विदेशी मुद्रा प्रबंधन
विदेशी मुद्रा प्रबंधन
भारत में लंबे समय तक विदेशी मुद्रा को नियंत्रित कमोडिटी जैसा माना जाता था। इसकी वजह इसकी सीमित उपलब्धता थी। देश में विदेशी मुद्रा प्रबंधन के शुरुआती दौर में इसकी सीमित आपूर्ति के कारण फोकस सिर्फ मांग को कम कर कर विदेश मुद्रा के नियंत्रण पर था। भारत में 3 सितंबर 1939 को अस्थायी तौर पर भारत के रक्षा नियमों के तहत एक्सचेंज नियंत्रण पेश किया गया था। मुद्रा विनिमय के लिए वैधानिक अधिकार विदेशी मुद्रा नियमन कानून, 1947 (फेरा) के जरिये मिला। इसके बाद इसे और व्यापक बनाते हुए विदेशी मुद्रा नियमन कानून, 1973 लाया गया। इस कानून।ने रिजर्व बैंक और कुछ मामलों में केंद्र सरकार को भारत के।बाहर विदेशी मुद्रा के भुगतान संबंधी सौदों, करेंसी नोटों और।सराफे के आयात और निर्यात, निवासियों और प्रवासियों के।बीच प्रतिभूतियों के ट्रांसफर, विदेशी प्रतिभूतियों के अधिग्रहण।और भारत के भीतर व बाहर अचल संपत्तियों आदि सौदों को।नियंत्रित करने और इसके नियमन संबंधी अधिकार दिए गए।
विदेशी मुद्रा को संचालित करने वाले नियमों में व्यापक स्तर पर ढील की पहल की गई। 1991 में उदारीकरण से जुड़े उपाय पेश किए गए और इस कानून में संशोधन कर नया।विदेशी मुद्रा नियमन (संशोधन) कानून, 1993 पेश किया गया। बाहरी कारकों मसलन विदेशी मुद्रा रिजर्व में भारी बढ़ोतरी,विदेशी व्यापार में बढ़ोतरी, शुल्कों को तर्कसंगत बनाए जाने आदि में अहम बदलावों को ध्यान में रखते हुए 1999 में।विदेशी मुद्रा नियमन (फेरा) की जगह विदेशी मुद्रा प्रबंधन।कानून (फेमा) लाया गया। फेमा को 1 जून 2000 से लागू।किया गया। फेमा का मकसद बाहरी व्यापार और भुगतान के है लिए राह आसान करना और भारत में विदेशी मुद्रा बाजारों के व्यवस्थित ग्रोथ को बढ़ावा देना है। रिजर्व बैंक ने 31 दिसंबर 2004 से अपने इस विभाग का नाम भी बदल दिया। विदेशी मुद्रा विभाग से बदलकर इसका नाम मुद्रा नियंत्रण विभाग कर दिया गया है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कंसॉलिडेटेड फंड. आपातकालीन फंड या सार्वजनिक खाते से पैसे लेने या भुगतानहकरने के लिए नियम बना सकती हैं। ये नियम रिजर्व बैंक पर।कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं. क्योंकि इन फंडों से जुड़े खाते रिजर्व बैंक के पास होते हैं।