क्या होती है क्यूरेटिव पेटिशन (समीक्षा याचिका)

क्या होती है क्यूरेटिव पेटिशन (समीक्षा याचिका)

दिल्ली सामुहिक बलात्कार (2012) मामले में दोषियों द्वारा क्यूरेटिव पेटिशन दायर करने के संदर्भ में ‘क्यूरेटिव पेटिशन’ चर्चा में आयी थी। हालांकि यह पेटिशन पहले भी चर्चा में रही है। न्यायिक प्रणाली में क्यूरेटिव पेटिशन को न्याय का अंतिम सहारा माना जाता है। जिन लोगों का या जिन विषयों या जिन मुद्दों को इससे पहले तक नहीं सुना गया होता है, उसे सुनने का अंतिम अवसर यह प्रदान करती है। हालांकि कुछ न्यायविदों की राय में यह सर्वाच्च न्यायालय का खुद का सृजन है जो उसके खुद की शक्ति के खिलाफ जाता है।

निर्भया केस में फांसी से बचने के लिए दोषियों द्वारा कई बार क्यूरेटिव पेटिशन दायर करने के संदर्भ में यह विशेष रूप से चर्चा का विषय बनी रही। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में विभिन्न प्रकार के न्यायों की बात कही गई है और संविधान के अन्य भागों में भी न्याय संबंधी प्रावधान किये गये हैं ऐसे में सामान्य शब्दों में कहें तो सभी अपील व रिव्यू पेटिशन खारिज हो जाने के पश्चात क्यूरेटिव पेटिशन किसी व्यक्ति द्वारा न्याय पाने का अंतिम विकल्प होता है। क्यूरेटिव पेटिशन की अवधारणा का जन्म ‘रूपा अशोक बनाम अशोक हुर्रा एवं अन्य’ वाद (2002) में हुयी थी इसमें यह प्रश्न सामने आया था कि सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका (रिव्यू पटिशन) खारिज हो जाने के पश्चात किसी व्यक्ति को अंतिम निर्णय आदेश के खिलाफ किसी प्रकार की राहत मिल सकती है?

इस प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय ने लैटिन कहावत ‘एक्टस क्युरेई नेमिनेम ग्रेवाविट’ (Actus Curiae Neminem Gravabit) का उल्लख किया। इसका मतलब है कि न्यायालय की कार्रवाई किसी के प्रति पूर्वाग्रह नहीं रखती। यह कहावत या सिद्धांत तब लागू होता है जब न्यायालय किसी पक्ष के प्रति हुयी गलती को सुधारने के प्रति बाध्य हो जाता है। न्यायिक प्रक्रिया के दुरूपयोग या न्याय देने में किसी प्रकार की भूल को इसके माध्यम से सुधारा जाता है। इस तरह क्यूरेटिव पेटिशन न्यायालय को उसी के द्वारा दिये गये निर्णय, समीक्षा की पुन: समीक्षा करने की एक याचिका है।

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की याचिका को दुर्लभ मामले में ही उपयोग किया जाना चाहिए। इस संबंध में न्यायालय ने दिशा-निर्देश भी जारी किया जिसमें कहा गया कि क्यूरेटिव पेटिशन दायर करने से पहले इस बात की जांच की जानी चाहिए कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ

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