गगनयान : मानव युक्त स्पेस मिशन

गगनयान : मानव युक्त स्पेस मिशन

भारत सन् 2022 तक अपने अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजेगा। इसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोथित करते हुए की। उन्होंने इस मिशन को ‘गगनयान’ नाम दिया। तभी से गगनयान शब्द लोकप्रिय हो गया है | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पहली बार अपने मिशन ‘गगनयान के द्वारा किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री को सात दिनों के लिए अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है। इससे पहले भारतीय एयरफोर्स के पायलट रहे राकेश शर्मा रूसी अंतरिक्ष यान सोयूज़ के जरिए सन् 1984 में अंतरिक्ष में गाए थे। इसके अलावा भारतीय मूल की अमेरिकन कल्पना चावला तथा सुनीता विलियम्स भी अंतरिक्ष में जा चुकी है। इन्हें अमेरिकन अंतरिक्ष एजेंसी नासा’ द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया था। भारत सरकार ने सन् 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन किया था। सन् 1989 में इस समिति का स्थान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरों ने ले लिया गया। तब से लेकर अब तक भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता के कई सोपान तय कर चुका है। लेकिन अपने स्वयं के अंतरिक्ष यान से किसी भारतीय को स्पेस में भेजने का कार्य अभी तक अधूरा रहा है। अब तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ही अंतरिक्ष में इंसान को भेजने में कामयाब हुए हैं। गगनयान की सफलता के साथ भारत भी इन देशों की कतार में खड़ा हो जाएगा।

भारत मानव को अंतरिक्ष में भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। बाद में इसकी पुष्टि इसरो ने भी की। इसरो के अध्यक्ष डॉ.के. सिवन ने कहा कि यह अभियान इसरो के मानवयुक्त मिशन 2022 का हिस्सा है। इस पर करीब 10,000 करोड़ रुपये खर्च होगा। उन्होंने यह भी बताया कि इस मानवयुक्त मिशन में इस्तेमाल किया जाने वाला रॉकेट जियोसिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, मार्क-3 (जीएसएलवी -एमके-3) होगा। दरअसल इसरो के द्वारा इस मिशन की तैयारी काफी दिनों से चल रही है। इस मिशन के लिए जरूरी बहुत-सी अत्याधुनिक तकनीकें पहले ही विकसिल की जा चुकी हैं। इनमें क्रू-मॉड्यूल और इस्केप-सिस्टम शामिल हैं जिनका परीक्षण हो चुका है। गगनयान में उड़ान भरने वाले अंतरिक्ष यात्रियों का चयन भारतीय वायुसेना द्वारा किया जाएगा और उनको विदेशों में प्रशिक्षण दिया जाएगा।

भारत के इस महत्वाकांक्षी मिशन में सहयोग प्रदान करने के लिए फ्रांस ने रजामंदी दी है। मिशन ‘गगनयान’ में दोनों देश मिलकर काम करेंगे। इस संबंध में दोनों देशों के मध्य एक समझौते पर दस्तखत भी हो चुका है। सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर होने के मौके पर फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी सीएनईएस के अध्यक्ष ज्या येस ली गॉल ने कहा कि इस अंतरिक्ष सहयोग के दायरे में इसरो को अंतरिक्ष अस्पताल केंद्रों की सुविधा देना और अंतरिक्ष औषधि, अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य की निगरानी करने, जीवनरक्षा संबंधी सहयोग मुहैया कराने, विकिरणों से रक्षा, अंतरिक्ष के मलबे से रक्षा और निजी स्वच्छता व्यवस्था के क्षेत्रों में संयुक्त रूप से अपनी विशेषज्ञता का इस्तेमाल करना शामिल हैं। दोनों देशों ने मिलकर इस परियोजना के लिए एक कार्यकारी समूह का गठन भी किया मानवद्युक्त अंतरिक्ष मिशन का इतिहास सर्वप्रथम कामयाव मानव अंतरिक्ष मिशन का श्रेय तत्कालीन सोवियत संघ को जाता है। सोवियत संघ (वर्तमान रुस) द्वारा कास्मोनॉट यूरी गागरिन को 12 अप्रैल सन् 1961 को अंतरिक्ष में भेजा गया था। इसके पश्चात 5 मई सन् 1961 को अमेरिकन एस्ट्रोनॉट एलन शेफर्ड अंतरिक्ष में पहुंचने वाले दूसरे व्यक्ति थे। उन्हें अमेरिकन अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया था। इसी क्रम में चीन के द्वारा अपने पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन के तहत सन् 2003 में टैक्नॉट यांग लिवेइ को अंतरिक्ष में भेजा गया।

भारत का गगनयान मिशन


भारत के गगनयान मिशन की बुनियाद सन् 2004 में ही पड़ गई थी जब ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम की शुरुआत की गई। इसके तहत अब तक कई तकनीकें विकसित कर ली गयी हैं। अन्य कई पर तेजी से काम चल रहा है। इसी क्रम में 5 जुलाई 2018 को ‘कू माड्यूल इस्केप सिस्टम’ का सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है। वर्तमान में ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम की अगुवाई करने की जिम्मेदारी वी.आर.ललिताम्बिका को दी गई। डॉ. ललितताम्बिका ‘एस्ट्रोनॉटिकल सोसायटी एक्सीलेंस अवॉर्ड’ से पुरस्कृत हो चुकी है।

गगनयान पहला भारतीय चालित कक्षीय अंतरिक्षयान होगा, जिसे तीन एस्ट्रोनाट को ले जाने की क्षमता के हिसाब से डिजाइन किया जाएगा। जिस प्रकार अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री को एस्ट्रोनॉट तथा रूस के अंतरिक्ष यात्री को कॉस्मोनॉट और चीन के अंतरिक्ष यात्री को टैक्नाट कहा जाता है। उसी प्रकार अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले भारतीय एस्ट्रोनॉट को ‘व्योमनाट’ कहा जाएगा। ‘व्योम’ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ अंतरिक्ष होता है।

गगनयान से सम्बन्धित प्रमुख तथ्य

1.गगनयान को लॉन्च करने के लिए जीएसएलवी एमके-3 लॉन्च दीकल का उपयोग किया जाए। से परिपूर्ण है। अंतरिक्ष में मानव भेजने से पहले दो मानव रहित गगनयान भेजे जाएंगे।

2. पृथ्वी से 300-400 किलोमीटर की दूरी मात्र 16 मिनट में लय की जाएगी। इस अंतरिक्ष यान को निम्न पृथ्वी कक्षा में रखा जाएगा।


3.गगनयान सात दिनों तक 400 किलोमीटर की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करेगा।

4. 30 महीने के भीतर पहली मानव रहित उड़ान के साथ ही कुल कार्यक्रम के सन् 2022 से पहले पूरा होने की उम्मीद है।

5. कार्यक्रम की कुल अनुमानित लागत 10,000 करोड़ रुपये होगी।

6. अंतरिक्ष कैप्सूल के अन्दर तीनों व्योमनाॅड से रखा जाएगा, जिसके अन्दर जीवन नियंत्रण एवं पर्यावरणीय नियंत्रण प्रणाली उपस्थित होंगी।

7. यात्रियों का चयन इसरो और एयरफोर्स मिलकर करेगें। हालांकि अभी यह लय नहीं है कि इसमें कितनी महिला या कितने पुरुष होंगे, और किस क्षेत्र विशेष के होंगे। लेकिन पहले पायलटों को प्राथमिकता दी जा सकती है। चुने गए यात्रियों को करीब तीन साल की ट्रेनिंग मिलेगी, जिसमें जीरो ग्रेविटी ट्रेनिंग भी शामिल होगी।

8. गयनयान को वापस लौटते समय 30 मिनट का समय लगेगा। गगनयान की निगरानी बैंगलोर स्थित टेलीमेट्री ट्रैकिंग कमांड सेंटर से की जाएगी।

गगनयान की संरचना


गगनयान मानवयुक्त अंतरिक्ष यान होगा जिसे उन्नत संस्करण डॉकिंग क्षमता से लेस किया जाएगा। इस यान में द्रव प्रणोदक (लिक्विड प्रोपेलेन्ट) से युक्त इंजन होंगे। ऑविटल मॉड्यूल के दो हिस्से होंगे, एक-क्रू मॉल्यूल तथा दूसरा सर्विस मॉडथूल क्रू मॉड्यूल 37 मीटर व्यास में एक सर्कुलर क्यूबिकल जैसा होगा, जिसकी ऊँचाई सात मीटर और वजन साल टन होगा। इसी माल में तीनों अंतरिक्ष यात्री रहेंगे। सर्विस मॉड्यूल में तापमान और वायुदाब को नियत रखने वाले उपकरण, लाइफ सपोर्ट सिस्टम, आयसीजन और खाने-पीने का सामान होगा। अंतरिक्ष से धरती की ओर लौटते समय स्पेसक्राफ्ट की गति को धीरे-धीरे कम किया जाएगा पृथ्वी से 120 किलोमीटर की ऊंचाई पर क्रू मॉड्थूल, सर्विस मॉड्यूल से अलग हो जाएगा। क्रू मॉड्यूल से यात्री पैराशूट के जरिए गुजरात के पास अरब सागर में उतरेंगे। अगर कोई दिक्कत हुई तो फिर बंगाल की खाड़ी में भी उतरने का विकल्प रहेगा।

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