सिर्फ 7 सदस्यों से हुआ था ‘फीफा’ का आगाज, फीफा वर्ल्ड कप 2026 के निकाले गए ड्रा, 11 जून से वर्ल्ड कप

फुटबॉल आज दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल है और इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया को करीब आधी आबादी फीफा वर्ल्ड कप को किसी न किसी रूप में देखती है। जब भी वर्ल्ड कप के ड्रा का ऐलान होता है तो फुटबॉल के प्रशंसकों के बीच उत्सुकता बढ़ जाती है, जबकि इसी
से पता चलता है कि कौन सी टीम एक-दूसरे का सामना करेगी, किस ग्रुप का आसान माना जाएगा और किसै ग्रुप ऑफ डेथ कहा जाएगा। फीफा विश्व कप की शुरुआत 11 जून 2026 से हो रही है। इसके लिए शुक्रवार रात को वाशिंगटन डीसी के केनेडी सेंटर में ड्रा का आयोजन हुआ। इस दौरान 12 ग्रुपों की टीमों और मैचों के शेड्यूल का निर्धारण किया गया। ड्रा के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रप भी उपस्थित थे। उन्हें फीफा पीस अवार्ड से सम्मानित किया गया।

फुटबॉल का आधुनिक रूप 19वीं सदी के इंग्लैंड में विकसित हुआ था। हालांकि गेंद से खेले जाने वाले खेल कई प्राचीन सभ्यताओं में मौजूद थे, लेकिन नियमों को औपचारिक रूप से तैयार करने का काम 1863 में इंग्लैंड की फुटबॉल एसोसिएशन ने किया। इसके बाद फुटबॉल यूरोप से होते हुए दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और दुनिया के हर हिस्से में फैल गया। खेल की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस एक संस्था की जरुरत महसूस हुई और इसी उद्देश्य से 1904 में फीफा यानी ‘फेडरेशन इंटरनेशनल डे फुटबॉल एसोसिएशन’ के स्थापना पेरिस में की गई। शुरुआत में इसके केवल सात
सदस्य देश थे, लेकिन आज यह संख्या दो सौ से ज्यादा है।

फीफा ने वैश्विक प्रतियोगिता की अवधारणा 1920 के दशक में पेश की 1930 में उरुग्वे में पहला वर्ल्ड कप आयोजित हुआ। उस टूर्नामेंट में केवल 13 टीमें थी और आज यह संख्या 2026 में बढ़कर 48 हो गई है। वर्ल्ड कप की पहुंच और उसका आर्थिक प्रभाव इतना व्यापक है कि इस दुनिया का सबसे बड़ा खेल आयोजन कहा जाता है। 2026 का टूर्नामेंट कई मायनों में ऐतिहासिक होगा क्योंकि पहली बार तीन देश अमेरिका, कनाडा और मेक्सिको इसकी मेजवानी कर रहे हैं और टीमों की संख्या भी पहले कभी न देखे गए स्तर पर पहुंच रही है।

ड्रा की प्रक्रिया वर्ल्ड कप के सबसे रोचक घटनाओं में से एक होती है। टीम फीफा रैंकिंग और भौगोलिक संतुलन के आधार पर अलग-अलग पाॅट्स में बांटी जाती है। इसके बाद एक निर्धारित समारोह में एक-एक करके पाॅट्स से गेंद निकाली जाती है और प्रत्येक टीम को किसी एक ग्रुप में रखा जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि किसी ग्रुप में एक ही महाद्वीप की बहुत अधिक टीमें न आ जाएं और प्रतियोगिता संतुलित बनी रहे। 2026 के फार्मेट में कुल बारह ग्रुप होंगे और हर ग्रुप में चार टीमें होगी। ग्रुप स्टेज के बाद नॉकआउट राउंड शुरू होता है और इसमें अब 32 टीमें पहुंचेगी। इसमें नॉकआउट राउंड पहले से कहीं बड़ा और लंबा होगा।

फीफा ने दुनियाभर की राष्ट्रीय टीमों को छह महाद्वीपीय परिसंघों में बांटा है, जिनमें एशियाई टीमों के लिए एएफसी, अफ्रकी टीमों के लिए सीएएफ, दक्षिण अमेरिकी टीमों के लिए कॉनमेबोल, उत्तर और मध्य अमेरिकी टीमों के लिए कॉनकाकाफ, यूरोपीय टीमों के लिए यूएफा और ओशिआनिया टीमों के लिए ओएफसी शामिल हैं। इन परिसंघों में तय हिस्सेदारी के आधार पर टीमें क्वालिफायर मैच खेलती हैं। यूरोप में गुप स्टेज और प्लेऑफ होते हैं, दक्षिण अमेरिका में सभी टोमें एक -दूसरे से राउंड रॉबिन खेलती हैं, एशिया में कई चरणों में क्वालिफाइंग होता है और अफ्रीका में भी बहुस्तरीय चयन प्रक्रिया होती है।क्वालीफाइंग की यह लंबी यात्रा करीब दो से ढाई साल तक चलती है और अंत में केवल सर्व श्रेष्ठ टीमें वर्ल्ड कप तक पहुंचती हैं।

2026 के वर्ल्ड कप को लेकर उत्साह इसलिए भी ज़्यादा है क्योंकि कई बड़े फुटबॉल सितारों ने संकेत दिया है कि यह उनका आखिरी वर्ल्ड कप हो सकता है। साथ ही कई नए देशों जैसे कतर, मोरक्को, जापान और अमेरिका ने हाल के वर्षों में शानदार खेल दिखाया है और उम्मीद की जा रही है कि उनमें से कुछ टीमें इस बार बड़ा उलटफेर कर सकती है। इसके अलावा, अफ्रीकी टीमें लगातार मजबूत होती जा रही है। 2022 वर्ल्ड कप में मोरक्को के सेमीफाइनल तक पहुँचने के बाद यह उम्मीद और बढ़ गई है कि अफ्रीकी फुटबॉल विश्व स्तर पर नई ऊँचाईयां लेकर आएगा। 2026 का वर्ल्ड कप टीमों की संख्या बढ़ने, मैचों की कुल संख्या बढ़ने और तीन देशों की संयुक्त मेजबानी के कारण इतिहास का सबसे अनूठा आयोजन होने वाला है।

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