पृथ्वी की उत्पति

पृथ्वी सौर परिवार में सूर्य से तीसरा, भौगोलिक एवं भूगर्भिक रूप से एक जीवन्त ग्रह है जहाँ अन्य ग्रहों की अपेक्षाजीवन का संगीत सुनाई व दिखाई देता है। इतने विशालब्रह्माण्ड में ऐसा नहीं हो सकता कि पृथ्वी के अतिरिक्त कहीं ओरजीवन न हो। लेकिन वर्तमान के वैज्ञानिक साक्ष्य एवं प्रमाण पृथ्वी पर ही जीवन होने के संकेत करते हैं पृथ्वी पर जीवन सूर्य से एक निश्चित दूरी तथा आदर्श सौर्य ताप होने के कारण सम्भव होपाया है। इस प्रकार की अवस्था को गोल्डीलाक्स पेटी(Goldilocks Zone) के नाम से जाना जाता है। जिसमें सूर्य से एक निश्चित दूरी होने पर ग्रह पर जल द्रव्य अवस्था में पाया जाता है, जैसे पृथ्वी। इसी अवस्था वाले ग्रहों की खोज वैज्ञानिक कर रहे हैं, और कुछ ग्रह पृथ्वी जैसे वातावरण वाले प्राप्त भी हुए हैं जहाँ भविष्य में पृथ्वी जैसे जीवन का परिष्करण(Refinement) हो पायेगा, और मानव प्रजाति बहु ग्रहीय प्रजाति बन जायेगी। वह दिन पृथ्वी एवं मानवता के लिए संक्रान्ति काल होगा।

पृथ्वी की उत्पति

पृष्वी की उत्पति के संबंध में विभिन्न दर्शनिकों व वैज्ञानिकों ने अनेक परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की है। इनमें से एक प्रारंभिक एवं लोकप्रिय मत जर्मन दार्शनिक इमैनुअल कान्ट(mmamuel Kant) का है। 1796 ई. में गणितज्ञ लाप्लेस(Lplace) ने इसमें संशोधन प्रस्तुत किया जो नीहारिका परिकल्पना (Nebular hypothesis) के नाम से जाना जाता है। इस परिकल्पना के अनुसार ग्रहों के निर्माण धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल से हुआ जो कि सूर्य की युवा अवस्था से संबद्ध थे। बाद में 1900 ई. में चेम्बरलेन और मोल्टन(Chamberlain & Moulton) ने कहा कि ब्रह्मांड में एक अन्य अमरणशील तारा सूर्य के नजदीक से गुजरा इसके परिणामस्वरूप तारे के गुरूत्वाकर्षण से सूर्य सतह से सिगार के आकार का कुछ पदार्थ निकलकर अलग हो गया। यह तारा जब सूर्य सेवदूर चला गया तो सूर्य सतह से बाहर निकला हुआ यह पदार्थ सूर्य के चारों तरफ घूमने लगा और यही धीरे-बीरे संघनित होकर ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गया। पहले सर जेम्स जींस(Srlames Jeans) और बाद में सर हेंरोल्ड जैफरी (Sir Harold jfiery) ने इस मत का समर्थन किया यद्यपि कुछ समय बाद के तर्क सूर्य के साथ एक और साथी तारे के होने की बात मानते है। ये तर्क “द्वितारक सिद्धांत’ (Binary theories) के नाम सेजाने जाते हैं। 1950 ई. में रूस के ऑटो शिमिड (Ortho Schmid) व जर्मनी के कार्ल वाइजास्कर (Carl wezascar) ने नीहारिका परिकल्पना (Nebular hypothesis) में कुछ संशोधन किया। उनके विचार से सूर्य एक सौर नीहारिका से घिरा हुआ था जो मुख्यत हाइड्रोजन, हीलियम और धूलिकणों की बनी थी। इन कणों के घर्षण व टकराने (Collision) से एक चपटी तश्तरी की आकृति के बादल का निर्माण हुआ और अभिवृद्धि(Accretion) प्रक्रम द्वारा ही ग्रहों का निर्माण हुआ। इसके पश्चात्, वैज्ञानिकों ने पृथ्वी या अन्य ग्रहों की ही नहीं वरन् पूरे ब्रह्यांड की उत्पत्ति संबंधी समस्याओं को समझने का प्रयास किया।

बह्यांड की उत्पति

आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) हैं। इसे विस्तरित ब्रह्यांड परिकल्पना (expanding Universe Hypothesis)(Edwin Hubble) ने प्रमाण दिये कि ब्रह्यांड का विस्तार हो रहा है। समय गुजरने के साथ आकाश गंगाएँ एक दूसरे से दूर हो रही है। आप प्रयोग कर जान सकते हैं कि ब्रह्यांड विस्तार का क्या अर्थ है। एक गुब्बारा ले और उस पर कुछ निशान लगाएँ जिनकोआकाशगंगायें मान लें । जब आप इस गुब्बारे को फुलाएँगे, तब गुब्बारे पर लगे ये निशान गुब्बारे के फैलने के साथ एक दूसरे से दूर जाते प्रतीत होंगे । इसी प्रकार आकाश गंगाओं के बीच की दूरी भी बढ़ रही है और परिणामस्वरूप ब्रह्मांड विस्तारित हो रहा है। यद्यपि आप यह पाएँगे कि गुब्बारे पर लगे चिन्हों के बीच की दूरी के अतिरिक्त, चिन्ह स्वयं भी बढ़ रहे हैं। जबकि यह तथ्य के अनुरूप नहीं हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि आकाश गंगाओं के बीच

की दूरी बढ़ रही है, परंतु प्रेक्षण आकाश गंगाओं के विस्तार को नहीं सिद्ध करते। अतः गुब्बारे का उदाहरण आशिक रूप से ही मान्य है। बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्न अवस्थाओं में हुआ है –

a) आरम्भ में वे सभी पदार्थ, जिनसे ब्रह्मांड बना है, अति छोटे गोलक (एकाकी परमाणु) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था।

(ii) बिग बैंग की प्रक्रिया में इस अति छोटे गोलक में भीषण विस्फोट हुआ। इस प्रकार की विस्फोट प्रक्रिया से वृहत्विस्तार हुआ। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि बिग बैंग की घटना आज से 14 अरब वर्षों पहले हुई थी। ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है। विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट (Bang) के बाद एक सैंकेंड के अल्पांश के अंतर्गत ही वृहत विस्तार हुआ। इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई। बिग बैंग होने के आरंभिक तीन मिनट के अंतर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ।

(।।।) बिग बैंक से 3 लाख वर्षों के दौरान, तापमान लगभग 4200 डिग्री सेन्टीग्रेड तक गिर गया और परमाणुवीय पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।

ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार का होना। हॉयल (Hoyle) ने इसका विकल्प स्थिर अवस्था संकल्पना (Steady State Concept) के नाम से प्रस्तुत किया। इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है। यद्यपि ब्रह्मांड के विस्तार संबंधी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय अब ब्रह्मांड विस्तार सिद्धांत के ही पक्षधर हैं।

तारों का निर्माण

प्रारंभिक ब्रह्मांड में ऊर्जा व पदार्थ का वितरण समान नहीं था। घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरूत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई. जिसके परिणामस्वरूप पदार्थ का एकत्रण हुआ। यही एकत्रण आकाशगंगाओं के विकास का आधार बना। एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है। आकाशगंगाओं का विस्तार इतना अधिक होता है कि उनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्ष में (Light years) मापी जाती है। एक अकेली आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाश वर्ष के बीच हो सकता है। एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है जिसे नीहारिका(Ncbula) कहा गया। क्रमशः इस बढ़ती हुई नीहारिका में गैस के झुंड विकसित हुए। ये झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने,जिनसे तारों का निर्माण आरंभ हुआ। ऐसा विश्वास किया जाताहै कि तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्ष पहले हुआ।

प्रकाश वर्ष (Light year)

प्रकाश वर्ष (Light year) समय का नहीं वरन् दूरी का माप है। प्रकाश की गति 3 लाख कि मी. प्रति सैकंड है। एक साल में प्रकाश 95 खरब कि.मी. की दूरी तय करेगा, वह एक प्रकाश वर्ष होगा। पृथ्वी व सूर्य की औसत दूरी 14 करोड़ 98 हजार किलोमीटर है। प्रकाश वर्ष के संबंध में यह प्रकाश वर्ष का केवल 8 मिनिट है।

ग्रहों का निर्माण

ग्रहों का निर्माण

ग्रहों के विकास की निम्नलिखित अवस्थाएँ मानी जाती हैं:) तारे नीहारिका के अंदर गैस के गुथित झुंड है। इनगुंथित झुंडों में गुरूत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल मेंक्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारोंतरफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी(Rotating disc) विकसित हुई।

(i) अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरंभहुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ गोले संसंजन(अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वाराग्रहाणुओं (Planetesimals) में विकसित हुए।संघटन (Collision) की क्रिया द्वारा बड़े पिंड बनने शुरू हुए और गुरूत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप येआपस में जुड़ गए । छोटे पिंडों की अधिक संख्या हीग्रहाणु है।

ii) अंतिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं केसहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिंड ग्रहों के रूप मेंबने।

सौरमंडल

हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह हैं। नीहारिका को सौरमण्डलका जनक माना जाता है उसके ध्वस्त होने व क्रोड के बनने कीशुरूआत लगभग 5 से 56 अरब वर्षों पहले हुई एवं ग्रह लगभग 4.6 से 4.56 अरब वर्षों पहले बने। हमारे सौरमंडल में सूर्य (तारा).3 ग्रह, 183 उपग्रह, लाखों छोटे पिंड जैसे- क्षुद्र ग्रह (ग्रहों केटुकड़े) (Asteroids). धूमकेतु (Comets) एवं वृहद मात्रा में धुलिकण व गैस हैं।

इन आठ ग्रहों में बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल भीतरी ग्रह(Inner planets) कहलाते हैं, क्योंकि ये सूर्य व क्षुद्गय्हों की पट्टीके बीच स्थित है। अन्य चार ग्रह बाहरी ग्रह (Outer planets)कहलाते हैं। पहले चार ग्रह पार्थिव (Terrestrial) ग्रह भी कहेजाते हैं। इसका अर्थ है कि ये ग्रह पृथ्वी की भाँति ही शैलों औरधातुओं से बने हैं और अपेक्षाकृत अधिक घनत्व वाले ग्रह हैं । अन्यचार ग्रह गैस से बने विशाल ग्रह या जोवियन (Jovian) ग्रहकहलाते हैं। जोवियन का अर्थ है बृहस्पति (Jupiter) की तरह। इनमें से अधिकतर पार्थिव ग्रहों से विशाल है और हाइड्रोजन वहीलीयम से बना सघन वायुमंडल है। सभी ग्रहों का निर्माणलगभग 46-456 अरब वर्षों पहले एक साथ में हुआ।

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