मैंग्रोव वन

मैंग्रोव वन

मैंग्रोव वन मानव के लिये पर्यावरणीय एवं आर्थिक दोनों रूपों में उपयोगी हैं। पारंपरिक रूप से इनका इस्तेमाल स्थानीय निवासियों द्वारा लकड़ी, फर्नीचर. ईधन, औषधि एवं भोजन सहित विभिन्न कार्यों में किया जाता है।

मग्राव वन पृथ्वी तथा समुद्र के बीच एक उभय प्रतिरोध (बफ़र) की भाँति कार्य करते हैं तथा ये सुनामी, चक्रवात
एवं समुद्री तूफानों आदि के समय तटीय तथा उसके आस-पास के क्षेत्रों की रक्षा करते हैं।

ये वन तटीय क्षेत्रों में तलहट पर होने वाली जान-माल की हानि को भी कम करने में सहायक होते हैं।
मैंग्रोव पौधों की जड़े तलहट तथा अन्य प्रदूषक तत्त्वों से मुंगों या ‘प्रवाल-भित्तियों’ की सुरक्षा करती हैं, बदल में मूर्ग
की चट्टाने तेज समुद्री लहरों के वेग को कम करके मैंग्रोव वनों व उनकी भूमि को सुरक्षा प्रदान करती हैं।

उपयोगिता
एक प्राकृतिक शरणस्थली के रूप में मैंग्रोव वन मैंग्रोव वनों की जड़ें समुद्र तटीय क्षेत्रों में मछलियों एवं शैवालों के लिये एक प्रमुख शरणस्थली के रूप में होती हैं।

इन वनों के मैंग्रोव वृक्षों की आपस में गुँथी या उलझी जड़ें छोटी-छोटी मछलियों तथा झींगों सहित अन्य छोटे जीवों
को बड़े परभक्षियों से सुरक्षा प्रदान करती इनके पेड़ों की घनी शाखाएँ पशु-पक्षियों, बंदरों, लंगूरों आदि को प्राकृतिक आवास उपलब्ध करवाती हैं। इन पेड़ों के तनों व जड़ों में अनेकों प्रकार के कीटों तथा सूक्ष्मजीवों की उत्पत्ति होती है।

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र मत्स्यपालन तथा उत्पादन की दृष्टि से बेहद सुरक्षित व समृद्ध क्षेत्र माना जाता है। यही नहीं, मछलियों तथा ‘शेख मीन’ (शैल फिश) की बहुत सी प्रजातियों के लिये मैग्रोव क्षेत्र एक बेहतर व सुरक्षित प्रजनन तथा पालन-पोषण केंद्र के रूप में कार्य करता है। ओडिशा तथा सुंदरबन डेल्टा में मैंग्रोव वनों में समृद्ध पारिस्थितिकी तथा जैवविविधता पाई जाती है।

ग्रीन हाउस प्रभाव कम करना
बना में समृद्ध पारिस्थितिकी तथा जैवविविधता पाई जाती है।मैग्राव वन प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के माध्यम से वायुमंडल में उपस्थित हानिकारक ‘कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित कर सकने में सक्षम होते हैं।

इन पौधों में कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित करने एवं उसे सहन करने की क्षमता अन्य पौधों की अपक्षा
अधिक पाई जाती है।मैंग्राव वन बड़ी मात्रा में वायुमंडल से कार्बन का अवशोषण कर उसे मिटटी में संचित करने की क्षमता रखते हैं।सूर्य की पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा मैंग्रोव पौधों में सूर्य के तीव्र विकिरणों तथा हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करने की अद्भुत क्षमता होती है। उदाहरण के लिये, ‘एविसेनिया’ प्रजाति के मैग्रोव पीधे गर्म तथा शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में उगते हैं जहाँ पर सूर्य की किरणें काफी तेज़ पड़ती हैं।

यह प्रजाति शुष्क जलवायु के लिये भली-भाँति अनुकूलित है जिससे वह अपने आश्रय वाले जीवों को सूर्य के तीव्र
विकिरण से सुरक्षा प्रदान करती है। इसी प्रकार ‘राइजोफोरा प्रजाति’ के मैंग्रोव पौधे अन्य पौधों की तुलना में सूर्य की अधिक परावैंगनी किरणों को सहन कर सकने में सक्षम होते हैं।

मैंग्रोव पीथों की यह विशिष्ट क्षमता उनके संरक्षण में पलने वाले संवेदनशील जीवों की सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा प्रदान करती है।

औषधीय उपयोग मैंग्रोव वनों का खाद्य-पोषण तथा पर्यावरण व जैवविविधता के संरक्षण एवं संवर्द्धन में महत्त्वपूर्ण योगदान है। मैंग्रोव वनस्पतियों की कई प्रजातियाँ स्नायु या तंत्रिका तंत्र से जुड़े रोगों, लकवा, मिर्गी, सर्पदंश, चर्मरोग तथा पेट व मुत्र संबंधी अनेक बीमारियों के लिये अत्यंत उपयोगी औषधि के रूप में कार्य करती हैं।

मैंग्रोव वनस्पतियों का उपयोग आयुर्वेदिक, एलोपेथिक तथा होम्योपेथिक तीनों प्रकार की औषधियों के निर्माण में किया जाता है।

मैग्रोव वनस्पतियां

ये वनस्पतियाँ तटीय क्षेत्रों के खारे अथवा लवणीथ जलों में उपने वाले छोटे-छोटे पौधे अथवा घासें होती हैं।
मैग्रोव वनस्पतियाँ उष्ण एवं उपोष्णकदिवधीय समुदतटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले वृक्षों और झाड़ियों के समूह होते हैं।
इन वनस्पतियों में लवणीय जलों को सहने की क्षमता होती है जिसके कारण इन्हें हैलोफाइट्स (Halkghytes) भी कहा जाता है। ये वनस्पतियाँ खारे जल को लवण से अलग करके स्वच्छ एन ताजे जल का अवशोषण करती हैं. कितु फिर भी थोड़ी बहुत मात्रा में पौधों द्वारा लवणीय जलों का अवशोभण कर लिया जाता है जिसे पौधों द्वारा पत्तियों के माध्यम से उत्सज्जित कर दिया जाता है। यही नहीं, मैग्रोन वनस्पतियाँ प्रतिकूल परिस्थितियों में श्वसन क्रिया में निरंतरता के लिये अपनी कुछ जड़ों को कोचड़ अथवा पानी से बाहर रखती हैं, इन जड़ों को न्यूमैटोफोरस (Pneumatopthares) कहते हैं।

चुनौतियाँ
दुनिया भर से पिछले 4 दशकों में तकरीबन 20 फोसदी मैंग्रोव वनों का ह्रास हुआ है जो बेहद चिंता का विषय है।
मैंग्रोव वनों के समाप्त होने से न केवल पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों के ही उत्सर्जन में वृद्धि होने लगेगी अपितु इससे इन पर निर्भर रहने । वाले जीवों पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। वैश्विक स्तर पर मैग्रोव वनों के संवर्द्न और संरक्षण को बड़ावा दिया जाना चाहिये। लोगों को इन वनों की उपयोगिता के विषय में जागरूक करना चाहिये। इसके संरक्षण तथा संवर्द्धन के लिये किश्व के विभिन्न देशों को साथमिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।

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