स्वतंत्रता, लोकतंत्र और गणतंत्र में क्या अंतर है ?
स्वतंत्रता, लोकतंत्र और गणतंत्र में क्या अंतर है ?
स्वतंत्रता बहुत व्यापक अवधारणा है। इसका सीधा मतलब है व्यक्ति का अपने कार्य-व्यवहार में स्वतंत्र होना, पराधीन नहीं होना। व्यावहारिक अर्थ है ऐसी व्यवस्था में रहना जिसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता उसका मौलिक अधिकार हो। हजारों साल के मनुष्य जाति के इतिहास में हमने व्यक्ति के कुछ प्राकृतिक अधिकारों को स्वीकार किया है जैसे जीवन, विचरण, भरण-पोषण, निवास वगैरह। इन प्राकृतिक अधिकारों को अतीत में राज-व्यवस्थाओं ने अपने लिखित-अलिखित कानूनों में स्थान देकर नागरिक अधिकार बनाया। 10 दिसम्बर 1948 को जारी संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार घोषणापत्र में इन अधिकारों को जगह दी। इन अधिकारों पर नजर डालेंगे तो आप पाएंगे कि दुनिया के नागरिकों को अभी उनके पूरे अधिकार प्राप्त नहीं हैं। सम्भव है कभी मिलें।
लोकतंत्र एक व्यवस्था का नाम है, जिसकी एक संवैधानिक व्यवस्था भी हो। जब शासन पद्धति पर यह लागू हो तो शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक होती है। इसमें हिस्सा लेने वाले या तो आमराय से फैसले करते हैं और यदि ऐसा न हो तो मत-विभाजन से करते हैं। ये निर्णय सामान्य बहुमत से और कई बार ज़रूरी होने पर विशेष बहुमत से भी होते हैं। मसलन कुछ परिस्थितियों में दो तिहाई मत से भी निर्णय किए जाते हैं।
गणतंत्र का अर्थ वह शासन पद्धति जहाँ राज्यप्रमुख का निर्वाचन सीधे जनता करे या जनता के प्रतिनिधि करें। यानी राष्ट्रप्रमुख वंशानुगत या तानाशाही तरीके से सत्ता पर कब्जा करके न आया हो। कुछ ऐसे देश भी हैं, जहाँ शासन पद्धति लोकतांत्रिक होती है, पर राष्ट्राध्यक्ष लोकतांत्रिक तरीके से नहीं चुना जाता। जैसे युनाइटेड किंगडम, जहाँ राष्ट्राध्यक्ष सम्राट होता है, जिसके परिवार के सदस्य ही राष्ट्राध्यक्ष बनते हैं। इस अर्थ में युनाइडेट किंगडम रिपब्लिक नहीं है। हमारे देश में लोकतांत्रिक सरकार है और राष्ट्रपति का चुनाव होता है इसलिए यह गणतंत्रात्मक व्यवस्था है।
स्वीकृत होने के दो महीने बाद लागू क्यों हुआ हमारा संविधान? यदि भारतीय संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हो गया, तो इसे दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 को ही लागू क्यों किया गया?
हालांकि संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 को संविधान के प्रारूप को अंतिम रूप से स्वीकार कर लिया था, पर यह तय किया गया कि इसे 26 जनवरी से लागू किया जाए क्योंकि 26 जनवरी 1930 के लाहौर कांग्रेस-अधिवेशन में पार्टी ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास किया था और अध्यक्ष पं जवाहर लाल नेहरू ने अपने भाषण में इसकी माँग की थी। संविधान के नागरिकता, चुनाव और संसद जैसी व्यवस्थाएं तत्काल लागू हो गईं थीं। राष्ट्रीय संविधान सभा ने ध्वज 22 जुलाई 1947 को ही स्वीकार कर लिया था। और वह 15 अगस्त 1947 से औपचारिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज बन चुका था।
राष्ट्रपति भवन पर पहली बार तिरंगा कब फहराया गया?
भारतीय संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज को स्वीकार किया। 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि के आसपास यह ध्वज संसद भवन के सेंट्रल हॉल में फहराया गया। इसी कार्यक्रम में श्रीमती हंसा मेहता ने राष्ट्रध्वज डॉ राजेन्द्र प्रसाद को भेंट किया। 15 अगस्त 1947 की भोर तब के वायसरीगल हाउस और वर्तमान राष्ट्रपति भवन पर तिरंगा फहराया गया। संसद भवन के शिखर पर भी उसी सुबह तिरंगा फहराया गया।