अखिल भारतीय बाघ गणना 2018
अखिल भारतीय बाघ गणना 2018
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर 29 जुलाई, 2019 को,बाघों के अखिल भारतीय अनुमान के चौथे चक्र 2018 के परिणाम जारी किए गए। इस अनुमान के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में बाघों की संख्या 2,967 हो गई है जो कि वर्ष 2014 से 741 अधिक है। भारत में बाघों की संख्या का जो अनुमान लगाया गया है वह माध्य संख्या है। रिपोर्ट में यह अनुमान किया गया है कि इसकी संख्या 2603 से 3346 के बीच होगी। इनमें से 2461 बाघों को कैमरा में व्यक्तिगत तौर पर कैद किया गया| वहीं कैप्चर मार्क रिकैप्चर के तहत बाघों की संख्या 2591 अनुमानित की गई है।
वर्ष 2014 के मुकाबले भारत में बाघों की संख्या की वृद्धि हुयी है। यह वृद्धि भी विभिन्न चक्रों के बीच दर्ज अब तक का सर्वाधिक है। भारत में बाघों की संख्या में वर्ष 2006 से 2010 के बीच 21 प्रतिशत तथा 2010 और 2014 के बीच 30 प्रतिशत की वृद्धि हुयी थी। भारत में बाघों की संख्या का 3000 के करीब होने का मतलब है कि वैश्विक बाघ आबादी का 75 प्रतिशत भारत में है। विश्व में जंगली बाघों की संख्या 3950 के करीब है। भारत के अलावा रूस इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, थाईलैंड, बालादेश भूटान में जंगली बाध पाए जाते हैं। यदि राज्यवार देखें तो मध्य प्रदेश एक वार फिर से “बाघ राज्य” का टैग कर्नाटक से प्राप्त कर लिया है।
मध्य प्रदेश में बाधों की संख्या सबसे अधिक 526 पाई गई। वर्ष 2014 के 308 के मुक्रावल यह संख्या काफी अधिक है। वहीँ कर्नाटक में 524 ओर में इनकी संख्या 442 थी। वहीं दूसरी ओ छल्लीसगढ़ में बा्थों की संख्या में भारी गिरावट देखने की मिली। वर्ष 2014 में सज्य में 45 बाघ थे जो कि वर्ष 2018 में कम होकर 19 रह गए) वहीं आडिशा में इनकी संख्या अपरिवर्तनशील रही। अन्य सभी राज्यों में सकारात्मक
प्रवृत्ति देखने को मिली। बाघों के सभी परांच प्राकृतिक लैंडस्कैप में उनकी संख्या में बढ़ौतरी देखने को मिली। भारत में बाों की संख्या का बढ़कर 2967 हो जाना इस बात का भी दिखाता है कि भारत सेंट पीटर्सबर्ग घोषणापत्र की प्रतिबद्धता को वर्ष 2022 की समय सीमा से पहले ही हासिल कर लिया है।
बाघों की बढ़ी हुयी संख्या भारत के संरक्षण प्रयासों के लिए उत्साहवद्धधक खबर है, साथ ही यह उन लोगों के प्रयासों का भी प्रतिफल है जो संरक्षण गतिविधियों से जुडे हुए हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि यह वृद्धि देश के सभी 18 बाघ राज्यों में परिलक्षित नहीं होती हुयी दिख रही है। छतीसगढ़ इसका उदाहरण है जहां बाधा की संख्या में बड़ी कमी दिखी है। वहीं देश के 50 टाइगर रिजर्व में तीन टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ का नहीं मिलना भी चिंताजनक बाल है। ये तीन टाइगर रिजर्व हैं: बुक्सा (पश्चिम बंगाल), दम्पा (मिजोरम
एवं पलामू (झारखंड)।
बाघ संरक्षण व आंकलन विधि
भारत में बाघों की गणना चार चरणों में की गई प्रथम दो चरणों – बन अधिकारियों द्वारा वन खंडों, प्रत्येक 15 वर्ग किलोमीटर से अधिक में बाथ मल एवं पद चिह्न प्राप्त किए गए। गणना करने वाले लो ‘लाइन ट्रांजेक्ट’ का अनुसरण करते हैं जिससे शिकार की पर्याप्तता अंदाजा लगाया जाता है। शिकार के मल के घनत्व का भी आकलन किया जाता है। तीसरे चरण में सूचना को सुदूर संवेदन एवं जीआईए अनुप्रयोग का सहारा लेते हुए वन मानचित्र पर डाला गया। नमूना क्षेत्र को दो वर्ग किलोमीटर के दायरे में बांटा गया| फिर इन ग्रिडों में। ट्रैप कैमरों लगाए गए। चौधे व ऑतिम चरण में उन क्षेत्रों से डेटा प्राप्त किए गए जहां कैमरा लगाना संभव नहीं था।
जहां तक प्रौद्योगिकी का सवाल है तो भारत में बाघों की गणना के लिए कई तकनीकों एवं विधियों का इस्तेमाल किया गया। देश के 401 वन खंडों से प्राप्त आंकड़ों को एम-स्ट्रिप्स (NM-STHIPES: Monitoring system for Tigers’ Intensive Protection and Ecological Status) डेस्कटॉप सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हुए प्रसंस्कृत किया गया। इसमें प्रोग्राम डिस्टेंस की भी मदद ली गई। बाघ गणना के क्रम में इमेजिंग प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर ‘कैट्रैट’ (Camera Trap Data Repository and Analysis Too: CaTRAT) का विकास किया गया। जियो टैग चित्रों को भी प्रसंस्कृत किया गया।
संत पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन
रूस के संत पीटर्सबर्ग में विश्व का पहला बाघ् सम्मेलन चवबर 2010 में आयोजित हुआ था। सम्मेलन में 13 बाघ रेंज वाले देशों ने हिस्सा लिया। ऐसे देशों को बाघ रेंज वाला देश कहा जाता है जहां बाघ मुक्त रूप से विचरण करता है। ये ।3 देश
हैं; भूटान, नेपाल, वियतनाम, म्यांमार, मलेशिया इंडोवेशिया, चीन, रूस, बांग्लादेश, भारत, थाइलैंड, एवं लाओस।
बाघ सम्मेलन में वर्ष 2022 तक बाघों की. संख्या दोगुणा करने का लक्ष्य रखा गया था। इसके लिए ‘ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम’ का समर्थन किया गया था।
बाघ लैंडस्केप क्षेत्र के हिसाब से बाघों की संख्या
चूंकि बाघ किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहते, इसलिए गणना के लिए लेंडस्केप को आधार बनाया गया। भारत में बाघों की गणना के बाघों के संरक्षण के लिए भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय कानून
भारतीय बाघ एक संकटापन्न प्रजाति है और यह जी (सुरकषा) एक्ट, 1972 के तहत अनुसूची-1 में शामिल है जो इसके शिकार तथा इसकी त्वचा, हृदिडियों एवं रारीर के अंगों के व्यापार के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसी प्रकार ‘संकटापन्न जंगली जंतुओं एवं पौधों प्रजातियों के अंतराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय” (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauma and Flora. CITES), जिसमें बाघ के अंगों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को अवैध घोषित किया गया है, पर 160 से अधिक देशों ने अभिपुष्टि की है। भारत वर्ष 1975 से ही इस कंबेशन का हस्ताक्षरी रहा है। वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर को शुरूआत 9 बाघ रिजर्व क्षेत्रों से हुयी थी, जिनका कुल क्षेत्रफल 18.278 वर्ग किलोमीटर था, अब यह संख्या वढ़कर 50 हो गई है जो कुल 72.749 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत हैं।
बाघ प्रजातियां
पूरे विश्व में बाघ की 9 प्रजातियां रही हैं जिनमें से तीन प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। ये प्रजातियां निम्नलिखित हैं;
1. अमूर (या साइबेरियन टाइगर ): बाघ की उप-प्रजातियों में यह सबसे बड़ी है। यह रूस एवं रूस-चीन सीमा पर प्राप्त होती है।
2. बंगाल टाइगरः यह भारत, नेपाल, बांग्लादेश एवं भूटान में पाई जाती है। वर्तमान में सर्वाधिक संख्या इसी बाघ उप-प्रजाति की है।
3. दक्षिण चीन सागर टाइगरः यह आईयूसीएन की लाल सूची में चरम संकटापन्न सूची में वर्गीकृत है। यह बाघ उप-प्रजाति
मध्य एवं पूर्वी चीन में पाई जाती है।
4. मलयन टाइगरः वर्ष 2004 में इसे इंडो-चायनीज टाइगर से अलग उप-प्रजाति माना गया। हालांकि यह इंडो-चायनीज
टाइगर के समान ही है परंतु इसका आकार छोटा है। इस बाघ उप-प्रजाति के वैज्ञानिक नाम में ‘जैक्सनी’ शब्द IUCN के कैट स्पेशलिस्ट ग्रुप के पूर्व अध्यक्ष पीटर जैक्सन को सम्मानित करने के लिए जोड़ा गया है।
5. इंडो-चायनीज टाइगरः कॉर्बेटी टाइगर भी कहा जाता है। यह कंबोडिया, लाओस, बर्मा, थाइलैंड एवं वियतनाम में पाई जाती है। यह बंगाल टाइगर की तुलना में छोटा एवं गहन रंग का है।
6. सुमात्रा टाइगरः यह केवल इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप पर पाया जाता है। यह आईयूसीएन की लाल सूची में चरम संकटापन्न सूची में सूचीबद्ध है। बाघ की सभी उप-प्रजातियों में इसका आवरण सबसे गहरे रंग का है।
7. बाली टाइगरः 1940 के दशक में बाघ की यह उप-प्रजाति विलुप्त हो गई। 1930 के दशक में इसे अंतिम बार पश्चिम बाली में दखा गया था।
৪. जावा टाइगर: यह बाघ 1980 के दशक तक इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर देखा जा सकता था इसे अंतिम बार 1976 में जावा के मेरू बेतिरि नेशनल पार्क में देखा गया था अब यह
विलुप्त हो चुका है।
9. कैंस्पियन टाइगर: बाघ की यह उप-प्रजाति 1970 के दशक में विलुप्त हो गई।