सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन

सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन

2006 में दाखिल हुई थी पहली याचिका, सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन ,17 फरवरी को हुई अंतिम सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भारतीय सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन पर एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी 2020 को सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन पर सहमति दे दी है और साथ ही कमांड पोस्ट हेतु भी महिलाओं को योग्य बताया है। दरअसल जनवरी में याचिकाओं पर हो रही अंतिम सुनवाई में सरकार ने कोर्ट को एक नोट थमाया जिसमें उन कारणों का जिक्र किया गया था, जिनके आधार पर महिलाओं को बराबरी के आधार से वंचित किया जा रहा था। सरकार ने जो तर्क दिए वे बेहद पुरातन मानसिकता का बयान करते थे। महिलाओं के प्रति वही पुरानी मानसिकता की कहानी थी। ये कारण देश की महिला नागरिकों को प्राप्त संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ ही नहीं थे बल्कि इन महिला अधिकारियों की भूमिका को भी नजरंदाज कर रहे थे जो पिछले ढाई दशक में उन्होंने निभाई थी।

कोर्ट को बताया ‘गया कि 28 साल में सेना की महिलाओं ने अनेक शौर्य गाथाएं लिखी हैं। मिसाल के तौर पर मेजर मिताली मधुमिता को काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए फिदायीन हमले में इनकी भूमिका के लिए शौर्य पदक दिया गया था। इन्होंने अकेले दूतावास में 19 लोगों की जान बचाई थी। स्क्वॉड्रन लीडर मिंटी अग्रवाल, फ्लाइट कंट्रोलर के तौर पर बालाकोट एयरस्ट्राइक और उसके बाद पाकिस्तान की ओर से हुए हमले को नाकाम करने में अहम भूमिका में थीं। विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान जब पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों से जूझ रहे थे तो उस फ्लाइट का निर्देशन भी मिंटी ही कर रहीं थी। उन्हें वाजिब तौर पर युद्ध सेवा पदक दिया गया। ये सारे सबूत वकील एश्वर्या भाटी ने कोर्ट के सामने रखे और बताया कि 28 साल के इस सफर में महिलाओं ने अपनी भूमिका साबित की है। ख़ुद सरकार भी उनके प्रदर्शन की प्रशंसक, रही है। सिर्फ एक मानसिकता ही है जो उन्हें बराबरी देने से रोक रही है। इन सबको सुनने के बाद महिलाओं को कमांड रोल देने से वंचित करने के सरकार के तकों को कोर्ट ने खारिज कर दिया और स्थायी कमीशन का अधिकार दे दिया।

कैसे हुई थी इसकी शुरुआत?

भारतीय सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति की शुरुआत वर्ष 1992 से हुई। शुरुआत में महिला अधिकारियों को नॉन-मेडिकल जैसे- विमानन, रसद, कानून, इंजीनियरिंग और एक्जीक्यूटिव कैडर में नियमित अधिकारियों के रूप में 5 साल की अवधि के लिए कमीशन दिया। जाता था, जिसे 5 साल और बढ़ाया जा सकता था। इसके पश्चात 2006 में नीतिगत संशोधन के तहत महिला अधिकारियों को शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के तहत 10 साल की सेवा की अनुमति दे दी गई। जिसे 4 साल जा सकता था। उसी साल किए गए नीतिगत संशोधनों के अनुसार, पुरुष एसएससी अधिकारी 10 वर्ष की सेवा के अंत में स्थायी कमीशन का विकल्प चुन सकते थे, लेकिन यह विकल्प महिला अधिकारियों को नहीं दिया गया था।

2003 में किया था याचिका दाखिल करने का अनुरोध

फरवरी 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर सेना में एसएससी की महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का अनुरोध किया गया। लेकिन अक्टूबर 2006 में हाईकोर्ट में पहली याचिका दाखिल बाद के प्रभाव (उत्तरव्यापी) से स्थायी की गई। रक्षा मंत्रालय ने सितंबर 2008 में एक सर्कुलर जारी किया। इसके अनुसार केवल जज एडवाकेट जनरल (जेएजी) और आर्मी एजुकेशन कोर (एईसी) में एसएससी की महिला अधिकारियों को ही बाद के प्रभाव से कमीशन देने का विचार था।

याचिका दाखिल करने वाली महिलाओं को नहीं मिला अधिकार

मार्च 2019 में रक्षा मंत्रालय ने एक नया आदेश निकाला जिसमें 10 विभागों में काम कर रही. महिलाओं को ही परमानेंट कमीशन मिल सकता है लेकिन इस फैसले में उन महिला अधिकारियों को शामिल नहीं किया गया था जो पहले से सेवा में थीं। यानि इसका फायदा मार्च 2019 के बाद
से सर्विस में आने वाली महिला अफसरों को ही मिलेगा। इस तरह वे महिलाएं स्थायी कमीशन पाने से वंचित रह गई, जिन्होंने इस मसले पर लंबे।अरसे तक कानूनी लड़ाई लड़ी थी। कोर्ट को इनके बारे में आगाह किया गया। आखिरकार दिसम्बर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आखिरी मौका दिया और कहा कि वह एक समान नीति लेकर आए। याचिकाओं पर अंत में महिलाओं को स्थायी कमीशन का अधिकार मिल गया।

क्या है वर्तमान स्थिति?

मौजूदा समय में केवल भारतीय वायु सेना ही लड़ाकू पायलटों के रूप में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में शामिल करती है। साथ ही भारतीय वायु सेना में महिला अधिकारियों का प्रतिशत।भी अन्य शाखाओं से काफी अधिक है। आंकड़ों के अनुसार, भारतीय वायु सेना में तकरीबन 13.09% महिला अधिकारी हैं। वहीं भारतीय थल सेना।और नौसेना में महिला अधिकारियों का प्रतिशत क्रमशः 3.80 और 6 है।

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