भारत की जलवायु(Climate)
भारत की जलवायु(Climate)
तापमान, वायुदाब और आर्द्रता जलवायु के प्रमुख तत्व हैं। किसी देश की जलवायु के अध्ययन के लिए इन तीन प्रमुख तत्वों की जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है। जलवायु के तत्व देश के निवासियों के रहन-सहन, व्यवसाय,क्रिया-कलापों
को भी विशेष रूप से प्रभावित करते हैं और किसी देश, प्रदेश तथा स्थान की जलवायु अनेक कारकों जैसे- भूमध्य रेखा से दूरी, सागरीय तट से दूरी, समुद्र तट से ऊँचाई, उच्चावच, पर्वतीय स्थिति, धरातलीय पर्तने तथा उनकी दिशा आदि पर निर्भर रहती है।
देश की विशालता एवं धरातलीय विविधता के कारण भारत में जलवायु सम्बन्धी अनेक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। इन्हें देखकर अनेक विद्वानों ने भारत को अनेक जलवायु वाला देश माना है। क्लेनफोर्ड के अनुसार- “हम भारत की जलवायुओं (Climates) के विषय में तो कह सकते हैं, जलवायु के विषय में नहीं, क्योंकि स्वयं विश्व में भी भारत से अधिक जलवायुवीय विशेषताएँ नहीं मिलती हैं।”
भारत में जलवायुवीय (Climatic) विभिन्नताएँ भारत की स्थानीय परिस्थितियों के कारण होती है। इनके अतिरिक्त भारत की जलवायु पर कुछ बाह्य कारकों का प्रभाव भी पड़ता है, जो अग्रलिखित हैं।
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
(Affecting Factors of Indian Climate)
1. भूमध्य रेखा से दूरी – जो स्थान भूमध्य रेखा के जितना पास होता है, वहाँ पर तापमान उतना ही अधिक होता है। दक्षिणी भारत के इलाकों में तापमान ऊँचे इसलिए रहते हैं कि वे भूमध्य रेखा के समीप हैं।
2. समुद्र तट से ऊँचाई – जो स्थान ऊँचाई पर स्थित होते हैं, उनका तापमान कम और जो समुद्र तल के समीप होते हैं उनका तापमान अपेक्षाकृत ऊँचा रहता है। शिमला, मंसूरी, दार्जिलिंग- ये सभी ऊँचाई पर स्थित होने के कारण गर्मियाँ
में भी कम तापमान रखते हैं। जैसे-जैसे हम ऊँचाई पर जाते हैं ठण्ड अधिक होती जाती है।
3. समुद्र तट से दूरी – समुद्र तट से दूर जाते हुए समुद्र का सरकारी प्रभाव घटता जाता है। सम्यी की जलवायु सम है और दिल्ली की विषम है। समुद्र तट से बहुत दूर चले जाने पर तो समुद्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है और महाद्वीप का अपना प्रभाव उभर आता है। महाद्वीपीय जलवायु विषम जलवायु होती है।
4.भूमि का ढाल – सूर्य के सम्मुख ढालों पर विपरीत ढालों की अपेक्षा तापमान ऊँचे रहते हैं, क्योंकि उन ढालों पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं। हिमालय की उत्तरी ढालें अपेक्षाकृत अधिक ठण्डी हैं।
5.समुद्री धाराएँ – भारत के तट-प्रदेश गर्म धाराओं से प्रभावित रहते हैं। यही कारण है कि तटीय नगरों में तापमान ऊँचे रहते हैं।
6.प्रचलित हवाएँ – भारतीय जलवायु मानसून पवनों से प्रभावित रहती हैं। आगे बढ़ती मानसून पवनें सागर के ऊपर से गुजरते समय अपने अन्दर नमी ले लेती हैं और भारत के काफी भागों में वर्षा बरसाती हैं। शीत ऋतु में मानसून लौटती
वाली यह हवाएँ प्रायः सूखी होती हैं। यह पवन केवल मद्रास तट पर वर्षा पाता है, क्योंकि रास्ते में बंगाल की खाड़ी के ऊपर से इन्हें गुजरने का मौका मिल जाता है। इस तरह किसी देश की जलवायु वहीं पर चलने वाली हवाओं पर निर्भर भी करती है।
7.भूमि – पथरीली व रेतीली भूमि विषम जलवायु रखती है। राजस्थान रेतीला क्षेत्र है इसलिए यहाँ की जलवायु विषम है। यहाँ गर्मियों में सख्त गर्मी और सर्दियों में कठोर शीत रहती है।
8.वन – वन के नजदीक के क्षेत्रों में जलवायु आर्द्र मिलती है क्योंकि वन वायुमण्डल में नमी उत्पन्न करते हैं। वन वर्षा कराने में भी मदद करते हैं।
9.पर्वत – भारतीय जलवायु निम्नलिखित तरीको से प्रभावित होती है-
(i) हिमालय उत्तर से आने वाली हवाओं से भारत की रक्षा करता है।
(ii) भारत में होने वाली अधिकांश वर्षा पर्वतीय प्रकार की है। पर्वतों की स्थिति ही वर्षा का वितरण निर्धारित करती है।
(iii) अरावली पर्वत के प्रचलित हवाओं के समान्तर होने के कारण ही राजस्थान प्रायः सूखा पड़ा रहता है। अतः, इसमें स्पष्ट है कि पर्वतों का आकार और पर्वतों का फैलाव हवाओं पर निर्भर करते हुए किसी देश में होने वाली वर्षा की मात्रा निश्चित करते हैं।
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