मौद्रिक नीति

मौद्रिक नीति

मौद्रिक नीति से अभिप्रायः केंद्रीय बैंक के नियंत्रण में लिखतों के उपयोग से है जिससे कि मुद्रा और ऋण की उपलब्धता, लागत और उपयोग को नियंत्रित किया जा सके। इसका उद्देश्य कम और स्थिर मुद्रास्फीति तथा विकास को बढ़ावा देने जैसे विशिष्ट आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करना है।
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• मौद्रिक प्राधिकार जो विशिष्ट रूप से देश का केंद्रीय बैंक होता है, का उत्तरदायित्व मौद्रिक नीति बनाना है। मौद्रिक नीति से अभिप्रायः केंद्रीय बैंक के नियंत्रण में लिखतों के उपयोग से है जिससे कि मुद्रा और ऋण की उपलब्धता, लागत और उपयोग को नियंत्रित किया जा सके।

मौद्रिक नीति के लक्ष्य
 कम और स्थिर मुद्रास्फीति,
 वित्तीय स्थिरता और
 समावेशी विकास हासिल करना
हमारा दृष्टिकोण

• कुछ केंद्रीय बैंक मूल्य स्थिरता को प्रभावी लक्ष्य के रूप में लेते हैं। भारत में जनवरी 2014 में प्रस्तुत डॉ. ऊर्जित पटेल समिति रिपोर्ट की सिफारिशों के बाद रिज़र्व बैंक ने अवस्फीति के लिए औपचारिक रूप से एक “गिरावट पथ” की घोषणा की जो जनवरी 2015 तक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति को 8 प्रतिशत से नीचे और जनवरी 2016 तक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति को 6 प्रतिशत से नीचे लाने का लक्ष्य निर्धारित करता है। समिति ने सिफारिश की है कि मूल्य स्थिरता लक्ष्य स्थापित करने और इसकी प्राप्ति के अधीन मौद्रिक नीति संधारणीय वृद्धि पथ और वित्तीय स्थिरता के प्रति अनुरूप होनी चाहिए।

• मूल्य स्थिरता संधारणीय वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के लिए एक आवश्यक (यदि पर्याप्त नहीं) पूर्वापेक्षा है। तथापि, मौद्रिक नीति निर्माण में विभिन्न उद्देश्यों पर तुलनात्मक जोर उभरते समष्टि आर्थिक वातावरण के आधार पर अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न होता।

नीतिगत ढ़ांचा
• नीतिगत ढ़ांचे का लक्ष्य मुद्रास्फीति, वृद्धि और अन्य समष्टि आर्थिक जोखिमों और मुद्रा बाजार दरों को रिपो दर पर या इसके आसपास सहारा देने के लिए चलनिधि परिस्थितियों के उतार-चढ़ाव के स्पष्ट आकलन के आधार पर नीति (रिपो) दर निर्धारित करना है। रिपो दर के बदलाव वित्तीय प्रणाली में ब्याज दरों में परिवर्तन करने के लिए मुद्रा बाजार के माध्यम से प्रसारित होते हैं जो बदले में कुल मांग पर प्रभाव डालते हैं जो मुद्रास्फीति और वृद्धि का मुख्य निर्धारक तत्व है।

मौद्रिक नीति
मौद्रिक नीति के कार्यान्वयन में कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लिखतों का उपयोग किया जाता है।
प्रत्यक्ष लिखतें
 नकदी आरक्षित निधि अनुपात (सीआरआर) : निवल मांग और समय देयताओं की हिस्सेदारी जो बैंकों को रिज़र्व बैंक में नकदी शेष के रूप में रखनी होती है।
 सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) : निवल मांग और समय देयताओं की हिस्सेदारी जो बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों, नकदी और स्वर्ण जैसी सुरक्षित और चल आस्तियों में रखना होता है।
 पुनर्वित्त सुविधाएं: क्षेत्र विशिष्ट पुनर्वित्त सुविधाओं (उदाहरण के लिए निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा) का लक्ष्य क्षेत्र विशिष्ट उद्देश्य प्राप्त करना है। तथापि, रिज़र्व बैंक क्षेत्र विशिष्ट नीतियों पर कम जोर दे रहा है।
जबकि सीआरआर और पुनर्वित्त सुविधाओं में परिवर्तन से चलनिधि (अथवा मुद्रा) की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है, एसएलआर में परिवर्तन से मौद्रिक नीति के लक्ष्यों में योगदान मिलता है, ऐसा बैंकों के पास उपलब्ध ऋण संसाधनों को निजी क्षेत्र के लिए ऋण देने हेतु प्रभावित कर किया जाता है।

 खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) : इनमें सरकारी प्रतिभूतियों की एकमुश्त खरीद/बिक्री (चलनिधि डालने/अवशोषण) दोनों शामिल हैं।
 ओवरनाइट और सावधि रिपो/रिवर्स रिपो : चलनिधि डालने/अवशोषित करने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
परिचालन ढ़ांचा www.examguider.com
भारत में मौद्रिक नीति के कार्यान्वयन के लिए चलनिधि समायोजन निधि (एलएएफ) परिचालन ढ़ांचे के लिए केंद्रीय बिन्दु है।
चलनिधि समायोजन सुविधा(एलएएफ)
• चलनिधि प्रबंध के लिए चलनिधि समायोजन सुविधा के मुख्य घटक ओवरनाइट और सावधि रिपो नीलामियां हैं। जबकि ओवरनाइट नीलामियां स्थायी नीति रिपो नीलामी दरों पर आयोजित की जाती है, दोनों कट-ऑफ और भारित औसत भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। मुद्रा बाजार दरें चलनिधि प्रबंध के माध्यम से नीति दर को सहारा देती हैं। रिज़र्व बैंक ने सावधि रिपो के माध्यम से प्रणाली में चलनिधि के अनुपात को काफी बढ़ा दिया है।

रिपो दर
• रिपो दर नीति दर है जिस पर रिज़र्व बैंक चलनिधि डालता है। इस दर में परिवर्तन से वित्तीय बाजारों के अन्य घटकों में ब्याज दरों में तेजी आने की संभावना रहती है और इस प्रकार वास्तविक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालता है, भले ही कुछ अंतरालों के साथ।

सावधि दर
• • अक्टूबर 2013 से रिज़र्व बैंक ने ओवरनाइट से लंबी अवधि के लिए चलनिधि उपलब्ध कराने के लिए सावधि रिपो (भिन्न-भिन्न समयावधि जैसे 7/14/28 दिन) नीलामियों की शुरूआत की है। सावधि रिपो का लक्ष्य अंतर-बैंक मुद्रा बाजार को विकसित करने में सहायता करना है जो बदले में ऋण और जमाराशियों के मूल्यनिर्धारण के लिए बाजार आधारित बेंचमार्क निर्धारित कर सकता है और मौद्रिक नीति के संचरण में सुधार हो सकता है।

सावधि प्रत्यावर्तनीय रिपो
• मई 2014 से रिज़र्व बैंक ने अधिशेष चलनिधि को अवशोषित करने के लिए सावधि प्रत्यावर्तनीय रिपो को एक लिखत के रूप में शुरू किया है। चलनिधि समायोजन सुविधा जिसके अंतर्गत ब्याज दर रिपो दर से 100 आधार अंक नीचे निर्धारित की जाती है, के अंतर्गत ओवरनाइट प्रत्यावर्तनीय रिपो से भिन्न सावधि प्रत्यावर्तनीय रिपो नीलामियों के अंतर्गत कट-ऑफ और भारित औसत दरें भिन्न-भिन्न हैं।

सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ)
• अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) के अंतर्गत दंडरूप ब्याज दर (वर्तमान में रिपो दर से 100 आधार अंक अधिक) पर रिज़र्व बैंक से ओवरनाइट मुद्रा की अतिरिक्त राशि उधार ले सकते हैं। यह बैंकिंग प्रणाली को अप्रत्याशित चलनिधि आघातों के विरूद्ध सुरक्षा वाल्व उपलब्ध कराता है।

• एमएसएफ दर और प्रत्यावर्तनीय रिपो दर लघु दर मुद्रा बाजार ब्याज दरों में दैनिक गतिविधि के लिए कॉरिडोर निर्धारित करती है। चूंकि एमएसएफ के अंतर्गत मुद्रा (यद्यपि, रिपो दर से 100 आधार अंक अधिक) उपलब्ध होती है, कॉल मुद्रा दर से एमएसएफ दर से अधिक होने की संभावना नहीं की जाती है। इसी प्रकार, कॉल मुद्रा दर से प्रत्यावर्तनीय रिपो दर से नीचे गिरने की संभावना नहीं की जाती है क्योंकि बैंकिंग प्रणाली के पास अतिरिक्त चलनिधि को रिवर्स रिपो (रिपो दर से 100 आधार अंक कम पर) के माध्यम से रिज़र्व बैंक के पास सुरक्षित रखने का विकल्प होता है। तथापि, सामयिक गंभीर चलनिधि तनाव के दौरान कॉल मुद्रा दर का अतिक्रमण (ओवरशूटिंग) संभव है।

बैंक दर
• • यह वह दर है जिसपर रिज़र्व बैंक विनिमय बिल या अन्य वाणिज्यिक पत्रों को खरीदने या उनका मिती काटे पर पुनःभुगतान करने के लिए तैयार रहता है। इस दर को एमएसएफ दर के साथ संरेखित किया गया है और इसलिए यह स्वतः बदल जाती है जब भी नीति रिपो दर बदलावों के साथ एमएसएफ दर में परिवर्तन होता है।

बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस)
• • मौद्रिक प्रबंधन के लिए इस लिखत की शुरूआत वर्ष 2004 में की गई थी। बड़े पूंजी प्रवाहों से उभरने वाली टिकाऊ स्वरूप की अधिशेष चलनिधि लघु तारीख वाली सरकारी प्रतिभूतियों और खज़ाना बिलों की बिक्री के माध्यम से समाहित की जाती है। जुटाई गई नकदी को रिज़र्व बैंक के पास एक अलग खाते में रखा जाता है। इस प्रकार इस लिखत में एसएलआर और सीआरआर दोनों की विशेषताएं हैं।

आगे की योजना
रिज़र्व बैंक वर्तमान में डॉ. ऊर्जित पटेल समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए अपनी मौद्रिक नीति ढांचे की समीक्षा करने के कार्य में लगा हुआ है। छह वर्षों से अधिक समय से लगातार उच्च उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति और इसके गंभीर समष्टि आर्थिक परिणामों के कारण ऐसी समीक्षा की आवश्यकता पड़ी है। समिति की कुछ सिफारिशें पहले ही कार्यान्वित की जा चुकी हैं।

इनमें शामिल हैं: www.examguider.com
 मुद्रास्फीति के नए माप के रूप में नया उपभोक्ता मुल्य सूचकांक (संयुक्त) अपनाना,
 अवस्फीति के लिए गिरावट पथ की स्पष्ट पहचान,
 द्विमासिक मौद्रिक नीति चक्र को अपनाना,
 चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत स्थायी रिपो दर पर ओवरनाइट चलनिधि की पहुंच में क्रमिक कमी और सावधि रिपो नीलामियों के माध्यम से चलनिधि की पहुंच में वृद्धि।,
 दीर्घावधि सावधि रिपो नीलामियों की शुरूआत, और
 वैश्वीकृत विश्व में मौद्रिक नीति के संचालन में सहायता करने हेतु स्पिलओवर के प्रबंध के लिए देश की विदेशी मुद्रा प्रारक्षित भंडार को बढ़ाना।
समिति की अन्य सिफारिशों की जांच की जा रही है।

मौद्रिक नीति पारदर्शिता
• मौद्रिक नीति में पारदर्शिता इसे और पूर्वानुमेय बनाने के बारे में है, मौद्रिक नीति आघातों के बारे में अनुचित डर से बचने के लिए प्रभावी संप्रेषण पर जोर दिया जाएगा। पारदर्शिता से मौद्रिक नीति की प्रभावक्षमता बढ़ती है।
• रिज़र्व बैंक अपने मौद्रिक नीति रूझान में इसके तर्क का पारदर्शी तरीके में वर्णन करता है, संभावित शोरगुल भरी बाजार संभावनाओं से उत्पन्न होने वाली अनिश्चितता को नियंत्रित करने के लिए निकट अवधि के संभावित मौद्रिक नीति रूझान पर अग्र मार्गदर्शन उपलब्ध कराता है, नीति निर्माण में परामर्शदात्री दृष्टिकोण पर जोर देता है, नीति परिचालन में स्वायत्तता रखता है और लक्ष्यों को समष्टि आर्थिक नीतियों के अन्य तत्वों के साथ मिलाता है।

मौद्रिक नीति की आवर्ती
• अप्रैल 2014 में मौद्रिक नीति के पहले द्विमासिक वक्तव्य से रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति घोषणाओं की सामान्य आवर्ती को वर्ष में आठ बार (अर्थात चार तिमाही और चार मध्य तिमाही) से बदलकर वर्ष में छह बार (अर्थात द्विमासिक) कर दिया है। तथापि, अपवादात्मक बाजार परिस्थितियों की चुनौतियों की जवाबी आवश्यकता के आधार पर रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति को सामान्य मौद्रिक नीति चक्रों के बीच किसी भी समय बदल सकता है।

• नीति दरें
बैंक दर : 8.50%
रिपो दर : 7.50%
प्रत्यावर्तनीय रिपो दर
: 6.50%
सीमांत स्थायी सुविधा दर
: 8.50%
*अंतिम अद्यतन
• आरक्षित अनुपात
सीआरआर : 4%
एसएलआर : 21.5%
• विनिमय दरें
भारतीय रिज़र्व बैंक की संदर्भ दर
भारतीय रुपया/1 अमरीकी डॉलर : 63.5780
भारतीय रुपया/1 यूरो : 70.5334
भारतीय रुपया/100 जापानी येन : 53.5300
भारतीय रुपया/1 पाउंड स्टर्लिंग : 97.9864

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