प्रतिपक्ष लोकसभा

प्रतिपक्ष लोकसभा

सभा में प्रतिपक्ष का नेता लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण पद है और लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए स्वास्थ्यप्रद भी है। परंतु 6वीं लोकसभा (2014) में किसी भी नेता को विपक्ष के नेता का पद नहीं भी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी
प्रदान किया गया 17वीं लोकसभा को छोड़कर किसी भी दल को कथित परंपरा के अनुसार लोकसभा को सदस्य संख्या का 10 प्रतिशत सदस्य नहीं है। इसी आधार पर लोकसभा में विपक्ष का नेता का पद दिए जाने पर संशय बरकरार है।

क्या कहता है कानून?

वर्ष 1977 के कानून से पहले लोकसभा में विपक्ष के नेता को लेकर कोई औपचारिक विधान नहीं था। लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी. वी. मावलंकर ने यह नियम बना दिया था कि किसी राजनीतिक दल को संसदीय दल का दर्जा देने तथा सबसे बड़े इस संसदीय पार्टी के नेता को विपक्ष का नेता का पद तभी दिया जा सकता है जब लोकसभा में उसकी सदस्य संख्या, लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या का I0 प्रतिशत हो। तब से विपक्षी दल के नेता के लिए इसी परंपरा का पालन किया जाता रहा है। जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में किसी भी नेता को विपक्ष का नेता दर्जा नहीं दिया गया था। हालांकि संसदीय एक्ट I977 ऐसा पहला नियम है जिसमें विपक्ष के नेता के वेतन एवं a (Salary and Allowances of Leaders of Opposition in Parliament Act, 1977) में विपक्ष के नेता का उल्लेख किया गया है। इसके द्वारा विपक्ष के नेता को ‘वैधानिक मान्यता’ मिली। इस एक्ट के मुताबिक विपक्ष का नेता सदन में सरकार के प्रतिपक्ष वाले दल का नेता वह है जो उस सदन में संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा दल (सत्तारूढ़ पक्ष के अलावा) है और लोकसभा अध्यक्ष द्वारा इस रूप में उसे मान्यता दी गई हो। वर्ष 1977 के नियम में लोकसभा में विपक्ष के नेता व राज्यसभा में विपक्ष के नेता को वही वेतन एवं भत्ते देने का उल्लेख है जो कि एक कैबिनेट मंत्री को अनुमन्य होती है। वर्ष 1977 के नियम से निम्नलिखित बातें निकलकर सामने आई:
1. विपक्ष का नेता एक वैधानिक पद है।
2.
सबसे बड़ा विपक्षी दल का नेता ही विपक्ष का नेता होगा।
3.
विपक्षी दल का नेता का दर्जा (यदि वेतन एवं भत्ता को आधार माना जाए) कैबिनेट मंत्री के दर्जा के बराबर है।
4.
लोकसभा में विपक्ष का नेता स्वीकार करने का अधिकार लोकसभाध्यक्ष पर है।

जहां वर्ष 1977 के नियम में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को विपक्षी नेता का दर्जा दिए जाने का उल्लेख है तो संसद (सुविधा) में मान्यता प्राप्त दलों एवं समूहों के नेता एवं चीफ व्हीप एक्ट, 1998 (The Leaders and Chief Whips of Recognised Parties and Groups in Parliament (Facilities)Act, I9-8) में ऐसे राजनीतिक
दल को मान्यता प्राप्त दल के रूप में स्वीकारता है जिसके लोकसभा में 55 से कम सदस्य नहीं हो।

स्पष्ट है कि लोकसभा में किसी को विपक्षी नेता का दर्जा दिया जाए या नहीं, यह लोकसभाध्यक्ष पर निर्भर करता है । 16वीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के पश्चात् सर्वाधिक 44 सीटें कांग्रेस को मिली थीं। 10 प्रतिशत की पुरानी परंपरा के हिसाब से उसके नेता को विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं दिया गया था। हालांकि कांग्रेस ने अपनी ओर से मल्लिकार्जुन खगें को लोकसभा में संसदीय दल का नेता जरूर नियुक्त किया। वैसे यह पहला मामला भी नहीं था जब कांग्रेस पार्टी के संसदीय दल के नेता को विपक्षी नेता का पद देने से लोकसभाध्यक्ष ने इंकार कर दिया।

जहां तक इतिहास की बात तो है वर्ष 1969 से पहले भारत में लोकसभा में विपक्ष का नेता कोई नहीं बना। 1969 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दो हिस्सों में विभाजित हो गया-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आर) व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ओ) में। आईएनसी (ओ) के नेता राम सुभग सिंह औपचारिक रूप से लोकसभा के प्रथम मान्यता प्राप्त विपक्ष के नेता बने। वर्ष 1977 के प्रावधान के बावजूद प्रथम लोकसभा से ही लोकसभा कोरम (कुल सदस्य संख्या का 10 प्रतिशत) के बराबर या उससे अधिक सदस्यों वाले विपक्षी राजनीतिक दलों में से सबसे बड़े दल के सदस्य के नेता को ही विपक्ष का नेता के रूप में मान्यता देने की परंपरा रही है। 17वीं लोकसभा में कोरम या कुल सदस्य संख्या का 10 प्रतिशत 55 है। ऐसे में परंपरा के हिसाब से भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर किसी भी एक दल को इतनी सीटें नहीं मिली हैं। लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के पश्चात भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सबसे बड़ा दल (कुल 52 सीटें) है। 1977 के नियम के हिसाब से उसके संसदीय दल के नेता को विपक्ष का नेता का मान्यता दी जानी चाहिए। परंतु परंपरा के हिसाब से उसे तीन सीटें कम मिली है, ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष ओमबिड़ला उसे यह पद देने से मना कर सकते हैं।

वैसे 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के तीन सदस्य होने के बावजूद उसके नेता को विपक्षी नेता का दर्जा दिया हुआ है। कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी तर्क देते हैं कि जब बहुमत प्राप्त चुनाव पूर्व गठबंधन सरकार बनाने का दावा ठोक सकता है या सरकार बनाता है तो फिर इस गठबंधन को विपक्ष का नेता के रूप में मान्यता क्यों नहीं दी सकती है। वैसे भी कई ऐसे वैधानिक पद हैं

जिनकी नियुक्ति के लिए गठित पैनल में लोकसभा में विपक्ष का नेता सदस्य होता हैं। मसलन; मुख्य सतर्कता आयुक्त, मुख्य सूचना आयुक्त, सीबीआई महानिदेशक, लोकपाल, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इत्यादि। ऐसे में विपक्ष के नेता को होना लोकतंत्र के लिए जरूरी है।

17 वीं लोकसभा में सर्वाधिक महिला सांसद

17वीं लोकसभा (2019-2024) में कुल 78 महिलाएं निर्वाचित हुई हैं जो कि अब तक का रिकॉर्ड है। वर्ष 2014 में 16 वी लोकसभा में 61 महिलाएं निर्वाचित हुई थीं। 78 महिलाओं का मतलब है लोक सभा के कुल सांसदों का 14.3 प्रतिशत। प्रथम लोकसभा में केवल 5 प्रतिशत महिलाएं लोकसभा पहुंच पाईं थीं। इस दृष्टिकोण से रिकॉर्ड के बावजूद यह भारत का यह औसत पड़ोसी बांग्लादेश (21 प्रतिशत) एवं सर्वाधिक सशक्त लोकतंत्र संयुक्त राज्य अमेरिका (32 प्रतिशत) के मुकाबले काफी कम है। पीआरएस लेजिस्टलेटिव रिसर्च की डेटा के अनुसार 1962 से अब तक 617 महिलाएं निर्वाचित हो चुकी हैं। इसी डेटा के अनुसार वर्ष 1962 से 2019 के बीच देश के 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 279 क्षेत्रों ने कम से कम एक महिलाओं को चुना है जबकि 264 निर्वाचन क्षेत्रों ने अब तक एक भी महिला को चुनकर लोकसभा नहीं भेज पाया है। 17वीं लोकसभा में निर्वाचित 78 महिला सांसदों में 41 भारतीय जनता पार्टी, अखिल भारतीय त्रिणमूल कांग्रेस के 9, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 6, बीजू जनता दल के 5, वाईएसआर के
डीएमके के 2 हैं। शेष अन्य दलों के हैं।

ओम बिड़ला-17वीं लोकसभा के अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी के कोटा-बूंदी लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित श्री ओम बिड़ला सर्वसम्मति से 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। लोकसभा सांसद के दूसरे कार्यकाल में ही वे अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। सामान्यतया लोकसभा के वरिष्ठ सांसद को लोकसभाध्यक्ष चुने जाते जाती रही है/हैं। 16वीं लोकसभा की अध्यक्षा श्रीमती सुमित्रा महाजन वर्ष 2014 में आठवीं बार सांसद बनीं थीं। हालांकि यह पहला अवसर नहीं है। इससे पहले भी पहली बार या दूसरी बार ही लोकसभा के लिए निर्वाचित होने वाले सांसद अध्यक्ष निर्वाचित होते रहे हैं। तेलुगुदेशम पार्टी के जीएमसी बालयोगी 1996 में जब लोकसभा अध्यक्ष बने थे तब लोकसभा में उनका दूसरा कार्यकाल ही था। वर्ष 2002 में शिवसेना के मनोहर जोशी लोकसभा के लिए पहली बार चुने गए थे. और पहले कार्यकाल में ही लोकसभा के अध्यक्ष बन गए। लोक सभा के

श्री ओम बिड़ला(19-6-2019 से अब तक)

जी.वी. मावलंकर का लोकसभा अध्यक्ष रहते निधन हो गया था। चौथी लोकसभा में 1969 में श्री नीलम संजीव रेड्डी ने राष्ट्रपति चुनाव । लड़ने के लिए लोकसभाध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था। उसके पश्चात श्री ढिल्लो लोकसभाध्यक्ष बने थे। ढिल्लो ने 1975 में पांचवीं लोकसभा के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था। 1977 में श्री एन. संजीव रेड्डी ने लोकसभा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। तेरहवीं लोकसभाध्यक्ष श्री जी.एम.सी. बालयोगी का कार्यकाल में ही विमान दुर्घटना में निधन हो गया|

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