बिहार का मंदार पर्वत: समुद्र मंथन में बना था मथनी
मंदार पर्वत: समुद्र मंथन में बना था मथनी
एक पौराणिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ था तो उसमें देवताओं और असुरों सभी ने सहयोग किया था। इतने विशाल समुद्र को मथने के लिए वासूकी नाग की रस्सी और मंदार पर्वत की मथनी बनाई गई थी। मंदार पर्वत बिहार राज्य के बांका जिले के बौसी में स्थित है। बौसी भागलपुर और देवघर के मुख्य मार्ग पर है। भागलपुर से इसकी दूरी 53 कि.मी है और देवघर से 70 किमी। यह 750 फीट ऊंचा एक सुडौल पर्वंत है, जिसमें पूर्व से पश्चिम की ओर अवरोही क्रम में सात श्रृंखलाएं हैं। इसके शिखर पर दो मंदिर हैं। एक हिंदू और दूसरा जैन मंदिर। मंदार पर्वत एक ग्रेनाइट पहाड़ी है। ऐसी मान्यता है कि इस पहाड़ी का उपयोग देवताओं के लिए अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन में मथनी के रूप में किया गया था।
यह पर्वत हिंदू, जैन और बौद्ध तीनों धर्मावलंबियों का तीर्थ स्थल है। पर्वत पर बने जैन मंदिर में जैन धर्म के 12वें तीर्थंकर वाशुपूज्यजी को तीन हजार साल पुरानी चरण पादुका मौजूद है। भगवान बुद्ध के प्राथमिक चार अर्हताओं में से एक सुपीनदोला भारद्वाज का निवास स्थान भी यहीं था। मंदार पर्वत के नीचे एक तालाब है, जिसे पापहरनी सरोवर कहा जाता है। यहीं से पर्वत पर चढ़ने का रास्ता भी है। इस स्थान पर एक शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण मगध के गुप्त वंश के सम्राट आदित्य सेन की पत्नी कोण देवी ने करवाया था। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार चोल राजा गंगईकोंडा जो कुष्ठ रोग से ग्रसित था, उसका का रोग इस सरोवर में स्नान करने से खत्म हो गया था। पापहरनी तालाब के बीचों-बीच लक्ष्मी-विष्णु का मंदिर स्थत है। यहां पर हर साल मकर संक्रांति पर मेले का आयोजन होता है।
मंदार पर्वत पर एक कुंड भी है, जिसे सीताकुंड कहा जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि प्रभु श्रीराम जब वनवास में थे, तो मंदार पर्वत पर भी रुके थे और इसी कुंड में माता सीता ने भगवान भास्कर की पूजा की थी।
मंदार पर्वत का वर्णन वेदों, रामायण, महाभारत और पुराणों में भी मिलता है। पुराणों में सात प्रमुख पर्वतों को कुल पर्वत की संज्ञा दी गई है, जिनमें मलय, हिमालय, गंधमादन, कैलाश, निषाद, सुमेरू के साथ मंदार का भी उल्लेख है। लेकिन मंदार पर्वत इतिहास और पुरातत्व की दृष्टी से अधिक महत्वपूर्ण है। संपूर्ण पर्वत पर तालाबों और गुफाओं में बनाए गए शिल्प और शिलालेख अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। पत्थर और प्राचीन इटों से बनाए गए दर्जनों मंदिरों के अवशेष दूर-दूर तक फैले हुए हैं। प्राचीन काल में यहां 88 तालाब होने का वर्णन मिलता है, जिनमें से कुछ अभी भी मौजूद हैं। पर्वत के मध्य भाग में पत्थर में विष्णु के रूप में भगवान मधुसूदन का एक विशाल सिर खुदा हुआ है। मोनोलिथ के रूप में निर्मित इस प्रतिमा का सिर लगभग 7 फीट का है। यदि पूरी प्रतिमा का निर्माण होता तो यह लगभग 54 फीट की होती। भगवान मधुसूदन के सिर के इस भित्ति शिल्प का देश भर की विशाल मूर्तियों में तीसरा स्थान है। पर्वत के नीचे स्थित मंदिर में एक लाल पत्थर की गाय बनी हुई है, जिसमें 2 बच्चे दूध पी रहे हैं। इसे कपिल मुनि की गाय या कामधेनु भी कहते हैं, जो समुद्र मंथन से प्राप्त हुई थी। बौसी से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्मीपुर डैम है, जो अपनी प्राकृतिक छटा के लिए प्रसिद्ध है। इसके चारों ओर स्थित वन इसकी प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ा देते हैं।
■■■