प्रसिद्ध व्यक्तिव

प्रसिद्ध व्यक्तिव

राजा रवि वर्मा

राजा रवि वर्मा विख्यात चित्रकार थे। हिंदू महाकाव्यों और धर्मग्रंथों पर बने चित्र उनकी चित्रकारी की सबसे बड़ी विशेषता हैं। उनके अधिकतर पात्र भारतीय साहित्य और संस्कृति से लिए गए हैं। उनके चित्रों में हिंदू देवी-देवताओं का प्रभावशाली चित्रण देखा जा सकता है। उनके चित्रों का संग्रह वडोदरा के लक्ष्मीविलास महल के संग्रहालय में देखा जा सकता है। चित्रकला की शिक्षा उन्होंने युूरोपीय शैली के चित्रकार मदुरै के अलाग्री नायडू तथा थियोडोर जैंसन (विदेशी चित्रकार) से पाई थी। उनकी चित्रकारी में दोनों शैलियों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। उनकी कलाकृतियों को प्रतिकृति या पौर्टेट, मानवीय आकृतियों वाले चित्र तथा इतिहास व पुराण की घटनाओं से संबंधित चित्रों में बाँटा जा सकता है। राजा रवि वर्मा की लोकत्रियता तैल चित्रों के कारण भी है। तैल रंगों से उनकी जैसी सजीव प्रतिकृतियाँ बनाने वाला कलाकार दूसरा नहीं हुआ। फिल्म निर्माता केतन मेहता द्बारा राजा रवि वर्मा के जीवन पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों भापाओं में क्रमशः ‘कलर ऑफ पेशंस’ तथा “रंग रसिया’ नाम से फिल्म भी बनाई गई ।

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बिरज़ू महाराज

बिरज़ू महाराज का जन्म कत्थक गुरु जगन्नाथ महाराज के घर हुआ था। उन्हें उनके चाचा लच्छू महाराज एवं शंभु महाराज से प्रशिक्षण मिला। मात्र 13 वर्ष की आयु में ही नई दिल्ली के संगीत भारती विद्यालय में उन्होंने नृत्य सिखाना शुरू कर दिया था। कुछ समय बाद वे संगीत नाटक अकादमी के कत्थक केंद्र से जुड़ गए। बाद में वे इस संकाय के अध्यक्ष तथा निदेशक भी रहें और 1998 में वहाँ से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने कलाश्रम नाम से दिल्ली में एक नाट्य विद्यालय भी खोला। इसके अलावा सत्यजीत रे की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के दो गीतों में नृत्य निर्देशन करने के साथ उन्हें अपनी आवाज भी दी। 2002 में प्रदर्शित फिल्म ‘देवदास’ के गाने ‘काहे छेड़ छेड़ मोहे ‘ का नृत्य संयोजन इन्होंने ही किया था। इसके अलावा कई अन्य हिन्दीं फिल्मों जैसे डेढ़ इश्किया. उमराव जान तथा संजय लीला भंसाली निदेशित बाजीराव मस्तानी में भी कत्थक नृत्य के संयोजन किए। इन्हें पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी तथा कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया। काशी हिंदू विश्विद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय ने इन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। 2012 में फिल्म ‘विश्वरूपम’ के लिए नृत्य निर्देशन हेतु राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार तथा 2016 में फिल्म बाजीराव मस्तानी के गीत ” मोहे रंग दो लाल’ के नृत्य-निर्देशन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

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राखलदास बनर्जी

राखलदास बनर्जी एक प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद, इतिहासकार एवं श्रेष्ठ साहित्यकार थे। बांग्ला में रचे उनके ऐतिहासिक संग्रह ‘ पाषाणेर कथा ‘, तथा “धर्मपाल’, ‘करुणा’, “मयूख’ ‘”शशांक’ , ‘ध्रुव’ आदि उपन्यास उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दिखाते  हैं। सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के लिए उन्हें प्रमुखता से याद किया जाता है ।

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डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा

डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा प्रसिद्ध इतिहासकार एवं हिन्दी लेखक थे । डॉ.ओझा को राजस्थान के मार्गशोधक इतिहास लेखकों में गिना जाता है। डॉ. ओझा ने भारतीय प्राचीन लिपिमाला नामक ग्रंथ लिखकर पुरातत्त्व जगत् में विशिष्ट ख्याति प्राप्त की ।

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कबीरदास 

कबीरदास 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे, जो हिंदी साहित्य के भक्तियुग में परमेश्वर भक्ति के एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। इनकी रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को गहरे तक प्रभावित किया। उनकी साखियों और सबद सिखों के आदिग्रंथ में भी देखने को मिलते हैं। वे धर्मों को परे रखकर एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। उनके द्वारा समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास एवं सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की गई।

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कालिदास 

कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे जिन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएँ की। उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूलत्त्व निरूपित हैं। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण कालिदास राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं। कुछ विद्वान तो उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान भी देते हैं।

कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना अभिज्ञानशाकुंतलम् है। इसका कई यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। यह विश्व सहित्य को अग्रगण्य रचना मानी जाती है।मेघदूतम् कालिदास की दूसरी सर्वश्रेष्ठ रचना है जो उनकी कल्पनाशक्ति, अभिब्यंजनावाद और भावाभिव्यंजना शक्ति का परिचय देती हैं।

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रविन्द्र नाथ टैगोर 

विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता हैं । वे भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा तथा एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति थे। वे एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो अलग-अलग देशों का राष्ट्रगान बनी -‘जन गण मन’ भारत का राष्ट्रगान और ‘ आमार सोनार बांग्ला’ बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान । उनके गीत मानवीय भावनाओं के अलग -अलग रंग प्रस्तुत करते हैं। हालांकि गाँधी द्बारा राष्ट्रवाद को अधिक महत्त्व देने तथा टैगोर के राष्ट्रवाद से अधिक मानवता को महत्तव देने के कारण टैगोर का महात्मा गाँधी से हमेशा वैचारिक मतभेद रहा। लेकिन वे दोनों एक- दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। टैगोर ने ही गाँधीजी को महात्मा का विशेषण दिया था। 1913 ई. में रबीन्द्रनाथ को उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिए साहित्य के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1915 ई. में राजा जॉर्ज पंचम ने उन्हें नाइट्हुड की पदवी से सम्मानित किया किंतु जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्होंने यह उपाथि लौटा दी थी।

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