संसद के अधिकारी
संसद के अधिकारी
राज्य सभा का सभापति और उपसभापति
(1) भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है,
(2) राज्य सभा शीघ्रताशीघ् अपना एक उपसभापति चुनती है तथा जब-जब यह पद रिक्त होता है तब किसी अन्य सदस्य को अपना उपसभापति चुनती है (अनु
89)
उपसभापति को पद से मुक्ति
राज्य सभा के उपसभापति के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य-
(1) यदि वह राज्य सभा का सदस्य नहीं रहता तो अपना पद रिक्त कर देगा. –
(2) किसी भी समय सभापति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा त्यागपत्र दे सकता है
(3) राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है, लेकिन ऐसे संकल्प के आशय की सूचना कम से-कम चौदह दिन पूर्व दे देनी चाहिए (अनु.90)
(1) जब सभापति का पद रिक्त होता है. तब उपसभापति और यदि उपसभापति का पद रिक्त है तो राज्य सभा का ऐसा सदस्य जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा
(2) राज्य सभा की किसी बैठक में यदि सभापति अनुपस्थित हो तो उप सभापति, यदि वह भी अनुपस्थित हो तो राज्य सभा का ऐसा सदरय जिसे राज्य सभा निर्धारित करे, बैठक के सभापति के रूप में कार्य करेगा
(अनुच्छेद 91)
राज्य सभा की किसी बैठक में जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन है, तो सभापति तथा जय.उपसभापति को हटाने का संकल्प विचाराधीन है. तो उपसभापति उपस्थित रहते हुए भी पीठासीन नहीं होगा
जय उपराष्ट्रपति को हटाने का संकल्प विचाराधीन है तो उसे राज्य सभा में बोलने का अधिकार है किन्तु वह ऐसे संकल्प या किसी अन्य विषय पर मत देने का बिल्कुुल हकदार नहीं है (अनु. 92)
लोक सभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
(1) लोक सभा, यथाशीघ्र अपने सदरयों में से एक अध्यक्ष तथा दूसरा उपाध्यक्ष चुनती है. (अनु 93)
(2) लोक सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप करने वाला व्यक्ति- पद धारण
(क) यदि लोक सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद त्याग कर देता है
(ख) किसी भी समय अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष, अध्यक्ष को अपना लिखित त्यागपत्र दे सकता है.
(ग) चौदह दिन की पूर्व सूचना देकर लोक सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा
(3) लोक सभा का अध्यक्ष नवनिर्वाचित लोक सभा के प्रथम अधिवेशन का ठीक पहले तक अपने पद को रिक्त नहीं करेगा (अनु 94)
अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति–
(1) जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो तो उपाध्यक्ष और यदि उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो, तो लोक सभा का ऐसा सदस्य जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करें, अध्यक्ष के पद पर कार्य करेगा.
(2) लोक सभा की बैठक में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष और यदि वह भी अनुपस्थित है. तो ऐसा व्यक्ति लोक सभा की प्रक्रिया नियमों द्वारा निर्धारित किया जाए यदि वह भी उपस्थित न हो तो लोक सभा द्वारा निर्धारित व्यक्ति, अध्यक्ष पद पर कार्य करेगा (अनु 95)
(3) लोक सभा की किसी बैठक में जब अध्यक्ष को हटाने का संकल्प विचाराधीन है तो अध्यक्ष. और यदि उपाध्यक्ष को हटाने का संकल्प विचाराधीन है, तो उपाध्यक्ष उपस्थित रहते हुए भी पीठासीन नहीं होगा
(4) जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई-संकल्प विचाराधीन है, तो अध्यक्ष को लोकसभा में बोलने, कार्यवाही में भाग लेने तथा अन्य किसी विषय पर मतदान का अधिकार है, लेकिन मत बराबर होने की दशा में वह निर्णायक मत नहीं दे सकता. (अनु 96)
सभापति उपसभापति तथा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन-भत्ते संसद द्वारा विधि द्वारा निश्चित किए जाते हैं तो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं। (अनु 97)
संसद का सचिवालय
(1) संसद के प्रत्येक सदन का पृथक सचिवीय कर्मचारी मण्जल होगा, लेकिन संयुक्त कर्मचारी भी ही सकते हैं
(2) सचिवीय कर्मचारियों की भर्ती एवं सेवा शर्तों के लिए संसद विनियमन करती है
(3) यदि संसद उपर्युक्त उपबन्ध के अधीन विनियमन नही करती तो राष्ट्रपति लोक सभा अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति से परामर्श करके नियम बना सकता है. (अनु. 98)
सदस्यों द्वारा शपथ ग्रहण-सांसद के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस कार्य हेतु नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा तथा उस पर हस्ताक्षर करेगा. (अनु 99)
सदनों में मतदान, रिक्तियाँ तथा गणपूर्ति
(1) संविधान में वर्णित कुछ विशेष विषयों को छोड़कर सभी प्रश्नों का निश्चय पीठासीन अधिकारी को छोड़कर बहुमत से किया जाएगा, पीठासीन अधिकारी सभापत्ति. उमसभापति, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या अन्य जो भी हो उसे बराबर मत पड़ने पर निर्णायक मत देने का अधिकार होगा.
(2) सांसद के किसी भी सदन ने यदि कुछ स्थान रिक्त हैं, तो भी सदन को कार्यवाही करने की शक्ति होगी
(3) यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति जो ऐसा करने का अधिकारी नहीं था तथा उसने मतदान में भाग लिया है तो भी संसद की कार्यवाही विधिमान्य मानी जाएगी
{4) प्रत्येक सदन की कार्यवाही के लिए कम-से कम सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक है अर्थात् गणपू्ति सदन के कुल सदस्यों की संख्या का दसवें(1/10) भाग होगी
(5) यदि गणपूर्ति नहीं है, तो पीठासीन अधिकारी सदन की कार्यवाही गणपूर्ति होने तक स्थगित कर देता है. (अनु 100)
सदस्यों की अयोग्यताएँ
(1) कोई भी व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का एक साथ सदस्य नही हो सकता.
(2) कोई भी व्यक्ति एक साथ संसद के किसी सदन तथा किसी राज्य के विधान मंडल का सदस्य नहीं हो सकता. यदि उसने राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित समय में विधान मंडल की सदस्यता नहीं। त्यागी है तो संसद की सदस्यता समाप्त समझी जाएगी
(3) यदि कोई सदस्य अपना त्यागपत्र सभापति या अध्यक्ष को जैसी स्थिति हो, दे और वह स्वीकार कर लिया जाए, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है.
(4) यदि कोई संसद सदस्य सदन की आज्ञा के बिना लगातार साठ दिन तक उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो उसकी संसद सदस्यता समाप्त की जा सकती है, इस साठ दिन की अवधि में वह समय सग्मिलित नहीं है जिसके दौरान सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनां के लिए स्थगित रहता है.(अनुच्छेद 101)
(5) कोई भी व्यक्ति संसद सदस्य होने के लिए अयोग्य होगा। यदि-
(क) वह केन्द्र सरकार तथा राज्य के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है
(ख) यह मानसिक रूप से विक्षिप्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है.
(ग) वह अनुन्मोचित दिवालिया है.
(घ) वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी अन्य विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से ग्रहण कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य से किसी प्रकार अनुबन्धित है.वह संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा उसके अधीन अयोग्य घोषित कर दिया जाता है.(अनुच्छेद 102)
(6) यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई संसद सदस्य उपर्युक्त उपयन्धों के अधीन अरथोग्य है या नहीं, तो यह प्रश्न राष्ट्रपति को निर्णय लेने के लिए गेजा जाएगा तथा राष्ट्रपति का निर्णय अन्तिम होगा ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति पहले निर्वाचन आयोग से राय लेगा तथा उसके बाद निर्णय लेगा.(अनुच्छेद 103)
(7) यदि कोई व्यक्ति ससद सदस्य होने के योग्य नही है और फिर मी वह रादस्य के रूप में सदन में बैठता है, तो वह पाँच सौ रुपए प्रतिदिन के हिसाथ से दण्ड का भागी होगा जो उससे संघ के ॠण के रूप में वसूल किया जाएगा। (अनुच्छेद 104)
संसद सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ
(1) संविधान तथा ससद के नियमों के अधीन सदस्यों को सदन में बोलने की स्वतन्त्रता होगी
(2) किसी भी संसद सदस्य द्वारा सदन या किसी समिति में दिए गए मत एवं बात के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में कोई।कार्यवाही नहीं की जाएगी.
(3) अन्य बातों में संसद के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और।उन्मुक्तियाँ ऐसी होगी जो संसद, समय-समय पर विधि द्वारा निश्चित करेगी.
(4) जिन व्यक्तियों की संविधान द्वारा संसद के किसी भी सदन में बोलने का अधिकार दिया गया है ये विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियाँ उन व्यक्तियों पर भी लागू होंगी. (अनु. 105)
(5) सदस्यों के वेतन-भत्ते जिन्हें संसद समय-समय पर विधि द्वारा निर्धारित करती है, सदस्य पाने के अधिकारी होंगे. (अनु. 106)
(1) धन विधेयकों तथा वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में विशेष उपबन्धों के अधीन रहते हुए, कोई भी विधेयक संसद के किसी भी सदन में आरम्भ हो सकेगा.
(2) कोई विधेयक तब तक पारित नहीं समझा जा सकेगा. जब तक दोनों सदन बिना संशोधन या संशोधनों सहित पारित नही कर देते.
(3) लोक सभा के विघटन पर राज्य सभा में लम्बित विधेयक जिसे लोक सभा ने पारित नहीं किया है समाप्त नहीं होगा
(4) लोक सभा के विघटन पर कोई विधेयक जो लोक सभा में লम्बित है अथवा लोक सभा द्वारा पारित कर दिया गया है और राज्य सभा में लम्बित है तथा संयुक्त अधिवेशन के लिए निश्चित नहीं किया गया है, तो समाप्त नाना जाएगा (अनु. 107)
(1) यदि कोई विधेयक एक सदन द्वारा पारित किए जाने के पश्चात्, दूसरे सदन में भेजा जाता है, और यदि,
(क) वह सदन विधेयक को अस्वीकार कर देता है. या
(ख) विधेयक में किए जाने वाले संशोधनों के निषय में दोनों सदन अन्तिम रूप से असहमत हो गए है,
(ग) दूसरे सदन को विधेयक प्राप्त होने के दिनाक से उसके द्वारा विधेयक पारित किए विना छः मास से अधिक बीत गए हैं, तो राष्ट्रपति, केवल उस दशा को छोड़कर जिसमें लोक सभा का विघटन होने के कारण विधेयक समाप्त हो गया हो, दोनों सदनों की संयुक्त वेठक बुलाने की अधिसूचना देगा.
(2) छ: मास की अवधि में सदन का सत्रावसान या निरन्तर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित किया गया समय सम्मिलित नहीं किया जाता
(3) राष्ट्रपति की संयुक्त बैठक की सूचना देने के पश्चात् कोई भी सदन उस विधेयक पर कार्यवाही नहीं करेगा
(4) यदि संयुक्त वैठक में विधेयक दोनों सदनो के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत द्वारा पारित हो जाता है तो वह दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाएगा,
(5) संयुक्त बैठक में पीठासीन व्यक्ति का इस विषय में निर्णय अन्तिम होगा कि कौन से संशोधन इसके अधीन ग्राह्म है
(6) सयुक्त बैठक धन विधेगक तथा संविधान संशोधन विधेयक के लिए आहूत नहीं की जा सकती है
(7) संयुक्त अधिवेशन की अ्यक्षता लोक सभा का अध्यक्ष करता है
(৪) यदि राष्ट्रपति की संयुक्त अधिवेशन की सूचना देने के पश्चात् लोकसभा विघटित हो जाती है, तो मी संयुक्त अधियेशन सम्पन्न हो सकेगा तथा विधेयक पारित हो सकेगा.