गेटवे ऑफ़ इंडिया : जॉर्ज पंचम के भारत आने पर बनाया गया था

मुंबई और देश के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों में एक गेटवे ऑफ इंडिया का इतिहास 20वीं सदी की शुरुआत से जुड़ा है। उस दौर में ब्रिटिश साम्राज्य अपनी ताकत के चरम पर था। किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मेरी जब 2 दिसंबर 1911 को
बॉम्बे पहुंचे, तो उनकी यात्रा को यादगार बनाने के लिए इस स्मारक के निर्माण का फैसला हुआ। साथ ही यह स्थान ब्रिटिश गवर्नरों और वायसराय के आधिकारिक आगमन स्थल के तौर पर भी इस्तेमाल होना था। मार्च 1911 में तत्कालीन बॉम्बे के गवर्नर सर जॉर्ज क्लार्क ने इसकी नींव रखी। डिजाइन जॉर्ज विटेट ने तैयार किया, जिसे अगस्त 1914 में मंजूरी मिली। निर्माण स्थल अपोलो बंदरगाह था, इसलिए पहले जमीन तैयार करने का काम हुआ जो 1919 में खत्म हुआ। 1924 में इसका निर्माण पूरा हुआ। निर्माण की कुल लागत 21 लाख रुपये रही। इस लागत का भुगतान अंग्रेजी शासन ने किया।

तत्कालीन वायसराय रूफस आइजेक ने 4 दिसंबर 1924 को इसका उद्घाटन किया। इसके बाद ब्रिटेन से आने वाले प्रत्येक अफसर का इसी पर स्वागत किया जाता था। इमारत पीले बेसाल्ट पत्थरों से बनी है जो स्थानीय तौर पर मिले थे, जबकि झरोखे के लिए पत्थर ग्वालियर से मंगाए गए थे। मुख्य मेहराब 85 फिट ऊंचा है। इसके ऊपर 48 फिट चौड़ा और 83 फिट ऊंचा गुंबद बना है। आजादी के बाद यह ब्रिटिश शासन की विदाई का प्रतीक बन गई। 1948 में अंतिम ब्रिटिश टुकड़ी यहाँ से देश छोड़कर गई। इसके बाद यह इमारत 26/11 जैसे कई ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी बनती रही।

■■■■

You may also like...