BSF : जब पुलिस को पाकिस्तान की सेना से लड़ना पड़ा तो लिया गया बीएसएफ के गठन का फैसला

सीमा सुरक्षा बल या बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स(बीएसएफ) की स्थापना 1 दिसंबर 1965 को हुई थी। यह केंद्रीय सुरक्षा बल है जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। बीएसएफ का मुख्य काम देश की सीमाओं की रक्षा करना और दुश्मन देशों से तस्करी और आतंकवाद जैसी गतिविधियों को रोकना और शांति कायम रखना है। बीएसएफ के 61 वें स्थापना दिवस पर जानते हैं इस्की स्थापना कैसे और किन परिस्थतियों में हुई?

अप्रैल 1965 में पाकिस्तान ने कच्छ के सरदार पोस्ट,छार बेट और बेरिया बेट पर हमला कर दिया। राज्य पुलिस ने हमले का डटकर जवाब दिया। लेकिन इस हमले ने साफ कर दिया कि राज्य पुलिस सीमा पर होने वाली बड़ी सैन्य चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार नहीं थी। इसी मुद्दे पर दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई, जहां सीमा सुरक्षा के लिए एक नए और मजबूत बल की जरूरत पर सहमति बनी।

सीमा सुरक्षा के लिए नए बल को तैयार करने की जिम्मेदारी मध्यप्रदेश पुलिस के तत्कालीन डीजीपी केएफ रुस्तमजी को दी गई। वे भारत छोडो आंदोलन के दौरान नागपुर में फैले दंगों को शांत करवाने केलिए जाने जाते थे। अप्रैल-मई 1965 में उन्होंने एक नए बल की संरचना तैयार करनी शुरू की। इसमें राज्य पुलिस और कुछ अन्य अर्ध सैनिक दलों को मिलाकर बटालियन तैयार की गई। अगले कुछ महीनों में पंजाब, राजस्थान और गुजरात की सीमा पर करीब 25 बटालियन तैनात कर दी गई थीं। यह बल नया था,पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं था, लेकिन सीमा पर उपस्थिति आवश्यक थी।

1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध की शुरुआत होते ही सीमा से लगे कई सेक्टरों में घुसपैठ और हमले तेजी से बढ़ने लगे। पंजाब, राजस्थान और गुजरात की कई अग्रिम चौकियों पर पाकिस्तानी सेना और रेंजर्स ने अचानक दबाव बना दिया। कई इलाकों में स्थिति इतनी तेजी से बदली कि भारतीय सेना तत्काल वहां पहुंच नहीं पाई। ऐसे समय सीमा पर जो सबसे पहले मौजूद था, वह था नवगठित बीएसएफ, यह बल नया था, संख्या भी सीमित थी, लेकिन इसके बावजूद बीएसएफ ने फिरोजपुर,गंगानगर, बाड़मेर सेक्टर की सीमा पर सीधे पकिस्तानी सौनकों और रेंजर्स को जवाब दिया ।

सबसे चर्चित घटना सादिकी पोस्ट की रही, जहां बीएसएफ की 15 वीं बटालियन ने पाकिस्तानी टैंक की टुकड़ी को आगे बढ़ने से रोक दिया और सीमा को बचाए रखा। जब यह खबर दिल्ली पहुंची तो तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारीलाल नंदा नाराज हो गए और मीटिंग में सवाल किया कि एक देश की पुलिस दुसरे देश की फौज से कैसे लड़ेगी ? इस पर बीएसएफ का नेतृत्व कर रहे रुस्तमजी ने शांत होकर कहा कि जब तक सेना नहीं आती, सीमा पर जो मौजूद हैं, वही लड़ रहे हैं।

सितम्बर 1965 में युद्ध खत्म होने के बाद यह साफ हो गया कि सीमा सुरक्षा के लिए एक समर्पित केंद्रीय बल की जरूरत है। राज्य पुलिस पर निर्भर रहकर सीमा की रक्षा संभव नहीं थी। इसी कारण1 दिसम्बर 1965 को बीएसएफ को आधिकारिक रूप से अलग और विशिष्ट बल का दर्जादिया गया। 1971 के युद्ध में मुक्ति वाहिनी की ट्रेनिंग से लेकर बांग्लादेश से भारत आए शरणार्थियों की जिम्मेदारी बीएसएफ ने संभाली। वहीं कारगिल युद्ध में भी इस बल ने सेना को बैक अप स्पोर्ट दिया औरउन तक हथियार तथा अन्य लॉजिस्टिक पहुंचाए।

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