपबन्ध
(1) अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड
(च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबन्ध करने वाला विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश से प्रस्तावित किया जाएगा तथा यह राज्य सभा में प्रारम्भ में प्रस्तुत नहीं किया जाएगा। परंतु किसी कर को घटाने या समाप्त करने के लिए किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक नहीं है
(2) कोई विधेयक उक्त विषयों में से किसी के लिए उपबंध करने वाला केवल इस कारण से नहीं समझा जाएगा कि व ह जुर्मानों के अधिरोधण या अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या उसके संकाय का उपधन्ध करता है अथवा स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय कार्यों के लिए कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है
(3) जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर भारत की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद के किसी सदन द्वारा पारित नहीं किया जाएगा.( अनुच्छेद 117)
संसद की साधारण प्रक्रिया के नियम
(1) संविधान के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, संसद का प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के लिए नियम बनाएगा.
(2) संयुक्त अधिवेशन के लिए राष्ट्रपति राज्य सभा सभापति तथा लोक सभा अध्यक्ष से परामर्श करके नियम बनाएगा(अनु 118)
संसद को वित्तीय कार्य सम्बन्धी प्रक्रिया के लिए विधि बनाने का अधिकार – संसद वित्तीय कार्य को समय से पूरा करने के लिए किसी वित्तीय विषय से सम्बन्धित प्रत्येक सदन की प्रक्रिया के लिए विधि बना सकती है
संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा-
संसद में कार्य हिन्दी या अंग्रेजी में होगा, लेकिन राज्य सभा तथा लोक सभा में पीठासीन व्यक्ति किसी भी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की आज्ञा दे सकता है (अनु 120)
न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जाँच
(1) संसद की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को प्रक्रिया के आधार पर किसी भी न्यायालय में प्रश्नगत् नहीं किया जाएगा
(2) संसद का कोई अधिकारी या सदस्य, संविधान द्वारा
निहित शक्तियों के निर्वहन के लिए किसी भी न्यायालय में प्रश्नगत् नहीं किया जा सकता (अनु
122)
संसद के विश्रांति काल में राष्ट्रपति को अध्यादेश बनाने की शक्ति
(1) जब संसद के दोनों सदन सत्र में नहीं होते तथा राष्ट्रपति को इस समय यह समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिनके कारण तुरन्त कार्यवाही की आवश्यकता है उस समय राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है
(2) इस अनुच्छेद के अधीन निकाला गया अध्यादेश उतना ही प्रभावी होता है जितना कि संसद का अधिनियम परन्तु ऐसा प्रत्येक अध्यादेश-
(क) संसद के दोनों सदनों में रखा जाएगा तथा संसद के पुनः सत्र में होने से छ. सप्ताह की समाप्ति पर या उस अवधि की समाप्ति से पहले यदि दोनों सदन उसके अनानुमोदन (अस्वीकृति) का संकल्प पारित कर देते हैं तो इनमें से दूसरे संकल्प के पारित होने पर लागू नहीं रहेगा, और
(ख) राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकता
(अनु. 123)
(स्पष्टीकरण–जहाँ दोनों सदनों की अधिवेशनों की तारीख अलग–अलग हो तो बाद वाले दिनांक से छः सप्ताह गिने जाएंगे)