नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक सुब्रमण्यम चंद्रशेखर
नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक सुब्रमण्यम चंद्रशेखर
आसमान में जगमगाते सितारे हमेशा से ही मानव के कौतूहल का केन्द्र रहे हैं। विज्ञान ने हमेशा इनके राज़ खोलने की कोशिश की है। साथ ही ज्योतिष जैसी विधाओं ने मानव जीवन पर इनके प्रभाव के बारे में बहुत कुछ कहा है। विज्ञान ने हमें बताया है कि अत्यन्त लघु दिखने वाले ये तारे सूर्य से भी बहुत ज्यादा गर्म और विशाल पिंड हैं। इन्हीं तारों के बारे में महान वैज्ञानिक सुब्रह्मनियम चंद्रशेखर ने कुछ ऐसी अनोखी बातें बताईं कि नोबुल पुरस्कार अनायास ही उनकी झोली में आ गिरा।
सुब्रह्मनियम चंद्रशेखर का जन्म हुआ था 19 अक्तूबर 1910 को भारत के लाहौर जिले में। बाद में वे शिक्षा हासिल करने यू-एस- गये और वहीं बस गये।
चंद्रशेखर का उल्लेखनीय कार्य चंद्रशेखर लिमिट (chandrashekhar limit) के नाम से जाना जाता है। जो तारों के अन्त से सम्बंधित है। दरअसल किसी भी तारे की एक आयु होती है। जिसके पश्चात उसका अन्त हो जाता है। तारों में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया से ऊर्जा पैदा होती रहती है। हाईडोजन के नाभिक आपस में जुड़कर हीलियम के नाभिक बनाते रहते हैं। जिसके फलस्वरूप एनर्जी पैदा होती है। लेकिन एक समय ऐसा आता है जब इस एनर्जी को पैदा करने वाला ईंधन समाप्त हो जाता है। यहीं से तारे की मृत्यु हो जाती है। कुछ इस तरह जैसे किसी दीपक का तेल खत्म हो जाये।
अब सवाल पैदा होता है कि मृत्यु के बाद तारा किस रूप में परिवर्तित होता है? साइंस के अनुसार यह तारा न्यूट्रान स्टार (neutron star) या ब्लैक होल (black hole) या फिर सफेद बौने तारे (white dwarf) में परिवर्तित हो जाता है। तारा इन तीनों में से कौन सा रूप लेगा, इसी से सम्बंधित है चंद्रशेखर लिमिट। जिसके अनुसार यदि तारे का द्रव्यमान चंद्रशेखर लिमिट से कम है तो वह मृत्यु के बाद सफेद बौने अर्थात टिमटिमाते चिराग में बदल जाता है। और अगर उसका द्रव्यमान चंद्रशेखर लिमिट से ज्यादा है तो एक महाविस्फोट सुपरनोवा (Supernova) के बाद वह न्यूटान स्टार या फिर ब्लैक होल में परिवर्तित हो जाता है।
अपनी गणनाओं द्वारा पहली बार चंद्रशेखर ने ब्लैक होल का भौतिक अस्तित्व सिद्व किया। इससे पहले ब्लैक होल को एक काल्पनिक पिंड समझा जाता था। ज्ञात रहे कि ब्लैक होल एक ऐसे पिंड को कहते हैं जिसका घनत्व असीमित व गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि वह प्रकाश किरणों को भी अपने अन्दर समेट लेता है।
अपनी रिसर्च के आरम्भिक दिनों में चंद्रशेखर ने बैलिस्टिक मिसाईलों पर उल्लेखनीय कार्य किया। बाद में उन्होंने क्वान्टम भौतिकी तथा सापेक्षकता के सिद्वान्त पर भी काफी कार्य किया। सितारों की सैद्धान्तिक संरचना व उसके विकास पर उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए सन 1983 का भौतिकी का नोबुल पुरस्कार उन्हें प्रदान किया गया।