हनीट्रेप में माहिर मानी जाती है खुफिया एजेंसी मोसाद

हनीट्रेप में माहिर मानी जाती है मोसाद

इजराइल और ईरान की जंग में एक नाम बार-बार आ रहा है और यह नाम है मोसाद। यह इजराइल की खुफिया एजेंसी है और कहा जा रहा है कि ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड के प्रमुख जनरल हुसैन सलामी, ईरानी सेना के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल मोहम्मद बायेरी और इगानी मिसाइल कार्यक्रम के प्रमुख सहित जो आठ वरिष्ठ अफसर मारे गए, उसमें मोसाद की खुफ़िया जानकारियों का ही हाथ था। ईरान के जिन कथित परमाणु ठिकानों पर सटीक निशाना लगाया गया, उसमें भी मोसाद के खुफिया एजेंटों ने मदद की थी। यह संगठन दुनिया की सबसे प्रभावशाली और गुप्त खुफिया एजेसियों में से एक माना जाता है, जो अपने साहसी ऑपरेशनों, हाई-प्रोफाइल टारगेट एलिमिनेशन और असाधारण नेटवर्किंग के लिए प्रसिद्ध है। यह एजेंसी इजराइली प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत आती है और उसका डायरेक्टर सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है।

मोसाद की स्थापना

इजराइल जिस तरह से अपने विरोधी देशों से घिरा है, उसके मदेनजर उसे एक दमदार खुफिया एजेंसी की जरुरत थी। इसलिए इजराइल के गठन के तुरंत बाद 13 दिसंबर 1949 में एक केन्द्रीय संस्थान के रूप में मोसाद की स्थापना हुई । इसे पहले ‘हग्गाना’ नाम से जाना जाता था। बाद में इसे मोसाद कहा गया, जिसका पूरा नाम है ‘सेंट्रल इस्टीट्यूट फॉर इटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी। मार्च 1951 में इसे पुनर्गठित किया गया और प्रधानमंत्र कार्यालय का एक हिस्सा बनाया गया। मोसाद को किलिंग मशीन भी कहा जाता हैं, क्योंकि यह इजराइल के विरोधियों को दुनिया के किसी भी कोने से खोज निकालती है।

 

कैसे काम करती है मोसाद ?

1. एजेंट नेटवर्किंगः मोसाद का सबसे शक्तिशाली हथियार है उसका इंटरनेशनल एजेंट नेटवर्क। ये एजेंट अलग-अलग देशों में रहते हैं और मुख्यतया वहीं के नागरिक या प्रवासी होते हैं। ये कारोबारी, पत्रकार, छात्र या कूटनीतिज्ञ के रूप में अपनी पहचान बनाते हैं। मोसाद इन एजेंटों को झूठ बोलने,जासूसी उपकरणों का इस्तेमाल करने और संकट में खुद को बचाने का गहन प्रशिक्षण देती है।

2. कवर ऑपरेशन्स: मोसाद के पास ‘मेट्जादा’ नामक यूनिट है, जो इजराइल विरोधी प्रभावी लोगों की हत्याएं करने का काम करती है। ये ऑपरेशन बेहद गोपनीय होते हैं और अक्सर विदेशी जमीन पर अंजाम दिए जाते हैं, बिना उस देश को बताए।

3. हनीट्रेप: खुफिया सूचनाएँं निकलवाने, फइल्स चुराने या टारगेट को ब्लैकमेल करने के लिए मोसाद हनीट्रेप का उपयोग करती है। हालाॉकि कई खुफ़िया एजेसियों का यह पसंदीदा तरीका होता है, लेकिन मोसाद इसमें माहिर मानी जाती है।

1. एडॉल्फ आइश्मैन का अपहरण

एडॉल्फ आइश्मैन नाजी का मुख्य युद्ध अपराधी था, जिसे यहूदियों की हत्या के लिए इजराइल जिम्मेदार मानता था।वह अजेटीना में छिपा था। साल 1960 में मोसाद उसे वहां से गुप्त रूप से पकड़कर इजराइल लाई और वहां मुकदमा चलाकर फांसी दी गई। यह ऑपरेशन मोसाद की ‘लॉन्ग-रीच क्षमता का प्रतीक बन गया।

2. म्यूनिख ओलिंपिक का बदला1972 के म्यूनिएख ओलंपिक में फिलिस्तीनी संगठन ‘ब्लैकसेप्टेंबर’ ने 11 इजराइली खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी।इस हत्याकांड का बदला लेने के लिए “ऑपरेशन रॉथ ऑफगॉड’ नाम से मिशन चलाया गया। हत्या करने वाले सदस्यों को मोसाद ने वर्षों तक ढूंढ-ढूंडकर मारा। यह अभियान 20 साल में पूरा हुआ। इसे सबसे लंबा प्रतिशोध ऑपरेशन माना गया।

3. ओसिराक परमाणु रिएक्टर की तबाही:

इसे 1981 में अंजाम दिया गया था। दरअसल, ओसिराक इराक की राजधानी बगदाद से 18 किमी दूर स्थित एक नाभिकीय अनुसंधान रिएक्टर था। इजराइल को डर था कि अगर इराकशपरमाणु बम बना लेता है तो उसका पहला निशाना इजराइल ही होगा। इजराइल के जेट बिना किसी विदेशी मदद के फ्लाइंग रेडा्स से बचकर उड़ान भरते हुए इराक पहुंचे। रिएक्टर पर सटीक बमवारी कर उसे पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। पूरी बमबारी 2 मिनट से भी कम समय में पूरी कर ली गई।

ईरानः कैमरे-अलार्म डिसेबल कर चुराए थे परमाणु दस्तावेज

मीडिया रिपोट्स की मानें तो इजराइल- ईरान में युद्ध की पटकथा जनवरी 2018 में ही लिख दी गई थी। जनवरी की एक रात मोसाद के एजेंटों ने तेहरान के बाहरी इलाके में स्थित एक खुफिया गोदाम में घुसकर ईरान के परमाणु दस्तावेज चुराए थे। वे दस्तावेज एक बड़े कमरे में रखे थे । 32 बड़ी-बड़ी तिजोरियों में रखे गए थे, जिनकी ऊंचाई 2.7 मीटर थी। ये तिजोरियां बॉल्ट, दो लेयर के मोटे लोहे के दरवाजे, अलार्म सिस्टम और कैमरे से लैस थीं। मोसाद के एजेंटों ने कैमरे और अलार्म निष्क्रिय कर तिजोरियों से तमाम फोल्डर, सीडी के ढेर, डीवीडी और कंप्यूटर डिस्क सब उड़ा लिए। रात में घुसकर सुबह पांच बजते-बजते मोसाद के सभी एजेंट गोदाम से निकल गए। मोसाद के एजेंटों ने जो दस्तावेज चुराए थे, उनमें 14 फोल्डरों में 55 हजार से अधिक पन्ने थे। इजराइल ने फारसी में लिखे गए इन दस्तावेजों का अनुवाद कराया तो पता चला कि ईरान सालों से गुप्त परमाणु परियोजना में लगा था।

( मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार)

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