मंत्रिपरिषद (अनुच्छेद 74-78)

मंत्रिपरिषद (अनुच्छेद 74-78)

( भारतीय संविधान में मंत्रीपरिषद, संसद, धन विधेयक आदि के प्रावधान निम्न प्रकार दिए गए हैं)

(1) राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा.
(2) राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार कार्य करेगा. लेकिन चवालीसवें(44 वे) संविधान संशोधन के अनुसार मंत्रिपरिषद से ऐसी सलाह पर पुनर्विचार के लिए कह सकेगा तथा वह पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा
(3) इस प्रश्न की कोई भी न्यायालय जांच नहीं कर सकता कि मन्त्रियों ने राष्ट्रपति को क्या सलाह दी. यदि दी तो क्या दी, (अनुच्छेद 74)


(1) प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर करता है.
(2) मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करते हैं

(3) मंत्रिपरिषद् लोक सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है।

(4) राष्ट्रपति मंत्रियों को पद धारण करने से पूर्व उनको पद की गोपनीयता की शपथ दिलाता है

(5) किसी भी गैर संसद सदस्य कों मंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन कोई मंत्री, जो निरन्तर छः मास की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा.

(6) मंत्रियों के वेतन, भत्ते संसद द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए जाएंगे. (अनु. 75)

भारत का महान्यायवादी


(1) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए योग्यता रखने वाले किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रपट्टि भारत का महान्यायवादी नियुक्त कर सकता है,
(2) महान्याथवादी का कार्य राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर सौंपे एवं निर्देशित विधिक कार्यों को करना तथा भारत सरकार को विधि सम्बन्धी सलाह देना है
(3) महान्यायवादी को भारत के राज्य क्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा.
(4) महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है तथा राष्ट्रपति द्वारा अवधारित पारिश्रमिक प्राप्त करता है.(अनु. 76)

सरकारी कार्य का संचालन

(1) भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही राष्ट्रपति के नाम से की हुई मानी जाएगी.
(2) राष्ट्रपति सरकार का कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए मन्त्रियों के कार्यों के आवंटन के लिए नियम बनाएगा.(अनु 77)

प्रधानमंत्री का कर्तव्य होगा कि वह-
(A) राष्ट्रपति को संघ सरकार के विधान विषयक तथा प्रशासन सम्बन्धी कार्यकरलापों सम्बन्धी निर्णयों की जानकारी देगा.
(B) उपर्युक्त विषय से सम्बन्धित जानकारी यदि राष्ट्रपति माँगे तो राष्ट्रपति को देगा.(C) ऐसे विषय को जिस पर किसी मंत्री ने निर्णय दे दिया है किन्तु मंत्रिपरिषद् ने अभी विचार नहीं किया है उसे राष्ट्रपति के कहने पर वह परिषद के समक्ष रखेगा.(अनु 78)

संघीय व्यवस्थापिकासंसद
(अनुच्छेद 79-123)

संघ के लिए एक संसद होगी जोकि राष्ट्रपति तथा दो सदनों-राज्य सभा तथा लोक सभा से मिलकर बनेगी. (अनु.79)

राज्य सभा की संरचना

(1) राज्य सभा में दो सौ पचास से अधिक सदस्य नहीं होंगे इसमें दो सौ अड़तीस राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों से निर्वाचित प्रतिनिधि तथा 12 सदस्य साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र से राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित किए जाते हैं.

(2) वह स्थायी सदन है अर्थात् यह कभी भंग नहीं हो सकता.

(3) यह उच्च सदन या द्वितीय सदन कहलाता है

(4) इसके 1/3 सदस्य प्रत्येक दो वर्ष पश्चात् अवकाश ग्रहण करते हैं तथा उतने ही निर्वाचित होते हैं.

(5) एक सदस्य का कार्यकाल छः वर्ष होता है

(6) राज्यों से प्रतिनिधित्व वहाँ की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा.
(7) संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि ऐसी विधि से चुने जाते हैं जो संसद विधि द्वारा निश्चित करें.

(৪) राज्य सभा में राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों की संख्या का आवंटन संविधान की चौथी अनुसूची में निश्चित नियमों के अन्तर्गत किया जाता है

लोक सभा की संरचना (अनु 80)

(1) लोक सभा प्रथम या निम्न सदन कहलाता है

(2) यह सदन जनता का प्रतिनिधित्व करता है

(3) इसकी कुल सदस्य संख्या पाँच सौ बावन(552) से अधिक नहीं। होगी जिसमें पाँच सौ तीस सदस्य राज्यों के चुनाव क्षेत्रों से निर्वाचित तथा बीस सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों के चुनाव क्षेत्र से निर्वाचित होंगे. यदि राष्ट्रपति की यह राय है कि लोक सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हुआ है तो वह इस समुदाय के अधिक-से-अधिक दो प्रतिनिधि नाम निर्देशित कर सकता है. वर्तमान में लोक सभा की सदस्य संख्या 545 है तथा दो आंग्ल-भारतीय मनोनीत हैं.

(4) राज्यों के चुनाव क्षेत्र जनसंख्या के आधार पर बनाए जाते हैं. प्रत्येक जनगणना के पश्चात् तथा लोक सभा के विघटन के पश्चात् पुनःसमायोजन की व्यवस्था है. लेकिन जब तक सन् 2000 के पश्चात् की गई पहली जनगणना के आँकड़े प्रकाशित नहीं होते, तब तक 1971 की जनगणना को ही आधार माना जाएगा. (अनु. 81)

संसद के सदनों की अवधि

(1) राज्य सभा स्थायी सदन है इसका विघटन कोई भी नहीं कर सकता
(2) लोक सभा अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी तथा पाँच वर्ष की अवधि के पश्चात् नई लोक सभा के लिए चुनाव होंगे.
(3) पाँच वर्ष की अवधि को जय आपात की उद्घोषणा लागू, हो तो संसद एक बार में एक वर्ष से अनाधिक समय के लिए” बढ़ा सकती हैं, यदि आपात स्थिति समाप्त हो जाती है, तो यह विस्तार छ: माह से अधिक नहीं होगा
(4) लोक सभा को पाँच वर्ष से पूर्व भी राष्ट्रपति द्वारा विघटित किया जा सकता है तथा नई लोक सभा गठन के लिए चुनाव कराए जा सकते हैं
(5) लोक सभा के प्रतिनिधियों (M.P.) का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार तथा गुप्त मतदान द्वारा होता है. (अनु 83)

संसद की सदस्यता के लिए निर्धारित योग्यताएँ

(1) भारत का नागरिक होना चाहिए

(2) राज्य सभा में स्थान के लिए कम-से-कम तीस वर्ष की आयु का तथा लोक सभा के लिए कम-से-कम पच्चीस वर्ष की आयु का होना चाहिए.
(3) संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा विहित की गई अन्य योग्यताएँ होनी चाहिए (अनु 84)

संसद का सत्र, सत्रावसान और विघटन

(1) राष्ट्रपति समय समय पर संसद के प्रत्येक सदन को जब ठीक समझे अधिवेशन के लिए आहूत करेगा. लेकिन दो अधिवेशनों के मध्य छः मास का अन्तर नहीं होगा. अर्थात् सत्र की अन्तिम बैठक से दूसरे सत्र की प्रथम बैठक के मध्य छ: मास से कम समय होना चाहिए.

(2) राष्ट्रपति समय-समय पर-
(A) सदनों का अथवा किसी एक सदन का सत्रायसान कर सकता है
(B) लोक सभा का विघटन कर सकता है। (अनु. 85)

(3) सदनों में अभिभाषण कर सकता है

(4) राष्ट्रपति किसी विलम्बित विधेयक के सम्बन्ध में किसी सदन को संदेश भेज सकता है (अनु 86)

(5) निर्वाचित लोक सभा के प्रथम सत्र में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में विशेष अभिभाषण करता है (अनु 87)

मंत्रियों तथा महान्यायवादी के सदनों के विषय में अधिकार
प्रत्येक मंत्री तथा भारत का महान्यायवादीं संसद के किसी भी सदन में, संयुक्त अधिवेशन में, संसद की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोल सकता है, कार्यवाही में भाग ले सकता है, लेकिन वह इस अनुच्छेद के आधार पर मत देने का अधिकारी नहीं है
(अनु. 88)


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