राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक,2019
राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक,2019
अगस्त, 2019 को राज्यसभा ने ‘राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (एनएमसी) विधेयक, 2019’ [National Medical Commission National (NMC) Bill, 2019] को पारित किया। ।उल्लेखनीय है कि इस विधेयक को लोकसभा से 30 जुलाई, 2019 को ही पारित किया जा चुका है। इस विधेयक के तहत मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) को समाप्त कर उसके स्थान पर ‘राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (NMC)’ का गठन किया जाएगा। केंद्र सरकार ने मेडिकल शिक्षा को विश्व स्तरीय बनाने के उद्देश्य से इस विधेयक को पारित किया है।
मरीज : डॉक्टर अनुपात
> विश्व स्वास्थ्य संगठन के 1:1000 की तुलना में भारत में डॉक्टर और आबादी का अनुपात 1:1456 है। इसके अतिरिक्त शहरी| और ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले डॉक्टरों की उपलब्धता में भी काफी अंतर है।
> शहरी-ग्रामीण डॉक्टर सघनता अनुपात 3.8:1 है। इसके परिणामस्वरूप हमारी अधिकतर ग्रामीण और गरीब आबादी गुणवत्ता सम्पन्न स्वास्थ्य देखभाल सेवा से वंचित है और झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में है। यह महत्वपूर्ण है कि एलोपैथी। औषधि क्षेत्र में काम करने वाले 57.3 प्रतिशत के पास चिकित्सा (मेडिकल) योग्यता नहीं है।
‘राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक क्या है?
‘राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (एनएमसी) विधेयक’ देश में मेडिकल शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले मेडिकल पेशेवरों की उपलब्धता, मेडिकल संस्थानों का समय-समय पर मूल्यांकन, मेडिकल पेशेवरों द्वारा नवीनतम मेडिकल अनुसंधान को अपनाना और एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र सुनिश्चित करता है।
विधेयक किन उद्देश्यों को धारण करता है ! इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य देश में मेडिकल शिक्षा (medical education) व्यवस्था को दुरुस्त और पारदर्शी बनाना है। साथ ही देश में एक ऐसी मेडिकल शिक्षा प्रणाली बनाना, जो विश्व स्तरीय हो।
विधेयक के मुख्य प्रावधान
~ विधेयक में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कानून पारित होने के तीन साल के भीतर एक ‘चिकित्सा आयोग’ स्थापित करने का प्रस्ताव है। कानून बन जाने पर यह विधेयक भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) कानून 1956 की जगह ले लेगा।
~ विधेयक में केंद्र द्वारा मेडिकल सलाहकार परिषद की स्थापना का भी प्रावधान है। परिषद एक चैनल के रूप में कार्य करेगी जिसके माध्यम से राज्य/केंद्र शासित प्रदेश एनएमसी को अपने विचार और चिंता बता सकते हैं।
~ विधेयक के तहत विनियमित सभी चिकित्सा संस्थानों में स्नातक चिकित्सा शिक्षा में प्रवेश के लिए एक समान राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) आयोजित करने का प्रावधान किया गया है।
~ नेशनल एक्जिट टेस्ट (National Exit Test – NEXT): इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि एमबीबीएस पास करने के बाद प्रैक्टिस के लिए नेशनल एक्जिट टेस्ट (NEXT) देना अनिवार्य होगा और इस टेस्ट को पास करने के बाद ही उन्हें मेडिकल प्रैक्टिस हेतु लाइसेंस मिलेगा। वर्तमान में नेशनल एक्जिट टेस्ट (NEXT) केवल विदेश से मेडिकल की पढ़ाई कर आने वाले छात्र देते हैं।
राष्ट्रीय मेडिकल आयोग की संरचना
इस विधेयक में 25 सदस्यों वाली एक राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (NMC) स्थापित करने का लक्ष्य है, इन सदस्यों की नियुक्ति एक समिति की सिफारिश पर केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी।
> इन सदस्यों में एक अध्यक्ष होगा, जो न्यूनतम 20 वर्षों काnअनुभव वाला वरिष्ठ चिकित्साकर्मी होगा।
> पदेन सदस्यों में स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा बोडों के अध्यक्ष, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक।और अन्य में से एक एम्स के निदेशक शामिल होंगे।
> दूसरी ओर अंशकालिक सदस्यों में प्रबंधन, कानून, मेडिकल एथिक्स आदि क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के द्वारा सुझाए गए नामों में से होगा।
> राष्ट्रीय मेडिकल आयोग के गठन में केन्द्र तथा राज्यों के संस्थानों/काउंसिलों और स्वास्थ्य विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले 75 प्रतिशत डॉक्टर होंगे।
> विधेयक में प्रावधान किया गया है कि NMC के पास मेडीसिन का प्रैक्टिस करने के लिए आधुनिक मेडिकल पेशेवरों से जुड़े कुछ मध्यम स्तर के मेडिकल पेशेवरों को सीमित लाइसेंस देने।का अधिकार होगा। NEXT के संचालन के लिए उचित समय पर नियम बनाए जायेंगे, जिसमें स्नातक स्तर पर आवश्यक ध्योरिटिकल तथा क्लिनिकल कुशलता को ध्यान में रखा जायेगा।
ब्रिज कोर्स
इस विधेयक के अनुसार छः महीने का एक ‘ब्रिज कोर्स’ लाया जाएगा, जिसे पूरा करने बाद प्राइमरी हेल्थ में काम करने वाले भी मरीजों का इलाज कर सकेंगे और दवाईयां लिख सकेंगे। इसके जरिए वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों (आयुष) की प्रैक्टिस करने वालों को एलोपैथी की प्रैक्टिस करने की छूट होगी।
राष्ट्रीय मेडिकल आयोग के कार्य
एनएमसी चिकित्सा संस्थानों और चिकित्सा पेशेवरों को विनिपमित करने, स्वास्थ्य संबंधी मानव संसाधनों और बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं का आकलन करने और विधेयक के तहत बनाए गए नियमों का राज्य चिकित्सा परिषदों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करवाना। इसके अलावा, विधेयक के तहत विनियमित होने वाले निजी चिकित्सा संस्थानों और डीम्ड विश्वविद्यालयों के लिए फीस का निर्धारण करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करना।
विधेयक की आवश्यकता क्यों?
भारत सरकार द्वारा घोषित महत्वाकांक्षी “आयुष्मान भारत कार्यक्रम’ के अंतर्गत व्यापक, प्राथमिक और रोकथाम सेवा के लिए अगले 3 से 5 वर्षों के अंदर 50.000 মध्यम स्तर के स्वास्थ्य प्रदाताओं की आवश्यकता होगी। डॉक्टरों को संख्या बड़ाने में सात से आठ वर्ष लगेंगे, इसलिए अंतरिम अवधि में हमारे पास स्वास्थ्य और आरोग्य केन्द्रों के नेतृत्व के लिए योग्य मध्यम स्तर के विशेष रूप से प्रशिक्षित कैडर पर निर्भर होने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।
चुनौतियाँ भारतीय स्वास्थ्य सेवा में प्राथमिक मुद्दा डॉक्टरों की उपलब्धता है। मेडिकल कॉलेजों से पास होने वाले लगभग 78.000 डॉक्टर महानगरों में रहना अधिक पसंद करते हैं, न कि दूरस्थ स्थानों पर जहां प्रशिक्षित, योग्य और विशेषज्ञ चिकित्सकों की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
दूसरी चुनौती देश भर में एकरूपता के साथ मानकीकरण और उच्च गुणवत्ता से संबंधित मुद्दा है। हालांकि विधेयक इन मुद्दों में से कुछ का हल प्रस्तुत करता है.