ब्लैक होल: अद्भुत, रोचक
ब्लैक होल: अद्भुत, रोचक
ब्लैक होल ऐसी खगोलीय संरचना है जिसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश सहित कुछ भी इसक खिचाव से बच नहीं सकता है। ब्नैक होल के चारों ओर एक सौमा होती है जिसे घटना क्षितिज कहा जाता है ।जिसमें वस्तुएं गिर तो सकती हैं परंतु बाहर कुछ भी नहीं आ सकता।
* ब्लैक होल एक अत्यंत घनत्व और द्रव्यमान वाला पिंड होता है। ब्रह्मांड में किसी भी वस्तु का हम अगर दबाकर छोटी कर दें तो उसके घनत्व और द्रव्यमान से उसका गुरुत्वाकर्षण बल इतना प्रबल ही जाएगा कि उसके बाहर का भी जाना संभव नहीं होगा और वह चीज़ ब्लैक होल कहलाएगी।
* यदि हमारी पृथ्वी का घनत्व बहुत बढ़ जाए और संपूर्ण पृथ्वी को दबाकर 1.5 समा. कर दिया जाए तो वह एक ब्लैक होल हो जाएगी। और यदि पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़े सूर्य को भी दबाकर एक मटर दाने के समान कर दिया जाए तो यह भी एक ब्लैक होल हो जाएगा।
° अक्सर ब्लैक होल तारों के ही बनते हैं। चलिये, ब्लैक होल के निर्माण को समझने से पहले हम तारो की रचना को समझते हैं।
* तारों का जन्म ब्रह्मांड की निहारिकाओं (Galaxies) में उपस्थित धूल और गैस से बने बादलों से होता है। ब्रह्माह मं धूल और गैस से बने इन बादलों को ‘निहारिका’ कहते हैं। निहारिका में हाइड्रोजन की मात्रा सबसे अधिक होती है।और लगभग 25% तक हीलियम होता है और वहुत कम मात्रा में कुछ और भारी तत्त्व भी होते हैं।
जब धूल और गैस से बने इन बादलों में अर्थात् निहारिका में घनत्व की कवृद्धि होती है तो उस समय बादल अपने गुरुत्व के कारण संकुचित होने लगता है और उसके अंदर का ताप इतना बढ़ जाता है कि हाइड्रोजन के नाभिक आपन में टकराने लगते हैं और हीलियम के नाभिक का निर्माण करते हैं। साथ ही, गति तथा संकुचन के कारण भी एकज होकर निहानिका गोलाकार या गोलाकार के समान आकार में परिवर्तित हो जाता है और इस प्रकार एक तारे का नमण होता है। लेकिन इस प्रक्रिया में करोड़ों वर्ष लगते हैं। हमारे सूर्य का निर्माण भी ऐसे ही हुआ था।
ताप नाभिकीय संलयन से निकली प्रचंड ऊष्मा से सितारों का गुरुत्वाकर्षण संतुलन में रहता है। इसलिये जब तरे में मौजूद हाइड्रोजन खत्म हो जाती है तो वह धीरे-धीरे ठंडा होने लगता है। अपने ही ईंधन को समाप्त कर चुके सौर दूव्यमान से 1.4 गुना द्रव्यमान वाले तारे जो अपने ही गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध स्वयं को नहीं संभाल पाते, ऐसे तरे के अंदर एक विस्फोट होता है जिसे ‘सुपरनोवा’ कहते हैं। इस विस्फोट के बाद यदि उस तारे का कोई घनत्व वाला अवशेष बचता है तो वह अत्यधिक घनत्व युक्त न्यूट्न तारा बन जाता है।
ऐसे तारों पर अपार गुरुत्वीय खिंचाव होने के कारण तारा संकुचित या कप्रेस होने लगता है और अंत में तारा एक निश्चित क्रांतिक सीमा या क्रिटिकल लिमिट तक संकुचित हो जाता है। इस अपार असाधारण संकुचन के करण उसका स्पेस और टाइम का अस्तित्व मिट जाने के कारण वह अदृश्य हो जाता है, यही वह अदृश्य पिंड होते हैं हम ‘बनैक होल’ कहते हैं।
किसी ब्लैक होल का संपूर्ण द्रव्यमान एक छोटे बिंदु में केंद्रित रहता है जिसे ‘सेंट्रल सिंगलैरिटी पॉइंट’ कहते हैं। बिंदु के आस-पास की गोलाकार सीमा को ‘इवेंट होराइजन’ कहा जाता है। इस इवेंट होराइज़न के बाहर प्रकाश कोई भी वस्तु नहीं जा सकती और जहाँ पर समय का भी अस्तित्व नहीं है।
आइंस्टाइन की स्पेशल ध्योरी ऑफ रिलेटिविटी के अनुसार इस ब्लैक होल की क्षितिज से दर एक निश्चित साम खड़े किसी प्रेक्षक की घड़ी अत्यंत मंद और धीमी हो जाएगी और वहाँ का समय बहुत ही धीमी गति से चलेगा रहे कि समय निरपेक्ष है और समय का बहाव ब्रह्माड को विविध जगहों पर अलग-अलग गति में है अर्थात् पृथ्वी पर जो समय चल रहा है ब्रह्मांड में कहा दूर उससे तेज गति में चल रहा होगा। इसे ‘टाइम इल्यूजन’ कहते हैं।
ब्लैक होल से जुड़़े कुछ रोचक तथ्य
होल के बाहर कभी प्रकाश का जाना असंभव है क्योंकि ब्लैक सें अपार घनत्व के कारण असीमित गुरुत्वाकर्षण बल होता है और इसफिनिट ग्रैकिटेशनल फोर्स के कारण ब्लैक होल के बाहर प्रकाश भी नहीं जा सकता है।
असीमित गुरूत्वाकर्षण और अपार घनत्व के कारण ब्लैक होल के इवेंट होराइजन के अंदर समय का भी प्रभाव कम हो जाता है और इस स्थिति में जैसे-जैसे हम ब्लैक होल के केंद्र के नज़दीक जाते हैं वैसे – वैसे समय बहुत धीमा हो जाता है। और ब्लैक होल के केंद्र में तो समय का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इवेंट होराइजन यानी कि ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण की एक सीमा के अंदर जाते ही किसी भी आकाशीय पिंड को ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण बल खींच लेगा। और सिर्फ इतना ही नहीं, कोई इंसान अगर इवेंट होराइजन के आस-पास भी आ जाए तो भी उसका शरीर खिंचाव के कारण लंबा-चौड़ा और असाधारण तरीके से विकृत हो जाएगा।
हमारी पृथ्वी से सबसे नजदीकी ब्लैक होल V616 Mon, 27,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है लेकिन इस ब्लैक होल का हमारी पृथ्वी और सूर्यमंडल पर कोई प्रभाव नहीं होता है, क्योंकि इतनी दूरी के कारण उसका प्रभाव यहाँ तक नहीं पहुँच पाता है।
ब्लैक होल रेडिएशन बाहर फेंकते हैं। ब्लैक होल से किसी भी चीज का बचकर जाना असंभव है। लेकिन यह एक ही चीज़ है जो इससे बाहर निकल सकती है और वह है उसका विकिरण। वैज्ञानिकों के अनुसार जैसे-जैसे ब्लैक होल अपना रेडिएशन बाहर फेंकता रहता है वैसे-वैसे वह अपने द्रव्यमान को खो देता है।