SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम,2015
SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम,2015
26 जनवरी, 2016 से अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचार को रोकने के लिए अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 लागू हुआ।
प्रधान कानून अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति(अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में संशोधन के लिए अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक 2015 को लोकसभा द्वारा 4 अगस्त 2015 तथा राज्य सभा द्वारा 21 दिसंबर, 2015 को पारित करने के बाद 31 दिसंबर, 2015 को इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली।
01 जनवरी, 2016 को इसे भारत के असाधारण गजट में अधिसूचित किया गया। नियम बनाए जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा इसे 26 जनवरी, 2016 से लागू किया गया।
विशेषताएं:
अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:-
1. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध किए जाने वाले नए अपराधों में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों के सिर और मूंछ के बालों का मुंडन कराने और इसी तरह अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोगों के सम्मान के विरुद्ध किए गए कृत है।
2. अत्याचारों में समुदाय के लोगों को जूते की माला पहनाना उन्हें सिंचाई सुविधाओं तक जाने से रोकना या वन अधिकारों से वंचित करने रखना, मानव और पशु नरकंकाल को निपटाने और लाने-ले जाने के लिए तथा बाध्य करना, कब्र खोदने के लिए बाध्य करना, सिर पर मैला ढोने की प्रथा का उपयोग और अनुमति देना. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को देवदासी के रूप में समर्पित करना.
3. सूचक गाली देना, जादू-टोना अत्याचार को बढ़ावा देना. सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करना, चुनाव लड़ने में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोकना, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को वस्त्र हरण कर आहत करना. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जाति जनजातियों के किसी सदस्य को घर, गांव और आवास छोड़ने के लिए बाध्य करना, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पूजनीय वस्तुओं को विरुपित करना, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्य के विरुद्ध यौन दुर्वहार करना, यौन दुर्व्यवहार भाव से उन्हें छूना और भाषा का उपयोग करना है।
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्य को आहत करने, उन्हें दुखद रूप से आहत करने, धमकाने और अपहरण करने जैसे अपराधों को जिनमें 10 वर्ष के कम की सजा का प्रावधान है, उन्हें अत्याचार निवारण अधिनियम में अपराध के रूप में शामिल करना।अभी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर किए गए अत्याचार मामलों में 10 वर्ष और उससे अधिक की सजा वाले अपराधों को ही अपराध माना जाता है ।
मामलों को तेजी से निपटाने के लिए अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों में विशेष रूप से मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालतें बनाना और विशेष लोक अभियोजक को निर्दिष्ट करना। विशेष अदालतों को अपराध का प्रत्यक्ष संज्ञान लेने की शक्ति प्रदान करना और जहां तक संभव हो आरोप पत्र दाखिल करने की तिथि से दो महीने के अंदर सुनवाई पूरी करना। पीड़ितों तथा गवाहों के अधिकारों पर अतिरिक्त अध्याय शामिल करना आदि।
विवादः
उपर्युक्त एक्ट के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वाच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए. के .गोयल ने 20 मार्च, 2018 को एक्ट के कुछ प्रावधानों को सीमित कर दिया था । न्यायालय ने दलित उत्पीड़न की शिकायत मिलने पर त्वरित गिरफ्तारी पर रोक लगा दिया था और पुलिस द्वारा प्रारंभिक जांच के पश्चात ही आरोपी को हिरासत में लिया जा सकता था। हालांकि इस निर्णय का भारी विरोध को देखते हुए केंद्र सरकार ने लोकसभा में एक विधेयक पेश किया और इसे 6 अगस्त, 2018 को लोकसभा ने पारित कर दिया।