सेवा क्षेत्र का देश के सकल घरेलू उत्पाद में आधे से अधिक योगदान

भारत में सेवा क्षेत्र
सेवा क्षेत्र का देश के सकल घरेलू उत्पाद में आधे से अधिक योगदान

आज भारत के सेवा क्षेत्र का देश के सकल घरेलू उत्पाद में आधे से अधिक योगदान है। आकड़ों के मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद मे सेवा क्षेत्र का योगदान 55.1 प्रतिशत,कृषि का 18.5 प्रतिशत एवं उद्योगों का 26.4 प्रतिशत है. यह भारतीय अर्थव्यावस्था में सेवा क्षेत्र के महत्व को दर्शाता है. अब जब सेवा क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में आधे से अधिक योगदान कर रहा है तो यह भारतीय अर्थव्यावस्था के विकास की एक प्रमुख उपलब्धी है, वास्तव में यह इसे विकसित अर्थव्यावस्था ओर ले जा रहा है. नव्वे के दशक में सेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय बढ़त हुई. 1950 से लेकर 2000 तक के पचास सालों में सेवा क्षेत्र का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 21 प्रतिशत की दर से बढ़ा जबकि नव्वे के दशक में यह दर 40 प्रतिशत हो गयी.

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सेवा क्षेत्र की रचना

देश में राष्ट्रीय आय का जो विभाजन सांखिकी संगठन द्वारा किया गया है वो यहां पर दिया जा रहा है ।भारत मे सेवा क्षेत्र राष्ट्रीय आय की निम्नलिखित को जोड़ता है
1. व्यावसाय, होटल और रेस्टोरेंट
• व्यावसाय
• रेस्टोरेंट तथा होटल
2. परिवहन, भंडारण एवं संचार
• रेलवे
• परिवहन के अन्य साधन
• भंडारण
• संचार
3. वित्त, बीमा, रियल एस्टेट तथा व्यापारिक सेवाएं
• बैकिंग तथा बीमा
• रियल एस्टेट, मकान का स्वामित्व और व्यापारिक सेवाएं
4. समुदाय,सामाजिक व निजी सेवाएं
• लोक प्रशासन तथा रक्षा
• अन्य सेवाएं

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विदेशी पूंजी

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विदेशी पूंजी को रियायती प्रवाह या गैर रियायती समर्थन को रूप में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में प्राप्त किया जा सकता है या विदेशी निवेश के रूप में प्राप्त किया जा सकता है. इस संदर्भ में रियायती प्रवाह के अंतर्गत अनुदान,ऋण आदि को अति कम व्याज पर प्राप्त किया जाता है. जिसकी परिपक्वता अवधि लम्बी होती है. यह सहयोग अक्सर द्विस्तरीय तौर पर सरकार से सरकार को दिया जाता है. साथ ही बहुस्तरीय तौर पर भी अर्थात अन्य एजेंसियों जैसे इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन, विश्व बैंक जैसे बहुपक्षीय एजेंसियों के माध्यम से भी द्विपक्षीय आधार, पर सहयोग दिया जाता है.

विदेशी पूंजी की जरूरत

  1. निवेश के एक उच्च स्तर को कायम रखना.
    2. तकनीकी गैप.
    1. प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग.
    3. प्रारंभिक जोखिम उपक्रम
    2. बुनियादी आर्थिक ढांचे का विस्तार
    3. भुगतान की स्थिति के संतुलन में उन्नयन

विदेशी पूंजी के प्रति भारत सरकार की नीति

  1. विदेशी और भारतीय पूंजी के बीच किसी भी प्रकार के पक्षपात से बचना
  2. मुनाफा कमाने के लिए पूर्ण अवसरों की उपलब्धता
    2. मुआवजे की गारंटी

क्षेत्र जिसमे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश वर्जित है:

  1. मल्टी ब्रांड रिटेल
    2. परमाणु ऊर्जा
    3. लॉटरी कारोबार
    4. जुआ और सट्टेबाजी
    5. चिट फंड का व्यापार
    6. निधि कंपनी
    7. हस्तांतरणीय विकास अधिकार में व्यापार
    8. गतिविधि/सेक्टर के वे निजी क्षेत्र जिन्हें निवेश के लिए खोला नहीं जा सकता

 

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