यौन उत्पीड़न

यौन उत्पीड़न
यौन उत्पीड़न के दोषी को सजा देने के लिए कोई विशेष पृथक कानून नहीं बनाया गया है। इसीलिए महिलाओं को उचित न्याय नहीं मिल पाता है। 1997 के विशाखा केस के बाद कानून में इस विषय पर कड़ाई बरती गई तथा इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट एक्ट 1946 के अन्तर्गत नियोजकों को निर्देश दिया गया कि
• वे एक शिकायत सेल बनाएंगे, जिसकी अध्यक्ष महिला होगी।
• गैर सरकारी संगठन या ऐसी कोई संस्था भी इसकी सदस्य होगी।
• शिकायत गोपनीय रखी जानी चाहिए।
यद्यपि आई0पीसी0 की धारा 354 में यौन उत्पीड़न रोकने की व्यवस्था की गई है किन्तु यह अधिक कारगर नहीं हुई। संविधान द्वारा सभी नागरिकों को जीवन व स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है, और सुरक्षा प्रावधान भी निर्मित किए गए हैं, किंतु फिर भी आए दिन यौन उत्पीड़न की घटनाएं होती हैं। सुप्रीमकोर्ट के अनुसार ऐसी घटनाऐं अनुच्छेद-14, 15 तथा 21 के अन्तर्गत अधिकारों का उल्लंघन हैं। अनुच्छेद 19 प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार जीविकोपार्जन की आजादी प्रदान करता है। महिलाओं को लिंग भेद, जाति भेद, धर्मभेद के बिना रोजगार के समान अवसर दिए जाने का प्रावधान है जो सरकारी व गैर सरकारी सभी उद्यमों पर समान रूप से लागू होते हैं। महिलाओं को शारीरिक व रोजगार सुरक्षा हेतु स्वस्थ कार्य परिस्थितियां उपलब्ध कराई जानी चाहिए, क्योंकि यौन उत्पीड़न उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से आहत करता है। अत: इससे महिला कर्मचारियों को बचाना नियोक्ता का दायित्व हैं। संबधित सुरक्षा उपायों की जानकारी महिलाओं को दी जानी चाहिए तथा कार्यालय में नैतिक आचार संहिता का पालन करना चाहिए।
कार्यस्थल पर महिला यौन शोषण-निरोधक,निषेधन और निवारण-कानून 2013
इस कानून के तहत शारीरिक संपर्क, शारीरिक संबंध बनाने की मांग या आग्रह या अश्लील टिप्पणियां करना या अश्लील सामग्री दिखाने को यौन उत्पीड़न माना जाएगा. किसी भी तरह के अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर मौखिक यौन व्यवहार को भी यौन उत्पीड़न के दायरे में रखा गया है. इस कानून का उल्लंघन करने पर 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया है. अगर बार-बार इसका उल्लंघन किया जाता है तो जुर्माने की राशि बढ़ा दी जाएगी और जिस कार्यस्थल पर ऐसा होगा, उसका लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है.
इस विधेयक में सभी दफ्तरों, अस्पतालों, संस्थानों और अन्य कार्यस्थलों को निर्देश दिया गया है कि वे यौन उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतों से निपटने के लिए एक आंतरिक कमेटी बनाएं. इस कमेटी का नेतृत्व कोई महिला ही करेगी. चूंकि भारत में बहुत सारी कंपनियों में 10 से कम कर्मचारी काम करते हैं और उनके लिए ऐसी कमेटी का गठन करना संभव नहीं है, इसलिए इस विधेयक में प्रावधान है कि जिला अधिकारी स्थानीय शिकायत समिति का गठन कर सकता है.
उत्पीड़न रोकने हेतु महिलाओं के कदम
• ऐसा व्यवहार करने वालों से दूरी बनाये रखें। यदि मिलना जरूरी हो तो अकेले में न मिलकर सभी लोगों के सामने मिलें।
• किसी व्यक्ति से मिलते समय केबिन का दरवाजा खुला रखें।
• सहकर्मियों अधिकारियों आदि से प्रोफेशनल सम्बन्ध बनाये रखें। किन्तु निर्धारित दूरी भी बनाये रखें।
• सेक्सी मजाक या कमेन्ट करने वालों को बढ़ावा न दें।
• देर रात तक काम करने से बचें। यदि करना भी पड़े तो अन्य लोगों के साथ ही करें अकेले रुककर नहीं।
• यदि कोई नैतिक आचरण का उल्लंघन करता हो तो उसे तुरन्त टोक दें या वहाँ से तुरन्त चले जायें।
पीड़िता के सुरक्षा उपाय
बलात्कार का दंश महिला को शारीरिक से ज्यादा मानसिक व सामाजिक रूप से आहत करता है। जिसका प्रभाव उसके व्यक्तित्व, परिवार और भावनाओं पर भी पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ”बलात्कार केवल किसी महिला के विरूध्द किया गया अपराध नहीं है, बल्कि महिला के प्रति किया गया अपराध है।”
भारतीय दण्ड संहिता की (धारा 375) में स्पष्ट किया गया है। किसी व्यक्ति को बलात्कार का दोषी माना जायेगा यदि उसने उक्त महिला की इच्छा के विरूध्द उसकी सहमति के बिना उसे धमकाकर ली गयी सहमति सहित, नशे या बेहोशी में ली गई सहमति से यौन सम्बन्ध बनाये हो। 18वर्ष से कम आयु की महिला की सहमति से तथा किसी व्यक्ति की 16 वर्ष से कम आयु की पत्नी से भी यौन सम्बन्ध बनाना बलात्कार की श्रेणी में आता है।
क्योंकि भारत में कोई भी महिला अपमानित होना नहीं चाहती, इसलिए बलात्कार के झूठे आरोप लगाने की सम्भावना लगभग नगण्य ही होती है। किन्तु तमाम सुरक्षा प्रावधानों के बाबजूद भी बलात्कार की शिकार महिलायें रिपोर्ट दर्ज नहीं कराती, क्योंकि वे डॉक्टर, पुलिस, वकील द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का जबाब देने का साहस नहीं कर पाती। यदि कोई महिला बलात्कार की शिकार हो जाये तो:
• उसे नहाना या अपने कपड़े नहीं धोने चाहिए क्योंकि उसके शरीर व कपड़ों पर पड़े निशान ही प्राथमिक सबूत होते हैं, और चिकित्सिकीय परीक्षण में सहायक होते हैं।
• उसे किसी पुरुष या महिला के साथ जाकर पुलिस स्टेशन में प्राथमिक सूचना रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए। साथ ही किसी चिकित्सक से मेडिकल परीक्षण करवाकर प्राप्त रिपोर्टों की कापी भी एफ0आई0आर0 के साथ संलग्न करनी चाहिए। सबूत के तौर पर पेश किये गये कपड़ों को पुलिस द्वारा महिला के सामने ही सील पैकेट में बन्द करने चाहिए। रिपोर्ट की कापी पीड़ित को देनी चाहिए।
• तुरन्त अपनी पसन्द का वकील करके पुलिस स्टेशन से सम्पर्क करना चाहिए।
• यदि पुलिस या चिकित्सक रिपोर्ट व जांच करने में आना कानी करें तो बिना देरी किये किसी महिला संगठन, राज्य महिला आयोग या मानवाधिकार आयोग से सम्पर्क कर सहायता लेनी चाहिए।
• दोषी पाये जाने पर व्यक्ति को उम्र कैद की सजा हो सकती है और पीड़िता को मुआवजा भी दिया जा सकता है। यदि अपना बचाव करते समय महिला के हाथों बलात्कारी व्यक्ति की हत्या हो जाती है, तो पीड़ित महिला को दोषी नहीं माना जायेगा, लेकिन बलात्कार के प्रयास को साबित करना आवश्यक होगा।
• धारा 375 के अनुसार किसी की इच्छा के विरूध्द यौन सम्बन्ध स्थापित करना अपराध हैं, चाहे वह दोषी की पत्नी ही क्यों न हो। तलाकशुदा पत्नी, सरकारी कस्ट्डी में रही स्त्री, जेल या रिमाण्ड होम में, अस्पताल या अन्यत्र जबरन यौन सम्बन्ध बनाना अपराध हैं।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा और अन्य तथा राजस्थान सरकार एवं अन्य के मामले में, एआईआर 1997 एससी 3012 में अपना निर्णय सुनाया, जिसमें “यौन शोषण को निम्नानुसार परिभाषित किया गया है :”यौन शोषण में ऐसा अप्रिय यौन संबंधी आचरण शामिल है, जो कि प्रत्यक्ष या निहितार्थ रूप में किया गया है,जैसे कि : क) शारीरिक संपर्क और प्रस्ताव करना, ख) यौन संबंधी कोई मांग या अनुरोध, ग) यौन संबंधी टिप्पणियां, घ) अश्लील साहित्य दिखाना, ङ) यौन प्रकृति के संबंध में किसी प्रकार का अन्य अनुचित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिकआचरण”
• सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप :किसी तीसरे पक्ष या बाहरी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी कृत्य या गलती के कारण जहां कहीं यौन शोषण की घटना होती है तो प्रभावित व्यक्ति की सहायता और बचाव की कार्रवाई के रूप में सभी जरूरी तथा न्यायोचित कदम अवश्य उठाएं।
• यौन शोषण के शिकार व्यक्ति के पास यह विकल्प होना चाहिए कि वह या तो इसके लिए जिम्मेदार व्य्क्तिे अथवा स्वयं का स्थानांतरण करा ले।
• याद रखें कि महिलाओं के यौन शोषण को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया है तथा यह वादयोग्य है (इसके उल्लंघन को अदालत में चुनौती दी जा सकती है)।
• सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार यौन शोषण एक अनुशासनहीन अपराध है। अत: कर्मचारियों के आचरण और अनुशासन से संबंधित नियमों/विनियमों तथा स्थाई आदेशों में संशोधन किए जाने की आवश्यकता है ताकि ऐसे मामलों में विभागीय कार्रवाई की जा सके।
• कम्पनी के पास महिला कर्मचारियों के यौन शोषण के मामलों की देखरेख के लिए शाखा कार्यालयों में पदनामित समन्वयक के रूप में एक “शिकायत समिति” कार्यरत है। जिस किसी को भी कोई शिकायत हो तो वह इससे संपर्क कर सकता है।
• यौन शोषण के लिए विभागीय कार्रवाई के अलावा अनुशासन प्राधिकारी को भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत आपराधिक कार्रवाई शुरू करने से नहीं चूकना चाहिए:
-अनुच्छेद 354 के तहत किसी महिला पर उसकी मर्यादा भंग करने के इरादे से उस पर हमले करने या आपराधिक बल प्रयोग करने पर 2 वर्ष की कैद की सजा या जुर्माना या दोनों के दंड का प्रावधान है।
• -किसी महिला की शालीनता को नुकसान पहुंचाने के इरादे से किसी शब्द का प्रयोग करना या कोई चेष्टाु करना अनुच्छेद 509 के तहत एक संज्ञेय अपराध है। इसके लिए 1 वर्ष की कैद की सजा या जुर्माना अथवा दोनों दंड का प्रावधान है।
• उत्पीड़न की आधारहीन शिकायत न करें। इससे व्यक्तिगत तौर पर शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता और सामान्यत: महिलाओं की प्रतिष्ठा पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।

बच्चोंन की सुरक्षा के लिए यौन अपराध अधिनियम 2012
बच्चोंन की सुरक्षा के लिए यौन अपराध अधिनियम 2012 का प्रारूप, बच्चोंन को यौन उत्पींड़न और शोषण से बचाने तथा कानूनी प्रावधानों को मजबूती प्रदान करने के लिए तैयार किया गया। बच्चोंई के प्रति यौन अपराधों के मुद्दे को उल्लेोखित करने हेतु पहली बार एक विशेष कानून पारित किया गया। वर्तमान समय में यौन अपराध भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत शामिल किये जाते है। आईपीसी के तहत बच्चोंं के खिलाफ सभी यौन अपराधों से निपटने का प्रावधान नहीं है और विशेषकर व्यास्क और पीडि़त बालक में भेद नही किया जाता। बच्चोंप की सुरक्षा के लिए यौन अपराध अधिनियम 2012 के अनुसार कोई भी व्येक्ति जो 18 वर्ष से कम उम्र का हो, बच्चेा के रूप में परिभाषित किया गया है। यह अधिनियम हर बच्चेि को जो 18 वर्ष से कम उम्र का हो, उसे यौन उत्पी्ड़न, यौनाचार और अश्लींलता से सुरक्षा प्रदान करता है। ये अपराध स्परष्ट रूप से कानून में पहली बार परिभाषित किये गये। इस अधिनियम के अंतर्गत कठोर दंड का प्रावधान है, जो कि अपराध की गंभीरता के अनुरूप वर्गीकृत है। विभिन्न अवधि के लिए साधारण से लेकर सश्रम कारावास तक की सजा हो सकती है। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है, जो कि अदालत द्वारा तय होगा।
एक अपराध ”संगीन” तब माना जाता है, जब वह किसी विश्वोस्त व्यलक्ति द्वारा या बच्चों् के प्राधिकारी जैसे सुरक्षा बल के सदस्य, पुलिस अधिकारी, सरकारी कर्मचारी आदि द्वारा किया गया हो।
अधिनियम के अंतर्गत अपराध के लिए ये दंड शामिल है :-
• संगीन भेदनीय यौन आक्रमण (धारा 5):- कम से कम दस साल तक का कारावास जो कि आजीवन कारावास तक हो सकता है और (धारा 6) के अनुसार जुर्माना।
• लैंगिक आक्रमण (धारा 7) :- कम से कम तीन साल तक का कारावास जो कि पांच साल तक का हो सकता है और (धारा 8) के अनुसार जुर्माना।
• संगीन लैंगिक आक्रमण (धारा 9) :- कम से कम पाँच वर्ष तक का कारावास जो कि सात साल तक का हो सकता है और (धारा 10) के अनुसार जुर्माना ।
• बाल यौन उत्पीड़न (धारा 11) – तीन साल तक का कारावास और (धारा 12) के अनुसार जुर्माना।
• अश्लील प्रयोजनों के लिए बालक का प्रयोग (धारा 13) :- पांच साल तक का कारावास और जुर्माना और अपराध घोषित होने के बाद सात साल का कारावास और (धारा 14 (1)) के अनुसार जुर्माना ।
इस अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत की स्थापना का प्रावधान है, जिसमें कि न्यायिक प्रक्रिया के हर चरण में बच्चेर के हित को सर्वोपरि महत्व दिया जाएगा।
अधिनियम में रिपोर्टिंग, गवाहों की रिकार्डिंग, अपराधों की जांच और परीक्षण में बच्चे के अनुकूल प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है, इनमें शामिल है :
• बच्चे के निवास पर या अपनी पसंद की जगह पर बच्चे के बयान की रिकॉर्डिंग, विशेषकर एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा जो कि उप निरीक्षक के पद से नीचे न हो।
• बच्चे को किसी भी कारणवश रात में पुलिस स्टेशन में न रखा जाए।
• बच्चे के बयान की रिकॉर्डिंग के समय पुलिस अधिकारी वर्दी में नहीं होगा।
• बच्चे के बयान को उसकी मौखिक भाषा के अनुरूप दर्ज किया जाए।
• एक अक्षम बच्चेो के सिलसिले में विशेष शिक्षक या परिचित व्यक्ति की सहायता ली जा सकेगी।
• बच्चे की चिकित्सा परीक्षा माता पिता या किसी अन्य व्यक्ति, जिस पर बच्चाे विश्वायस करता हो, उसकी उपस्थिति में ही की जाएगी।
• अगर पीडि़त एक बालिका हो, तब एक महिला डॉक्टर द्वारा चिकित्सा परीक्षा आयोजित की जाएगी।
• सुनवाई के दौरान बच्चेा को नियमित अंतराल-विश्राम दिया जाएगा।
• बालक को बार – बार गवाही देने के लिए नहीं कहा जाएगा।
• कोई आक्रामक पूछताछ या बच्चे के चरित्र का हनन नहीं होगा।
• मामलों की सुनवाई कैमरों की निगरानी में होगी।
अधिनियम के अनुसार अपराध करने का इरादा भी, चाहे वो किसी भी कारण से असफल हुआ हो, भी दंडनीय है। अधिनियम के तहत अपराध करने का प्रयास दंडनीय है, इसमें अपराध करने पर मिलने वाली सजा की आधी सजा मिलेगी।इस अधिनियम में अपराध के लिए उकसाने पर भी दंड का प्रावधान है, जो कि अपराध करने पर मिलता है। इन अपराधों में बच्चों को यौन प्रयोजनों के लिए तस्करी करना भी शामिल है।
भेदनीय यौन उत्पीड़न और संगीन भेदनीय उत्पीरडन, आक्रामक भेदनीय यौन उत्पींड़न, यौन उत्पीजड़न और आक्रामक यौन उत्पीरड़न जैसे जघन्य अपराधों के लिए साक्ष्य जुटाने की जिम्मेनदारी अभियुक्त पर स्थानांतरित की गई है। इस बात का प्रावधान बच्चेय की नाजुकता और मासूमियत को ध्या न में रखकर किया गया है। साथ ही साथ कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए, झूठी शिकायत करने या गलत इरादे से दी गई झूठी जानकारी के लिए भी सजा का प्रावधान है। ऐसी सज़ा जानकारी हासिल करने के कारण अपेक्षाकृत (यानी छह महीने तक ) रखी गई है। यदि एक बच्चे के खिलाफ झूठी शिकायत की जाती है, तो सजा अधिक (यानी एक वर्ष तक) होगी।
मीडिया को विशेष अदालत की अनुमति के बिना बच्चे की पहचान का खुलासा करने से वर्जित किया गया है। मीडिया द्वारा इस प्रावधान का उल्लंघन के लिए सजा छह महीने से एक साल की हो सकती है।अधिनियम में मुकदमे के शीघ्र निपटान के लिए परीक्षण हेतु बच्चे का साक्ष्य 30 दिनों की अवधि के भीतर दर्ज करने का प्रावधान है। इसके अलावा, विशेष अदालत को एक वर्ष की अवधि के भीतर जहां तक संभव हो, परीक्षण पूरा करना होगा।
बच्चे के राहत और पुनर्वास हेतु, जैसे ही विशेष किशोर पुलिस इकाई (एसजेपीयू) या स्थांनीय पुलिस में शिकायत दर्ज की जाएगी, तब बच्चेस को सुरक्षा और देखभाल, जैसे कि उन्हें आश्रय गृह या नजदीकी अस्प ताल में 24 घंटे के भीतर दाखिल कराने के लिए व्यगवस्थाय करनी होगी। बच्चेश के पुनर्वास हेतु, विशेष किशोर पुलिस इकाई (एसजेपीयू) या स्था्नीय पुलिस को मामले की जानकारी बाल कल्याेण समिति को शिकायत दर्ज करने के 24 घंटे के भीतर देनी होगी। इस अधिनियम के तहत केन्द्र और राज्य सरकारों को संचार माध्यम जैसे टेलीविजन, रेडियो और प्रिंट मीडिया के द्वारा नि‍यमित अंतराल पर आम जनता, बच्चोंत तथा उनके माता-पिता व संरक्षको में जागरूकता पैदा करने की जिम्मेरदारी तय की है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआरएस) को अधिनियम के कार्यान्वयन पर नजर रखने का अधिकार दिया गया है।
आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013
बलात्कार जैसे अपराधों के खिलाफ कड़ी सजा के प्रावधान करने के मकसद से नए कानून में कहा गया है कि अपराधी को कड़े कारावास की सजा तक दी जा सकती है जो 20 साल से कम नहीं होगी लेकिन इसे आजीवन कारावास तक में तब्दील किया जा सकता है. भारतीय दंड संहिता की वर्तमान धाराओं 375, 376, 376ए, 376बी, 376सी और 376डी के स्थाकन पर अनुच्छेीद 375, 376, 376ए और 376बी जगह लेंगे। इसमें ‘बलात्कािर’’ शब्द जहां कहीं भी हो, उसके स्थासन पर ‘’यौन उत्पींड़न’’ शब्द का इस्ते।माल किया जाएगा, ताकि यौन उत्पीहड़न अपराध में लिंग भेद से बचा जा सके और इस अपराध का दायरा भी बढ़ाया जा सकें।
1. आजीवन कारावास का मतलब दोषी के प्राकृतिक जीवन काल तक है और इसमें जुर्माना भी भरना होगा.
2. इस कानून में यह प्रावधान भी किया गया है कि ऐसे अपराधों के लिए पहले भी दोषी ठहराए गए अपराधियों को मौत की सजा दी जा सकती है.
3. इस कानून में पहली बार, पीछा करने और घूर घूर कर देखने को गैर जमानती अपराध घोषित किया गया है, बशर्ते अपराधी दूसरी बार यह अपराध करते पकड़ा गया हो.
4. तेजाबी हमला करने वालों को दस साल की सजा का भी कानून में प्रावधान किया गया है. इसमें पीड़ित को आत्म रक्षा का अधिकार प्रदान करते हुए तेजाब हमले की अपराध के रूप में व्याख्या की गयी है.
5. कानून में सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र 18 साल तय की गयी है.
6. महिला संगठनों की कड़ी मांग के मद्देनजर पीछा करने और घूर कर देखने के संबंध में कानून में नये प्रावधान किए गए हैं.
7. इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि सभी अस्पताल बलात्कार या तेजाब हमला पीड़ितों को तुरंत प्राथमिक सहायता या मुफ्त उपचार उपलब्ध कराएंगे और ऐसा करने में विफल रहने पर उन्हें सजा का सामना करना पड़ेगा.
8. कानून में न्यूनतम सात साल की सजा का प्रावधान किया गया है जो प्राकृतिक जीवन काल तक के लिए बढ़ाया जा सकती है और यदि दोषी व्यक्ति पुलिस अधिकारी है, लोक सेवक, सशस्त्र बलों या प्रबंधन या अस्पताल का कर्मचारी है तो उसे जुर्माने का भी सामना करना होगा.
9. कानून में भारतीय साक्ष्य अधिनियम में संशोधन किया गया है जिसके तहत बलात्कार पीड़िता को, यदि वह अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम हो जाती है तो उसे अपना बयान दुभाषिये या विशेष एजुकेटर की मदद से न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराने की भी अनुमति दी गयी है. इसमें कार्यवाही की वीडियोग्राफी करने का भी प्रावधान किया गया है.
10. यौन उत्पीीड़न के अधिक संगीन मामले यानी अपने अधिकार क्षेत्र में किसी पुलिस अधिकारी या लोक सेवक/प्रबंधक या अपने पद का फायदा उठाने वाले किसी भी व्यकक्ति के इसमें शामिल होने पर उसे कठोर सजा दी जाएगी, जो दस वर्ष से कम नहीं होगी और जिसे आजीवन कारावास में तब्दील किया जा सकता है, इसके अलावा जुर्माने की भी व्यीवस्थाि होगी।

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