भविष्य की तैयारी : स्ट्रीट लाइट के नीचे छात्र कर रहे ग्रुप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी
बिहार में सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र पूरी शिद्दत से भविष्य बनाने में लगे हैं । मोतिहारी के गांधी मैदान में डीएम कोठी के समीप प्रतियोगी छात्र रात के अंधेरे में वेपर लाइट में मच्छरदानी के अंदर ग्रुप डिस्कशन करते हैं। ताकि शहर के शोरगुल से दूर स्वच्छ वातावरण में पूरे मनयोग से पढाई की जा सके। गांधी मैदान में 10-10 छात्रों की टीम ग्रुप बनाकर मच्छरदानी लगाकर पढाई करती है। छात्र आपस में सिलेबस के अनुसार ग्रुप डिस्कशन करते हैं और ग्रुप बनाकर प्रश्नों का सेट बनाते हैं।इसमें बिहार पुलिस कांस्टेबल, दारोगा, शिक्षक, वनरक्षक जैसी परीक्षाओं के प्रतियोगी छात्र हैं।
वे परीक्षा पैटर्न, पाठ्यकम और पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों पर आधारित प्रश्न तैयार करते हैं ताकि।वे अपनी तैयारी का मूल्यांकन कर सकें। गांधी।मैदान में रात के अंधेरे व सुनसान में परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र पूर्वी व पश्चिम चंपारण के विभिन्न गांवों के हैं। शाम को 4 से 6 बजे तक गांधी मैदान में सभी छात्र एकत्र होकर प्रश्नों काससेट बनाते हैं। जिसके बाद शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक ग्रुप डिस्कशन होता है। जो छात्र जिस विषय में मजबूत है, वह दूसरे छात्रों को विषय से संबंधित जानकारी साझा करता है। छात्रों ने बताया कि जब तक नौकरी में सिलेक्शन नहीं हो जाता, सेट व ग्रुप डिस्कशन सालों भर चलता है।
आपस में चंदाकर मच्छरदानी खरीदी….
संग्रामपुर के सत्यम ने बताया कि शाम व रात में मच्छर बहुत होते हैं। इससे पढ़ाई में परेशानी होती थी। आपस में 50-50 रुपए चंदा कर मच्छरदानी, बैठने के लिए प्लास्टिक सीट की व्यवस्था की गई। गांधी मैदान में सभी जगह वेपर लाइट की सुविधा नहीं है। इसलिए डीएम कोठी के समीप मच्छरदानी को पेड़ व साइकिल में बांधकर पढ़ाई की जाती है। अब ठंड के लिए छात्र चंदा कर कंबल का इंतजाम कर रहे हैं। ■■■■
प्रेरक प्रसंग
महानता को पाने का मानचित्र रचा : महान अमेरिकी लेखक-वैज्ञानिक बेंजामिन
फ्रैंकलिन ने अपने जीवन में कैसे दिशा पाई, कैसे उन्होंने स्वयं पर कार्य किया और सुधार लाए, इसकी कहानी हम सभी के लिए प्रेरणास्पद है।
एक युवा के रूप में बेंजामिन फ्रैंकलिन तेज- तर्रार, कल्पनाशील और महत्वाकांक्षी तो थे, लेकिन उनमें अनुशासन की कमी थी। वे भली प्रकार से जानते थे कि उन्हें एक बेहतर मनुष्य बनना है, पर उनकी जिंदगी में दिशा नहीं थी- प्रतिभा थी, पर कोई मानचित्र नहीं था। 1726 की एक शाम समुद्री यात्रा से लौटते समय फ्रैंकलिन अकेले बैठे सोच रहे थे। उनके मन में एक प्रश्न उठ रहा था कि कोई मनुष्य वास्तव में सद्गुणी कैसे बनता है? दुनिया को दोष देने की बजाय उन्होंने स्वयं की परीक्षाहलेनी शुरू की। उन्होंने ऐसे 11 गुणों की सूची बनाई, जो उन्हें बेहतर इंसान बना सकते थे : संयम, मौन, व्यवस्था, निश्चय, मितव्ययिता, परिश्रम, सत्यनिष्ठा, न्याय, स्वच्छता, शांतिहऔर विनम्रता। लेकिन उन्होंने इन सबको एक साथ साधने की कोशिश नहीं की। वे हर सप्ताह एक ही गुण चुनते और पूरे ध्यान से उसका अभ्यास करते। एक छोटी-सी तालिका में वे अपनी हर चूक को एक बिंदु से चिह्नित करते। उनका लक्ष्य पूर्णता नहीं, बल्कि निरंतर सजग प्रगति थी।सयह तालिका फ्रैंकलिन के लिए एक प्रेरणा थी। तालिका का हर बिंदु उनके लिए अपराध- बोध नहीं प्रगति का प्रमाण था। धीरे-धीरे उनमेंहअद्भुत परिवर्तन दिखाई देने लगे।
एक समय में एक सुधार…
मौन के अभ्यास से उनकी वाणी तीक्ष्ण हुई, परिश्रम ने उन्हें अधिक उत्पादक बनाया,हसत्यनिष्ठा और न्याय ने उनके संबंध सुधारे, व्यवस्था और शांति ने उनका जीवन संतुलित किया। फ्रैंकलिन की यह कहानी हमें याद दिलाती।है कि महानता आकस्मिक प्रतिभा से नहीं आती। वह आती है छोटी-छोटी आदतों को निरंतर सुधारने से। उनके जीवन मेंयह शुरू हुआ थासकेवल एक छोटी-सी नोटबुक, एक समय मेंसएक सुधार के निश्चय से। ■■■■