राज्यों में विधान परिषद का गठन
राज्यों में विधान परिषद का गठन
वर्तमान में भारत के केवल 6 राज्यों में ही विधान परिषद की व्यवस्था है। भारत में द्विसदनीय प्रणाली है, अर्थात संसद के दो सदन- लोकसभा एवं राज्यसभा राज्य स्तर पर लोकसभा की तरह विधान सभा और राज्यसभा की तरह विधान परिषद होता है।
दूसरे सदन की आवश्यकता
विधायिका का दूसरा सदन दो कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है: पहला, निर्वाचित सदन द्वारा जल्दबाजी में किए गए कार्यों की जाँच करने के लिए और दूसरा यह सुनिश्चित करना कि ऐसे व्यक्ति को विधानमंडल का सदस्य बनाया जाए, जो प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं परंतु विधायी प्रक्रिया में योगदान करने में सक्षम हैं। इनका उपयोग ऐसे नेताओं को सदन में भेजने के लिये किया जा।सकता है, जो चुनाव जीतने में सक्षम नहीं हैं।विधान परिषद का उपयोग विधि निर्माण को विलबित करने के लिए किया जा सकता है। दूसरा सदन होने से सदनों के बीच अधिक बहस और काम को साझा करने में आसानी होगी।
विधान परिषद के गठन संबंधी प्रावधान
> संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत किसी राज्य में विधानसभा के अलावा एक विधान परिषद के गठन का विकल्प दिया गया है।
अनुच्छेद 168 राज्य में विधानमंडल के गठन का प्रावधान करता है। यह सत्य है कि संविधान में राज्यों के लिए विधान परिषद के गठन का विकल्प दिया गया है, परंतु राज्यों के संदर्भ में दो सदन का प्रावधान भारतीय संविधान की मूल विशेषता नहीं है।
> संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत प्रावधान किया गया है कि विधान परिषद के गठन का निर्णय राज्यों को स्वयं करना होगा,परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि विधान परिषद के गठन करने के लिए राज्य पूरी तरह से स्वतंत्र है।
> अनुच्छेद 169 के अनुसार, किसी राज्य में विधान परिषद का गठन किया जा सकता है, यदि राज्य की विधानसभा ने इस आशय का संकल्प विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित किया हो।
> इसके बाद संसद के दोनों सदन द्वारा इस आशय का अधिनियम करना होता है। तत्पश्चात राष्ट्रपति की स्वीकृति भी आवश्यक होती है।
विधान परिषद के सदस्यों की संख्या
संविधान के अनुसार विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या विधान सभा के कुल सदस्य संख्या के एक-तिहाई (⅓) भाग से ज्यादा नहीं हो सकती, लेकिन कम-से-कम 40 सदस्य होना अनिवार्य है। इसके कुछ अपवाद भी हैं ।
उदाहरण
तत्काल में महाराष्ट्र प्रांत का उदाहरण देख सकते हैं, महाराष्ट्र में विधान परिषद की 78 सीटें महाराष्ट्र में विधान परिषद सदस्य के लिए कुल 78 सीटें हैं, जिनमें से हर दो साल पर एक तिहाई सीट पर चुनाव होते हैं. कुल 78 सीटों में से 66 सीटों पर चुनाव होता है जबकि 12 सीटों के लिए राज्यपाल कोटे से मनोनीत किया जा सकता है. वहीं, विधान परिषद की चुनाव वाली 66 सीटों में से 30 सीटें विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुनी जाती हैं तो 22 सीटों पर स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र के तहत चुने जाते हैं. इसमें ग्राम प्रधान, बीडीसी, नगर पंचायत सदस्य-अध्यक्ष और ऐसे ही तमाम नगर पालिकाएं और नगर निगम के सदस्य वोट देते हैं. यह एक स्थायी सदन है, जिसका कभी भी विघटन नहीं होता है।इसके प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। प्रत्येक 2 वर्ष पर इसके एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
विधान परिषद के सदस्य कैसे चुने जाते हैं?
एक-तिहाई सदस्य विधान सभा के सदस्यों के द्वारा चुने जाते हैं। एक-तिहाई सदस्य स्थानीय संस्थाओं, नगरपालिका, जिला परिषद् आदि के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।
1/12 सदस्य राज्य के उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों एवं कॉलेजों में कम-से-कम तीन वर्ष का अनुभव रखने वाले अध्यापकों के द्वारा चुने जाते हैं।
1/12 सदस्य संबंधित राज्य के वैसे निवासी जो भारत के किसी विश्वविद्यालय से स्नातक हों एवं जिन्होंने स्नातक की उपाधि कम-से-कम तीन वर्ष पहले प्राप्त की हो, के द्वारा चुने जाते हैं।
शेष 1/6 सदस्य राज्यपाल क द्वारा कला, साहित्य, विज्ञान, सहकारिता तथा समाज सेवा के क्षेत्र में राज्य के ख्याति प्राप्त व्यक्तियों से मनोनीत किये जाते हैं।
विधान परिषदों के पास शक्तियाँ
विधान परिषद के पास विधायी शक्ति काफी सीमित है, जबकि राज्यसभा के पास गैर-वित्तीय विधानों के संदर्भ में पर्याप्त शक्तियां मौजूद हैं।विधान परिषद द्वारा विधि निर्माण पर दिये गए सुझावों/संशोधनों को विधानसभा अध्यारोहण (ओवरराइड) कर सकती है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव में राज्यसभा के सदस्य मतदान करते हैं, जबकि विधान परिषद के सदस्य इसके लिए मतदान नहीं कर सकते हैं। राज्यसभा वस्तुत: राज्यों का प्रतिनिधित्त्व करता है और यह केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप से राज्यों के हितों की रक्षा करता है तथा संघवाद को बढ़ावा देता है, जबकि विधान परिषद सलाहकारी इकाई मात्र है।