भारत में संकटापन्न प्रजातियाँ
भारत में संकटापन्न प्रजातियाँ(Endangered-species-in-india)
नॉदर्न रिवर टेरापिन (Northern River Terrapin):
यह भारत की सर्वाधिक संकटापन्न कछुआ प्रजातियों में से एक है। इसका वैज्ञानिक नाम बतागुर बास्का (Batagur baska) है। विश्व की 50 सर्वाधिक संकटापन्न कछुओं में से ताजे जल की पांच कछुओं में नॉदर्न रिवर टेरापिन भी शामिल है। आईयूसीएन की लाल सूची में इसे ‘चरम संकटापन्न (Critlically Endangered: CR) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। आईयूसीएन के मुताबिक भारत एवं बांग्लादेश में इसकी कुछ संख्या बची हुयी है जबकि म्यांमार में यह संभवत: विलुप्त हो चुकी है और थाईलैंड में यह विलुप्त हो चुकी है। भारत में इसकी आबादी पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा में प्राप्त होती है। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने इस प्रजाति को चरम संकटापन्न प्रजातियों के रिकवरी प्रोग्राम में शामिल किया है।
क्लाउडेड लेपर्ड (Clouded Leopard):
इसका वैज्ञानिक नाम नियोफे लिसनेबुलोसा’ (Neofelis ncbulosa) है । इस प्रजाति का नामकरण इस पर लेपित धब्बे के कारण हुयी है। यह जंगलों में कम ही देखी जाती है और इसका पर्यावास भी कुछ हद तक रहस्यमयी बना हुआ है। इस प्रजाति की विशेषता यह है कि यह जमीन के बजाय पेड़ों पर रहना अधिक सहज महसूस करती है। पर्यावास नाश एवं शिकार के कारण इसकी संख्या कम हो रही है।
एशियाई जंगली भैंसा (Asiatic Wild Buffalo):
एशियाई जंगली भैंसा का वैज्ञानिक नाम ‘बुबालुस आनी” (Bubalus arnee) है। इसे आर्थिक तौर पर महत्वपूर्ण जानवर समझा जाता है क्योंकि इसे पालतू भैसों का मूल स्रोत समझा जाता है। यह संकटापन्न प्रजाति मध्य भारत में पाई जाती है। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में भी इस प्रजाति ने अपना सुरक्षित पर्यावास खोज लिया है । इसी को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने कोलामार्का वन क्षेत्र को एशियाटिक वाइल्ड बफैलो के लिए संरक्षण रिजर्व घोषित किया है । आईयूसीएन की लाल सूची में वाटर बफैलो को संकटापन्न सूची में वर्गीकृत किया गया है।
निकोबार मेगायोड (Nicobar megapode):
निकोबार मेगापोड को निकोबार स्क्रबफाउल (Nicobar Scrublowl) भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मेगापोडियस निकोबारिएंसिस’ (Megapodius nicobariensis) ‘स्थानीय स्तर पर इसे कोगाह (Kongah) भी कहा जाता है। यह निकोबार द्वीप की स्थानिक (एंडेमिक) प्रजाति है। बड़े पैड़ो वाला यह पक्षी प्रजाति अपना घौंसला जमीन पर बनाती हैं। वर्ष 2004 की सूनामी के पश्चात इसकी संख्या में काफी कमी आई है क्योंकि जिस टीला में यह अपना घोंसला बनाती है वह लगभग बह गयी थी और केवल लगभग 20 प्रतिशत ही बची थी। नैनकोवरी द्वीप पर इसकी आबादी को पड़ोेसी देशों के शिकारियों एवं पर्यावास नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़ा है। हालांकि आईयूसीएन की लाल सूची में इसे वल्नरेब्ल श्रेणी में शामिल किया गया है परंतु इनकी संख्या कम हो रही है।
एडिब्ल नेस्ट स्विफ्टलेट (Ediblenest Swiftlet):
यह एक पक्षी पजाति है जिसका वैज्ञानिक नाम एरोड़ामस फ्युसिफेगस’ (Acrodramus fuciphagus) है। आईयूसीएन की लाल सूची में इसे ‘न्यून चिंताजनक (Least conccrn) त्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। यह पक्षी प्रजाति अंडमान-निकोबार में पाई जाती है और नाम से ही स्पष्ट होता है कि इसका घोसला कुछ खास है। दरअसल यह पक्षी अपना घौंसला चूनापत्थर वाली गुफा में अपनी लार से बनाता है। सिविपटलेट का प्रत्येक जोड़ा लगभग 10 ग्राम का लार थूक के रूप में फेककर घोसला का निर्माण करता है। यह घोसला मानव के लिए खाने योग्य है।
रेड पांडा (Red Panda):
भारत में रेड पांडा सिक्किम, पश्चिम बंगाल. मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांभार एवं चीन में पाई जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘ऐलुरस फुल्गेस’ (Ailurus fulgcns) है। यह एक लघु वानस्पतिक स्तनधारी है। आईयूसीएन की लाल सूची में इसे संकटापन्न सूची में शामिल किया गया है। इसे मुख्य खतरा आवासीय व वाणिज्यिक विकास, कृषि य जल कृषि के विकास, ऊर्जा उत्पादन एवं खनन. परियहन एवं सेवा गलियारा इत्यादि से है।
मिश्मी ताकिन (Mishmi Takin):
यह बकरी-मृग प्रजाति है जो भारत में अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है। सिक्किम में भी इसकी उपस्थिति रिपोर्ट की गई है। भारत के अलावा यह भूटान, म्यांमार व चीन में पाई जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम बुडोरकास टैक्सीकलर (Budorcas taxicolor) है। यह बॉविडे स्तनधारी परिवार से संधंधित है। आईयूसीएन की लाल सूची में इसे ‘वल्नरेव्ল’ श्रेणी में रखा गया है। इस जानवर की खास विशेषता यह है कि इसमें विभिन्न जानवरों के अंगों का मिश्रण पाया जाता है।