भारतीय संविधान
भारतीय संविधान.
भारतीय संविधान के विकास का संक्षिप्त इतिहास
हस्तान्तरित विषय-(1) शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन, चिकित्सा सहायता, (ii) सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उद्योग, तौल तथा माप, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि । (iii) आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद् के माध्यम से करता था; जबकि हस्तान्तरित विषय का प्रशासन प्रान्तीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था। (iv) द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया।
(v) भारंत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है। (vi) इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का-प्रथम राज्य परिषद् तथा दूसरी केन्द्रीय विधान सभा प्रावधान किया।
1757 ई० की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई० के वक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने शासन का शिकंजा कसा। इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई ऐक पारित किए, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियाँ बनीं। वे निम्न हैं-
1773 ई० का रेग्यूलेटिंग एक्ट-इस एक्ट के अन्तर्गत कलकत्ता प्रेसीडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई, जिसमें गबर्नर जनरल और उसकी परिषद् के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता के उपयोग संयुक्त रूप से करते थे । इसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं(i) कम्पनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया। (ii) बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसिडेन्सियो का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया । (iii) कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी।
1784 ई० का पिट्स इंडिया एक्ट इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ-(i) कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स व्यापारिक मामलों के लिए, (ii) बोर्ड ऑफ कंट्रोलर–राजनीतिक मामलों के लिए।
1793 ई० का चार्टर अधिनियम-इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतनादि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गयी।
1813 ई० का चार्दर अधिनियम इसके द्वारा (i) कम्पनी के अधिकार पत्र को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। (ii) कम्पनी के भारत के साथ व्यापार करने के एकाधिकार को छीन
लिया गया। किन्तु उसे चीन के साथ व्यापार एवं पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20) वर्षों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा। (iii) कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया।
1833 ई० का चार्टर अधिनियम- (i) इसके द्वारा कम्पनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए। (ii) अब कम्पनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत
का शासन करना रह गया। (iii) बंगाल के गवर्नर जेनरल को भारत का गवर्नर जेनरल कहा जाने लगा। (iv) भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी।
1853 ई० का चार्टर अधिनियम- इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धान्त समाप्त कर कम्पनी के महत्त्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गयी।
1858 ई० का चार्टर अधिनियम(i) भारत का शासन कम्पनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों में सौंपा गया। (ii) भारत में मंत्रि-पद की व्यवस्था की गयी । (ii) पन्द्रह सदस्यों की भारत परिषद् का सृजन हुआ। (iv) भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित किया गया।
1861 ई० का भारत शासन अधिनियम ( i) गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार किया गया, (ii) विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ, (iii) गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी (iv) गवर्नर जेनरल को बंगाल, उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद् स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गयी।
1892 ई० का भारत शासन अधनियम- (i) अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरुआत हुई, (ii) इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई।
1909 ई० का भारत शासन अधिनियम [माले-मिन्टो सुधार] (i) पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पथक प्रतिनिधित्व का उपबन्ध किया गया (ii) भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई (i) केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान-परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला। (iv) प्रान्तीय विधान- परिषदों की संख्या में वृद्धि की गयी।
1919ई० का भारत शासन अधिनियम (माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार)-(i) केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था। केन्द्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निर्वाचित तथा 41 मनोनीत होते थे । इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था । दोनों सदनों के अधिकार समान थे। इनमें सिर्फ एक अन्तर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था। (ii) प्रांतों में ह्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्त्तन किया गया इस योजना के अनुसार प्रान्तीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया-आरक्षित तथा हस्तान्तरित । आरक्षित विषय थे-वित्त, भूमिकर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियाँ (criminal tribes), छापाखाना, समाचारपत्र, सिंचाई, जलमार्ग, खान, ‘कारखाना, बिजली, गैस, व्यॉलर, श्रमिक कल्याण, औद्योगिक विवाद, मोटरगाड़ियाँ, छोटे बन्दरगाह और सार्वजनिक सेवाएँ आदि।
1935 ई० का भारत शासन अधिनियम- 1935 ई० के अधिनियम में 451 धाराएँ और 15 परिशिष्ट थे। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार है-
(i) अखिल भारतीय संघ-यह संघ 11 ब्रिटिश प्रान्तों, 6 चीफ कमीश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हों। प्रान्तों के लिए
संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किन्तु देशी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक था। देशी रियासतें संघ में सम्मलित नहीं हुई और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया।
(ii) प्रान्तीय स्वायत्तता-इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया ।
(iii) केन्द्र में द्वैध शासन की स्थापना-कुछ संघीय विषयों (सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामले) को गवर्नर-जेनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया। गअन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर-जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गयी, जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था ।
(iv) संघीय न्यायालय की व्यवस्था इसका अधिकार-क्षेत्र प्रान्तों तथा रियासतों तक विस्तृत था। इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी। न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी कौंसिल (लंदन) को प्राप्त थीं।
(v) ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता- इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का । अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था। प्रान्तीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका-इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे।
(vi) भारत परिषद् का अन्त
(vi) साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार- संघीय तथा प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं में । विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जन
गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों-भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया । इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद् का अन्त कर दिया गया। लिए भी किया गया।
(vii) इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था।
(ix) इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया । अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया।
> 1947 ई० का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम-ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई० को’भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 ई० को स्वीकृत हो गया। इस अधिनियम में 20 धाराएँ थीं । इस अधिनियम
(i) दो अधिराज्यों की स्थापना-15 अगस्त, 1947 ई० को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएँगे, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपी जाएगी। (ii) भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी। (iii) संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना-जब तक संविधान सभाएँ संविधान का निर्माण नहीं कर लेतीं, तब तक बे विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगी। (iv) भारत मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएँगे। (v) 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जबतक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है; तबतक उस समय 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा। (vi) देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अन्त कर दिया गया। उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मिलित होने और अपने भावी संबंधों का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी।
प्रमुख प्रावधान निम्न हैं.
2. भारतीय संविधान सभा > कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर भारतीय संविधान की निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 ई० में किया गया।
> संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गयी थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमीश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे।
> मिशन योजना के अनुसार जुलाई, 1946 ई० में संविधान सभा का चुनाव हुआ । कुल 389 सदस्यों में से प्रान्तों के लिए निर्धारित 296 सदस्यों के लिए चुनाव हुए। इसमें काँग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 स्थान एवं 15 अन्य दलों के तथा स्वतंत्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए। 9 दिसम्बर, 1946 ई० को संविधान सभा की प्रथम बैठक नई दिल्ली स्थित कौंसिल चैम्बर के पुस्तकालय भवन में हुई। सभा के सबसे बुजुर्ग सदस्य डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार किया और पाकिस्तान के लिए बिल्कुल अलग संविधान सभा की माँग प्रारंभ कर कर दी।
> हैदराबाद एक ऐसी देशी रियासत थी, जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मलित नहीं हुए थे। प्रांतों या देशी रियासतों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में संविधान सभा में प्रतिनिधिध दिया गया था। साधारणतः 10 लाख की आवादी पर एक स्थान का आबंटन किया गया था।
* प्रांतों का प्रतिनिधित्व मुख्यतः तीन प्रमुख समुदायों की जनसंख्या के आधार पर विभाजित किया गया था, वे समुदाय थे-मुस्लिम, सिक्ख एवं साधारण।
> संविधान सभा में ब्रिटिश प्रान्तों के 296 प्रतिनिधियों का विभाजन साम्प्रदायिक आधार पर किया गया-213 सामान्य, 79 मुसलमान तथा 4 सिक्ख ।
> संविधान सभा के सदस्यों में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की संख्या 33थी।
> संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या 12 थी।
11 दिसम्बर, 1946 ई० को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित हुए। संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसम्बर, 1946 ई० को जवाहर लाल नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारंभ हुई।
> 22 जनवरी, 1947 ई० को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद संविधान सभा ने संविधान निर्माण हेतु अनेक समितियाँ नियुक्त कीं। इनमें प्रमुख थीं-वार्ता समिति, संघ संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, संघ शक्ति समिति, प्रारूप समिति ।
> बी० एन० राव द्वारा तैयार किए गए संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के लिए संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त, 1947 ई० को एक संकल्प पारित करके प्रारूप समिति का गठन किया गया तथा इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ० भीमराव अम्बेदकर को चुना गया।
प्रारूप समिति के सदस्यों की संख्या सात थी, जो इस प्रकार है-1. डॉ० भीमराव अम्बेदकर (अध्यक्ष) 2. एन० गोपाल स्वामी आयंगर 3. अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर 4. कन्हैयालाल मणिकलाल मुन्शी 5. सैय्यद मोहम्मद सादूल्ला 6. एन० माधव राव (बी० एल० मित्र के स्थान पर) 7. डी० पी० खेतान (1948 ई० में इनकी मृत्यु के बाद टी० टी० कृष्णमाचारी को सदस्य बनाया गया)। संविधान सभा में अम्बेडकर का निर्वाचन प० बंगाल से हुआ था।
* 3 जून, 1947 ई० की योजना के अनुसार देश का बँटवारा हो जाने पर भारतीय संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 324 नियत की गयी, जिसमें 235 स्थान प्रान्तों के लिए और 89 स्थान देशी राज्यों के लिए थे।
> देश-विभाजन के बाद संविधान सभा का पुनर्गठन 31 अक्टूबर, 1947 ई० को किया गया और 31 दिसम्बर 1947 ई० को संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 299 थी, जिसमें प्रांतीय सदस्यों की संख्या 229 एवं देशी रियासतों के सदस्यों की संख्या 70 थी ।
प्रारूप समिति ने संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के बाद 21 फरवरी, 1948 ई० को संविधान सभा को अपनी रिपोर्ट पेश की।
सविधान सभा में संविधान का प्रथम वाचन 4 नवम्बर से 9 नवम्बर, 1948 ई० तक चला । संविधान पर दूसरा वाचन 15 नवम्बर, 1948 ई० को प्रारम्भ हुआ, संविधान का तीसरा बाचन 14 नवम्बर, 1949 ई० को प्रारंभ हुआ 2 संघ संविधान समिति जो 26 नवम्बर, 1949 ई० तक चला और संविधान सभा द्वारा संविधान को पारित कर दिया गया । इस समय संविधान सभा के 284 सदस्य उपस्थित थे।
सविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष, 11 महीना और 18 दिन लगे। इस कार्य पर लगभग 6.4 करोड़ रुपए खर्च हुए। संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिन बहस हुई। सविधान को जब 26 नवम्बर, 1949 ई० को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया, तब इसमें कुल भाग 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं। वर्तमान समय में संविधान में 25 भाग,395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं ।