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पेपर आधारित टेस्ट से इबोला और डेंगू का पता चलेगा

बोस्टन: वैज्ञानिकों ने पेपर आधारित एक उपकरण विकसित किया है जो मरीज की बीमारी के आधार पर रंग बदलता है। यह इस पर निर्भर करता है कि क्या उसे इबोला, पीत ज्वर या डेंगू हुआ है। कम संसाधनों में इससे चंद मिनटों में बीमारी का पता चल सकेगा।
अध्ययनकर्ता किंबरले हमाद शेफरली ने कहा कि वायरल संक्रमण के निदान की दिशा में तकनीकी विशेषज्ञता और महंगे उपकरणों की जरूरत होती है। उन्होंने कहा, ‘खास तौर पर, लोग पीसीआर और ईएलआईएसए कराते हैं, यह बहुत सटीक होता है लेकिन उन्हें नियंत्रित लैब स्थिति की जरूरत होती है।’ पॉलीमरेस चेन रिएक्शन (पीसीआर) और एंजाइम से जुड़े इम्मयूनोसोरबेंट एस्से (ईएलआईएसए) बायोएसेस है जो क्रमश: सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर पैथोजेंस की पड़ताल करता है।
गर्भ की जांच की तरह ही रंग बदलने वाला पेपर उपकरण काम करता है। हमाद शेफरली ने कहा, ‘यह पीसीआर और ईएलआईएसए के बदले में नहीं है क्योंकि हम उसकी सटीकता का मिलान नहीं कर सकते। लेकिन यह एक पूरक तकनीक है जहां पानी या बिजली की जरूरत नहीं होती।’

इंटरनेट पर हिंदी सामग्री की खपत 94% की दर से बढ़ रही है: गूगल

बेंगलुरु : गैर महानगरीय इलाकों में इंटरनेट उपयोक्ताओं की जरूरत को पूरा करने के लिए सर्च इंजिन कंपनी गूगल अब अपने मैप्स व सर्च जैसी सेवाओं का इस्तेमाल हिंदी व भारत की क्षेत्रीय भाषाओं में बढाना चाहती है।
गूगल इंडिया के विपणन निदेशक संदीप मेनन ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, एक अनुमान के अनुसार 50 करोड़ हिंदीभाषी हैं जबकि हिंदी में विकीपेडिया आलेख केवल 1,00,000 है। भारत में इंटरनेट जनसंख्या बहुत तेजी से बढ रही है। यह 2011 में 10 करोड़ थी जो अब 30 करोड़ है और यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट आधार हो गया है। यह संख्या 2017 में 50 करोड़ होने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि भारत में पांच में से एक (21 प्रतिशत) लोग इंटरनेट हिंदी में देखना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा कि देश में हिंदी सामग्री की खपत सालाना आधार पर 94 प्रतिशत बढी है। गूगल ने हाल ही में एक नयी सुविधा ‘इंस्टेंट ट्रांसलेशन’ शुरू की थी। इसके जरिए प्रिंटेड टेक्स्ट का ट्रांसलेशन किया जा सकता है।

बच्चों में गणित कौशल का विकास करती है फिजिकल फिटनेस

न्यूयॉर्क: अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे गणित के धनी हों तो उन्हें खेलने का समय जरूर दें। शोधकर्ताओं ने जाना है कि फिटनेस से मस्तिष्क संरचना का विकास होता है जो गणित कौशल को बढ़ाता है और इससे संबंधित उपलब्धियों में योगदान देता है। शोध दर्शाता है कि जो बच्चे एरोबिकली फिट हैं उनके मस्तिष्क में मस्तिष्क की कोशिकाओं की सबसे बाहरी परत सेरेब्रम (ग्रे मेटर) बहुत ही पतली होती है जो गणित के बेहतर प्रदर्शन का एक मुख्य कारक होती है।
अमेरिका में इलिनॉय यूनिवर्सिटी में प्रमुख शोधकर्ता लौरा चैड्डोक-हेमैन ने कहा, ग्रे मैटर का पतला होना पूर्ण रूप से गठित स्वस्थ्य मस्तिष्क का रूप है। इसका मतलब है कि मस्तिष्क अनावश्यक संपर्को को समाप्त कर आवश्यक संपर्को को मजबूत करता है। शोधकर्ताओं ने 9 और 10 साल के 48 बच्चों पर अध्ययन किया। इन सभी बच्चों का ट्रेडमिल पर फिटनेस परीक्षण हुआ। इन सभी में आधे बच्चे एरोबिक फिटनेस के लिए 70 प्रतिशत तक फिट थे और आधे बच्चे 30 प्रतिशत तक फिट थे।
शोधकर्ताओं ने एमआरआई का उपयोग कर बच्चों के गणित, पढ़ने तथा वर्तनी के कौशल का परीक्षण कर उनके मस्तिष्तक को जांचा। एरोबिक फिटनेस के लिए 70 प्रतिशत तक फिट बच्चों में ग्रे मेटर अधिक पतली होने से बेहतर गणित प्रदर्शन के अनुरूप थी। यह अध्ययन ‘प्लोस वन’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

मंगल पर दिखी औरत की आकृति?

नई दिल्ली: अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के क्यूरियोसिटी ने मंगल ग्रह पर ली गई तस्वीरों को लेकर जिज्ञासा पैदा कर दी है। क्यूरियोसिटी ने मंगल की एक फोटो भेजी थी जिसमें फोटो काफी हद तक चौकाती है। ताजा भेजी गई फोटो में एक महिला की छवि को साफ तौर पर देखा जा सकता है। महिला काफी दूर पहाड़ों की बीच दिख रही है।
दिखाई गई एक आकृति में महिला दिख रही है। लेकिन तस्वीर काफी छोटी है इसलिए अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है। लेकिन सोशल मीडिया पर एक्टिव लोगों में इसे लेकर काफी उत्सुकता देखी जा रही है। लोगों का मानना है कि मंगल पर इस तरह की घटनाएं यह साबित करती है कि मंगल पर जीवन संभव है। आए दिन नासा का मार्स रोवर क्यूरियोसिटी (जिज्ञासा) मंगल ग्रह पर ली गई तस्वीरें भेजता रहता है। उसकी हर तस्वीर जिज्ञासा का सबब बन जाती है।

एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स के जीवन पर बन रहा ऑपेरा

लॉस एंजिलिस: एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स के जीवन पर आधारित एक ऑपेरा बनाया जा रहा है। इस ऑपेरा में स्टीव के करियर और परिजनों के साथ उनके संबंधों को दिखाया जाएगा।
लॉस एंजिलिस टाइम्स की खबर के मुताबिक न्यू मैक्सिको के ‘सांता फे ऑपेरा’ ने उनके जीवन पर ऑपेरा बनाने की शुरुआत की है। इसे ‘द इवोल्यूशन ऑफ स्टीव जॉब्स’ का नाम दिया गया है। इसमें स्टीब जॉब्स के करियर, अपनी पत्नी, माता-पिता और बेटी के साथ के उनके संबंधों को दिखाया जाएगा।
ऑपेरा कंपनी ने एक बयान में बताया है कि इस कार्यक्रम की शुरुआत जॉब्स के जीवन के उस मोड़ से होगी जब वे कैंसर से जूझते हुए मौत का सामना कर रहे होते हैं। इसके बाद कहानी फ्लैश बेक में चली जाएगी और उनके जीवन में आये लोगों के बारे में बताया जाएगा। गौरतलब है कि एप्पल के सीईओ रहे स्टीव जॉब्स 2011 में कैंसर से मौत हो गई थी।

डेंगू से निपटने के लिए चीन ने स्थापित की सबसे बड़ी मच्छर फैक्टरी

बीजिंग : चीन ने गुआंगझोउ प्रांत में डेंगू बुखार से निपटने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी मच्छर फैक्टरी की स्थापना की है। इस फैक्टरी के जरिए हर सप्ताह 10 लाख वंध्यीकृत मच्छर छोड़े जायेंगे जिससे डेंगू फैलाने वाले मच्छरों की संख्या को कम किया जा सकेगा।
सरकारी समाचार पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने खबर दी है कि गुआंगझोउ साइंस सिटी इलाके में फैक्टरी से निर्मित मच्छरों को छोड़ने की जिम्मेदारी शी झियोंग संभाल रहे हैं।
इसका पहला परीक्षण खेत में किया गया और साबित हुआ कि इससे मच्छरों की संख्या में 90 फीसदी तक कमी आई है। वंध्यीकृत मच्छरों को जंगल में छोड़ा जाना उन कई अनूठे प्रयासों में शामिल है जो डेंगू बुखार से निपटने के लिये किए गए हैं।
पिछले साल चीन में डेंगू से 47,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। इनमें अधिकांश मामले गुआंगदोंग प्रांत में थे। डेंगू का कोई टीका और सटीक उपचार उपलब्ध नहीं है और दुनिया भर में इससे एक साल में करीब 22,000 लोगों की मौत हुई।

पीटर हिग्स को मिला दुनिया का सबसे पुराना वैज्ञानिक पुरस्कार

लंदन : नोबेल पुरस्कार विजेता पीटर हिग्स दुनिया का सबसे पुराना वैज्ञानिक पुरस्कार रायल सोसायटी के कोपले मेडल को जीतकर चार्ल्स डार्विन और अल्बर्ट आइंस्टीन की श्रेणी में शामिल हो गए हैं। उन्हें हिग्स बोसोन के सिद्धांत पर काम करने के लिए यह पुरस्कार मिला है जिसका आविष्कार 2012 में किया गया था।
86 वर्षीय हिग्स को कोपले मेडल पार्टिकल फिजिक्स में उनके मूल योगदान को देखते हुए दिया गया है जिसमें मौलिक कणों में द्रव्यमान की उत्पति के सिद्धांत का जिक्र है। इसका लार्ज हैड्रोन कोलाइडर पर प्रयोग कर पुष्टि भी की गई है। कोपले मेडल सबसे पहले 1731 में रॉयल सोसायटी ने दिया था और पहले नोबेल पुरस्कार से 170 वर्ष पहले इसे दिया गया था।
इसे वैज्ञानिक शोध में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए दिया जाता है और हाल में इसे मशहूर वैज्ञानिकों जैसे भौतिकीविद स्टीफन हॉकिंग, डीएनए फिंगरप्रिंट के वैज्ञानिक एलेक जेफरेज और आंद्रे गीम को ग्रेफेन के आविष्कार के लिए दिया गया है। आधुनिक भौतिकी में बताया गया है कि पदार्थ :मैटर: कणों के समूह से बनता है जो बिल्डिंग ब्लॉक के तौर पर काम करता है और इन कणों के बीच बल होता है जिनका नियंत्रण दूसरे कणों का समूह करता है। अधिकतर कणों का मूल गुण है कि उनमें द्रव्यमान (मास) होता है।
1964 में हिग्स ने कणों के अस्तित्व के बारे में एक सिद्धांत प्रस्तावित किया जिसमें बताया गया है कि दूसरे कणों में द्रव्यमान क्यों होता है। साथ ही फ्रैंकोई एंगलर्ट और रॉबर्ट ब्राउट ने भी इसी सिद्धांत का प्रस्ताव दिया है। हिग्स बोसोन के अस्तित्व की पुष्टि दो प्रयोगों से हुई जिसे लार्ज हैड्रन कोलाइडर में 2012 में किया गया। वर्ष 2013 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से हिग्स और एंगलर्ट को दिया गया था। हिग्स ने कहा, ‘इस वर्ष का कोपले मेडल पुरस्कार प्राप्त करना सम्मान की बात है जो रायल सोसायटी का प्रतिष्ठित पुरस्कार है।’

ये हैं व्हाट्स एप्प के लेटेस्ट फीचर्स, आपने अपडेट किया?

नई दिल्लीः व्हाट्स एप्प की टीम अपने यूज़र्स को लगातार नये-नये गिफ्ट दे रही है। एंड्रॉइड यूजर्स व्हाट्स एप्प का लेटेस्ट वर्जन (v.2.12.194) डाउनलोड कर इन फीचर्स का मजा ले सकते हैं। अपडेटेड वर्जन में आपको कई नए-नए फीचर्स मिलेंगे, जो आपकी सुविधा के लिये डिजाइन किये गये हैं।
ये हैं लेटेस्ट वर्जन के खास तीन फीचर
मार्क एस अनरीड ऑप्शनः नए वर्जन में आप पढ़ी हुई चैट को फिर से अनरीड मार्क कर सकते हैं, ताकि दोबारा पढ़ना चाहें या देर से जवाब देना चाहें तो अपना टास्क याद रख सकें। अनरीड मार्क करने के लिये आपको अपनी चैटिंग पर लॉन्ग प्रेस करना होगा, ऐसा करने पर एक मेनू दिखेगा, जिसमें अार्काइव चैट, डिलीट चैट, ई-मेल चैट के नीचे ‘Mark as Unread’ का ऑप्शन दिखेगा।
कस्टम नोटिफिकेशनः लेटेस्ट वर्जन में ये दूसरा नया फीचर है, जो ‘चैट सेटिंग’ में मीडिया सेक्शन के नीचे ‘म्यूट चैट’ के साथ दिखेगा। कस्टम नोटिफिकेशन से आप मैसेज अलर्ट के लिये अपनी मनपसंद टोन, वायब्रेशन लैंग्थ, स्क्रीन लाइट, पॉपअप नोटिफिकेशन, कॉल रिंगटोन भी सेट कर सकते हैं। अब आप हर कॉन्टेक्ट और ग्रुप के लिये अलग टोन भी रख सकते हैं। ताकि जरूरी और गैर-जरूरी मैसेज देख सकेंगे।
लो डेटा यूज़ेज़ ऑप्शनः यदि आपके पास लिमिटेड डेटा प्लान है तो इस ऑप्शन की मदद से आप अपना डेटा बचा सकते हैं। इस वर्जन में आपको सैल्युलर डेटा नेटवर्क पर वॉइस कॉल्स के लिये लो डेटा ऑप्शन यूज़ेज़ का ऑप्शन भी मिलेगा। साथ ही आप सेंडिंग और रिसीविंग में यूज़ किये गये डेटा की क्वांटिटी भी मॉनिटर कर सकते हैं। इसके लिये आपको एप्प सैटिंग पेज पर जाना होगा। इसके अलावा बहुत जल्द ही ‘बैकअप व्हाट्स एप्प डेटा ऑन गूगल ड्राइव’ की सुविधा भी मिल सकती है। उम्मीद है एंड्रॉइड के अलावा आईओएस, विंडोज़, ब्लैकबैरी और सिंबियन के लिये भी जल्द ही नये फीचर्स देखने को मिलेंगे।

अंटार्कटिका में मिला करीब 5 करोड़ साल से भी पुराना शुक्राणु

न्यूयॉर्क : वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में एक कोकून के जीवाश्म के उपरी परत में संलग्न करीब पांच करोड़ साल से भी पुराने एक जीव के शुक्राणु की खोज की है।
अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि कृमि या जोंक के समान जाति वाली कोई प्राचीन प्रजाति के जीव ने संसर्ग के दौरान कोकून निर्माण की प्रक्रिया में यह शुक्राणु इसके अंदर छोड़ दिया होगा। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि उसकी दीवार के घेरे के कठोर होने से पहले कोकून में यह शुक्राणु फंस गया। उन्होंने बताया कि कोकून के कारण शुक्राणु कोशिका संरक्षित रही जबकि लाखों वर्षों तक यह जीवाश्म के रूप में ही रहा।
प्राकृतिक इतिहास पर स्वीडन के संग्रहालय में एक जीवाश्म विशेषज्ञ और शोध के प्रमुख लेखक बेंजामिन बोमफ्ल्यूर ने बताया, अंटार्कटिका में जोंक के कोकून में शुक्राणु की हमारी यह खोज अब तक की सबसे पुरानी जीव शुक्राणु है और भूवैज्ञानिक रिकॉर्ड में इस तरह का यह सबसे छोटा जीवश्म है। ‘लाइव साइंस’ की रिपोर्ट के अनुसार, अनुसंधानकर्ताओं को यह कोकून अंटार्कटिका अभियान के दौरान छोटे कशेरूकी जीवों के अवशेषों की बारीकी से जांच पड़ताल के दौरान मिला।
उन्होंने जीवाश्म की परत और इसके उपर मौजूद कणों की जांच के लिए एक उच्च मैग्निफिकेशन वाले स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल किया। इसके अलावा उन्होंने स्वीट्जरलैंड में कोकून की आंतरिक संरचना की छवि प्राप्त करने के लिए एक पार्टिकल एक्सीलेटर से उच्च शक्ति वाली एक्स-रे का भी इस्तेमाल किया।

अगर आप अपना दिमाग तेज करना चाहते हैं, तो सीखें दो भाषा

वाशिंगटन: अगर आप अपना दिमाग तेज करना चाहते हैं, तो दो भाषाएं सीखें क्योंकि एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि दो भाषा सीखने वालों का दिमाग अन्य की तुलना में तेज होता है। ऐसा मस्तिष्क के कार्यकारी नियंत्रण क्षेत्र में ग्रे मैटर के अधिक जमाव के कारण होता है।
ऐसा मस्तिष्क के कार्यकारी नियंत्रण क्षेत्र में ‘ग्रे मैटर’ के अधिक जमाव के कारण होता है। इससे पहले माना जाता था कि दो भाषा सीखने से बच्चों में भाषा के विकास में विलंब होता है, क्योंकि इसके लिए उन्हें दो शब्दावलियों को विकसित करना पड़ता है। शोध के लिए शोधकर्ताओं ने अमेरिकन साइन लैंग्वेज (एएसएल) व स्पोकन इंग्लिश के द्विभाषियों तथा एक भाषा के जानकारों के ग्रे मैटर के बीच तुलना की।
जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर (जीयूएमसी) में सेंटर ऑफ लर्निंग के निदेशक ग्विनेवेयर इडेन ने कहा, ‘एक भाषा बोलने वालों की तुलना में दो भाषाओं का अनुभव तथा उनका सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए संज्ञानात्मक नियंत्रण की जरूरत में वृद्धि के परिणामस्वरूप स्पेनिश-अंग्रेजी भाषा बोलने वालों के दिमाग में कुछ बदलाव आते हैं।’
शोधकर्ताओं ने दो भाषा तथा एक भाषा बोलने वालों के ग्रे मैटर के बीच तुलना की। दो भाषा बोलने वालों के मस्तिष्क के फ्रंटल व पेराइटल क्षेत्रों में ज्यादा ग्रे मैटर पाए गए, जो मस्तिष्क के कार्यकारी नियंत्रण में शामिल होते हैं।

नासा के मंगलयान क्यूरीयोसिटी ने सनस्पॉट्स (सूर्य पर कभी-कभी दिखने वाले धब्बों) की ली तस्वीरें

वाशिंगटन : नासा के मंगलयान क्यूरीयोसिटी ने सूर्य के आगे के हिस्से में बड़े सनस्पॉट्स (सूर्य पर कभी-कभी दिखने वाले धब्बों) की तस्वीरें ली हैं जो पृथ्वी से दूसरी तरफ है।
क्यूरीयोसिटी के मास्ट कैमरा (मास्टकम) के दृश्यों में सूर्य पर बड़े-बड़े धब्बे देखे गये हैं। वैज्ञानिकों के पास सूर्य की दूसरी तरफ की तस्वीरों को पृथ्वी से देखने के लिए कोई अन्य साधन नहीं है।
नासा ने कहा है कि सूर्य लगभग माह भर में एक चक्कर पूरा करता है। सनस्पॉट के बारे में सूचना से अंतरिक्ष के मौसम पर सौर उत्सर्जन के पड़ने वाले प्रभाव के बारे में अनुमान लगाने में सहायता मिलेगी।
नासा अंतरिक्ष मौसम सेवाओं की परियोजना के नेतृत्वकर्ता यिहुआ झेंग ने कहा, सूर्य की दूसरी तरफ सनस्पॉट का पता लगाना अंतरिक्ष के मौसम के पूर्वानुमान में मददगार साबित होगा।

खुल गया राज! ब्रेन में ऐसे रिकॉर्ड होती है मेमोरी

लॉस एंजिलिस: मस्तिष्क के एक विशेष क्षेत्र के न्यूरॉन हर दिन के घटनाक्रम के बारे में तेजी से स्मृतियां बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। एक नए अध्ययन में यह बात कही गयी है । इस नए अध्ययन से अल्झाइमर तथा तंत्रिका संबंधी अन्य बीमारियों से निपटने के लिए नए उपाय खोजने की राह प्रशस्त होती है।
अध्ययन में एपीसोडिक मेमरी से जुड़े मीडियल टेम्पोरल लोब में पाए जाने वाले न्यूरानों का अध्ययन किया गया। एपीसोडिक मेमरी वह होती है जिसमें मस्तिष्क विभिन्न घटनाक्रमों को याद करने में सक्षम होता है।
इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक डॉ इत्जाक फ्राइड ने कहा कि अनुसंधान दल ने मेडिकल टेम्पोरल लोब के न्यूरॉनों को पहले रिकॉर्ड किया और पाया कि किसी भी अनुभव के सटीक घटनाक्रम के दौरान उसकी स्मृतियों को सहेजने के लिए कोशिकाएं अपने ही अंदर परिवर्तन कर लेती हैं। डॉ फ्राइड यूनिवर्सिटी ऑफ कैरोलिना – लॉस एंजिलिस हेल्थ साइंसेज से संबद्ध हैं।
उन्होंने कहा ‘यह अध्ययन न्यूरॉन कोड की गहराई तक किया गया और यह न्यूरॉन कोड मानवीय बोध एवं स्मृतियों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है।’ यह अध्ययन मिर्गी प्रभावित 14 मरीजों पर किया गया जिनके मस्तिष्क में संभावित ऑपरेशन के लिए दौरों का पता लगाने के उद्देश्य से इलेक्ट्रोड लगाए गए थे। अध्ययन के नतीजे जर्नल न्यूरॉन में प्रकाशित हुए हैं।

जलवायु परिवर्तन से लोगों के स्वास्थ्य पर बड़ा खतरा!

कोच्चि : एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव महसूस किए जाने लगे हैं और जहां तक भविष्य के बारे में अनुमान है इससे मानव स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा एवं संभावित रूप से विनाशकारी खतरा पैदा हो सकता है।
2015 लांसेट कमीशन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जलवायु परिवर्तन से नौ अरब लोगों की वैश्विक आबादी के लिए पिछली आधी सदी में मिले विकास एवं वैश्विक स्वास्थ्य संबंधी लाभ नष्ट होने का खतरा है। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव मौसम की अतिशय घटनाओं खासकर लू, बाढ़, सूखे और आंधी की बढ़ती आवृति और तीव्रता की वजह से पड़ रहा है।
इसमें कहा गया कि संक्रामक रोगों के स्वरूपों में बदलाव, वायु प्रदूषण, खाद्य असुरक्षा एवं कुपोषण, अनैच्छिक विस्थापन और संघर्षों से अप्रत्यक्ष प्रभाव भी पैदा हो रहे हैं।’’ 2015 लांसेट कमीशन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज का गठन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और जरूरी नीतिगत प्रतिक्रिया की योजना बनाने के लिए किया गया ताकि दुनिया भर की आबादी के लिए स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य मानक सुनिश्चित किए जा सकें।

क्या चंद्रमा पर भूकंप आते हैं ?

नयी दिल्ली : हाल में नेपाल में आए भूकंप ने पूरे विश्व को दहला कर रख दिया। लगभग 10,000 से ज्यादा लोगों की इसमें जान चली गई। लेकिन हमने कभी यह सोचा है कि क्या हमारी धरती के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा पर भी भूकंप आते हैं? चंद्रमा पर आने वाले भूकंप से हमारी धरती को क्या लाभ हो सकता है ? इससे कितने लोगों की जान बचाई जा सकती है।
इन सवालों का जवाब मिलता है भारत के चंद्रयान-1 से प्राप्त हुए डाटा से और इस डाटा की व्याख्या की है जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भूविज्ञान, सुदूर संवेदन एवं अंतरिक्ष विज्ञान विभाग के संयोजक (कन्वेनर) प्रोफेसर सौमित्र मुखर्जी ने। उनके इस अध्ययन में उनके छात्र प्रियदर्शनी सिंह ने भी सहयोग किया है और इस अध्ययन से संबंधित कई लेख अंतरराष्ट्रीय विज्ञान जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं।
प्रोफेसर सौमित्र मुखर्जी ने चंद्रयान के नैरो एंगल कैमरा और लूनार रिकॉनिएसेंस ऑर्बिटर कैमरा से चंद्रमा की सतह की ली गई तस्वीरों का विश्लेषण किया और पाया कि चंद्रमा की सतह के भीतर भी गतिमान टेक्टोनिक प्लेट्स हैं जिनके आपस में टकराने से भूकंप जैसी आपदाएं आती हैं।

आईन्स्टीन का पत्र 62500 डॉलर में नीलाम

लॉस एंजिलिस : अल्बर्ट आईन्स्टीन ने 1945 में अपने बेटे को एक पत्र लिख कर सापेक्षता के सिद्धांत और अणु बमों के बीच संबंध के बारे में बताया था वह पत्र 62,500 डॉलर में नीलाम हुआ। यह पत्र जब आईन्स्टीन ने लिखा था, उन्हीं दिनों जापान पर अणु बम गिराया गया था।
बृहस्पतिवार को ‘प्रोफाइल्स इन हिस्ट्री’ में आईन्स्टीन के 27 पत्र नीलाम किए गए और कुल 4,20,000 डॉलर की राशि इस नीलामी से मिली। नीलाम हुए पत्रों में से दो पत्र वे थे जो आईन्स्टीन ने 1940 के दशक में लिखे थे। इन पत्रों में उन्होंने ईश्वर के बारे में अपने विचार लिखे थे। ये पत्र क्रमश: 28,125 डालर और 34,375 डालर में नीलाम हुए। अन्य पत्रों में इस प्रख्यात वैज्ञानिक ने मैक्कार्थीवाद, नात्सीवाद और निजी मामलों पर अपनी राय जाहिर की है।
‘प्रोफाइल्स इन हिस्ट्री’ के संस्थापक जोसेफ मैडालेना ने बताया कि विक्रेता ने कई वर्षों में इन पत्रों का संकलन किया था और वह अपनी पहचान भी नहीं बताना चाहता। ये पत्र अलग अलग लोगों ने खरीदे।

भारत में प्राणियों की 176 नई प्रजातियों का पता चला

कोलकाता: भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (जेडएसआई) ने कहा है कि पिछले साल जीव विज्ञानियों ने भारत में प्राणियों की नयी 176 प्रजातियों का पता लगाया। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत प्राणियों के वर्गीकरण के लिए काम करने वाले जेएसआई के आधिकारिक रिकार्ड के मुताबिक पिछले साल भारत में 176 नयी प्रजातियों का पता चला। इनमें 93 नये कीट-पतंगे हैं।
इस सूची में मछलियों की 23 प्रजातियों, मेढ़क, विषले मेढ़कों जैसी 24 उभयचर प्रजातियों, सरीसृपों की दो प्रजातियों, मकड़ी की 12 प्रजातियों और 12 कड़े खोल वाले प्राणी (केकड़े, समुद्री झींगा आदि) शामिल हैं।
जेडएसआई के वैज्ञानिकों ने पूरे देश में काम कर इन प्रजातियों का पता लगाया है। जेडएसआई के निदेशक डॉ. के वेंकटरणम ने कहा, ‘जिन प्रजातियों का हमने पता लगाया है वे बहुत छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में उपलब्ध हैं। इसलिए वे विलुप्त होने के कागार पर हैं। प्राणियों के रहने का खत्म होता ठिकाना इसका मुख्य कारण है।’ अधिकतर नयी प्रजातियां पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट और उत्तर पूर्वी राज्यों के जैव विविधता संपन्न इलाकों में मिली हैं।

जीवन की गुणवत्ता सुधारते हैं धर्म और आध्यात्म : भारतीय अध्ययन

टोरंटो: धार्मिक परंपराएं एवं आध्यात्म जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने और मृत्यु दर एवं हृदय संबंधी रोग कम करने में मदद कर सकते हैं। यह बात यहां आयोजित एक सालाना सम्मेलन में एक भारतीय अध्ययन में कही गई।
दिल्ली में राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी और मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान में एमेरिटस प्रोफेसर श्रीधर शर्मा ने कहा, ‘ धर्म एवं आध्यात्म लोगों को हृदय संबंधी बीमारियों, अवसाद और तनाव जैसी बीमारियों से बेहतर ढंग से निपटने में मदद करता है।’ यहां पिछले सप्ताह संपन्न हुई अमेरिकी साइकिएट्रिक एसोसिएशन की 168वीं सालाना बैठक में विश्व भर के 200 से अधिक मनोरोग चिकित्सकों ने हिस्सा लिया। यह बैठक एक सप्ताह तक चली।
शर्मा ने कहा कि दिमाग, मन, शरीर, आध्यात्म एवं धर्म के बीच अंत:क्रिया हृदय की धमनी की बीमारी के उपचार में मददगार हो सकती है। यह मृत्युदर कम करके और दिल के दौरों की पुनरावृत्ति कम करके हृदय संबंधी बीमारियों में मानक स्वास्थ्यलाभ को बढा सकती है। इस अंत:क्रिया को ‘ मन-शरीर चिकित्सा’ के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने कहा कि आध्यात्म एवं धर्म की सहायता से मिजाज अच्छा रहता है, जीवन की गुणवत्ता बढ़ती है और बीमारियों से उबरने में मदद मिलती है। इससे उपचार के दौरान पैदा होने वाले लक्षणों जैसे कीमोथेरेपी के कारण होने वाली उल्टी, उबकाई और दर्द जैसी समस्याओं को कम किया जा सकता है।

कहीं आपने अपना पुराना स्मार्टफोन बेच तो नहीं दिया!

नई दिल्लीः अगर आप अपने पुराने स्मार्टफोन से ऊब गए हैं और नया मोबाइल खरीदने से पहले उसे बेचना चाहते हैं तो आपके लिए एक चेतावनी है। आपके पुराने फोन से भी आपके यूजर डाटा चोरी हो सकते हैं।
वेबसाइट ‘टेकवीकयूरोप डॉट को डॉट यूके’ के अनुसार, कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए ताजा अध्ययन में पाया गया है कि एंड्रॉयड पर चलने वाले पुराने फोन से उसके पुराने मालिक के डेटा हासिल किए जा सकते हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि स्मार्टफोन को भले ही पूरी तरह डिस्क एनक्रिप्शन के जरिए सुरक्षित किया गया हो,उसके बावजूद ऐसे डाटा हासिल किए जा सकते हैं।एंड्रॉयड पर चलने वाले अधिकांश स्मार्टफोन में यूजर डाटा,जिसमें एक्सेस टोकेन, मैसेज, इमेज और अन्य सामग्री डीलीट करने का विकल्प नहीं होता। तकनीकी विशेषज्ञ भी अबतक इसे लेकर चिंता जताते रहे हैं कि स्मार्टफोन से यूजर डाटा डीलीट करना बेहद कठिन होता है।

भारतीय मूल के छात्र करन जेराथ ने जीता युवा वैज्ञानिक पुरस्कार

वाशिंगटन : भारतीय मूल के 18 वर्षीय एक अमेरिकी छात्र ने अमेरिका में प्रख्यात इंटेल फाउंडेशन युवा वैज्ञानिक पुरस्कार जीता है। समुद्र में तेल के फैलने को शीघ्रता से रोकने के उपकरण का आविष्कार करने को लेकर उसे यह पुरस्कार मिला है।
टेक्सास स्थित फ्रेंड्सवुड के करन जेराथ ने इस साल के इंटेल अंतरराष्ट्रीय विज्ञान एवं इंजीनरिंग मेले में 50,000 डॉलर का शीर्ष पुरस्कार कल जीत लिया।
जेराथ उन पांच छात्रों में शामिल था जिसे भारत के लिए इंटेल एवं भारत अमेरिका विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंच यात्रा पुरस्कार के लिए चुना गया है। जेराथ ने एक उपकरण का डिजाइन तैयार किया है जो समुद्र तल पर कुएं से रिसने वाले तेल, गैस और पानी को एकत्रित कर सकता है।

फेसबुक का सर्च इंजन जल्द शुरू होगा

न्यूयॉर्क: सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक अपने मोबाइल एप्प यूजर्स को जल्द ही सर्च इंजन की सुविधा दे सकता है। इससे यूजर्स को बिना गूगल का इस्तेमाल किए अपने स्टेटस को अपडेट करने हेतु वेबसाइटों और लेखों को ढूंढ़ने में मदद मिलेगी। फिलहाल फेसबुक इस सर्च इंजन का परीक्षण कर रहा है।
वेबसाइट ‘टेकक्रंच’ के मुताबिक, फोटो और स्थानों को जोड़ने के फीचर के साथ कुछ आईफोन यूजर्स एक नए ‘एड ए लिंक’ विकल्प का उपयोग कर सकते हैं।
आपके द्वारा प्रश्नावली का जवाब देने के बाद फेसबुक उन वेबसाइट की सूची जारी करेगा, जिन्हें आप साझा कर सकते हैं। इतना ही नहीं उन वेबसाइटों की सामग्री को आप साझा करने से पहले देख भी सकते हैं। ‘एड ए लिंक’ बटन के उपयोग से यूजर्स अधिक खबरें और अन्य प्रकाशित सामग्री को साझा कर सकते हैं।

बुध का चुंबकीय क्षेत्र है लगभग चार अरब साल पुराना

टोरंटो : एक सप्ताह पहले बुध की सतह से टकरा जाने वाले नासा के अंतरिक्षयान ‘मैसेंजर’ से मिले नए आंकड़ों के अनुसार, बुध का चुंबकीय क्षेत्र लगभग चार अरब साल पुराना है।
इस खोज से वैज्ञानिकों को बुध के इतिहास से जुड़ी जानकारी के छोटे-छोटे तारों को एक-दूसरे से जोड़ने में मदद मिलेगी। मैसेंजर अभियान से पहले सूर्य के इस निकटतम ग्रह के बारे में बहुत कम ही जानकारी उपलब्ध थी। नासा का अंतरिक्षयान मैसेंजर वर्ष 2004 में पृथ्वी से रवाना हुआ था। वर्ष 2008 में पहली बार बुध के करीब से गुजरने के बाद यह अंतरिक्षयान वर्ष 2011 से इस ग्रह की कक्षा में घूम रहा था और पृथ्वी पर मौजूद वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण जानकारियां भेज रहा था।
नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मैसेंजर द्वारा वर्ष 2014 के अंत और वर्ष 2015 की शुरूआत में भेजे गए आंकड़ों का इस्तेमाल किया। इस अवधि के दौरान यह यान बुध की सतह के बेहद करीब से होकर गुजरा था। तब सतह से इसकी उंचाई महज 15 किलोमीटर थी। इससे पहले के वर्षों में मैसेंजर की न्यूनतम उंचाई 200 से 500 किलोमीटर के बीच थी। ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में ग्रह विज्ञानी और इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका कैथरीन जॉनसन ने कहा कि यह अभियान शुरूआत में महज एक साल के लिए था। किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि यह चार साल तक चल जाएगा। जॉनसन ने कहा कि इन हालिया आकलनों से मिली जानकारी वाकई दिलचस्प है और इसके चुंबकीय क्षेत्र के बारे में मिली जानकारी इसका शुरूआती हिस्सा है। कुछ समय से वैज्ञानिक यह जानते थे कि बुध पर पृथ्वी जैसा ही चुंबकीय क्षेत्र है लेकिन यह कहीं कमजोर है।
आंतरिक सौरमंडल में पृथ्वी के अलावा बुध ऐसा एकमात्र ग्रह है, जिसमें ऐसा चुंबकीय क्षेत्र है। इस बात के साक्ष्य हैं कि मंगल पर कभी चुंबकीय क्षेत्र हुआ करता था लेकिन वह तीन अरब साल से भी ज्यादा समय से पहले लुप्त हो गया था। जब मैसेंजर बुध के पास से होकर गुजरा, तो इसके मैग्नेटोमीटर ने बुध की सतह पर मौजूद चट्टानों के चुंबकत्व के बारे में आंकड़े जुटाए। इन सूक्ष्म संकेतों ने यह दर्शाया कि बुध का चुंबकीय क्षेत्र बहुत पुराना है। यह कम से कम 3.7 से 3.9 अरब साल पुराना है। इस ग्रह का निर्माण लगभग उसी समय (4.5 अरब साल से भी पहले) हुआ था, जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था।
जॉनसन ने कहा कि यदि हमें ये हालिया आकलन न मिलते, तो हम कभी भी यह न जान पाते कि बुध का चुंबकीय क्षेत्र समय के साथ किस तरह विकसित हुआ? नासा का अंतरिक्षयान मैसेंजर एक सप्ताह पहले बुध की सतह से टकरा गया था। इसके साथ ही इसके 11 साल पुराने उस अभियान का अंत हो गया, जिसने बुध के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और तस्वीरें उपलब्ध करवाई थीं।

नेपाल में आए भूकंप से माउंट एवरेस्ट की उंचाई 2.5 सेंटीमीटर कम हो गई?

काठमांडो: नेपाल में पिछले दिनों आए विनाशकारी भूकंप में न सिर्फ हजारों लोगों की जान गई, बल्कि इससे माउंट एवरेस्ट की उंचाई भी शायद 2.5 सेंटीमीटर कम हो गयी । उपग्रह के डाटा के विश्लेषण से यह बात सामने आई है।
इससे पहले उपग्रह के डाटा से पता चला था कि काठमांडो के निकट जमीन करीब एक मीटर उपर उठ चुकी है। ‘लाइव साइंस’ के अनुसार डाटा से संकेत मिलता है कि दुनिया का सबसे उंचा पवर्त माउंट एवरेस्ट थोड़ा छोटा हो गया है।
नयी सूचना यूरोप के ‘सेंटिनेल-1ए’ उपग्रह से मिली है। अब वैज्ञानिक सेंटिनल से मिले डाटा का निष्कर्ष निकालने में जुटे हुए हैं। बीते 25 अप्रैल को आए 7.9 तीव्रता के भूकंप में 7,500 लोगों से अधिक मौत हो गई तथा 16,390 लोग घायल हो गए।

8 साल बाद ठप्प हो जाएगा इंटरनेट?

लंदन: पूरी दुनिया को जोड़ने में क्रांतिकारी भूमिका निभाने वाली प्रौद्योगिकी इंटरनेट अगले 8 वर्षो में ध्वस्त हो सकती है या इसकी उपलब्धता सिर्फ कुछ हिस्सों तक सीमित हो सकती है।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी के अंदाज में कहा है कि हमारे कंप्यूटरों, लैपटॉप और मोबाइल फोन को इस समय जिस ऑप्टिकल फाइबर के जरिए इंटरनेट से जोड़ा गया है अगले 8 वर्षों में वह अपनी अंतिम सीमा पर पहुंच जाएगा और मौजूदा ऑप्टिकल फाइबर के जरिए फिर हम एक भी अतिरिक्त डाटा का आदान-प्रदान नहीं कर सकेंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार, मौजूदा उपभोग की दर के हिसाब से अगले 20 वर्षों में ब्रिटेन की सारी बिजली आपूर्ति खप जाएगी।
समाचार पत्र ‘डेली मेल’ के मुताबिक इंटरनेट पर भविष्य में आने वाले इस संभावित खतरे से निपटने के उपाय पर चर्चा के लिए अगले सप्ताह अग्रणी इंजीनियर, भौतिकविदों और दूरसंचार कंपनियों को लंदन के रॉयल सोसायटी में बुलाया गया है।
रॉयल सोसायटी में 11 मई को होने वाली इस बैठक के सह आयोजक एंड्र एलिस ने कहा, ‘प्रयोगशालाओं में हम इस बात का पता लगाने की कोशिश शुरू कर चुके हैं कि हम कब ऑप्टिकल फाइबर के एक तार से डाटा आदान-प्रदान करने की आखिरी सीमा तक पहुंच जाएंगे।
उन्होंने कहा, मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। इसमें तेजी से इजाफा हो रहा है और इस मांग के लिए आपूर्ति जारी रख पाना मुश्किल होता जा रहा है। हम पिछले कई वर्षों से मांग के अनुरूप आपूर्ति जारी रखने में सफल रहे हैं, लेकिन जल्द ही वह समय आएगा जब हम आगे आपूर्ति जारी नहीं रख पाएंगे।

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