नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की जीवनी
नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की जीवनी
कैलाश सत्यार्थी का भारत का वह नाम है, जो पिछले लगभग 60 वर्षों से बचपन को बचाने के लिए दिन-रात एक किए हुए है। और यह उनकी अथक मेहनत का ही परिणाम है कि वे अब तक 80 हजार से अधिक बच्चों का जीवन बचा चुके हैं। उनके इस जीवट को सलाम करते हुए उन्हें मलाला यूसुफजई के साथ 2014 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गयी है।
जन्म एवं बचपन:
कैलाश सत्यार्थी का जन्म: 11 जनवरी 1954 को विदिशा, मध्य प्रदेश में हुआ था। वे बचपन से ही दूसरों के प्रति बेहद सहयोगी रहे और हमेशा दूसरों की मदद करते रहे। जब वे 11 वर्ष के थे, तब उन्होंने महसूस किया कि बहुत से बच्चे किताबें न होने के कारण पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं। इसलिए उन्होंने एक ठेला लेकर पास होने वाले बच्चों की किताबें एकत्रित कीं और उन्हें जरूरतमंदों तक पहुंचाई।
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जेपी आंदोलन और कैलाश:
23 वर्ष की अवस्था में कैलाश की शादी हो गयी। उस समय देश में जेपी आंदोलन का दौर था। उनके अनेक साथी चुनाव लड़कर राजनीति में उतर गये। कैलाश पर भी इसका दबाव डाला गया, लेकिन वे कम उम्र होने के कारण इससे बच गये। लेकिन इसके पीछे मुख्य वजह यह भी थी कि उन्हें राजनीति में जरा भी रूचि नहीं थी। उनका शुरू से ही मानना था कि समाज में बदलाव के लिए राजनीति नहीं समाजसेवा की आवश्यकता है।
‘संघर्ष जारी रहेगा’ पत्रिका की शुरूआत:
कैलाश ने समाजसेवा की भावना को धार देते हुए अपनी-अपनी आवाज जन-जन तक पहुंचाने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने ‘सघर्ष जारी रहेगा’ नामक पत्रिका की शुरूआत की। इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने दबे-कुचले लोगों और बंधुआ मजदूरों की पीड़ा को आवाज दी और समाज का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया।
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एक बड़ी कामयाबी:
एक दिन उन्हें वासल खान नामक व्यक्ति ने बताया कि पंजाब के एक ईंट भट्ठा पर बच्चों से बंधुआ मजदूरी कराई जा रही है और उन्हें बेचने की तैयारी चल रही है। यह सुनकर कैलाश का खून खौल उठा। वे अपने कुछ साथियों और एक फोटोग्राफर को साथ लेकर ईंट भट्ठे पर पहुंच गए और चौकीदार को डरा-धमका कर बंधुआ मजदूरों को ट्रक में बैठा लिया। लेकिन तभी वहां पर भट्ठा मालिक पुलिस के साथ आ धमका। उसने कैलाशा वे उनके साथियों केा बुरा भला कहकर वहां से भगा दिया। इस खींच-तान में उनके साथ गये कैमरामैन का कैमरा भी टूट गया। लेकिन किसी तरह से उसकी तीन रील सुरक्षित बच गयीं। लेकिन इसके बाद भी कैलाश हिम्मत नहीं हारे। उन्होंने उन फोटुओं को अखबारों में छपने के लिए दे दिया और स्वयं उच्च न्यायालय चले गये। अदालत ने उनकी चिंताओं को समझा और 48 घंटे के भीतर उन बंधुआ मजदूरों को आजाद करने का हुक्म दिया।
बंधुआ मुक्ति मोर्चा का गठन:
कैलाश सत्यार्थी ने इस घटना से उत्साहित होकर बचपन बचाओ आंदोलन की शुरूआत की। इसके लिए उन्होंने स्वामी अग्निवेश के साथ मिल कर ‘बंधुआ मुक्ति मोर्चा’ का गठन किया। इस संस्था के लगभग 20 हजार सदस्य हैं, जो कालीन, कांच, ईंट भट्ठों, पत्थर खदानों, घरेलू बाल मजदूरी तथा साड़ी उद्योग जैसे खतरनाक उद्योंगों में काम करने वाले बच्चों को मुक्त कराता है। वर्तमान में देश भर के 12 प्रांतों में बचपन बचाओ आंदोलन की राज्य इकाईयां हैं। कैलाश सत्यार्थी ने बचपन बचाओ आन्दोलन को सफल बनाने के लिए ‘बाल मित्र ग्राम’ की परिकल्पना की है। इसके तहत किसी ऐसे गांव का चयन किया जाता है जो बाल मजदूरी से ग्रस्त हो। बाद में उस गांव से धीरे-धीरे बाल मजदूरी समाप्त की जाती है तथा बच्चों का नामांकन स्कूल में कराया जाता है। इसके बाद इन बच्चों की ‘बाल पंचायत’ का गठन किया जाता है। शहरों में यह योजना ‘बाल मित्र वार्ड’ के नाम से संचालित हो रही है।
वैश्विक अभियान:
बाल मजदूरी के खिलाफ चलने वाले अपने अभियान को कैलाश सत्यार्थी ने देश के साथ-साथ विदेशों में भी फैलाया है। उन्होंने 108 देशों के 14 हजार संगठनों के साथ मिलकर ‘बाल मजदूरी विरोधी विश्व यात्रा’ आयोजित की, जिसमें लाखो लोगों ने शामिल होकर बाल मजबूरी समाप्त करने का प्रण लिया। उनके इस प्रयास स्र पेभावित होकर सार्क के सदस्य देशों ने बाल मजदूरी पर एक कार्यदल बनाने की घोषणा की है। इस समय वे ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ (बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं।
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राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार:
पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रहे कैलाश सत्यार्थी को समाज सेवा के साथ-साथ भोपाल गैस त्रासदी में राहत अभियान चलाने के लिए भी जाना जाता है। उन्हें 1994 में जर्मनी का ‘द एयकनर इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड’, 1995 में अमरीका का ‘रॉबर्ट एफ़ कैनेडी ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड’, 2007 में ‘मेडल ऑफ़ इटेलियन सीनेट’ और 2009 में अमरीका के ‘डिफ़ेंडर्स ऑफ़ डेमोक्रेसी अवॉर्ड’ सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलने की खबर ने सभी भारतीयों को गर्व से भर दिया है।