परमाणु हथियार निषेध संधि
परमाणु हथियार निषेध संधि
7 जुलाई, 2017 को विश्व के 122 देशों ने संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में परमाणु हथियार निषेध संधि को अपनाया था, 20 सितंबर को 50 न देशों द्वारा अनुमोदित किये जाने के पश्चात् यह संधि लागू हो गई। परमाणु हथियारों पर रोक लगाने के लिये यह एक कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है। स्मरणीय है कि विश्व के परमाणु शक्ति-संपन्न देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। संबंधित तथ्य इस संधि के तहत परमाणु हथियार या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों के विकास, परीक्षण, उत्पादन, निर्माण, अधिग्रहण, संग्रहण के साथ-साथ परमाणु हथियारों से संबंधित गतिविधियों की पूरी श्रृंखला पर रोक लगाई गई है। इस संधि को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से तैयार किया गया है। संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्यों में से 122 देशों ने इस संधि को 7 जुलाई को अपनाया था। संधि के लिये हुए मतदान में नीदरलैंड एकमात्र ऐसा देश था जिसने इसके विपक्ष में मतदान किया था स्मरणीय है कि दुनिया के परमाणु शक्ति-संपन्न 40 देशों ने अपनी सुरक्षा का हवाला देकर इस संधि का विरोध किया है।
सीमाएँ
संधि द्वारा आरोपित कानूनी बाध्यता केवल उन्हीं देशों पर लागू होगी जिन्होंने इस संधि पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके अलावा. यह संधि हस्ताक्षरकर्त्ता देशों को ऐसे सैन्य गठजोड़ों का हिस्सा बनने पर भी कोई रोक नहीं लगाती जिसका कोई सदस्य देश परमाणु हथियार रखता हो। संधि के हस्ताक्षरक्रत्त्ता देश असाधारण परिस्थितियों में अपने देश की सुरक्षा को सर्वोच्च वरीयता देते हुए संधि से अलग हो सकते हैं। यह कमजोर प्रावधान हस्ताक्षरकर्ता देशों को संधि को कभी भी तोड़ने की अनुमति देता है। यदि भविष्य में कोई देश ऐसा करता है तो यह साँधि में शामिल अन्य देशों में परमाणु हथियार मुक्त विश्व का निर्माण करने की संधि की क्षमता के प्रति अविश्वास पैदा करेगा।
सबसे बड़ी सीमा यह है कि इसमें एक भी परमाणु हथियार-संपन्न देश शामिल नहीं है। विश्व में अधिकांश परमाणु हथियार रखने वाले अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत पाकिस्तान, इज्राइल और उत्तर कोरिया ने इस संधि में शामिल होने से इनकार कर दिया है। ऐसे में इस संधि का अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल हो पाना लगभग असंभव है।
नाटो के गैर-परमाणु सदस्यों ने भी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। इटली, जर्मनी, बेल्जियम, हॉलैंड और तुर्की जैसे देशों ने जहाँ पर अमेरिका ने अपने परमाणु हथियारों की तैनाती कर रखी है, संधि से अलग रहने का निर्णय किया है। यूक्रेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और नाटो के प्रमुख भागीदारों सहित कुल 73 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश इस संधि से बाहर हैं।
भारत का पक्ष
करते हुए यह कहा है कि उपरोक्त संधि विश्व से परमाणु हथियारों के निरस्त्रीकरण के लिये एक समग्र व्यवस्था निर्मित कर पाने में अक्षम है। अत: अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत इस संधि पर हस्ताक्षर करने में असमर्थ है। यद्यपि भारत ने विश्व से परमाणु हथियारों के खात्मे के लिये जिनेवा निरस्त्रीकरण सम्मेलन के तत्वावधान में चर्चा के लिये सहमति व्यक्त की है। वस्तुत: भारत जिनेवा के निरस्त्रीकरण से संबंधित कॉन्फ्रेंस को ही एकमात्र बहुपक्षीय परमाणु अप्रसार वार्ता मंच के रूप में स्वीकार करता है।