तख्तापलट और विद्रोह से जूझते दुनिया के 10 देश

तख्तापलट और विद्रोह से जूझते दुनिया के 10 देश

1. बुर्किना फासोः 60% हिस्सा विद्रोहियों के पास

पश्चिम अफ्रीकी देश बुर्किना फासो में 2022 और 2023 में 2 तख्तापलट हुए। इसके बाद बुर्किना फासो की सरकार ने फ्रांस से दूरी बनाकर रूस से मित्रता बढ़ाई। रूस में भाड़े के लड़ाकों के समूह वैगनर ग्रुप से सुरक्षा सहायता, सैन्य प्रशिक्षण और हथियारों की आपूर्ति के लिए डील की।घ वैगनर ने स्थानीय ग्रामीणों को लड़ने की ट्रेनिंग दी और सरकार समर्थित वीडीपी मिलिशिया बनाई। ये इस्लामी विद्रोही गुटों जेएनआईएम और आईएसजीएस से लड़ रहे हैं। फिलहाल देश के 60% हिस्से पर इन विद्रोहियों ही दबदबा है।

2. नाइजरः फ्रांस ने ट्रेनिंग दी, उसी ने तख्ता पलटा

नाइजर एक लैंड लॉक्ड देश है, जिसकी कोई समुद्री सीमा नहीं है। 2023 में लोकतांतिक सरकार को हटाकर सैन्य शासन स्थापित हुआ। यहां गतख्तापलट करने वाले जनरल अब्दुल रहमान चियानी को अमेरिकी और फ्रांसीसी सेना ने 2018-2022 तक आतंकवाद रोधी प्रशिक्षण दिया था। नाइजर के पास दुनिया के वें सबसे बड़े यूरेनियम भंडार हैं, जिससे फ्रांस अपनी 70% बिजली की जरूरतें पूरी करता रहा है। वैगनर ग्रुप के आने के बाद 2023 में फ्रांसीसी सेना को देश छोड़ना पड़ गया था।

3. चाडः हर हफ्ते हमले, सेना पहुंच ही नहीं पाती

2021 में राष्ट्रपति इदरीस देबी की मौत के बाद से चाड सैन्य शासन के अधीन है। राष्ट्रपति और जनरल इदरीस की मौत तब हुई जब ने बोको हराम के खिलाफ लड़ने गए थे। उसके बाद उनके 37 साल के बेटे महामत इदरीस देवी ने सेना के समर्थन से सत्ता हथियाई। 18 महीने में चुनाव का वादा किया, लेकिन 2024 में संविधान बदल दिया। 2021 तक बोको हराम का नेतृत्व अवुबकर शेकाउ करता था और आई-एसडब्लूएपी का अबू मुसाब अल-बरनावी करता है। फिलहाल, चाड इतना अस्थिर है कि वहां हर सप्ताह में सशस्त्र हमले होते हैं और सेना तक नहीं पहुंच पाती।

4. सूडानः भीषण क्रूरता, हर घंटे 3 बच्चों की मौत

सूडान 2023 से गृहयुद्ध में घिरा है, जहां सेना और आरएसएपफ (मोहम्मद हमदानदगलो) के बीच भीषण संघर्ष जारी है। आरएसएफ को खाड़ी देशों और रूस समर्थित वैगनर ग्रुप से हथियार मिलते हैं। यूएन के अनुसार, 10 महीनों में 14,000 मौतें, 2.7 लाख लोगों का विस्थापन हुआ। यहां युद्ध में क्रूरता की सभी हदें पार हो गई है। हर घंटे 3 बच्चों की मौत हो रही है। खातुम जैसे शहर टैंकों और स्नाइपर्स के युद्र क्षेत्र बन चुके हैं। आरएसएफ की फडिंग सोने की तस्करी से होती है।

5. सीएआर(सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक) : रूसी वैगनर के पास हीरे की खदानें

सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक (सीएआर) दो दशकों से लगातार विद्रोह, तख्तापलट और सशस्त्र संघर्षों से जूझ रहा है। 2020 में फ्राकोइस बोजिजे के नेतृत्व वाली सीपीसीने राजधानी बंगई पर हमला किया था। इस विद्रोही गुट को रूस समर्थित वैगनर ग्रुप से हथियार, ट्रेनिंग और रणनीतिक सहयोग मिलता है। सीएआर की आधी आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है और देश का 80% क्षेत्र विद्रोही गुटों के नियंत्रण या प्रभाव में है। यहां की सोने और हीरे की खदानों से लेकर शराब और टिंबर के कारोबार पर रूसी वैगनर ग्रुप का कब्जा है, जिससे उन्हें करोडों डॉलर की फडिंग मिलती है।

6. लीबियाः गद्दाफी की हत्या के बाद से अशांति

2011 में गद्दाफी की हत्या के बाद से अराजकता है। देश दो मुख्य धड़ों खलीफा हफ्तार की लीबिया नेशनल आर्मी (एलएनए) और यूएन स्थित जीएनए में बंटा है। एलएनए को रूस और यूएई जैसे देशों से टैंक, ड्रोन और भारी हथियार मिलते हैं।

7. मोजाम्बिकः विदेशी कामगारों की हत्याएं बढ़ीं

मोजाम्बिक का काबो डेलगाडो 2017 से इस्लामी विद्रोह का शिकार है। शरिया शासन का मिशन के साथ अंसार-अल-सुत्रा नामक आतंकी संगठन सक्रिय है, जिसका नेतृत्व अबू यासिर हसन करता है। 2020 से विदेशी कामगारों की हत्या बढ़ी है।

৪. सीरियाः 10 साल का गृहयुद्ध,

एचटीएस का दमन सीरिया में 2011 से जारी गृहयुद्ध ने देश को तबाह कर दिया। आईएसआईएस का प्रभाव कम हुआ। अब हयात तहरीर अल शाम ( एचटीएस) सत्त में आया है। असद से समर्थकों के साथ अभी भी जंग जारी है। कई पश्चिमी देशों ने एचटीएस पर से प्रतिबिंध ह्टाए है लेकिन उनकी सरकार ने कट्टर इस्लामी विचारधारा थोप दी है।

9. यमनः 2014 से गृहयुद्ध,

यहां पर तीन सरकारें 2014 से गृहयुद्ध से जूझ रहे यमन में 3 सरकारें हैं। इरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने राजधानी सना पर कब्जा है। उतरी हिस्से में यूएन समर्थित तो दक्षिण में यूएई समर्थित एसटीसी सरकार है। हूती ईरान-समर्थित टेक्नोलॉजी से लैस हैं और उन्होंने कई बार सऊदी अरब और यूएई पर ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल हमले किए हैं। हुती विद्रोहियों ने इजराइल संकट में कई बार स्वेज मार्ग हमले किए हैं।

10. म्यांमारः सैन्य शासन और विद्रोह की चपेट में

2015 में म्यांमार में लोकतांत्रिक चुनावों के बाद आंग सान सू की की पार्टी नेशनललीग फॉर डेमोक्रेसी को भारी समर्थन मिला। अमेरिका और पश्चिमी देशों ने उन्हें लोकतंत्र की प्रतीक मानते हुए 2016 में सरकार बनने पर समर्थन देना शुरू किया।लेकिन 2017 में जब म्यांमार सेना ने रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ नरसंहार अभियान चलाया, तो ऑंग सान सू की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कठोर आलोचना की शिकार बनी।

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