जातिगत जनगणना: क्या है मायने

इस समय देश में जातिगत जनगणना का मुद्दा चर्चा में है। बिहार में जातिगत सर्वे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। हलफनामे के पैरा 5 में लिखा था कि ‘सेंसस एक्ट 1948’ के तहत केंद्र के अलावा किसी और सरकार को जनगणना या इससे मिलती -जु्लती प्रक्रिया को अंजाम देने का अधिकार नहीं है। हालांकि, शाम तक इसमें इस हिस्से को हटाने के नए हलफनामे दायर किया। इसमें कहा गया कि ‘पैरा 5 अनजाने में शामिल हो गया था। नया हलफनामा संवैधानिक और कानूनी स्थिति साफ करने के लिए दायर किया है।’ ऐसे में यह जोजना रोचक बन गया है कि आखिर जातिगत गणना का पूरा मतलब क्या है, इसके फायदे क्या है और इसके ऐतिहासिक संदर्भ क्या है।

जातिगत जनगणना (जिसके सर्वे नाम दिया गया है )के पक्ष में अकेला राज्य नहीं है। इससे पहले साल 2014 में कर्नाटक की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सामाजिक एवं शैक्षणिक सर्वे के नाम पर जातिगत गणना करवाने की पहल की थी। यह सर्वे अप्रैल 2014 से मई 2015 के बीच करवाया गया था। हालांकि इसकी रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की जा सकी है। 2021 में तेलंगाना राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी राज्य में जातिगत गणना करवाने का फैसला किया, लेकिन इस पर आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी तरह ओडिशा में पिछले वर्ग की जातियों की शैक्षणिक व सामाजिक स्थिति का आंकलन करने के लिए एक सीमित सर्वे हो चुका है।

जातिगत जनगणना करवाने के समर्थकों का कहना है कि व्यापक व सटीक जातिगत जानकारी उपलब्ध होने से विकास कार्यक्रमों और कल्याणकारी योजनाओं को सही दिशा दी जा सकती है। जातिवार आंकड़ों से जातिगत विषमता की वास्तविक तस्वीर भी सामने आएगी और इससे सामाजिक समानता के आंकलन न्यायसंगत बन सकेगा।

विरोधियों का कहना है कि जातिगत जनगणना सामाजिक पहचान को बढ़ाएगा। इससे समाज में द्वेष और टकराव पैदा होगा। हालांकि, सामाजिक बदलाव पर कार्य करने वाले समाजशास्त्रीयों का कहना है कि यह तर्क भ्रामक, सो साल पुराना है और आजादी के बाद जातिगत गणना टालने के लिए अवसर इसी का सहारा लिया गया।

142 साल पहले हुई थी पहली जातिगत गणना

1881 देश में पहली बार जातिगत जनगणना को भी गिना गया।

1881 से लेकर 6 लगातार बार जातिगत जनगणना हुई।

1931 में हुई जनगणना को आंकड़े जारी किए गए।

1941 में भी जातिगत जनगणना हुई, लेकिन आंकड़े जारी नहीं हुए।

1951 से जातिगत जनगणना बंदा बस, एस सी/एस टी
की गणना होती है।

भारत में जनगणना की शुरुआत वायसराय लॉर्ड मेयो के
काल में 1872 में हुई थी। हालाँकि पहली पूर्ण जनगणना का प्रारंभ 1881 में माना जाता है। तब से अब तक 16 बार जनगणना हो चुकी है। अंतिम जनगणना 2011 में करवाई गई थी। 1931 तक जितनी भी जनगणनाएँ हुई, उनमें प्रत्येक में जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज किया गया। लेकिन आजादी के बाद भारत में जब 1951 में पहली बार जनगणना की गई, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों की जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया। यानी आज़ाद भारत में जातिवार जनगणना को छोड़ दिया गया।

1980 के दशक में ऐसे कई राजनीतिक दलों का उदय हुआ, जिनकी राजनीति जाति पर आधारित थी। इन दलों ने राजनीति में ऊँची जाति के वर्चस्व को चुनावी देनों के साथ साथ पिछड़े वर्ग की जातियों को आरक्षण दिए जाने को लेकर अभियान शुरू कर दिया। चूँकि जातिगत जनगणना का मामला अपेक्षा से जुड़ चुका था, इसलिएसमय-समय पर राजनीतिक दल इसकी मांग उठाने लगे।
आखिरकार 2010 में केंद्र की तात्कालीन कांग्रेस सरकार को इसके लिए राजी होना पड़ा। 2011में आमजन गणना के इतर सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) करवाई गई।

2011 की सामाजिक- आर्थिक, जनगणना के तहत केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में तो आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने शहरी में सर्वे करवाया। जिसके केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय को सौंप दिया गए, जिसने आंकड़ों को व्यक्तिगत करने के लिए एक विशेष समूह बनाया। लेकिन इसके आंकड़ों को इस आधार पर सार्वजनिक नहीं किया गया, क्योंकि सरकार के अनुसार, इनमें काफी अधिक तकनीकि खामियां पाई गई।

भारत की जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आँकड़े तो आते हैं, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल जातियों के नहीं। ओबीसी के जो आँकड़े उपलब्ध है, वे 1931 के है। इस जनगणना के अनुसार उस समय पिछली जातियों की आबादी करीब 52 फीसदी थी। लेकिन इन 90 सालों में आकडे़ एकदम बदल चुके है। 1931 की जनगणना में देश में कुल जातियों की संख्या 4,147 थी, जबकि 2011 में आम जनगणना में इन जो सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) कराई गई, उसमें जातियों की संख्या 46 लाख से भी ऊपर गई। यह इस दौरान राजनैतिक फायदा उठाने के लिए समय समय पर कई जातियों ने ओबीसी में शामिल कर लिया गया। ऐसे में ओबीसी की आबादी 52 फीसदी से कितनी बढ़ी, इसका सटीक आंकलन केवल जातिगत जनगणना से ही संभव है।
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