चित्त वृत्ति निरोध:
योग
अंतराष्ट्रीय योग दिवस पर सभी के लिए ईश्वर से प्रार्थना है कि आप स्वस्थ्य रहें खुश रहें । ईश्वर ने हमें इस संसार में खुश रहने के लिए प्रकृति और उसके अतिसुंदर,नायाब दृश्य दिए, विभिन्न फूल और फल दिए । ईश्वर हमेशा हमारी खुशी का ख्याल रखते हैं, मौसम में बदलाव लाकर हमारे मन को बोर होने से बचाते हैं ।
योग भी ईश्वर का नायाब तोहफा है, जिसे महर्षि पतंजलि के माध्यम हम तक पहुँचाया, योग वास्तव में मन को ठीक करने का सुन्दर माध्यम है, यह केवल शरीर संचालन भर नहीं है, यह जिम की एक्सरसाइज़ बिल्कुल नहीं है ।
योग का केन्द्र बिन्दु मन है ,यदि मन अच्छा है तो शरीर स्वाभाविक रूप अच्छा रहेगा । पतंजलि योग सूत्र में योग के लिए कहते हैं- ‘चित्त वृत्ति निरोधः’ चित्त अर्थात् मन की चंचलता(वृत्ति) को धीमा करना,अति धीमा करना ही योग है । क्योंकि मन की गति रूकेगी नहीं यदि ऐसा होता है तो गीता के अनुसार यह ‘state of mind’ की स्थिति होगी और ऐसी अवस्था में मस्तिष्क से बीटा किरणें निकलती हैं । जहां मन में एक मिनट में विचारों की संख्या एक या बिल्कुल नहीं होती ।
इस समय अधिकांश मन की व्यथा से अधिक परेशान हैं, सुसाइड जैसी स्थिति इसी का एक परिणाम है । जब हम योग की अलग-अलग मुद्राओं को करते हैं तो हमारे शरीर से कई रसायनों का उत्सर्जन होता, कई ग्लेड्स को व्यायाम मिलता जिससे उनसे निकलने वाले हार्मोन्स आनुपातिक स्थिति में आ जाते हैं । इस आनुपातिक स्थिति से मन की व्यग्रता, उसकी उदासी और मन भटकने जैसी स्थितियाँ स्वतः ही कम या बहुत कम हो जाती हैं । शरीर में सब कुछ सही अनुपात होगा तो अस्वस्थता आएगी ही नहीं । आयुर्वेद भी कहता है- ‘वात-पित्त-कफ’ के अनुपात बिगड़ने पर ही हम अस्वस्थ होते हैं ।
इसलिए योग कीजिए मन से और मन के लिए.. ..स्वस्थ्य रहिए, खुश रहिए ।
– रविन्द्र नरवरिया, Life Management coach.
मन की शाक्तियों को बिखरने न दें
कभी आपने सोचा 40-50 स्टूडेंट्स की क्लास में क्यों 4-6 स्टूडेंट्स ही टाॅपर होते हैं ..! जबकी टीचर ने तो सबको एक जैसा ही पढ़ाया था !यही स्थिति कोचिंग संस्थानों की होती है ।
आपने यह भी महसूस किया होगा जब आप छोटे थे ,छोटी कक्षाओं में हुआ करते थे ,उस समय आप पढ़ने में बहुत होशियार थे,फिर बड़े होकर तो आप और समझदार हुए ,बुद्धिमान बने, पर कक्षाओं की मेरिट लिस्ट से गायब दिखने लगे…! आप थोड़ा चिंतन कीजिएगा आपको दिखेगा छोटी कक्षाओं में आप एकाग्र होकर पढ़ते थे,एकाग्रता आपके लिए खिलोना थी आप जब चाहते तब एकाग्र हो जाते थे । जैसे जैसे बड़े हुए आपका यह मौलिक गुण छिपता चला गया और एकाग्रता आपके लिए दूर की कौड़ी हो गई ।
अर्थात एकाग्रता आपके अंदर ही है बस उस पर थोड़ी सी धूल जम गई है ।
अब यह धूल हटेगी कैसे ? इसका वाइपर भी आपके पास है ।
यह क्या है? इसके पहले आप ये छोटी सी कहानी पढ़ो,
विचारक इमर्सन ने कहा है- ‘यदि जिंदगी में बुद्धिमत्ता की कोई बात है, तो वह एकाग्रता है और यदि कोई खराब बात हैं तो वह है अपना शाक्तियों का बिखेर देना।’
इसका एक अच्छा उदाहरण विवेकानंद का है, एक दिन स्वामी विवेकानंद नदी के किनारे टहल रहे थे। उन्होंने देखा कि कुछ नवयुवक पुल पर खड़े होकर पानी की धार में तैर रहे अंडों पर निशाना लगा रहे हैं। सभी अंडे धागे में बंधे हुए थे। दूसरे किनारे पर पत्थर बंधा हुआ था, जिसके कारण अंडे पानी के बहाव में बह नहीं सकते थे। बड़ी देर से स्वामीजी नवयुवकों के इस असफल प्रयास को देखकर मुस्करा रहे थे। लहरों के कारण अंडे लगातार इधर-उधर हिल-डुल रहे थे, इसलिए निशाना लगाना सरल काम नहीं था। एक युवक ने स्वामीजी को मुस्कराते देख लिया और वह व्यंग्यात्मक आवाज में बोला- ‘आप हम पर हंस रहे हैं, यदि आप में क्षमता हो तो आप ही निशाना लगाकर बता दीजिए।’
स्वामीजी बोले- ‘लाओ भाई, जरा मैं भी प्रयास कर लूं।
उस नवयुवक ने आश्चर्य से देखा कि स्वामीजी ने एक-दो नहीं,
बल्कि एक दर्जन अंडों पर निरंतर निशाने लगा दिए। सभी युवक चकितं हो गए और वे एक स्वर में बोले- ‘लगता है कि
आप एक कुशल निशानेबाज़ हैं।’
विवेकानंद,ने मुस्कराते हुए कहा- ‘नहीं, मैंने अपने जीवन में पहली बार बंदूक उठाई है। देखो, लक्ष्य साधने की सफलता अभ्यास से । अधिक मन की एकाग्रता पर निर्भर करती है।’ लक्ष्य चुन लेने के बाद अपनी आंखें उसी पर जमाए रखें, अर्जुन की तरह।
दो नावों पर सवार होंने की कोशिश कभी न करें। एक लक्ष्य, जो निर्धारित किया है, उसी में आप तन- मन से लगे रहें। लक्ष्यविहीन व्यक्ति डाल से टूटे पत्ते की तरह भटकन की स्थिति में रहता है और जीवन में सफल नहीं हो पाता।
आपको कुछ तो समझ में आ गया होगा, कि मन चंचलता कोई बीमारी नहीं यह तो मन का स्वभाव है । बस इसे अभ्यास द्वारा धीरे – धीरे नियमित करना है । आप आज से ही यह आदत डालें आप जो काम करेंगे पूरा ध्यान वहीं रखेंगे । पढ़ाई करते समय 15-15 मिनट बैठे , उन 15 मिनट पूरा ध्यान बस वहीं और कहीं नहीं । मन को कह दो आपकी बात 15 मिनट बाद सुनेंगे । 15 मिनट बाद जो बात मन कह रहा था उसे सुन लो-कर लो । बस यही अभ्यास कुछ दिन चलने दो , फिर देखिए एकाग्रता आपका खिलोना बन जाऐगी । इस प्रकार लक्ष्य साधने की सफलता मन की एकाग्रता पर निर्भर करती है।
– Ravindra Narwriya
(Director & Life management coach)
[ ICS Academy,since1999 ]
*मुझे वो मिल गया, जो मुझे चाहिए था*
जिंदगी में हमारे ऊपर तमाम तरह की
परेशानियों और दुखों की धूल-मिट्टी गिरती रहती
है। हम इनको अपने ऊपर जमा होने से रोककर
निराशा के अंधकूप में गिरने और इस तरह दफन
होने से बच सकते हैं।
एक दिन की बात है। एक किसान का खच्चर एक कुएं में गिर गया। वह दर्द से बुरी तरह कराह रहा था और किसान उसको बाहर निकालने के लिए घंटों माथा-पच्ची करता रहा,लेकिन उसे कुछ भी नहीं सूझा। आखिरकार उसने अपने-आपको
समझाया की जानवर बूढ़ा हो गया है और इसलिए उसको निकालने को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है। बेहतर होगा कि कुएं में मिट्टी डालकर उसे पूरी तरह पाट दे और खच्चर को निकालने की बात भूल जाए।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को बुलाया और कुएं को पाटने में उसकी मदद करने के लिएशकहा। सभी ने फावड़ा हाथ में लिया और कुएं को मिट्टी से भरना शुरू कर दिया। पहले तो खच्चर को समझ में नहीं आया कि आखिरकार क्या हो रहा है, उसके ऊपर मिट्टी कहां से गिर रही है और उसने तेजी से चिल्लाना शुरू किया। लेकिन अचानक वह शांत हो गया, सभी आश्चर्यचकित रह गए। थोड़ी मिट्टी कुएं में गिराने के बाद किसान ने कुएं में झांककर देखा तो उसकी आंखें
फटी की फटी रह गईं। जितनी बार खच्चर के ऊपर मिट्टी गिरती थी वह झटकर उसे नीचे गिरा देता था और मिट्टी के ऊपर आ जाता था। इस तरह किसान मिट्टी गिराते रहे और खच्चर अपनी पीठ हिलाकर मिट्टी को नीचे गिरा देता और खुद मिट्टी के ऊपर आ जाता। हर एक के लिए आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि आखिरकार खच्चर कुएं से बाहर आ गया और खुशी -खुशी अपना रास्ता नापते चलता बना।
*किसी ने कहा है* –
# मैंने भगवान से मांगी शक्ति
उसने मुझे दीं कठिनाईंयां, हिम्मत बढ़ाने के लिए ।
# मैने भगवान से मांगी हिम्मत, उसने मुझे दीं परेशानियां,
उबर पाने के लिए ।
# मैंने भगवान से मांगी बुद्धि, उसने मुझे दीं उलझनें, सुलझाने के लिए ।
# मैने भगवान से मांगा प्यार ,उसने मुझे दिए दुखी लोग, मदद करने के लिए ।
# मैने भगवान से मांगें वरदान, उसने मुझे दिए अवसर, उन्हें पाने के लिए ।
*वो मुझे नहीं मिला जो मैंने मांगा*,
*मुझे वो मिल गया, जो मुझे चाहिए था* ।
जिंदगी में भी हमारे ऊपर तमाम तरह की परेशानियां और दुखों की धूल-मिट्टी गिरती रहती है, यदि हम भी इसे अपने ऊपर जमने न दें और झटकर अलग कर दें तब वही परेशानीयां और तकलीफ़ें हमारे लिए सीढ़ियां बन जाएंगी, जिस पर चढ़ कर हम ऊपर आ सकते हैं ।
– *Ravindra Narwriya ( Director & Life management coach )
[ *ICS Academy,since1999* ]
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वह 100 प्रतिशत सकारात्मक था
तीसरी शताब्दी के संत तिरुवल्लुवर कहते हैं, ‘उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का मापदण्ड’। हमारे नजरिया की दिशा ही हमें सफल और असफल सिद्ध करती है । IQ को लेकर मतभेद हो सकता हैं किन्तु सकारात्मक नजरिया को लेकर नहीं, बिल्कुल वैसा ही है जैसे सीढ़ियां, जो लिफ्ट अप्राप्त होने पर आपको लक्ष्य तक पहुँचा देती हैं । वैसे ही आपकी सोच सकारात्मक होने पर आपको बुद्धिमान बना देती है ।
आम में कितनी बुद्धि है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है वह ‘चिंतन’ या वह ‘नजरिया’ जो आपकी बुद्धि को दिशा दिखा रहा है। बड़ी-बड़ी डिग्रियां भी इस मूलभूत सफलता के सिद्धांत के सामने हार जाती हैं। अमेरिका के प्रखर वक्ता और प्रसिद्ध पुस्तक ‘The magic of thinking big’ के लेखक डेविड जे. श्वार्टज अपने जीवन का एक अनुभव बताते हुए लिखते हैं,
कई साल पहले मैं अपने करीबी दोस्त फिल के ऑफिस में बैठा था। फिल एक बड़ी एडवरटाजिंग
एजेंसी में ऑफिसर था। फिल अपनी एजेंसी के मार्केटिंग रिसर्च का निदेशक था और इसका काम जोरदार चल रहा
था। क्या फिल बहत दिमाग वाला था बिलकुल नहीं। फिल को रिसर्च तकनीक का जरा भी ज्ञान नहीं था। उसे आंकड़ों
की बिलकुल समझ नहीं थी। वह कॉलेज ग्रेजुएट भी नहीं था, हालांकि उसके सभी मातहत कर्मचारी कॉलेज ग्रेजुएट थे.
तो फिर फिल में ऐसी क्या बात थी कि उसे साल भर में 30,000 डॉलर मिलते थे, जबकि उसके मातहतों को
सिर्फ 10,000 डॉलर ही मिलते थे दरअसल, इंसानों का इंजीनियर था। वह 100 प्रतिशत सकारात्मक था। जब
लोगों का उत्साह ठंडा पड़ जाता था, तो फिल उन्हें प्रेरित कर सकता था। फिल उत्साही था, वह उत्साह पैदा कर सकता
था। उसे लोगों की समझ थी और इसलिए वह सचमुच जानता था कि उनसे कैसे काम लिया जा सकता है और इससे भी बड़ी बात यह थी कि वह उन लोगों को
पसंद करता था। लोग भी उसे उतना ही पसंद करते थे। यही वजह थी कि कंपनी ने फिल को उन कर्मचारियों से तीन गुना
ज्यादा बहुमूल्य समझा जिनमें उससे ज्यादा आई क्यू (IQ) या दिमाग था और निश्चित रूप से फिल में बद्धि तो कम थी,
परंतु उसके सोचने के तरीके या नजरिये ने उसे कंपनी के लिए इतना मूल्यवान बना दिया था।
-Ravindra narwriya, life managment coach
प्रतिकूल परिस्थितियों का निर्भयता से सामना करना ही आध्यात्मिकता है
भारत के एक प्रसिद्ध संन्यासी यूरोप प्रवास के दौरान फ्रांस में थे। वहां उनकी मेजबान महिला
ने देश घुमाने के लिए एक फिटन (घोड़ागाड़ी) किराए
से ली और दोनों पेरिस के बाहर एक गांव की ओर बढ़ने लगे। मार्ग में कोचवान ने फिटन एक जगह रोकी
और नीचे उतरा। मार्ग में एक आया कुछ बच्चों को ले जा रही थी। वे बच्चे रईस घराने के लग रहे था
कोचवान ने जाकर उन बच्चों को लाड़-दुलार किया और बातें कर वापस गाड़ी पर आ गया।
मेजबान महिला को आश्चर्य हुआ, उसने कोचवान से पूछा- ये बच्चे किसके हैं उसने जवाब दिया- आपने
अमुक बैंक का नाम सुना होगा, वह बैंक मेरी ही थी।
पिछले दिनों मुझे भारी घाटा हुआ और इस कारण वह बंद करना पड़ी। मैंने गांव में एक घर किराए पर लिया है, जहां मेरी पत्नी-बच्चे व घर की आया रहती है। मैं यह फिटन चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करता हूं। मुझे कुछ लेनदारों से पैसा लेना है। जैसे ही मुझे वह रकम मिल जाएगी, मैं फिर से बैंक चालू कर दूंगा। यह मेरी इच्छा है। कोचवान की बात सुनकर वे संन्यासी बहुत प्रभावित हुए।
उन्होंने लिखा है कि जिस वेदांत दर्शन की हम बात करते हैं, उस पर अमल मुझे उस बैंक मालिक के आचरण में देखने को मिला । एक सच्चे कर्मयोगी की तरह वह व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में नहीं डगमगाया
और निर्भयता से अपने कर्म और दायित्वों का निर्वाह करता रहा।
वेदांत दर्शन की यथार्थ शिक्षा यही है कि हम परिणामों की चिंता किए बिना एवं उनसे प्रभावित हुए बगैर निरंतर अपने कर्तव्य करते रहें। अपना आत्मिक सुख न गंवाएं और जीवन के हर उतार-चढ़ाव को सहज रूप में लें। प्रतिकूल परिस्थितियों का निर्भयता
से सामना करने का मार्ग ही आध्यात्मिकता है।
-Ravindra narwriya, life managment coach
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*उम्मीद* का दिया
एक घर मे *पांच दिए* जल रहे थे। एक दिन पहले एक दिए ने कहा – इतना जलकर भी *मेरी रोशनी की* लोगो को *कोई कदर* नही है… तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं। वह दिया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया । जानते है वह दिया कौन था ? वह दिया था *उत्साह* का प्रतीक । यह देख दूसरा दिया जो *शांति* का प्रतीक था, कहने लगा – मुझे भी बुझ जाना चाहिए। निरंतर *शांति की रोशनी* देने के बावजूद भी *लोग हिंसा कर* रहे है और *शांति* का दिया बुझ गया.
उत्साह* और *शांति* के दिये के बुझने के बाद, जो तीसरा दिया *हिम्मत* का था, वह भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया। *उत्साह*, *शांति* और अब *हिम्मत* के न रहने पर चौथे दिए ने बुझना ही उचित समझा। *चौथा* दिया *समृद्धि* का प्रतीक था। सभी दिए बुझने के बाद केवल *पांचवां दिया* *अकेला ही जल* रहा था। हालांकि पांचवां दिया सबसे छोटा था मगर फिर भी वह *निरंतर जल रहा* था।
तब उस घर मे एक लड़के ने प्रवेश किया। उसने देखा कि उस घर मे सिर्फ *एक ही दिया* जल रहा है। वह खुशी से झूम उठा। चार दिए बुझने की वजह से वह दुखी नही हुआ बल्कि खुश हुआ। यह सोचकर कि *कम से कम* एक दिया तो जल रहा है। उसने तुरंत *पांचवां दिया उठाया* और बाकी के चार दिए *फिर से* जला दिए । जानते है वह *पांचवां अनोखा दिया* कौन सा था ? वह था *उम्मीद* का दिया… इसलिए *अपने घर में* अपने *मन में* हमेशा उम्मीद का दिया जलाए रखिये । चाहे *सब दिए बुझ जाए* लेकिन *उम्मीद का दिया* नही बुझना चाहिए । ये एक ही दिया *काफी* है बाकी *सब दियों* को जलाने के लिए ….
जब आपकी सभी उम्मीदें टूट चूकी हो तो एक हमसे काउंसिलिंग अवश्य करें।
-Ravindra narwriya, life managment coach
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युद्ध से कब तक डरोगे …!
*पिता जी अपने बेटे को कुछ समझाते हुए महाभारत का रेफरेंस दे रहे थे।…*
*” बेटा, Conflict को जहाँ तक हो सके, avoid करना चाहिए !देखो महाभारत से पहले कृष्ण भी दुर्योधन के दरबार में यह प्रस्ताव लेकर गये थे कि हम युद्ध नहीं चाहते….*
*तुम पूरा राज्य रखो पाँडवों को सिर्फ पाँच गाँव दे दो…*
*वे चैन से रह लेंगे, तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे.*
बेटे ने पूछा – “पर इतना *unreasonable proposal* लेकर कृष्ण गए क्यों थे ?
अगर दुर्योधन प्रोपोजल एक्सेप्ट कर लेता तो..?
पिता :- नहीं करता….!
कृष्ण को पता था कि वह प्रोपोजल एक्सेप्ट नहीं करेगा…
*उसके मूल चरित्र के विरुद्ध था*.
फिर कृष्ण ऐसा प्रोपोजल लेकर गए ही क्यों थे..?
*वे तो सिर्फ यह सिद्ध करने गए थे कि दुर्योधन कितना अनरीजनेबल, कितना अन्यायी था.*
वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे,
कि देख लो बेटा…
युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा… हर हाल में…
अब भी कोई शंका है तो निकाल दो….मन से.
तुम कितना भी संतोषी हो जाओ,
कितना भी चाहो कि “घर में चैन से बैठूँ “…
*दुर्योधन तुमसे हर हाल में लड़ेगा ही*.
*”लड़ना…. या ना लड़ना” – तुम्हारा ऑप्शन नहीं है…”*
फिर भी बेचारे अर्जुन को आखिर तक शंका रही…
“सब अपने ही तो बंधु बांधव हैं….”
कृष्ण ने सत्रह अध्याय तक फंडा दिया…फिर भी शंका थी..
*ज्यादा अक्ल वालों को ही ज्यादा शंका होती है ना *
*दुर्योधन को कभी शंका नही थी*…
*उसे हमेशा पता था कि “उसे युद्ध करना ही है… “उसने गणित लगा रखा था….*
कैरियर बनाने के लिए युद्धस्तर पर काम करना ही होगा अब आपके पास भी कोई आॅप्शन नहीं है । जितनी जल्दी यह भ्रम दूर होगा उतना जल्द कैरियर निर्माण होगा ।
-Ravindra narwriya, life managment coach
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अंदर झांककर अपनी प्रतिभा को टटोलें
अब केवल पसंदीदा विषय में डिग्री लेना काफी नहीं है। अब नई चीजें सीखना व किताबें पढ़ना सिर्फ स्कूल-कॉलेज के साथ खत्म नहीं हो जाता। अब तो एक बार जॉब पा लेने के बाद भी आपको उसमें बने रहने के लिए तरह-तरह की चीजें सीखना व पढ़ना पड़ती हैं।
मैं अपने 20 वर्षों के प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी [ ICS ACADEMY(since1999) ] के अनुभव से यह दृढ़ता से कह सकता हूँ कि ये बातें आपके करियर निर्माण में आपकी बहुत मदद करेंगी –
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1. खुद में एक्सिलेंस लाएं– मौजूदा परिस्थिति में किताबी कीड़ा बनकर या डिग्रियों का ढेर लगाकर सफलता की कामना नहीं की जा सकती है। अपने अंदर झांककर अपनी प्रतिभा को टटोलें कि किन क्षेत्रों में आप अपनी दक्षता को विकसित कर बाजी मार सकते हैं। जो क्षेत्र आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे, उसमें विशेषज्ञों की सलाह लेकर अपना कौशल बढ़ाएं।
2. आत्मविश्वास विकसित करें– जीवन के कुरुक्षेत्र में आधी लड़ाई तो आत्मविश्वास द्वारा ही लड़ी जाती है। यदि योग्यता के साथ आत्मविश्वास विकसित किया जाए तो करियर के कुरुक्षेत्र में आपको कोई पराजित नहीं कर पाएगा। अध्ययन के साथ-साथ उन गतिविधियों में भी हिस्सा लें, जिनसे आपका आत्मविश्वास बढ़े। कार्यशालाओं और व्यक्तित्व विकास वाली संस्थाओं में यही सब तो किया जाता है।
3. कॉन्टैक्ट बढ़ाएं- याद रखें यह जमाना ही सूचना प्रौद्योगिकी का है। यहां जितनी जानकारी, जितनी सूचनाएं आपके पास होंगी, करियर निर्माण की राह उतनी ही आसान होगी। कूपमंडूकता छोड़ें, ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलें, उन्हें अपनी जानकारी दें, उनकी जानकारी लें। आपके जानने वालों का संजाल जितना लंबा होगा सफलता उतनी ही आपके करीब होगी। क्योंकि संपर्क, सफलता में उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है।
4. तकनीक के साथ साथ चलें– पुराना भले ही सुहाना माना जाता हो, लेकिन आज की प्रतिस्पर्धा में नई तकनीक का महत्व नकारा नहीं जा सकता है। किसी भी क्षेत्र में प्रवेश से पहले पूछा जाता है, क्या कम्प्यूटर चलाना आता है? कम्प्यूटर के आधारभूत ज्ञान के बजाय थोड़ी ज्यादा दिलचस्पी दिखाएं क्योंकि यही वह अलादीन है, जो करियर निर्माण की हर मांग को पूरा कर सकता है।
5. परिवार से मुंह न मोड़ें– अकसर देखा गया है कि करियर निर्माण की चिंता में लोग घर-परिवार को भूल जाते हैं। परेशानी और तकलीफ के वक्त परिवार ही काम आता है, इसलिए परिवार को पर्याप्त समय दें। पारिवारिक आमोद-प्रमोद से करियर का संघर्ष आसान हो जाता है तथा आप तनावमुक्त होकर करियर निर्माण की राह पर अग्रसर हो सकते हैं।
6. दूसरों से व्यवहार करना सीखें– आपका संघर्ष, आपकी परेशानी नितांत निजी मामला है। इसका असर दूसरों के साथ अपने व्यवहार में न आने दें। जो सभी के साथ मिलकर काम करना सीख लेता है वह पीछे मुड़कर नहीं देखता क्योंकि टीमवर्क के रूप में कार्य करना ही मैनेजमेंट का मूलमंत्र है।
7. डींगें न हांकें, ईमानदार रहें- झूठ ज्यादा देर टिकता नहीं है। अपने बारे में सही आकलन कर वास्तविक तस्वीर पेश करें। निष्ठापूर्ण व्यवहार की सभी कद्र करते हैं। अपने काम के प्रति आपकी ईमानदारी आपको करियर निर्माण में सर्वोच्च स्थान दिला सकती है। भूलें नहीं, कार्य ही पूजा है।
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8. ओवर एंबिशियस न बनें- प्रत्येक इंसान में महत्वाकांक्षा का होना जितना अच्छा है, उसकी अतिमहत्वाकांक्षा उतनी ही नुकसानदायक होती है क्योंकि ‘अति सर्वत्र वर्जयेत।’ किसी करिश्मे की उम्मीद न करें। सभी चीजें समय पर ही मिलती हैं। पहले अनुभव प्राप्त करें, फिर आकांक्षा करें।
9. वक्त के अनुसार खुद को बदलें– आज करियर निर्माण बाजार में उपलब्ध उपभोक्ता वस्तुओं की तरह हो गया है। प्रतिस्पर्धा के बाजार में वही वस्तु टिक सकती है, जिसमें समयानुसार ढलने की प्रवृत्ति हो। करियर के बाजार में अपना मूल्य समझें और स्वयं को बिकाऊ बनाने का प्रयास करें। ध्यान रहे ‘परिवर्तन ही संसार का नियम है।’
10. वैसे तो करियर निर्माण की कई राहें हैं, लेकिन मनचाहे क्षेत्र में करियर निर्माण की राह तलाश करना इतना आसान नहीं है। आज के बदलते परिवेश में अच्छा करियर हासिल करने के लिए कई क्षेत्रों में पारंगत होना पड़ता है और अपनी योग्यताओं को लगातार विकसित करना होता है।
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11. नई तकनीक के उस्ताद बनें– नई तकनीक की करियर निर्माण में हमेशा मांग रहती है। इससे पहले कि कोई नई तकनीक पुरानी हो जाए आप उसके उस्ताद बन जाएं। जैसे-जैसे नई तकनीक आती जाए आप उससे तालमेल करना सीख लें। अपने ज्ञान को परिमार्जित करते रहें। भविष्य उसी का होता है, जो अपने को श्रेष्ठतम तरीके से अनुकूल रूप से ढाल लेता है।
Ravindra narwriya
Director & Life management coach
Email- examguider2014@gmail.com
समय_की_सीख_या_समय_से_सीख
जब बाबर ने अपने घोड़ों का मुँह भारतवर्ष की ओर मोड़ा था उस समय उसकी पलटन में मात्र दस हज़ार सैनिक थे। फिर ये चमत्कार कैसे हुआ की उसकी क्षीणतम सेना ने महान और शक्तिशाली भारतवर्ष को अपने अधिकार में ले लिया ?
ऐसा क्या हुआ कि मुट्ठी भर बबरिया सैनिकों ने मन भर के भारत को अपने आधिपत्य में ले लिया ?
कहा जाता है की बाबर हमारी सैन्य शक्ति को देख लौटने पर विवश हो गया था किंतु जिस रात वह लौटने का मन बना रहा था उस रात उसने भारतीय राजा के विशाल सैन्य शिविर में कई अलग-अलग स्थानों पर आग जलते हुए देखी उसने अपने सेना नायक से इन अग्नि खंडों का कारण जानना चाहा तो उसे पता चला की ये अलग- अलग चूल्हों में जलने वाली आग है, ये भारतीय सैनिक हैं जो अपनी रसोई बना रहे हैं वे विभिन्न वर्गों और वर्णों में बँटे हुए हैं ये एक दूसरे के साथ भोजन नही करते।
बस फिर क्या था ! बाबर के हताश मन में आशा की चिंगारी सुलग गई उसने विचार किया की जिस सेना में सैनिक एक दूसरे को समान नही मानते, जो वर्गों, वर्णों में बँटे हुए हैं, जो अपने ही लोगों को हीनता की दृष्टि से देखते हैं, जो अपनों का ही अपमान करने में विश्वास करते हैं जो एक दूसरे के मान की रक्षा करने के स्थान पर एक दूसरे को अपमानित करते हुए स्वयं के अभिमान को पुष्ट करते हैं वे बाहर से भले ही विशाल, शक्तिशाली, और अखंड दिखाई दें किंतु अंदर से बुरी तरह खंडित होते हैं, ऐसे लोगों को शक्ति से नही युक्ति से परास्त किया जा सकता है। और तब बाबर ने लौटने का विचार छोड़ दिया, उसने भारत की शक्ति को भारत के विरुद्ध ही इस्तेमाल करते हुए मुग़ल साम्राज्य की नींव रख दी।
इतिहास में दर्ज कारणों पर ग़ौर करेंगे तो हम पाएँगे कि भारत की पराजय का कारण कोई और नही हम भारतीय ही थे, हमारा एक दूसरे के प्रति घोर अविश्वास, एक दूसरे को मिटाकर समाप्त कर देने लालसा, एक दूसरे के लिए नफ़रत, वैमनस्य, शंका, भर्त्सना का भाव, एक दूसरे को अपमानित, कुंठित करने की इच्छा ही हमारी पराजय के मूल में थी।
हम एक देश में रहने के बाद भी एक दूसरे को हेय दृष्टि से देखते थे, अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए हम अपने ही लोगों को अश्रेष्ठ साबित करने का प्रयास करते थे, हमारी योग्यता का प्रमाण हमारा कर्म नहीं अपितु किसी दूसरे को अयोग्य साबित करना हो गया था।
जब हम स्वयं ही एक दूसरे को मिटा देना चाहते हों, हम स्वयं ही एक दूसरे के लिए ईर्ष्या, क्रोध, कुंठा से भरे हुए एक दूसरे को अपमानित करने की चाहत से भरे हुए हों तब किसी अन्य को हमें पराजित करने के लिए उद्यम नही करना पड़ता।
किसी शायर ने कहा है-
“ना झगड़ें हम आपस में, झगड़कर टूट जाएँगे।
तुम्हारा आइना हम हैं, हमारा आइना तुम हो॥”
स्मरण रखिए- किसी और से लड़कर तो हम विजय प्राप्त कर सकते हैं किंतु स्वयं के विरुद्ध छेड़ा गया युद्ध हमें पराजय की पीड़ा देता है।~#आशुतोष_राणा
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17 वीं लोकसभा चुनाव
26 जनवरी की परेड से जुड़े रोचक तथ्य
- हम सभी को पता है कि हर वर्ष 26 जनवरी की परेड का आयोजन नई दिल्ली स्थित राजपथ पर किया जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि1950 से लेकर 1954 ईस्वी तक परेड का आयोजन स्थल राजपथ नहीं था? इन वर्षों के दौरान 26 जनवरी की परेड का आयोजन क्रमशः इरविन स्टेडियम (अब नेशनल स्टेडियम), किंग्सवे, लाल किला और रामलीला मैदान में किया गया था. 1955 ईस्वी से राजपथ 26 जनवरी की परेड का स्थायी आयोजन स्थल बन गया. उस समय राजपथ को “किंग्सवे” के नाम से जाना जाता था.
- 26 जनवरी की परेड के दौरान हर साल किसी ना किसी देश के प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति/शासक को अतिथि के रूप में बुलाया जाता है.26 जनवरी 1950 को आयोजित पहले परेड में अतिथि के रूप मेंइंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो को आमंत्रित किया गया था. जबकि 1955 में राजपथ पर आयोजित पहले परेड में अतिथि के रूप में पाकिस्तान के गवर्नर जेनरल मलिक गुलाम मोहम्मद को आमंत्रित किया गया था.
दक्षिण अफ्रीका के पांचवें और वर्तमान राष्ट्रपति मैटामेला सिरिल रामफोसा, भारत के 70 वें गणतंत्र दिवस 2019 के मुख्य अतिथि होंगे.
- 26 जनवरी की परेड की शुरूआत राष्ट्रपति के आगमन के साथ होती है. सबसे पहले राष्ट्रपति के घुड़सवार अंगरक्षकों के द्वारा तिरंगे को सलामी दी जाती है,उसी समय राष्ट्रगान बजाया जाता है और 21 तोपों की सलामी दी जाती है. लेकिन क्या आप जानते है कि वास्तव में वहां 21 तोपों द्वारा फायरिंग नहीं की जाती है? बल्कि भारतीय सेना के7 तोपों, जिन्हें “25 पौन्डर्स” कहा जाता है, के द्वारा तीन-तीन राउंड की फायरिंग की जाती है.
- परेड के दिन परेड में भाग लेने वाले सभी दल सुबह 2 बजे ही तैयार हो जाते हैं और सुबह 3 बजे तक राजपथ पर पहुँच जाते हैं. लेकिन परेड की तैयारी पिछले साल जुलाई में ही शुरू हो जाती है जब सभी दलों को परेड में भाग लेने के लिए अधिसूचित किया जाता है. अगस्त तक वे अपने संबंधित रेजिमेंट केन्द्रों पर परेड का अभ्यास करते हैं और दिसंबर में दिल्ली आते हैं. 26 जनवरी की परेड में औपचारिक रूप से भाग लेने से पहले तक विभिन्न दल लगभग600 घंटे तक अभ्यास कर चुके होते हैं.
- परेड में शामिल होने वाले टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों तथा भारत की सामरिक शक्ति को प्रदर्शित करने वाले अत्याधुनिक उपकरणों के लिए इंडिया गेट परिसर के भीतर एक विशेष शिविर बनाया जाता है. प्रत्येक हथियार की जाँच एवं रंग-रोगन का कार्य 10 चरणों में किया जाता है.
- 26 जनवरी की परेड के लिए हर दिन अभ्यास के दौरान और फुल ड्रेस रिहर्सल के दौरान प्रत्येक दल 12 किमी की दूरी तय करती है जबकि परेड के दिन प्रत्येक दल 9 किमी की दूरी तय करती है.पूरे परेड के रास्ते पर जजों को बिठाया जाता है जो प्रत्येक दल पर 200 मापदंडों के आधार पर बारीकी से नजर रखते हैं, जिसके आधार पर “सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग दल” को पुरस्कृत किया जाता है.
- 26 जनवरी की परेड के शरूआत से लेकर अंत तक हर गतिविधि सुनियोजित होती है. अतः परेड के दौरान छोटी-से-छोटी गलती या कुछ ही मिनटों के विलम्ब के कारण भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
- परेड में भाग लेने वाले प्रत्येक सैन्यकर्मी को चार स्तरीय सुरक्षा जाँच से गुजरना पड़ता है. इसके अलावा उनके द्वारा लाए गए हथियारों की गहन जाँच की जाती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनके हथियारों में जिन्दा कारतूस तो नहीं है.
- परेड में शामिलसभी झांकियां 5 किमी/घंटा की गति से चलती हैं ताकि गणमान्य व्यक्ति इसे अच्छे से देख सके. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन झांकियों के चालक एक छोटी सी खिड़की के माध्यम से वाहनों को चलाते है.
- परेड का सबसे रोचक हिस्सा “फ्लाईपास्ट” होता है. इस फ्लाईपास्ट की जिम्मेवारीपश्चिमी वायुसेना कमान के पास होती है जिसमें 41 विमान भाग लेते हैं. परेड में शामिल होने वाले विभिन्न विमान वायुसेना के अलग-अलग केन्द्रों से उड़ान भरते हैं और तय समय पर राजपथ पर पहुँच जाते है.
- प्रत्येक गणतंत्र दिवस परेड में गीत“Abide with Me (मेरे पास रह)” निश्चित रूप से बजाया जाता है क्योंकि यह महात्मा गांधी का पसंदीदा गीत था.
- परेड में भाग लेने वाले सेना के जवान स्वदेश में निर्मित“इंसास (INSAS)” राइफल लेकर चलते हैं जबकि विशेष सुरक्षा बल के जवान ईजराइल में निर्मित “तवोर (Tavor)” राइफल लेकर चलते हैं.
- RTI से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2014 में 26 जनवरी की परेड के आयोजन में लगभग320 करोड़ रूपये खर्च किये गए थे. जबकि 2001 में यह खर्च लगभग 145 करोड़ था. इस प्रकार 2001 से लेकर 2014 के दौरान 26 जनवरी की परेड के आयोजन में होने वाले खर्च में लगभग 54.51% की वृद्धि हुई है.
ईश्वर से फरियाद
एक व्यक्ति का दिन बहुत खराब गया। उसने रात को ईश्वर से फरियाद की। उसने कहा: भगवान, आप गुस्सा न हों तो एक प्रश्न पूछॅंू भगवान ने कहा: ‘पूछ, जो पूछना हो पूछ।‘
व्यक्ति ने कहा: ‘भगवान, आपने आज मेरा पूरा दिन एकदम खराब क्यों किया भगवान हॅंसे…. पूछा: ‘पर हुआ क्या‘ व्यक्ति ने कहा: ‘सुबह अलार्म नहीं बजा, मुझे उठने में देरी हो गई….।‘
भगवान ने कहा: ‘अच्छा फिर…। व्यक्ति ने कहा: ‘देर हो रही थी, उस पर स्कूटर बिगड़ गया। मुश्किल से रिक्शा मिला।‘ भगवान ने कहा: ‘अच्छा फिर…।‘
व्यक्ति ने कहा: टिफिन ले नहीं गया था, वहाॅं कैन्टीन भी बंद थी… एक सैन्डविच पर दिन निकाला, वो भी खराब थी।‘
भगवान केवल हॅंसे….
व्यक्ति ने फरियाद आगे चलाई, ‘मुझे आवश्यक काम के लिए महत्वपूर्ण फोन आया था और फोन बंद हो गया।‘
भगवान ने पूछा: ‘अच्छा फिर…।
व्यक्ति ने कहा: ‘विचार किया कि जल्दी घर जाकर सो जाऊॅं, पर घर पहुॅंचा तो लाईट नहीं थी। भगवान…. सब तकलीफें मुझे ही। ऐसा क्यों किया मेरे साथ
भगवान ने कहा: ‘देख, मेरी बात ध्यान से सुन…, आज तुझ पर कोई आफत आनी थी।
मैंने देवदूत को भेजकर अलार्म बजे ही नहीं ऐसा किया।
स्कूटर से एक्सीडेंट होने का डर था इसलिए स्कूटर बिगाड़ दिया।
कैन्टीन में खाने से फूड प्वाॅइज़न हो जाता। फोन पर बड़ी काम की बात करने वाला आदमी तुझे बड़े घोटाले में फॅंसा देता। इसलिए फोन बंद कर दिया।
तेरे घर में आज शाॅर्ट सर्किट से आग लगती, तू सोया रहता और तुझे खबर ही नहीं पड़ती इसलिए लाईट बंद कर दी।
मैं हूॅं ना…., मैंने सब तुझे बचाने के लिए किया।‘
तो व्यक्ति ने कहा: ‘भगवान, मुझसे भूल हो गई। मुझे माफ कीजिए। आज के बाद फरियाद नहीं करूंगा।भगवान ने कहा: ‘माफी मांगने की ज़रूरत नहीं, परंतु विश्वास रखना कि मैं हूॅं ना…, मैं जो करूंगा, जो योजना बनाऊॅंगा, वो तेरे अच्छे के लिए ही।
जीवन में जो कुछ अच्छा – खराब होता है, उसकी सही तस्वीर लम्बे वक्त के बाद समझ में आती है
मेरे कोई भी कार्य पर शंका न कर, श्रद्धा रख।
जीवन का भार अपने ऊपर लेकर घूमने के बदले मेरे कंधों पर रख.
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RAVINDRA NARWRIYA
CEO – FULL MOON EDUCATION
■ ICS Academy(since1999)
(For civil service & others Govr.competition class)
■ YouTube channel – CAREER INDIA
(Career & Education Based programme)
■ WEBSITE – www.examguider.com
■ संस्कृति प्रकाशन (प्रतियोगी, ज्ञानवर्धक व आध्यात्मिक पुस्तकों का प्रकाशन)
चलते रहोगे, तो मंजिल तक पहुंच ही जाओगे…
यदि हम समझते हैं कि हमारे जीवन का कुछ लक्ष्य, अथवा उद्देश्य है, तो हमारा कर्तव्य है कि हम तब तक प्रयत्न करते रहें जब तक निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करके अपेक्षित उद्देश्य की पूर्ति न कर दें। गति विश्व का नियम है और वह प्रत्येक अणु – परमाणु का स्वभाव है गतिहीन अथवा कर्तव्यहीन होना मृत्यु को आमन्त्रण देना है, यदि हम चाहते हैं कि मृत्यु हम से दूर रहे तो हमको निरन्तर कर्म में लगे रहकर गतिशील बने रहना चाहिए, गीताकार ने इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण बात कही है कि लौकिक अथवा पारलौकिक किसी दृष्टि से विचार कर लिया जाए, मनुष्य को कर्म तो करते ही रहना है, लोक व्यवहार की दृष्टि से हम कह सकते हैं कि कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं हो सकता।
कर्म न करने वाले, कर्तव्य – पालन न करने वाले, व्यक्ति को लोग कायर, प्रमादी, कामचोर आदि न मालूम क्या क्या कहते हैं। इन समस्त लांछनों से बचने के लिए हमें कर्म करते रहना चाहिए, अपने जीवन को गतिमय रखना चाहिए, परलौकिक दृष्टि से भी शांतिमय जीवन की अनिवार्यता स्वयं सिद्ध है, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी कर्म में बरतते हैं।
कर्म एवं कर्तव्य पालन की इतनी महिमा को जान लेने के उपरांत हमको समझ लेना चाहिए कि हमें निरन्तर कर्म करते रहना है, कर्म के बिना न तो जीवन सम्भव है और न किसी प्रकार की उपलब्धि ही सम्भव है तब हम कौन से कर्म करें ? इसका उत्तर यह है कि हम जो भी लक्ष्य निर्धारित करें, हम जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अग्रसर हों, उसकी प्राप्ति हेतु किए जाने वाले समस्त कर्म पूरी निष्ठा के साथ करें। आवश्यक नहीं है कि हम निरन्तर एवं अनवरत रूप से सफलता के सोपानों पर चढ़ते ही चले जाएॅं। मार्ग में बाधायें। आ जाने पर, हमारा आगे बढ़ना रूक भी सकता है, हम ठोकर खाकर गिर भी सकते हैं। तथा तात्कालिक दृष्टि से असफल भी हो सकते हैं।
परन्तु चलना तो है ही। रास्ते में गिर पड़ने की दशा में हमें चाहिए कि हम धूल झाड़कर उठ बैठें और फिर आगे बढ़ने का प्रयत्न करें। काम करने वाले को दो में से एक चीज मिलती है। सफलता अथवा असफलता। असफलता के बाद व्यक्ति जैसे ही आगे बढ़ने का प्रयत्न करना आरम्भ कर देता है। वैसे ही उसी क्षण असफलता पीछे रह जाती है, और कोई व्यक्ति यह नहीं कह पाता है कि इन्होंने प्रयत्न करना छोड़ दिया तथा हाथ पर हाथ रखकर बैठ गए हैं यदि उसको अगले प्रयत्न की प्रेरणा के रूप में ग्रहण किया जाए तो असफलता भी एक प्रकार की उपलब्धि है, तभी तो विवाद ग्रस्त एवं क्लीववत् व्यवहार करने वाले गाण्डीवधारी अर्जुन को कर्म के प्रति, कर्तव्य पालन के प्रति प्रेरित करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि –
हतो वा प्राप्यसि स्वर्ग
जित्वा वा मोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृत निश्चयः।
अर्थात् या तो मरकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा जीतकर पृथ्वी को भोगेगा, इसलिए हे अर्जुन युद्ध के लिए निश्चय वाला होकर खड़ा हो। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमारे मन में यदि उत्साह है और हम निष्ठापूर्वक प्रयत्न करते रहते हैं तो कोई कारण नहीं है कि हमको सफलता प्राप्त न हो, हम अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लें, हमें समझ लेना चाहिए कि किए गए प्रत्येक प्रयत्न के साथ, उठाए गए प्रत्येक कदम के साथ हम सफलता की ओर, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाते हैं, जीवन और जगत के इसी सत्य को लक्ष्य करके महात्मा गांधी कहा करते थे कि ‘‘सत्याग्रही की कभी हार नहीं होती है‘‘लक्ष्य पथ पर अग्रसर साधक को बाधाओं का सामना करना ही पड़ता है, जब उसका धैर्य डगमगाने लगता है और सहन शक्ति जवाब सा देने लग जाती है। ऐसे अवसरों पर ही लक्ष्य के प्रति निष्ठा एवं प्रयत्न के प्रति लगन की परीक्षा होती है। जो अविचलन बने रहते हैं, वे उपहास के पात्र बन जाते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि हम अन्ततः सफल हुए हैं अथवा नहीं। हम कितनी बार में अथवा कितनी देर में सफल हुए हैं। इसका न महत्व रहता है और न काल देवता इसका लेखा रखते हैं। महात्मा विदुर कहते हैं कि – पंडित एवं ज्ञानी वही है जिसमें उद्योग के प्रति निष्ठा, दुख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता – ये गुण होते हैं।
श्रीमद्भागवत का यह कथन मनन करने योग्य है –
सिद्धयसिद्धयोः समं कुर्याद् दैवं हि फलवसाधनम्
अर्थात् मनुष्य को चाहिए, सफलता हो अथवा असफलता, दोनों के प्रति समभाव रखकर अपना काम करता
जाए – फल देव की प्रेरणा से मिलते हैं ‘‘ईश्वर में विश्वास करने वाले व्यक्तियों से कवि मैथिलीशरण गुप्त
कहते हैं कि हमें अपना कर्तव्य करना चाहिए, एक न एक दिन ईश्वर की दया अवश्य होगी। यह हम भी
जानते हैं कि संसार में सुकरात, गैलिलिया, ईसा, मुहम्मद मंसूर, गुरू गोविंद सिंह, गांधी आदि जो बड़े लोग
हो गए हैं और जिनकी कीर्ति – कौमुदी द्वारा मनुष्य जाति का इतिहास प्रकाशित है, वे सब जीवनभर लक्ष्य
के प्रति समर्पित रहकर कर्मपथ के पथिक बने रहे थे। हमको सी. डब्ल्यू बैंडेल की यह बात बहुत अच्छी लगती है कि सफलता प्रतिभा और अवसर की अपेक्षा केंद्रित है, बचपन में पढ़ाई जाने वाली राजा और मकड़े की कहानी ने भी हमको यही शिक्षा दी थी कि दीवाल पर चढ़ने में प्रयत्नशील मकड़ा अनेक बार गिरने के बाद भी हतोत्साहित नहीं हुआ और तब तक प्रयत्नशील बना रहा। जब तक वह दीवाल के ऊपर नहीं पहुंच गया। हम अपने लक्ष्य को महत्वपूर्ण समझें और उसकी प्राप्ति हेतु प्रयत्न करते समय आनन्द की अनुभूति करें, सफलता अवश्य ही हमारे चरणों में दिखाई देगी। विचारक थोरो प्रायः कहा करते थे कि ‘‘ वही सफल होता है जिसका कार्य उसे निरन्तर आनन्द देता है। ‘‘ मनन करने की बात यह है कि सफलता का मार्ग प्रायः एक निसैनी सा (ladder) के समान होता है जिसमें एक – एक कदम रखकर ऊपर की ओर चढ़ना सम्भव होता है, जो लोग सफलता के मार्ग को कबंध के सहारे तय करना चाहते हैं, अथवा यह समझते हैं कि जिस प्रकार कबंध लगाकर आक्रमणकारी योद्धा किले की दीवाल पर एक दम पहुंच जाता है, उसी प्रकार हम सफलता के शीर्ष पर छलांग लगाकर पहुंच सकते हैं, वे भूल जाते हैं कि कबंध के टूट जाने पर योद्धा के सामने मृत्यु होती है, दुबारा प्रयत्न के विकल्प के लिए कोई अवसर नहीं रह जाता है।
हैलेन कैलर (Hellen Keller) का यह सूत्र हमारा प्रेरणा स्त्रोत होना चाहिए – We Can do anything we want to do if we stick to it long enough र्थात् उद्योग और अध्यवसाय द्वारा हम प्रत्येक कार्य को सफलतापूर्वक सम्पादित कर सकते हैं। जीवन निर्माण की यात्रा में यह ऋषि वाक्य हमारे मन में प्रतिफल निनादित होते रहना चाहिए – उठो, जागो, तब तक चलो, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
RAVINDRA NARWRIYA
CEO – FULL MOON EDUCATION
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भारत में आरक्षण का इतिहास
आजादी से पहले
* 1882 में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में हंटर कमीशन का गठन हुआ। महात्मा ज्योतिराव फुले ने वंचित तबके के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा की वकालत करते हुए सरकारी नौकरियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की मांग की।
* 1891 में त्रावणकोर रियासत में सिविल नौकरियों में देसी लोगों की बजाय बाहरी लोगों को तरजीह देने के खिलाफ सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग हुई।
* 1901-02 में कोल्हापुर रियासत के छत्रपति शाहूजी महाराज ने वंचित तबके के लिए आरक्षण व्यवस्था शुरू की। सभी को मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित कराने के साथ छात्रों की सुविधा के लिए अनेक हॉस्टल खोले। उन्होंने ऐसे प्रावधान किए ताकि सभी को समान आधार पर अवसर मिल सके। देश में वर्ग-विहीन समाज की वकालत करते हुए अस्पृश्यता को खत्म करने की मांग की। 1902 में कोल्हापुर रियासत की अधिसूचना में पिछड़े/वंचित समुदाय के लिए नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की गई। देश में वंचित तबके के लिए आरक्षण देने संबंधी आधिकारिक रूप से वह पहला राजकीय आदेश माना जाता है।
* 1908 में अंग्रेजों ने भी प्रशासन में कम हिस्सेदारी वाली जातियों की भागीदारी बढ़ाने के प्रावधान किए।
आजादी के बाद:-
– अनुसूचित जातियों और जनजातियों को शुरुआत में 10 वर्षों के लिए आरक्षण दिया गया। उसके बाद से उस समय-सीमा को लगातार बढ़ाया जाता रहा है।
मंडल कमीशन :-
* मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए 1979 में इस आयोग का गठन किया। उसके अध्यक्ष संसद सदस्य बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल थे। आकलन के आधार पर सीटों के आरक्षण और कोटे का निर्धारण करना भी आयोग का मकसद था।
* इसके पास अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) में शामिल उप-जातियों का वास्तविक आंकड़ा नहीं था। आयोग ने 1930 के जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर 1,257 समुदायों को पिछड़ा घोषित करते हुए उनकी आबादी 52 प्रतिशत निर्धारित की। 1980 में कमीशन ने अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए इसमें पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी शामिल करते हुए कोटे की मौजूदा व्यवस्था को 22 प्रतिशत से बढ़ाते हुए 49.5 प्रतिशत तक करने का सुझाव दिया। इसमें ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत का प्रावधान किया गया। 1990 में वीपी सिंह की सरकार ने इसके सुझावों को लागू किया।
* इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। कोर्ट ने आरक्षण व्यवस्था को वैधानिक ठहराते हुए व्यवस्था दी कि आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
संवैधानिक प्रावधान
* संविधान के भाग तीन में समानता के अधिकार की भावना निहित है। इसके अंतर्गत अनुच्छेद 15 में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति के साथ जाति, प्रजाति, लिंग, धर्म या जन्म के स्थान पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। 15(4) के मुताबिक यदि राज्य को लगता है तो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए वह विशेष प्रावधान कर सकता है।
* अनुच्छेद 16 में अवसरों की समानता की बात कही गई है। 16(4) के मुताबिक यदि राज्य को लगता है कि सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो वह उनके लिए पदों को आरक्षित कर सकता है।
* अनुच्छेद 330 के तहत संसद और 332 में राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं।
भारत में आरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है| यहां आजादी से पहले ही नौकरियों और शिक्षा में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देने की शुरुआत हो चुकी थी। इसके लिए विभिन्न राज्यों में विशेष आरक्षण के लिए समय-समय पर कई आंदोलन हुए हैं| जिनमें राजस्थान का गुर्जर आंदोलन, हरियाणा का जाट आंदोलन और गुजरात का पाटीदार (पटेल) आंदोलन प्रमुख हैं|
क्यों समान नागरिक संहिता भारत के लिए जरुरी है
- 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ| भारतीय संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछले वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष धाराएं रखी गयी हैं। इसके अलावा 10 सालों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए थे| (हर दस साल के बाद सांविधानिक संशोधन के जरिए इन्हें बढ़ा दिया जाता है)|
- 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग का गठन किया गया था| इस आयोग के द्वारा सौंपी गई अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अन्य पिछड़ी जाति (OBC) के लिए की गयी सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया|
- 1979 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग की स्थापना की गई थी| इस आयोग के पास अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के बारे में कोई सटीक आंकड़ा था और इस आयोग ने ओबीसी की 52% आबादी का मूल्यांकन करने के लिए 1930 की जनगणना के आंकड़े का इस्तेमाल करते हुए पिछड़े वर्ग के रूप में 1,257 समुदायों का वर्गीकरण किया था|
- 1980 में मंडल आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की और तत्कालीन कोटा में बदलाव करते हुए इसे 22% से बढ़ाकर 49.5% करने की सिफारिश की| 2006 तक पिछड़ी जातियों की सूची में जातियों की संख्या 2297 तक पहुंच गयी, जो मंडल आयोग द्वारा तैयार समुदाय सूची में 60% की वृद्धि है।
- 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया। छात्र संगठनों ने इसके विरोध में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन शुरू किया और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह की कोशिश की थी|
ओबीसी आरक्षण के खिलाफ
आरक्षण की आग में देश कई बार झुलस चुका है. पहली बार मंडल कमीशन की सिफारिशों को 1990 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने लागू किया तो देश में सवर्ण समुदाय के लोग इसके विरोध में सड़क पर उतर आए. ओबीसी आरक्षण के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन हुआ, इस दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह कर लिया. इसके अलावा कई जगह आगजनी-तोड़फोड़ तक हुई.
पटेल आंदोलन
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद कई बार देश के अलग-अलग राज्यों में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन हुए. मोदी के गृहराज्य गुजरात में 2015 में पटेल आरक्षण की मांग हार्दिक पटेल के नेतृत्व में उठी और पूरे सूबे को अपनी चपेट में ले लिया. पटेल आरक्षण की अगुवाई कर रहे हार्दिक को पुलिस ने हिरासत में लिया तो सूबे का माहौल ही बिगड़ गया. देखते ही देखते पटेल समाज के लोग 12 से ज्यादा शहरों में सड़क पर उतर आए. इस दौरान उन्होंने तोड़फोड़ और आगजनी करते हुए करीब सवा सौ गाड़ियों में आग लगा दी और 16 थाने जला दिए. ट्रेन की पटरियां भी उखाड़ दी गई थीं.
जाट आंदोलन
यूपीए सरकार ने चुनाव से ऐन पहले जाट समुदाय को ओबीसी की श्रेणी में शामिल किया था, जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया था. इसे लेकर हरियाणा सहित कई राज्यों में जाट समुदाय के लोग सड़क पर उतर आए और उनके आंदोलन ने हिंसक रुख अख्तियार कर लिया. जाट आंदोलन में हरियाणा में जमकर हिंसा, आगजनी व तोड़-फोड़ हुई. रेलवे व बस सेवा पूरी तरह ठप हो गई. आंदोलन के दौरान करीब 30 लोगों की जान गई और राज्य को 34 हजार करोड़ रुपये की धनहानि हुई.
गुर्जर आंदोलन
राजस्थान में गुर्जर समुदाय अलग से आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर उतरा और कई दिनों तक रेलवे ट्रैक को जाम कर रखा. 2008 में गुर्जर आंदोलनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी की वजह से हिंसा भड़क गई थी. इस दौरान 20 लोगों की मौत हुई थी. हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली व मुंबई के रेल रूट को ब्लॉक कर दिया था. इसके बाद 2015 में एक बार फिर गुर्जर समुदाय के लोग सड़क पर उतरे और रेलवे ट्रैक पर कब्जा किया, पटरियां उखाड़ीं व आगजनी की, जिससे 200 करोड़ का नुकसान हुआ.
मराठा आरक्षण
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग काफी लंबे समय से हो रही है. इसके लिए मराठा समुदाय के लोग कई बार सड़क पर उतरे चुके हैं. आरक्षण की मांग को लेकर जुलाई 2018 में एक युवक ने ख़ुदकुशी कर ली. इसके बाद आंदोलनकारियों ने कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया. इसके बाद सरकार को झुकना पड़ा और महाराष्ट्र के विधानसभा में 16 फीसदी मराठा आरक्षण बिल पास कर दिया गया.
निषाद आंदोलन
हाल ही में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में निषाद आरक्षण आंदोलन के चलते एक सिपाही को अपनी जान गंवानी पड़ी. दिसंबर 2018 में नरेंद्र मोदी गाजीपुर में रैली करने गए थे. इस दौरान निषाद समुदाय के लोगों ने रोड जाम कर दिया था, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें हटाने की कोशिश की तो पथराव शुरू हो गया. इसके बाद भीड़ हिंसक हो गई और एक सिपाही सुरेश वत्स की मौत हो गई. हालांकि निषाद समुदाय के लोग एससी में शामिल होने के लिए कई बार संघर्ष कर चुके हैं. 2015 में गोरखपुर में रेलवे ट्रैक जाम किया था.
आंध्र प्रदेश में हिंसा की आग
उत्तर भारत की तरह ही दक्षिण भारत में भी आरक्षण आंदोलन हुए हैं. आंध्र प्रदेश के कापू समुदाय ने 2016 में ओबीसी दर्जे की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन किए थे. राज्य में पूर्वी गोदावरी जिले में प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने रत्नाचल एक्सप्रेस के चार डिब्बों सहित दो पुलिस थानों को आग के हवाले कर दिया था. इस दौरान कई लोग व पुलिसकर्मी घायल हुए.
Ravindra Narwriya
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