55 लोगों ने बैगा जाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर ले ली सरकारी नौकरी
जांच के निर्देश: बिलासपुर के मस्तुरी में कई गांवों से फर्जी जाति प्रमाण पत्र की शिकायतें, जबकि ये गांव बैगा वाले नहीं
प्रमाण पत्र बनवाकर ओबीसी के 55 लोगों ने सरकारी नौकरी हासिल कर ली। बिलासपुर के मस्तुरी तहसील के कई गांवों से ऐसी शिकायतें हैं। दरअसल, 2015-16 में बैगा जनजाति के सर्वे से स्पष्ट हो चुका है कि मस्तुरी क्षेत्र में बैगा नहीं रहते हैं। मस्तुरी तहसीलbके कई गांवों की पड़ताल की। इस दौरान कई फर्जी जाति-प्रमाण पत्र बन गए। जिस व्यक्ति के जाति-प्रमाण पत्र में बैगा दर्ज है। उन्हीं के पूर्वजों की जाति राजस्व रिकॉर्ड, स्कूल, दाखिल-खारिज और निर्वाचन आयोग के कागजों पर ढीमर लिखी हुई है। राजस्व में पिता की जाति ढीमर (ओबीसी) है, पर पुत्र बैगा (एसटी) के रूप में दर्ज है। किसी प्रकरण में पत्नी बैगा तो पति ढीमर है। शिकायतकर्ताओं का दावा है कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र से 2023 में सहायक शिक्षक के 55 पदों पर भर्ती हुई है। 250 नए कास्ट सर्टिफिकेट बन गए हैं। इसका लाभ आगे भर्ती में उठाने की तैयारी है।
25 सालों में फर्जी जाति-प्रमाण पत्र की 926 से ज्यादा शिकायतें आ चुकी हैं। मस्तुरी के पौड़ी व आस-पास के गांवों में फर्जी जाति-प्रमाण पत्र बनाए जाने के 4 प्रकरणों में जांच भी हुई है। इसमें पाया गया कि जिनके नाम पर जाति प्रमाण हुआ है, वह बैगा जाति के नहीं हैं। ये लोग इन्हीं सर्टिफिकेट से सरकारी शिक्षक बन गए थे। रिपोर्ट के आधार पर शासन ने इन्हें बर्खास्त किया था। बाद में ये कोर्ट चले गए।
बैगा रहते हैं या नहीं, इसके जवाब में विधानसभा जाति विभाग के मंत्री ने भी स्पष्ट किया है कि मस्तुरी तहसील में बैगा समुदाय के लोग नहीं है। बता दें कि छत्तीसगढ़ के सिर्फ 6-7 जिलों में बैगा समुदाय निवासरत है। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 89 हजार 744 है।
इन 3 उदाहरणों से समझें कैसे-कैसे हुए फर्जीवाड़ा
केस- 1 सुभाष बैगा – पिता – घनश्याम बैगा- लेकिन निर्वाचन आयोग के दस्तावेज़ में माता का नाम निर्मला देवी धीवर है। इसके अतिरिक्त राजस्व रिकॉर्ड में स्व. गिरधारी की जाति धीमर दर्ज है। जो घनश्याम के पिता हैं। राजस्व रिकॉर्ड में इन्हें ओबीसी बताया गया है।
केस -2 अश्वनी व विजय कुमार के जाति प्रमाण पत्र में बैगा लिखा है। जबकि पिता राजकुमार के राजस्व रिकॉर्ड में जाति धीमर दर्ज है। परिवार में अन्य के नाम भी निर्वाचन आयोग के,कागज़ में धीमर दर्ज हैं।
केस- 3 रागिनी केषपिता का नामसलक्ष्मी प्रसाद है। रागिनी केषजाति प्रमाण पत्र में जातिसएसटी दर्ज है, पर पिता लक्ष्मी प्रसाद के राजस्व रिकॉर्ड में जाति धीवर दर्ज है।
संबंधित विभागों को जांच के लिए लिखा है
• शिकायत प्राप्त हुई है। मस्तुरी के आस-पास के गांवों में बैगा जाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर नौकरी लेने की शिकायतें हैं। संबंधित विभागों को पत्र लिखा गया है। जांच के बाद नियमनुसार कार्रवाई की जाएगी।
-सुनील कुमार जैन, आयुक्त, बिलासपुर संभाग
• 1949 से पहले कुछ धीमर समाज के लोग बैगा लिखते थे । ये इसी समय का होगा तो सही है। इसके बाद का होगा तो यह संदिग्ध है और जांच का विषय है। वर्तमान में हमारा समाज ओबीसी में आता है। किसी व्यक्ति को बैगा लिखकर विशेष लाभ मिला है, तो सबको मिलना चाहिए।
-भरत मटियारा, अध्यक्ष, मछुआ कल्याण बोर्ड एवं पूर्व अध्यक्ष धीमर समाज छग
• इनकी संस्कृति अलग है। ये बैगा नहीं । ये केवट/धीमर हैं। कुछ दिन हमसे बैगा समाज में जोड़ने के लिए कह रहे थे, पर मना कर दिया। फर्जी जाति प्रमाण पत्र की कलेक्टर, राज्यपाल, आदिमजाति आयुक्त से शिकायत की है।