भारत के नजरिये से जी-20 समिट की सबसे बड़ी उपलब्थि इंडिया-मिडिला ईस्ट-यूरोप इकोनामिक कॉरिडोर के निर्माण पर सहमति रही है। इस कॉरिडोर के निर्माण से भारत के लिए मध्य पूर्व और यूरोपीय देशों तक एक नया ट्रेड रूट खुल जाएगा। इसमें भारत से बंदरगाहों के जरिए सऊदी अरब (व मध्य पूर्व ) तक कनैक्टिविटी रहेगी। इसके बाद रेल नेटकर्क के जरिए मध्य पूर्व को यूरोपीय देशों तक जोड़ा जाएगा। हालांकि अभी इस रूट को लेकर केवल एमओयू पर दस्तखत हुए हैं और विस्तृत जानकारी का इंतजार किया जा रहा है, लेकिन माना जा सकता है कि इस कॉरिडोर के बनने से भारत से यूरोप तक माल पहुंचाने में करीब 40 प्रतिशत समय की बचत होगी और इस तरह परिवहन पर होने वाला खर्च भी बचेगा। वैसे, भारत का मध्य पूर्व तथा यूरोपीय देशों के साथ व्यापारिक संबंध कोई आज से नहीं है।
इन 5 प्रमुख मागों से होता था व्यापार
रेशम मार्ग
यह परस्पर जुड़े व्यापार मागों का एक विशाल नेटवर्क था, जो चीन, भारत से लेकर यूरोप तक फैला हुआ था। भारतीय व्यापारी यूरोपीय व्यापारियों के साथ रेशम,मसाले और रत्नों का व्यापार इसी रूट के जरिए करते थे। इसका ज्यादातर हिस्सा जमीन से होकर गुजरता था, जो करीब 6,500 किलोमीटर लम्बा था ।
रोमन व्यापार मार्ग
रोमन साम्राज्य के दौरान यह भारत को भूमध्य सागर से जोड़ने वाला एक सीधा समुद्री मार्ग था। रोमन व्यापारी भारत के साथ भारतीय वस्त्रों, रत्नों और मसालों जैसी वस्तुओं का व्यापार करने को लालायित रहते थे। मिस्र में अलेक्जेंड़रिया और इटली में ओस्टिया के बंदरगाह इस व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र थे।
लाल सागर मार्ग
भारतीय सामान लाल सागर मार्ग से भी यूरोप पहुंचाया जाता था। भारत से माल लेकर व्यापारी आम तौर पर अदन(वर्तमान में यमन) के बंदरगाह पर पहुंचते थे और फिर वहां से युरोप के अन्य देशों तक पहुंचाया जाता था।
हिंद महासागर मार्ग
हिंद महासागर से होकर गुजरने वाला समद्री मार्ग भारत और युरोप के बीच व्यापार के लिए काफी महत्वपूर्ण था। इस समुद्री मार्ग से भारतीय व्यापारियों की विभिन्न यूरोपीय बंदरगाहों तक सीधे पहुंच थी। इस रूट के जरिए काली मिर्च, दालचीनी और लॉंग के साथ ही कपड़ा और कीमती रत्नों का व्यापार किया जाता था।
फारस मार्ग
भारत और यूरोप के बीच कुछ व्यापार फारस (आधुनिक ईरान) के रास्ते भी होता था। ईरान तक परिवहन सड़क मार्ग से होता था और उसके आगे समुद्र मार्ग से। इस मार्ग से वस्त्रों, मसालों और कीमती रत्नों का आदान-प्रदान होता था।
यूरोप और मध्य पूर्व से भारत के व्यापार का इतिहास
पहली सदी में व्यापार
रोमन साम्राज्य ने पहली सदी में सबसे पहले प्राचीन भारत के साथ व्यापारिक संबंध कायम किए। रोमन साम्राज्य मसालों, कीमती रत्न-आभूषणों और कपड़ों का भारतससे आयात करते थे। ज़्यादातर व्यापारहसिल्क रोड के जरिए होता था।
मध्यकाल में व्यापार
13वीं-14वीं सदी में बाइज़ेंटाइन साम्राज्य (वर्तमान तुर्किये) और ऑटोमन साम्राज्य (मौजूदा दक्षिण-पूर्व यूरोप से पश्चिम एशिया तक विस्ताारित) जैसे विशालकाय राज्य स्थापित हुए थे, जिन्होंने भारत के साथ व्यापार में दिलचस्पी दिखाई।
स्वेज नहर पर निर्भरता कम होगी
अभी अंतरर्राष्ट्रीय व्यापार का 10 फीसदी हिस्सा स्वेज नहर पर निर्भर है। यहां छोटी- सी दिक्कत आने से भी बड़ी चुनोती पैदा हो जाती है। नए प्रोजेक्ट से वैश्विक व्यापार के लिए नया शिपिंग रूट उपलब्ध हो जाएगा। अभी भारत या इसके आसपास मौजूद देशों से निकलने वाले कंटेनर स्वेज नहर से होतेहहुए भूमध्य सागर और फिर यूरोपीय देशों तक पहुंचते हैं। इस नए कॉरिडोर के बनने से भविष्य में ये कंटेनर समुद्र से दुबई पहुंचेंगे और फिर दुबई से इज़राइल स्थित हाइफ़ा बंदरगाह तक ट्रेन से जा सकेंगे।
वास्को डी-गामा का दौर
15वीं सदी में पुर्तगाली यात्री वास्को डी-गामा अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत पहुंचा। इससे भारत के लिए सीधे समुद्री रास्ता खुल गया, जिस वजह से पुर्तगालियों, स्पेनिश और डच व्यापारियों की भारत तक पहुंच बढ़ी। ईस्ट इंडिया कंपनी 1608 में पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी का जहाज सूरत पहुंचा। 1615 में कंपनी की ओर से थॉमस रो मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में पहुंचा और व्यापार के लिए अनुमति मांगी। इससे कंपनी को सूरत वसअन्य जगहों पर व्यापार की अनुमति मिली।
इस कॉरिडोर के रणनीतिक मायने?
प्रस्तावित नया कॉरिडोर व्यापारिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन साथ ही इसके रणनीतिक मायने भी हैं। इसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की काट माना जा सकता है। साल 2013 में चीन ने यह प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके तहत चीन कारोबार के लिए पूरी दुनिया में सड़कों, रेलवे लाइनों और समुद्री रास्तों का जाल बिछाना चाहता है। इसलिए इंडिया- मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर को चीन के बीआरआई का सटीक जवाब माना जा रहा है।
कहाँ से कहाँ तक ? दो अलग-अलग कॉरिडोर बनेंगे। पहला, पूर्वी कॉरिडोर भारत को खाड़ी से जोड़ेगा। दूसरा उत्तरी कॉरिडोर खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ेगा। इस तरह दक्षिण एशिया से यूरोप तक व्यापार आसान हो सकेगा।
किन्हें होगा फायदा? भारत, यूएई, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली व अमेरिका सहित सात देशों व यूरोपीय यूनियन ने एमओयू पर दस्तखत किए हैं। वैसे अमेरिका इस रूट पर नहीं है, लेकिन उसे परोक्ष रूप से फायदा होगा। इस प्रोजेक्ट का फायदा इज़राइल और जॉर्डन को भी मिलेगा।
क्या शामिल रहेगा?
इस कॉरिडोर में रेल और बंदरगाहों से जुड़े नेटवर्क का निर्माण किया जाएगा, जिसमें सातों देशों ‘पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट’ के तहत निवेश करेंगे। इसमें यूरोपीय यूनियन अलग से निवेश करेगा।
कितना समय बचेगा?
भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40 फीसदी समय की बचत होगी। अभी भारत से किसी भी कार्गो की शिपिंग से जर्मनी पहुंचाने में 36 दिन लगते हैं। रूट से 14 दिन की बचत हो सकेगी।
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