भारत के ‘नो फर्स्ट यूज’ परमाणु पालिसी
भारत के ‘नो फर्स्ट यूज‘ परमाणु पालिसी
16 अगस्त, 2019 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर भारत के ‘नो फर्स्ट यूज’ (No First Use’ – NFU) बदलाव के संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर भारत अपने ‘नो फर्स्ट यूज’ सिद्धांत पर पूरी तरह प्रतिबद्ध है, लेकिन भविष्य में क्या होगा, यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
‘नो फर्स्ट यूज‘ न्यूक्लियर नीति क्या है?
यह भारत का परमाणु हथियारों के उपयोग के संदर्भ में घोषित सिद्धांत है। ‘नो फर्स्ट यूज’ सिद्धांत में कहा गया है कि भारत तब तक परमाणु हथियारों का उपयोग युद्ध के साधन के रूप में नहीं करेगा, जब तक कि किसी विरोधी द्वारा परमाणु हथियारों से पहले हमला नहीं किया जाता है। इससे पहले, यह सिद्धांत रासायनिक और जैविक युद्ध के लिए लागू की गई थी।
‘नो फर्स्ट यूज‘ नीति कैसे अस्तित्व में आई ?
> वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद जब भारत ने खुद को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र घोषित किया, तब उसने परमाणु हथियारों के ‘नो फर्स्ट यूज’ सिद्धांत को भी लागू किया। भारतीय नीति निर्माताओं ने किसी भी संघर्ष की स्थिति में परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल की पहल को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया। भारत का परमाणु सिद्धांत विशुद्ध रूप से प्रतिशोधी (Retaliatory in nature) प्रकृति का है ।
> 4 जनवरी, 2003 को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने देश के परमाणु सिद्धांत की प्रगति की समीक्षा की और ‘नो फर्स्ट यूज’ सिद्धांत की सिफारिश की। इसमें बताया गया है कि’परमाणु हथियारों का उपयोग केवल भारतीय क्षेत्र या कहीं भी भारतीय बलों पर परमाणु हमले के प्रतिशोध में किया जाएगा।
> हालांकि इस सिद्धांत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अगर किसी ने भारत पर परमाणु हमला किया तो भारत का परमाणु प्रतिशोध बड़े पैमाने पर होगा।
भारत की परमाणु नीति की मुख्य विशेषताएं
भारत की परमाणु नीति का मूल सिद्धांत ‘पहले उपयोग नहीं’ (No First Use) है। ‘नो फर्स्ट यूज’ डॉक्ट्रिन के तहत भारत किसी भी देश पर परमाणु हमला तब तक नहीं करेगा, जब तक कि शत्रु देश भारत के ऊपर हमला नहीं कर देता।
अगर किसी देश ने भारत पर परमाणु हमला किया तो उसका प्रतिशोध इतना भयानक होगा कि दुश्मन को अपूर्णीय क्षति हो और वह शीघ्र इस हमले से उबर न सके।
यदि भारत के विरुद्ध या भारतीय सुरक्षा बलों के विरुद्ध कोई रासायनिक या जैविक हमला होता है तो भारत इसके जबाब में परमाणु हमले का विकल्प खुला रखेगा।
जिन देशों के पास परमाणु हथियार नहीं हैं, उनके खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। भारत परमाणु मुक्त विश्व बनानं की वैश्विक पहल का समर्थन करता रहेगा तथा भेदभाव मुक्त परमाणु नि: शस्त्रीकरण के विचार को आगे बढ़ाएगा। भारत अपनी परमाणु नीति को इतना सशक्त बनाए रखेगा कि दुश्मन के मन में भय बना रहे। दुश्मन के खिलाफ परमाणु हमले की कार्यवाही करने के अधिकार सिर्फ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों अर्थात देश के राजनीतिक नेतृत्व को ही होगा, हालांकि परमाणु कमांड।अथॉरिटी का सहयोग जरूरी होगा।परमाणु एवं प्रक्षेपास्त्र संबंधी सामग्री तथा प्रौद्योगिकी के निर्यात पर कड़ा नियंत्रण तथा परमाणु परीक्षणों पर रोक जारी रहेगा।
भारत को ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति को क्यों बनाए रखना चाहिए?
चूंकि भारत के दो पड़ोसी देश पाकिस्तान तथा चीन परमाणु हथियार से युक्त राष्ट्र हैं। ऐसी स्थिति में भारत का ‘नो फर्स्ट यूज’ न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन कूटनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।
पाकिस्तान द्वारा सामरिक परमाणु हथियार बनाने तथा द्वारा त्वरित सैन्य आधुनिकीकरण और विस्तार किए जाने जैसे घटनाक्रम के चलते युद्धकाल के लिये अलग परमाणु सिद्धांत होना बेहद महत्वपूर्ण है।
उल्लेखनीय है कि चीन पहले से ही ‘नो फर्स्ट यूज पॉलिसी’।को अपना रहा है और संभावना है कि वह अपनी इस नीति को इतनी जल्दी नहीं बदलेगा। इसलिए यदि भारत अपनी नीति बदल देता है तो संभव है कि चीन इसका लाभ उठाकर पहले आक्रमण करने की नीति (First Strike Policy) को अपना सकता है और इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
वास्तव में, भारत द्वारा ‘फर्स्ट स्ट्राइक नीति’ (First Strike।Policy) को अपनाने से चीन के लिए एक आसान बहाना होगा कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के खिलाफ भी अपना ‘नो फर्स्ट यूज पॉलिसी’ को छोड़ दे।
इसके अलावा, भारत ने हमेशा खुद को एक जिम्मेदार परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र के रूप में घोषित किया है। इसलिए फर्स्ट स्ट्राइक नीति’ (First Strike Policy) अपनाने से एक जिम्मेदार परमाणु हथियार राष्ट्र के रूप में भारत की छवि धुमिल हो सकती है।
भारत की वर्तमान नीति के कारण ही पाकिस्तान और भारत अपने-अपने परमाणु हथियारों को युद्ध स्तर पर सुसज्जित नहीं रखते हैं, अर्थात न्यूक्लियर वॉरहेड को डिलीवरी सिस्टम से नहीं जोड़ा जाता है। यह पाकिस्तान में परमाणु आतंकवाद की संभावनाओं और परमाणु हथियार के आकस्मिक प्रक्षेपण की संभावना को कम करता है।
भारत के द्वारा ‘फर्स्ट स्ट्राइक नीति’ अपनाने से पाकिस्तान भी अपने परमाणु नाति में बदलाव कर आक्रामक हो सकता है, जिससे अंततः दोनों ही देश को नुकसान होगा। भारत का मानना है कि परमाणु हथियार वास्तव में अंतिम उपाय है ।