मौद्रिक नीति क्या है?

मौद्रिक नीति क्या है?

मौद्रिक नीति केंद्रीय बैंक की नीति को संदर्भित करती है जिसके तहत अधिनियम में निर्दिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने नियंत्रण में मौद्रिक साधनों का उपयोग किया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास मौद्रिक नीति के संचालन की जिम्मेदारी है। यह जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत अनिवार्य है। मौद्रिक नीति को नियंत्रित करने के लिए आरबीआई कुछ महत्वपूर्ण मौद्रिक नीति के साधन का उपयोग करती है।

महत्वपूर्ण मौद्रिक नीति के साधन

> रेपो रेट: रेपो रेट (Repo Rate) वह दर होती है, जिस पर बैंकों को आरबीआई ऋण देता है। बैंक इस ऋण से ग्राहकों को ऋण देते हैं। रेपो रेट कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे, जैसे- होम लोन, व्हीकल लोन आदि।

> रिवर्स रेपो रेट: रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate), वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियत्रित करने में उपयोग किया जाता है। बाजार में जब भी नकदी की तरलता बहुत ज्यादा होती है, तो आरबीआई रिवर्स रेपो रेट को बढ़ा देता है, ताकि बाजार से नगदी की तरलता में कमी आ जाए।

सीआरआर(CRR)- : सभी बैंकों के लिए यह आवश्यक होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। इसे नकद आरक्षी अनुपात (Cash Reserve Ratio – CRR) कहते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके।

> आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना बाजार से नगदी तरलता को कम करना चाहता है, तो वह सीआरआर बढा देता है। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम राशि बचती हैं। वही सोआरआर को घटाने से बाजार में नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है।

एसएलआर(SLR): जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार क पास रेखते हैं, उस एसएलआर (Statutory Liquidity Ratio – SLR) कहते हैं। नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है, जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है।

आरबीआई द्वारा आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने संबंधी उपाय

प्रभावी मौद्रिक संचरण के लिए बैंकों द्वारा वास्तविक अर्थव्यवस्था को प्रेषित करने के लिए रेपो दर में कटौती की आवश्यकता है।

* रेपो दर में कटौती केवल उधार लेने की लागत को कम करने में सक्षम बनाती है; जबकि इसके प्रभावी होने के लिए पर्याप्त संचरण (transmission) की आवश्यकता होती है।
प्रारंभ में बैंक, मौद्रिक संचरण (monetary transmission) सुनिश्चित करने के लिए काफी धीमे थे। पिछली तीन नीतियों में कटौती किए गए 75 बेसिस पॉइंट्स में से बैंक सिर्फ 29 बेसिस पॉइंट्स पर पास हुए।

रेपो दर में कमी केवल बैंकों के नए उधार (borrowings) पर लागू होती है। मौजूदा फंडों की बैंकिंग लागत अधिक है। हालांकि वित्तपोषण की लागत अंततः कम हो जाएगी लेकिन इस प्रक्रिया में समय लगेगा।

रेपो दर-कटौती धीरे-धीरे वास्तविक अर्थव्यवस्था में प्रेषित की जा रही है। लगभग 3% का सौम्य मुद्रास्फीति आउटलुक नकारात्मक उत्पादन अंतराल को समाप्त करने के लिए नीतिगत कार्यवाही करने की अनुमति प्रदान करता है। मौद्रिक नीति में यह ‘अंतराल’ RBI द्वारा किसी भी दर में कटौती की प्रभावकारिता निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण घटक है। यह आरबीआई के निर्णय के पूरे प्रभाव के लिए 9 से 18 महीने के बीच कहीं भी लग सकता है, जो अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों को प्रतिबिंबित करता है।

* आरबीआई ने बैंकों को आर्थिक विकास और रोजगार के लिए उन प्रमुख योगदानकर्ताओं के लिए ऋण प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए, कृषि, छोटे व्यवसायों आदि को ऋण प्रदान करने हेतु ‘प्राथमिकता-क्षेत्र ऋण’ के रूप में वर्गीकृत करने की अनुमति दी है। इसलिए आरबीआई लोगों को अधिक उपभोग करने और अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु ब्याज दरों में कटौती कर रहा है।

* नि:संदेह राजस्व परिदृश्य को देखते हुए राजकोषीय रियायतों के लिए स्थान सीमित है, लेकिन सरकार निश्चित रूप से अपने राजकोषीय अंकगणित को प्रभावित किए बिना निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए और सुधारों पर बल दे सकती है।

मौद्रिक नीति क्यों महत्वपूर्ण है?

* किसी भी अर्थव्यवस्था में, आर्थिक गतिविधि, जिसे सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी द्वारा मापा जाता है। * जीडीपी वस्तुत: चार तरीकों से किये गए खर्च को मापता पहला- प्रत्येक व्यक्ति और परिवार द्वारा अपने उपभोग पर किया गया खर्च, दूसरा- सरकार द्वारा अपने एजेंडे पर किया गया खर्च, तीसरा- निजी क्षेत्र के व्यवसायी द्वारा अपनी उत्पादक क्षमता में किया गया ‘निवेश’, चौथा- शुद्ध निर्यात, अर्थात उन सभी के बीच का अंतर है, जो आयात पर खर्च करते हैं, जबकि वे निर्यात से कमाते हैं। मौद्रिक नीति अनिवार्य रूप से इस प्रश्न का उत्तर देती है ।


लगभग प्रत्येक देश में केंद्रीय बैंक को धन की लागत तय करने की जिम्मेदारी दी जाती है , जिसे आमतौर पर अर्थव्यवस्था में ‘ ब्याज दर ‘ के रूप में जाना जाता है । जबकि कई कारक केंद्रीय बैंक के लिए ब्याज दरों को सटीक रूप से निर्धारित करने में बाधा उत्पन्न करते हैं । रेपो दर पर RBI का निर्णय बाकी अर्थव्यवस्था के लिए एक भू – चिह्न को निर्धारित करता है । दूसरे शब्दों में , आपकी कार या घर के लिए ईएमआई का निर्धारण आरबीआई द्वारा तय किए जाते हैं ।

निष्कर्ष
– आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार मौद्रिक नीति समिति ने तिमाही बिंदु को अपर्याप्त माना है , जिसके कारण रेपो दर में 35 आधार – बिंदु की कटौती की गई है ।

• इस निर्णय से निवेश और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स की मांग में वृद्धि होगी , जो कि ऋण की लागत से कहीं अधिक आय का एक स्रोत होगा ।

• साथ ही निवेश की भावनाओं को बढ़ाने के लिए वित्तीय पक्ष द्वारा पर्याप्त रूप से गति उत्पन्न करने की आवश्यकता है । जब तक क्षमता उपयोग में सुधार नहीं होता है , निजी क्षेत्र से निवेश की मांग में सुधार होने की संभावना नहीं है । कुल मांग में वृद्धि विशेष रूप से निजी निवेश को बढ़ाकर विकास चिंताओं को दूर किया जा सकता है , इसके अलावा इस समय मुद्रास्फीति को स्थिर रखना सर्वोच्च प्राथमिकता में होनी चाहिए ।

Lockdown के दौरान RBI ने रेपो रेट व रिवर्स रेपो रेट में उल्लेखनीय परिवर्तन किये हैं, जिसका उद्देश्य तरलता को बढ़ाना है ।

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