CPTPP(कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप)

CPTPP(कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांसपैसिफिक पार्टनरशिप)

हाल ही में ग्यारह प्रशांत महासागरीय देशों ने सैन-डियागो, चिली में ‘कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप-CPTPP’ पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर कर दिये। उल्लेखनीय है कि यह समझौता ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप का ही संशोधित रूप है। मूल समझौते में अमेरिका एक प्रमुख भागीदार के रूप में शामिल था परंतु डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने इस समझौते से अलग होने की घोषणा कर दी थी जिससे यह समझौता अधर में लटक गया था। अब मुल समझौते में शामिल शेष ग्यारह सदस्यों ने समझौते को अमेरिका के बगैर संशोधित रूप में अपनाने का निर्णय लिया है।

क्या है : कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांसपैसिफिक पार्टनरशिप

यह प्रशांत महासागरीय परिधि के ग्यारह देशों के मध्य संपन्न अत्यंत महत्त्वाकांक्षी क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौता है। इसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच गहन आर्थिक संबंधों की स्थापना करना, सीमाशुल्कों को समाप्त करना व आर्थिक संवृद्धि हेतु व्यापार को प्रोत्साहित करना है। यह समझौता पर्यावरण संरक्षण, श्रमिक अधिकार एवं नियामकीय ढाँचे पर साझा मानकों का भी निर्धारण करेगा। समझौते के तहत विवादों के निपटान हेतु एक तटस्थ न्यायाधिकरण का भी प्रावधान किया गया है। इस संशोधित समझौते में प्रशांत महासागरीय परिधि के ग्यारह देश, यथा- ऑस्ट्रेलिया. ब्रुनेई, कनाडा, चिली. जापान, मलेशिया, मैक्सिको, न्यूजीलैंड, पेरू, सिंगापुर और वियतनाम शामिल हैं। इन देशों की संयुक्त आबादी लगभग 500 मिलियन है एवं इन देशों की अर्थव्यवस्थाएँ वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 13% का प्रतिनिधित्व करती हैं। यूरोपीय संघ और उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते (NAFTA) के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक समूह होगा। यह समझौता ग्यारह में से छह देशों की विधायिका द्वारा मंजूरी एवं इन देशों के अनुसमर्थन के 60 दिनों के बाद प्रभावी हो जाएगा।

मूल ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप समझौता जनवरी 2017 में उस समय खटाई में पड़ गया था जब नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते को अमेरिकी नौकरियों व विनिर्माण उद्योग के प्रतिकूल बताते हुए खुद को इस समझौते से अलग कर लिया था। टीपीपी समझौते को मूल रूप से प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा था। परंतु अमेरिका के इस समझौते से बाहर होने के कारण संशोधित समझौते के अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर पाने में संदेह है ।

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